जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए NAPM का राष्ट्रीय सम्मेलन,Pc-sabrangindia
जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए NAPM का राष्ट्रीय सम्मेलन,Pc-sabrangindia

जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए NAPM का राष्ट्रीय सम्मेलन

इस अन्याय को दूर करने के लिए जरूरी हैं संविधान से लेकर, कानून और नीतियों का अध्ययन तथा पालन भी। आज 1996 का “पेसा” कानून हो या वन सुरक्षा और वन अधिकार कानून तथा 2013 का भूअर्जन और पुनर्वास कानून,हर एक में अधोरेखांखित समुदायों के संसाधनों की रक्षा और अधिकार के साथ हानिपूर्ति के प्रावधानों का उल्लंघन सामने आ रहा है।
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प्रिय साथियो,

जिदाबाद!

आपको यह आमंत्रण पत्र जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की ओर से नफरत छोड़ो,संविधान बचाओ अभियान के तहत आयोजित जल, जंगल, जमीन : अधिकार, रक्षा ओर विकास : संघर्ष और निर्माण" के विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल होने के अनुरोध के साथ भेजा जा रहा है। आप जानते ही हैं कि देश भर में केंद्र शासन एवं कई राज्य शासन की नीतियाँ और विकास नियोजन के नाम पर जल, जंगल, जमीन पर एक़ प्रकार से आक्रमण हो रहा है। जल हो या नदी, जमीन हो या जंगल जिस पर किसान, मजदूर, मछुआरों, केवटों के जैसे प्रकृति निर्भर समुदायों की आजीविका के साथ जीवन पर आघात होता है तो उनका संवैधानिक जीने का हक भी प्रभावित होता है। इस स्थिति में संघर्ष करने मजबूर आदिवासी, किसान, दलित, मजदूर सब कुछ के साथ ब्दास्त करते हैं आघात, आम जनता भी, कहीं प्रदूषित हवा या जल, कहीं भूस्खलन या भूचाल। नदी की बर्बादी भी भुगत रहा है। देश और हर राज्य में, तो पीने का पानी ही उस समस्या की जड़ होती है।

यह सब विकास के नाम पर होता है तब भी विस्थापित ओर प्रभावित लड़ते हैं, चुनौती देते हे स्थापितों को। विकास विरोधी कहा जाता है। जब शासनकर्ताओं की सहनशीलता, संवादशीलता तथा संवदेना भी नहीं होने से निश्चित ही गैर लोकतांत्रिक शासक साबित होते हैं, न्याय और अधिकारों के लिए संघर्ष करते सत्याग्रही भुगतते हैं दमन और अत्याचार। इस अन्याय को दूर करने के लिए जरूरी हैं संविधान से लेकर, कानून और नीतियों का अध्ययन तथा पालन भी। आज 1996 का “पेसा” कानून हो या वन सुरक्षा और वन अधिकार कानून तथा 2013 का भूअर्जन और पुनर्वास कानून,हर एक में अधोरेखांखित समुदायों के संसाधनों की रक्षा और अधिकार के साथ हानिपूर्ति के प्रावधानों का उल्लंघन सामने आ रहा है। या तो नियम बदलकर (जैसे वन सुरक्षा अधिनियम 1980 के नये प्रस्तावित नियम, 2022) या नये कानून और संशोधन के द्वारा जन अधिकार (ग्राम सभा स्तर का) छीना जा रहा है।

इस परिवेश में प्राकृतिक संसाधनों का विनाश या हस्तांतरण से एक -एक साघन से जीने का आधार नकेवल प्रत्यक्ष किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित (जैसे जलवायु परिवर्तन और कोरोना वायरस) हो रहे हैं आम नागरिक भी। खेतीपर असर से, जमीन छीनने से या पूंजी- बाजार के द्वारा गैरखेती के उद्देश्य को बढ़ाने से निश्चित ही धोखे में है करोडों की अन्न सुरक्षा। किसान, मजदूर, पशुपालक, मछुआरे हो या वनोपज पर जीने वाले आदिवासी भी वंचना और विस्थापन के कारण मजदूर बन रहे हैं, तो उन्हें जनआंदोलन के द्वारा अपना बुनियादी अधिकार पाने के लिए  संघर्षरत  रहना जरूरी है। कॉर्पोरेट पूंजी और बाजार, उसीसे बढ़ती गैर बराबरी, बेरोजगारी ही क्या, भूखमरी रोकना भी हमारा मकसद है।

ऐसी स्थिति में जो जनसंगठन समन्वय बनाकर जिला, राज्य और राष्ट्र के स्तर पर आवाज उठाना ही नहीं, परिवर्तन लाना भी जरूरी है।जिसके लिए समान विचारधारा, विकास की निरंतरता और समतावादी अवधारणा तथा जनतांत्रिक प्रक्रिया ही होगी बुनियादी आधार। इसपर सोच-विचार ओर निर्णय, सामूहिकता के साथ लेने से ही बचेगा संविधान। उसी से पाया जाएगा मूल्य, सिद्धांत और विकास की दिशा का आघार भी। जात-पात, धर्म, लिंग और वर्गभेद को उकसाकर भ्रम, नफरत, हिसा फैलाकर चली राजनीति को नकारकर, जनआंदोलनों के तहत सामाजिक एकजुटता बरकरार रखने से ही संभव है, परिवर्तन।

इसी के लिए देशभर चली “नफरत छोड़ो, संविधान बचाओ?” की यात्राएँ भी। उस अभियान से आगे बढ़कर एक विशेष राष्ट्रीय सम्मेलन “जल, जंगल, जमीन : अधिकार, रक्षा और विकास : संघर्ष और निर्माण" के विषय पर व्यापक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। इसमें किसान, मजदूर और प्रकृति निर्भर समुदाय आमंत्रित है। जन आंदोलनों की राजनीति ओर समन्वय को बढ़ाना अपेक्षित है।

आप को पहुँचना है -

बांद्राभान घाट(तवा- नर्मदा नदी का संगम) जो होशंगाबाद से 7 किलोमीटर दूरी पर है

ट्रेन

एवं 2 अप्रेल 2023 के सम्मेलन में हर संगठन से चार प्रतिनिधि शामिल होना अपेक्षित है। आप कब, केसे ओर कितने साथी पहुंचेंगे, इसकी जानकारी हमें कृपया मार्च 15 तक जरूर दें ताकि आयोजन सफल हो सके। देश के कई मान्यवर, विशेषज्ञ, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल करते हुए इस सम्मेलन के कार्यक्रम का सम्पूर्ण ब्यौरा आप तक जल्दी पहुँचाएंगे। आपके सहभाग और हर प्रकार के सहयोग की अपेक्षा के साथ, जवाब की प्रतीक्षा में,

मेघा पाटकर, प्रफुछ सामन्तरा, राजकुमार सिन्हा, डॉ. सुनिलम महेंद्र यादव, रिचा सिंह, अमुल्य निधि, आराधना भार्गव

आयोजक

जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय/नर्मदा बचाओ आंदोलन/ बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ/ किसान संघर्ष समिति/ बसनिया बांध विरोधी संघर्ष समिति

आयोजक संपर्क:-

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: ई-मेल: napmindia@gmail.com  
 

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