गुरदासपुर में ईजाद किया पराली से फाल्स सीलिंग की टाइल्स बनाने का फार्मूला
गुरदासपुर में ईजाद किया पराली से फाल्स सीलिंग की टाइल्स बनाने का फार्मूला

गुरदासपुर में ईजाद किया पराली से फाल्स सीलिंग की टाइल्स बनाने का फार्मूला

जाने गुरदासपुर में ईजाद किया पराली से फाल्स सीलिंग की टाइल्स बनाने का फार्मूला | Know the formula for making false ceiling tiles from stubble invented in Gurdaspur
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परमिंदर सिंह पंजाब के गुरदासपुर टाउन के बड़े ही फेमस व्यक्ति हैं। इंडस्ट्रियल एरिया में एलांयस ऑटो के नाम से इनका एक मल्टी ब्रांड कारों का वर्कशॉप हैं जिसमें सभी तरह की कारों का सभी तरह का काम होता है। बचपन से ही परमिन्दर सिंह को पर्यावरण से बेहद प्रेम है और कैसे पर्यावरण की रक्षा हो इसके बारे में इनके मन में मनन चिन्तंत चलता ही रहता है। सरदार दर्शन सिंथ जी जो बड़े गर्व से बताते हैं में दसवीं फेल हूँ और माता हरभजन कौर जी के छोटे बेटे परमिंदर सिंह बताते हैं कि मेरे पिताजी ने अपना पारिवारिक लकड़ी का काम करके परिवार का भरण पोषण किया। षड़े ही मशहूर ग्रुप सनराइज स्पोर्ट्स जो कैरम बोर्ड बनाता है को 14 वर्षों तक लकड़ी बतौर रॉ मटेरियल सरदार दर्शन सिंह जी सप्लाई करते रहे। माता हरभजन कौर जी जो सरदार सोहन सिंह जी (दसवीं फेल) की सुपुत्री थी और अपने पिता जी जो कलकत्ता में ठेकेदार थे के साथ वहीं पली पढ़ी। बचपन  ही बहुत रचनात्मक सोच वाली हरभजन कौर के हाथ में वाहेगुरु ने करता की बख्शीश दी और कपड़े सीने से लेकर हरेक बेकार चीज को सदुपयोग में लाने का गुण माता जी में था। आगामी 9 मार्च 2024 को सरदार दर्शन सिंघ जी और माता हरभजन कौर जी के आनंद कारज की गोल्डन जुबली है जिसे लेकर पूरे परिवार में अभी से उत्साह की लहर को मैंने महसूस किया।

 सरदार दर्शन सिंघ जी ने अपना अनुभव सुनाते हुए मुझे बताया मैंने दीनानगर में पट्टे बनाने की एक फैक्ट्री लगाई और अपने सामान की मार्केटिंग हेतु दिनरात मेहनत शुरू की। पुराना समय याद करते हुए दर्शन सिंह जी ने बताया कि सुबह गुरदासपुर से चल कर भटिंडा तक की मार्किट कवर करते हुए रात को दस बजे वापिस गुरदासपुर लौट आते थे। परमिंदर जष षड़ा हुआ तो उसने श्री टेक कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की और चंडीगढ़ में आई टी सेक्टर में काम करने लगा फिर साल 2001 में जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ तो आई टी इंडस्ट्री में नौकरियां एकदम से कम हो गई और पिताजी ने परमिंदर को वापिस अपने पास गुरदासपुर बुला लिया और यहीं कोई काम जमाने की सलाह दी। सरदार दर्शन सिंह जी ने मुझे कहा कि हम रामगड़िया बिरादरी के लोग हैं जो जमदे (जन्म के साथ) ही इंजीनियर होते हैं हमारे अंदर तकनीकी ज्ञान जन्म के साथ भरा होता है। मैंने परमिंदर को पहले एक साल अपनी दीनानगर वाले फैक्ट्री में काम करवाया और फिर वाद में हमने एक वर्कशॉप खोलने की योजना बना ली।

परमिन्दर सिंह बताते हैं कि मैंने अपनी वर्कशॉप में हर तरीके का काम किया डॅटिंग पेंटिंग रिपेयर कोई भी जॉष ओ जानी मैंने लग जाना और मिस्त्रियों के साथ बराबर खड़े होकर हरेक काम को करना मेरी ओदात में शुमार था। हमने कोई ब्रांड नहीं छोड़ा कैसी भी गाड़ी आओ जानी हमने ले लेनी और करते करते इसी में हमारी मास्टरी वन गयी। आज गुरदासपुर लोग आँख बंद करके हमारी कला पर भरोसा करते हैं। एक बार की बात है कि जीप कम्पास हमारी वर्कशॉप में आ गई और वो इतनी बिगड़ी की कम्पनी वालों ने भी पुर्जे देने से हाथ उठा दिए लेकिन हमने एक पांच रुपये की एल्फी से ही जीप कम्पास ठीक कर दी। मेरे बड़े भाई सरदार हरजिंदर सिंघ जी भी नेशनल प्लास्टिक इंडस्ट्रीज के नाम से एक उद्योग चलाते हैं। एक विरासती घर का निर्माण

सरदार दर्शन सिंह जी और माता हरभजन कौर जी ने गुरदासपुर टाउन में एक विरासती घर की सुजना की है। जिसमें नानकशाही ईंटों को लाकर उनसे दीवारें बनाई गई हैं। नानकशाही ईंटों की खूबसूरती यह होती है उनके उपर प्लास्टर नहीं करना पड़ता है। उनकी वनवात ही ऐसी होती है कि एक राजसी ठाठ षाठ का एहसास होता है। परमिंदर सिंह जी ने मुझे बताया कि इस घर के निर्माण हेतु हमने सब जगह कषाडियों के पास जा जा कर पुरानी लकड़ी के समानों को खरीदा और उन्हें अपने घर में ही लकड़ी के मिस्त्री लगाकर उनसे उन्हें रिपेयर और पोलिश करवा कर दोबारा प्रयोग में लाने लायक बनाया। जैसे एक पुराने रोशनदान की लकड़ी की जाती को हमने टेवल टॉप में बदल लिया है। इसी तरह दरवाजे अलमारियां और चौखटें हत्यादि को रिपेयर करके बनाते बनाते तीन सालों का समय लग गया। लकड़ी के मिस्त्री लगभग आठ लाख रुपये की लेबर लेकर गए हैं। हमने अपने घर में हरेक वेकार होने वाली वस्तु को रिसाईकल करके दोबारा उपयोग किया है। दूर दूर से लोग हमारे इस घर को देखने के लिए आते हैं। पराली का समाधान पंजाय चूंकि एक कृषि प्रधान राज्य हैं यहाँ जीवन खेती बाड़ी के इर्द- गिर्द ही घूमता है और पिछले कई वर्षों से में यह सुन रहा थी कि पराली एक समस्या बन चुकी है जिससे किसान और सरकार दोनों परेशान हो चुके हैं। किसान को खेत में आग लगाने में फायदा नज़र आता है जबकि सरकार बढ़ते हुए प्रदूषण को लेकर चिंतित है। एकदिन मेरे मन में इस पराली से फाल्स सीलिंग की टाईल्स वनाने का विचार आया और फिर मैंने इसपर काम करना शुरू किया। सबसे पहले तो मैंने पराली का एक ढेर का स्टॉक जमा किया और फिर इस मटेरियल को छू कर महसूस किया कि इसका क्या किया जाए। मैंने अपने अध्यन में पाया कि इसे गला कर इसमें कुछ और तत्वों को मिलाकर एक लुगदी जैसी बनाई जाए तो एक प्रेस में दवा कर हम इससे टाईल्स वना सकते हैं। हरेक काम के लिए एक नयी मशीन की आवरवकता थी सो मैंने अपने विचार को प्रैक्टिकल रूप देने के लिए अपनी जरूरत के मुताबिक मशीने भी तैयार कर ली। सबसे ज्यादा मेहनत और जोर साँचा तैयार करने में लगा क्यूंकि सांचे का डिजाईन हमें ऐसा चाहिए थी जो एक मिनट में खुल जाए और फिरसे उपयोग में लाने लायक हो जाए। बड़ी जुगतों और मेहनत के बाद अब पूरा प्रोसेस स्टैण्डर्डडाईज हो गया है और 15 से 20 महिलाएं मिलकर एक एकड़ की पराली से लगभग दो हजार टाइल्स हर रोज बना सकती है।

एक एकड़ खेत में 350 टन के आसपास पराली का उत्पादन होता है और मेरी एक टाइल को बनाने में 1800 ग्राम के लगभग पराली का उपयोग होता है। इस हिसाब से लगभग 2000 टाइल्स के लगभग एक एकड़ की पराली से बनाई जा सकती हैं। महिलाओं का एक समूह षड़ी आसानी से 1000 टाइल्स हर रोज बना सकता है।

परमिंदर सिंघ जी बताते हैं कि मैंने पराली से बनी हुई टाइल्स की गुणवत्ता चेक करने के लिए इन्हें हीट रेसिस्टेंस टेस्ट से गुजारा। टाइल के एक तरफ मैंने 800 डिग्री सेल्सियस का तापमान कर दिया और टाइल के दूसरी तरफ। मैंने तापमान को नापा तो दो मिनट के बाद भी 2 डिग्री तापमान भी नहीं बढ़ा पाया।

फाल्स सीलिंग में जो जिप्सम बोर्ड प्रयुक्त होता है यो लगभग चाइना से से ही इम्पोर्ट किया जाता है और बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को खर्च करना पड़ता है। अपने यहाँ पराली और अन्य फसल अवशेषों की कोई कमी नहीं है। एक मोटे अनुमान के अनुसार पंजाब हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग 150 मिलियन टन पराली को किसान आग लगा देते हैं जिससे लगभग 9 मिलियन टन कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है और वायु प्रदूषण बढ़ता है।


गुरदासपुर के मशहूर तिष्ठ कैंटोनमेंट में पदस्थ एक ब्रिगेडिअर साहब को जब इन पराली से बनने वाली टाइल्स के बारे में मालूम चला तो उन्होंने भारतीय सेना के लेह कैंप में छत में प्रयोग करने हेतु पराली वाली टाइल्स का एक बड़ा आर्डर मुझे दिया है। हमारी ये टाइल्स हीट रेसिस्टेंस, वाटर रेसिस्टेंस और फायर प्रूफिंग के सभी टेस्ट्स को पास कर चुकी है। हमारी ये पराली पाली टाइल्स एक्सट्रीम हीट और एक्स्ट्रीम कोल्ड दोनों वातावरणों के लिए उपयुक्त है। दुबई और सऊदी अरब जैसे देशों की गर्मी से लेकर यूरोप के ठन्डे बर्फीले तापमानों से ये टाइल्स भवन के अंदर एक बेहतरीन माकूल तापमान मेंटेन करने में मददगार साबित हो सकती हैं।इसीलिए मैं इनकी मार्केटिंग को लेकर ज्यादा चिंता नहीं कर रहा हूँ जिस दिन भी हमारा ये प्रोडक्ट बाजार में उतरेगा पहले दिन से ही यह प्रोफिटेबल रहेगा और इसके ग्राहकों की कोई कमी नहीं रहने वाली है।

आजकल पैकिंग मटेरियल के तौर पर थर्माकोल का बहुत बड़े स्तर पर प्रयोग किया जता है जैसे इलेक्ट्रिकल पंखें पैक करने के लिए विशेष प्रकार के धर्माकोल के सांचे बनाने पड़ते हैं जिनमें पंखे की मोटर पैक की जाती है। एक बार मोटोर को निकाल लेने के बाद धर्माकोल बेकार हो जाता है और उसका कोई उपयोग नहीं किया जा सकता है। परमिन्दर सिंघ जी बताते हैं पराली के उपयोग से भी हम ठीक वैसे ही पैकिंग मटेरियल नमा सकते हैं जो कि प्रयोग किये जाने के बाद जताया या खाद में बदला जा सकेगा और कोई प्रदूषण हीं फैलाए‌गा।

सरदार परमिंदर सिंघ जी बताते हैं कि पर्यावरण से प्रदूषण कम करना हमेशा उनके चिंतन का विषय रहा है। मेरे ओस पास जो भी प्रदूषण कारक मटेरियल होते हैं मैं उन्हें वैज्ञानिक तरीके से निपटारा करने का जतन करता हूँ। मेरे ऑटोमोवाइल वर्कशॉप में जो गाड़ियां टूट फूट हो जाती हैं उसमें से बहुत सारे पास काले प्लास्टिक के बने होते हैं जिन्हें कोई कवाड़ी नहीं खरीदता है और उन्हें जलाकर नष्ट करने के लिया कोई भी विकल्प नहीं होता है। में पिछले लम्बे समय से इस प्रदूषक काले प्लास्टिक का विघटन करके इसे उपयोग में लाने हेतु प्रयोग कर रहा हूँ।

गुरदासपुर विजिट के दौरान हमारी टीम के लीडर श्रीमान अनिल चोपड़ा जी थे जो कि नयी दिल्ली स्थित विंगीफाई सॉफ्टवेयर समूह के फाउंडर हैं

उन्होंने परमिंदर सिंघ जी से इस तकनीक के पेटेंट वाषत पूछा तो परमिंदर जी ने बताया कि वे पेटेंट आदि फाइल कर चुके हैं और पंजाष कृषि विश्वविधालय लुधियाना के एग्री विजनेस इनक्यूबेटर ने उन्हें पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद भी उपलब्ध करवाई है। फिलहाल आई.आई.टी कानपुर से बीस लाख रुपये की आर्थिक मदद इक्विटी की एवज में मिल रही है। अनिल चोपड़ा जी ने अपना विंगीफाई का अनुभव शेयर करते हुए बताया कि उन्होंने अपनी कम्पनी को बूटस्ट्राप ही रखा यानि के किसी से कोई आर्थिक मदद नहीं ली और किसी को भी हकिटी देने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि हमारी कम्पनी पहले दिन से ही प्रोफिटेवल थी। इसी तरह मुझे आपके प्रोडक्ट और तकनीक में बहुत दम नजर आ रहा है और मैं आपको यह सुझाव देता हूँ कि आप भी अपनी कम्पनी में किसी को इक्लिटी ना दें और पूरा स्वामित्व अपने पास ही रखें। मेरी इस सलाह को मानें इससे ओपको भविष्य में बहुत अधिक फायदा मिलेगा।

स्रोत -

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org