जल और बजट - 2023-24
भारत जनसंख्या बहुल और कृषि की प्रधान देश है। इसलिए आम बजट की दृष्टि से ग्रामीण विकास, पेयजल और स्वच्छता, ऊर्जा और परिवहन, जल संसाधन आदि ज्यादा महत्व के हो जाते हैं। जब एक केंद्रीय बजट आता है, तब यह न केवल पैसे का आबंटन ही बताता है, बल्कि सरकार के विजन और दृष्टिकोण को भी स्पष्ट करता है।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी 2023 को संसद में 2023-24 के लिए केंद्रीय बजट प्रस्तुत किया। यह मानते हुए कि 2024 के देश में होने वाले चुनावों से पहले यह मोदी सरकार का अंतिम पूर्ण बजट है। इसलिए इस बजट का सामाजिक कल्याण के साथ-साथ राजनीतिक गलियारों में भी इंतज़ार था।
वित्तीय प्रावधान
2023-24 के केंद्रीय बजट में जलीय क्षेत्र के लिए 1,12,478 रुपए का प्रावधान रखा गया है। जिसमें जल शक्ति मंत्रालय, कृषि और कृषक कल्याण मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, हाउसिंग और शहरी विकास मंत्रालय सभी शामिल हैं। यह आबंटन पिछले साल के बजट से 15 फीसदी अधिक है। हालांकि इस बजट का अधिकांश हिस्सा 70,000 करोड़ रुपए जल जीवन मिशन के हिस्से में है। जिसमें ग्रामीण भारत में घरेलू नल कनेक्शन दिए जाने हैं। वित्तीय वर्ष 23-24 में इस मिशन के तहत अतिरिक्त चार करोड़ नल कनेक्शन का लक्ष्य प्राप्त किया जाना है।
2022-23 वित्तीय वर्ष में 97789 करोड़ रुपए का प्रस्ताव किया गया था। जिसे रिवाइज्ड बजट आबंटन में 83,629 करोड़ कर दिया गया है जो कि लगभग 14 फीसदी कम है।
'पेयजल और स्वच्छता विभाग' और 'जल संसाधन नदी विकास और गंगा रिजुवेनेशन विभाग' को मिलाकर जल शक्ति मंत्रालय को 86,189 करोड़ रुपए का बजट प्रस्तावित किया गया है। जो पिछले वित्तीय वर्ष के बजट से 12 फ़ीसदी अधिक है। इसमें से अधिकांश बजट जल जीवन मिशन कार्यक्रम को दिया गया है।
जल संसाधन नदी विकास और गंगा पुनर्जीवन विभाग, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का बजट भी पिछले वर्ष के 10954 करोड़ रुपए के मुकाबले लगभग 20 फीसदी लगभग घटा दिया गया है। इस वर्ष की बात करें तो पीएमकेएसवाई के तहत अधिकांश आबंटन नाबार्ड के लिए कर्ज के ब्याज की राशि का भुगतान भी शामिल है
नमामि गंगे और अटल भूजल योजना के लिए आबंटन में अच्छी खासी बढ़ोतरी देखने को मिली है। पिछले वर्ष के 2800 करोड़ रुपए के मुकाबले नमामि गंगे को इस बार 4000 करोड़ रुपये आवंटित किया गया है।
इसके साथ ही अटल भूजल योजना के बजट में भी लगभग 40 फ़ीसदी की बढ़ोतरी की गई है। जबकि पिछले वर्ष इस योजना का बजट 700 करोड़ था।
पेयजल और स्वच्छता विभाग को पिछले वर्ष के 67,221 करोड़ रुपए के मुकाबले इस बार 77,223 रुपए का आबंटन प्रस्तावित है। जल जीवन मिशन का वार्षिक बजट आबंटन बढ़ाया गया है। पिछले वर्ष इसका बजट ₹60,000 करोड़ था जबकि इस बार के बजट में यह बढ़कर 70,000 करोड़ हो गया है। ग्रामीण स्वच्छ भारत मिशन के लिए भी बजट में 7192 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है। जो कि पिछले वर्ष जितना ही है
ग्रामीण विकास मंत्रालय
डिपार्टमेंट ऑफ लैंड रिसोर्सेज को वाटरशेड डेवलपमेंट के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 2.0 के तहत कुल 2200 सौ करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है। क्योंकि 31 मार्च 2022 को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की एकीकृत वाटरशेड डेवलपमेंट कार्यक्रम का समापन हो गया था। इसलिए अब इस कार्यक्रम को वाटरशेड डेवलपमेंट 2.0 के तहत आबंटन किया गया है।
ज्यादातर वाटर शेड और जल प्रबंधन का काम महात्मा गांधी नेशनल रूरल कार्यक्रम के फंड से किया जाता है। ग्रामीण विकास विभाग के तहत मनरेगा के फंड को पिछले साल के 73,000 करोड़ के बजट के मुकाबले इस साल 20 फीसदी घटा दिया गया है
कृषि और कृषक कल्याण मंत्रालय क्योंकि पिछले वित्तीय वर्ष के बजट को ‘‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’’ को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के साथ जोड़ दिया गया है। इसलिए दस्तावेजों में कोई भी अलग बजट दिखाई नहीं देता, लेकिन राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का बजट पिछले साल के 10433 करोड़ रुपए के मुकाबले 25 फीसदी घटा दिया गया है
मिनिस्ट्री आफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स
स्वच्छ भारत मिशन के बजट को 5,000 करोड़ रुपए तक बढ़ा दिया गया है। जो पिछले बजट में 2300 करोड़ रुपए था। अम्रुत योजना को भी 8000 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है। अगर बजट के फ्रेमवर्क में लागत और परिणामों को देखें तो ऐसा लगता है कि यह बजट शहरी क्षेत्रों में नल-जल कनेक्शन, सीवेज ट्रीटमेंट और जल निकायों के पुनर्जीवन जैसी गतिविधियों पर केंद्रित है।
अन्य आबंटन पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के लिए नेशनल कोस्टल मैनेजमेंट प्रोग्राम के तहत 12.50 करोड़, पर्यावरण शिक्षा जागृति शोध और कौशल विकास के लिए 87 करोड़, प्रदूषण की रोकथाम के लिए 756 करोड़, ग्रीन इंडिया मिशन के लिए 220 करोड़ और प्राकृतिक संसाधनों और इकोसिस्टम के संरक्षण के लिए 43 करोड़ का प्रावधान रखा गया है। अगर कुल मिलाकर देखें तो इस मंत्रालय को 3079 करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में दिया गया है। जो कि पिछले वर्ष जैसा ही लगभग है।
नजरे-इनायत
किसी भी कार्यक्रम या योजना की प्रगति और सफलता सिर्फ वित्तीय प्रावधानों पर आधारित नहीं होती बल्कि खर्चे से संबंधित योजना, खर्च की स्टेज और दृष्टिकोण सभी इसमें शामिल है। जब तक केंद्रीय बजट कि यह संख्याएं दूसरी सामयिक विकास के साथ नहीं जुड़ती। तब तक कुछ दूसरे और आयाम भी हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना जरूरी है।
- एक - सरकार ने पेयजल और स्वच्छता को प्राथमिकता दी है। लेकिन इस प्राथमिकता में सिर्फ फिजिकल इन्फ्राट्रक्चर तक ही इसकी प्रगति सीमित है।
- दो -कुछ अहम योजनाओं में तो अनुमानित बजट आबंटन और वास्तविक खर्च में अंतर नजर आता है
- तीन - एकीकृत जल प्रबंधन से ऐसा लगता है कि बहुत उम्मीदें हैं। लेकिन अभी तो तस्वीर धुंधली नजर आ रही है
चलिए इन सभी बिंदुओं पर एक एक करके पैनी नजर डालते हैंः
एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान चलाई गई जल जीवन मिशन योजना मोदी सरकार की भी सबसे शुरुआती और पहले दर्जे की योजना है। इस योजना की शुरुआत से ही इसे अच्छी खासी धनराशि और नीति और संस्थागत सहयोग मिला है। इसमें परिणाम भी उतने ही अच्छे दिए हैं। जब से स्कीम शुरू हुई है, तब से 8 करोड़ घरेलू नल-जल कनेक्शन दिए जा चुके हैं। लेकिन इस योजना में सिर्फ नल-जल कनेक्शन देना ही काफी नहीं था। इसका उद्देश्य था, ऐसे नल-जल कनेक्शन देना जो काम करते हों, यानी जिसमें पर्याप्त पीने लायक पानी आता है। यह पानी दिए गए मानकों पर खड़ा होना चाहिए और दीर्घकाल तक नियमित पानी होना चाहिए।
जबकि सरकार की अपनी ही रिपोर्ट असेसमेंट ऑफ द फंक्शनैलिटी ऑफ हाउसहोल्ड कनेक्शन- 2022 इस शर्त पर खरी नहीं उतरती I रिपोर्ट के मुताबिक नल-जल कनेक्शन सिर्फ 62 फ़ीसदी ही काम कर रहे हैं। जिसमें गुणवत्ता मात्रा और पानी की नियमित आपूर्ति शामिल है। इसके अतिरिक्त 32 फीसदी मामलों में ही ग्रामीण स्तरीय कम्युनिटी संचालित संस्थाएं ही पाई गई। संक्षेप में कहें तो 2024 में अपने लक्ष्य को पाने से पहले जल जीवन मिशन के पास जमीनी तौर पर करने के लिए बहुत काम है।
साल दर साल यह देखा गया है कि बजट में जो अनुमानित आबंटन है। वह पहले तो ज्यादा किया जाता है। फिर वास्तविक खर्चे के आधार पर फिर से रिवाइज्ड करके घटा दिया जाता है। इस तरह का चरित्र विकेंद्रीकृत कम्युनिटी संचालित छोटे स्तर की योजनाओं में देखने को मिलता है। उदाहरण के तौर पर कमांड एरिया डेवलपमेंट को सिंचाई योजना और ऑपरेशन आदि के उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। इसके लिए बजट के प्रावधानों में हर खेत को पानी और कमांड एरिया विकास और जल प्रबंधन के तहत बजट आवंटित किया गया है। पिछले साल के बजट में इसका आकलन 1829 करोड़ था। लेकिन बाद में इसी को रिवाइज करके 690 करोड़ कर दिया गया है। इसी तरह से डिपार्टमेंट ऑफ लैंड रिसोर्सेज के तहत जल निकाय विकास के तहत जो पहले 2000 करोड़ का अनुमानित बजट था उसे भी घटाकर 1100 करोड़ रुपए कर दिया गया है। । पिछले 5 सालों पर गौर करें तो इसी तरह का ट्रेंड चल रहा है। स्वच्छ भारत मिशन भी इस ट्रेंड का अपवाद नहीं है।
भारत में सबसे ज्यादा पानी खेती में लगता है। जब तक इसकी समस्याओं और पानी की खपत के मुद्दे का समाधान नहीं किया जाता तब तक दूसरे सारे प्रयास निष्फल हैं। अच्छी बात यह है कि देर सवेर उम्मीद की कोई किरण जागेगी लेकिन फिलहाल तो उन पर कोई खासा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। देश के पानी का तीन चौथाई हिस्सा धान और गेहूं जैसी फसलों पर ही लग जाता है। किसान यह फसलें इसलिए पसंद करता है। क्योंकि इन पर मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानी एमएसपी सुनिश्चित है। और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पाने के लिए भी नीतियों में इन फसलों को बढ़ावा दिया गया है। लेकिन यह चक्र अर्थव्यवस्था और इकोलॉजी दोनों के लिए ही ठीक नहीं है। इस चक्र को तोड़ने के लिए कुछ सालों से एक आवाज लगातार उठ रही है। और ऐसे सुझाव दिए जा रहे हैं। ताकि कम पानी वाली फसलें जैसे मोटे अनाज उगाई जाए जिसके लिए सुनिश्चित प्रबंधन व्यवस्था और मिनिमम सपोर्ट प्राइस दिया जाए। अच्छी बात तो यह है। कि अब लोग और नीति निर्माता नई बयार में उड़ रहे हैं। लेकिन अभी भी पैसा तो पुराने घोंसलों में ही अटका है।
पूरी दुनिया 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलट के रूप में मना रही है। नीति निर्माता और हमारे प्रधानमंत्री भी लगातार मोटे अनाजों को अपनाने और साथ ही अन्य देसी और एग्रो इकोलॉजिकल सेंसिटिव क्रॉपिंग पेटर्न को अपनाने पर जोर दे रहे हैं। लेकिन ऐसा लगता है। कि उनकी बातें उनके बजट से मेल नहीं खातीI, अगर बजट को गौर से देखा जाए तो केमिकल फर्टिलाइजर पर दी जाने वाली सब्सिडी लगभग 175148 करोड रुपए तक चली जाती है। दूसरी तरफ वैकल्पिक तरीकों पर यह आबंटन बिल्कुल शून्य है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का आबंटन पिछले साल के 10433 करोड़ रुपए के मुकाबले इस बार 25 फ़ीसदी घट गया है। नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग को भी मात्र 459 करोड़ रुपए दिए गए हैं।
भारत को इंटीग्रेटेड वाटर मैनेजमेंट अप्रोच की जरूरत है। कृषि केंद्रित फोकस के साथ-साथ जल संसाधनों की सस्टेनेबिलिटी को बढ़ाने की ओर बढ़ना चाहिए जब तक यह बड़े पैमाने पर प्राथमिकता नहीं बनेगी तब तक अन्य सभी तरीके अपनाने का कोई मतलब नहीं बनता। केंद्रीय वित्त मंत्री इस बजट को अमृत काल का पहला बजट कह रही हैं। लेकिन उनका ध्यान अभी भी परंपरागत प्रबंधन तरीकों तक ही सीमित है। अमृतकाल की यात्रा कि शुरुवात में यह जरुरी है कि हम परंपरागत तरीकों से हट कर जल संसाधनों का प्रबंधन करें।