नैनीताल में यातायात और पर्यावरणीय समस्याएँ
1915 में काठगोदाम-नैनीताल मोटर सड़क बनकर तैयार हो गई थी। लेफ्टिनेंट राइडर ने जिला इंजीनियर होल्मस के निर्देशन में इस सड़क का निर्माण कार्य सम्पन्न कराया। उस दौर में इस सड़क की वार्षिक मरम्मत में 29 हजार रुपये खर्च किए जाते थे। अब नैनीताल में गाडियां आने लगी थी। ताँगा अब यातायात का मुख्य साधन नहीं रह गया था। ताँगे को जल्दी ही टा-टा कह दिया गया। बेबरी से कार्ट रोड द्वारा कुलियों के सामान ढोने पर अस्थाई प्रतिबंध लगा दिया गया। उन दिनों सामान ढोने के लिए श्रमिकों का प्रबंध कुली एजेंसियों द्वारा किया जाता था। नैनीताल तहसील में भीमताल, खैरना, रामगढ़, प्यूड़ा और धारी समेत पाँच कुली एजेंसियां थीं। ज्योलीकोट और ब्रेबरी में भीमताल कुली एजेंसी की शाखाएं थीं। ज्योलीकोट एवं ब्रेबरी स्थित सब कुली एजेंसियां काठगोदाम नैनीताल और भवाली को कुली उपलब्ध कराती थी। एक अप्रैल, 1915 को खैरना कुली एजेंसी ने रातीघाट में भी अपनी शाखा खोल दी थी। खैरना कुली एजेंसी रातीघाट से नैनीताल, रानीखेत और रामगढ़ को कुली उपलब्ध कराती थी।
नगर पालिका द्वारा सूखाताल को खेल के मैदान में बदलने की मद में सरकार द्वारा स्वीकृत 36 हजार रुपये की सहायता राशि वापस सरकार को लौटा दी गई। रैमजे अस्पताल और अयारपाटा क्षेत्र में पानी की नई लाइनें बिछाई। इस साल सफाई कर्मचारियों की संख्या बढ़ा दी गई। इस वर्ष नैनीताल में 14 नए मकान बने। 15 जनवरी, 1915 को नगर पालिका ने फिलंदर स्मिथ कॉलेज को 2.17 एकड़ जमीन रेंट फ्री लीज में दी।
1915 में नगर पालिका बोर्ड में पाँच निर्वाचित, दो पदेन तथा तीन मनोनीत सदस्य थे। जिला मजिस्ट्रेट पदेन अध्यक्ष होते थे। पदेन सदस्यों में संयुक्त मजिस्ट्रेट और जिला इंजीनियर शामिल थे। संयुक्त मजिस्ट्रेट नगर पालिका के पदेन उपाध्यक्ष भी होते थे। मनोनीत सदस्यों में डब्ल्यू.एल. स्टैंप, अधिशासी अभियंता तराई एवं भाबर गवर्नमेंट स्टेट, लेफ्टिनेंट कर्नल एस.ए. हैरिस एवं स्वास्थ्य आयुक्त शामिल थे। नगर पालिका के अधिकारी घोड़ों में बैठकर नगर की व्यवस्थाओं का जायजा लेते थे। अधिकारियों को घोड़े का भत्ता मिलता था। इस साल नगर पालिका ने वित्त उप समति का गठन किया। पालिका की टोल एण्ड टैक्स, सार्वजनिक निर्माण और सार्वजनिक स्वास्थ्य उप समितियां पहले से ही मौजूद थी। इस वर्ष नगर पालिका को लिम्फ वैक्सीन खरीदने में बहुत धन अना पड़ा था। अबरी और नैनीताल में एक खास वर्ग के कुछ लोगों को हैजा हुल में 31 कैदी पुनः बुखार से पीड़ित रहे। संक्रामक बीमारियों के लिए और अस्पताल की जरूरत समझी गई। रैमजे अस्पताल परिसर में दिना शामक अस्पताल खोला जाना तय हुआ।
1915 में 121.48 इंच वर्षा हुई। 10 और 12 अगस्त, 1915 को हुई वर्षा बतियानाले के नालों और दीवारों को नुकसान हुआ। इलाहाबाद बैंक की सुरक्षा दहीणार वह गई। जिससे बैंक की इमारत में दरारें आ गई। अयारपाटा क्षेत्र में काई ऍवारे गिरी। कार्ट रोड में मनोरा के पास भू-स्खलन हुआ। भू-स्खलन के कारण च महीने तक यातायात बंद रहा। इसके बावजूद नगर के नाला तंत्र ने बेहतरीन काम किया।
1916 में पानी की आपूर्ति के लिए लोहे के नल मंगाए गए। वाटर वक्से में 4,500 रुपये लागत से क्लोरिनाइजेशन प्लांट लगाया गया। बड़ा नाला प्राकृतिक स्रोत के पानी की गुणवत्ता को संदिग्ध बताया गया। तय हुआ कि भविष्य में इस पानी को डिक्लोराईनाइन कर जुवेल फिल्टर के द्वारा फिल्टर करने के उपरात ही आपूर्ति की जायेगी। पानी की गुणवत्ता की जाँच के लिए कैमिकल और बैक्टिरियोलॉजिकल लैब स्थापित करने के लिए इंग्लैंड से मशीने मंगाने का निर्णय लिया गया।
सरकार ने 1916 में यूरोपियन के लिए रैमजे अस्पताल परिसर में संक्रामक बीमारियों का अस्पताल खोला। इसमें 39189 रुपये खर्च हुए। नगर पालिका में 50 रुपये महीने की तनख्वाह पर एक स्वास्थ्य निरीक्षक, 20 रुपये वेतन पर एक लिपिक, 10 रुपये वेतन में बाजार जमादार और सात रुपये मासिक वेतन पर दो चपरासी, एक पशुवध स्थल का चौकीदार और 12 उद्यान श्रमिकों को नियुक्त किया।
इसी साल आई.सी.एस. अफसर मिस्टर हार्पर संयुक्त मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में पालिका की नई उपविधियां बनाने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनी। 1916 में नगर पालिका ने 70 लोगों को पेड़ों की शाखाएं काटने, 50 को घास काटने और 65 लोगों के खिलाफ अवैध रूप से पशुओं को घराने के अपराध में मुकदमे दर्ज किए। इसी वर्ष नैनीताल में यंग मेस किश्चियन एसोसिएशन (वाई एम.सी.ए.) की शाखा खुली।
उस दौर में सामान्य रूप से खुले बाजार में नमक की उपलब्धता नहीं थी। इस समस्या से निपटने के लिए 1917 में तल्लीताल और मल्लीताल में नमक के नैनीताल एक
दो डिपी खोले गए। मल्लीताल के नमका डिपो का दायित्व लाला राम आह मैसर्स गंगाधर एण्णा संस को सौपा गया। जबकि लाला किशनदास साह दुम्वा तल्लीताल के नमक जियो के संचालक बनाए गए। तब बारह सेर नमक की कीमत एक रुपये तय की गई थी। उन दिनों मालरोड बाजार क्षेत्र और सार्वजनिक सड़कों में रोशनी के लिए मिट्टी के तेल के लैंप जला करते थे।
नगर पालिका में 1917 में कर निर्धारण कमेटी बनाई। सिविल स्टेशन म बाजार क्षेत्र के लिए अलग-अलग कर निर्धारण कमेटियां बनी। मिस्टर मु को सिविल स्टेशन का अध्यक्ष बनाया गया। जबकि लाला चन्द्र लाल या वकील, बाजार क्षेत्र की कर निर्धारण कमेटी के अध्यक्ष बनाए गए। नगर पालिका एक्ट के अनुसार नियम एवं उपविधियां बनाने के लिए आई.सी.एस अधिकारी मिस्टर विबले की अध्यक्षता में पुनः एक विशेष कमेटी का गठन किया गया। पालिका के बकाया देयों की वसूली के लिए एक कर निरीक्षक नियुक्त किए गया। बलियानाले में धोबियों के उपयोग के लिए दो नए टैंकों का निर्माण कराव गया। तल्लीताल डाकखाने के पास दो मूत्रालय बनाए गए। मल्लीताल में गौशाला के पास पशु चिकित्सालय खोला गया। नए नालों के निर्माण और विशेष मरम्मत के लिए पी.डब्ल्यूडी को 6,793 रुपये दिए गए। इसी साल सरकार है नगर के नाले और सड़कों की विशेष मरम्मत के लिए पी.डब्ल्यू.डी. को 420 रुपये अलग से दिए। नगर में शुद्ध दूध नहीं बेचने वाले दूधियों के लाइसेंस निरस्त करने का निर्णय लिया गया। दूध के छह नमूने लिए गए। जिन्हें जाँच के लिए लखनऊ की प्रयोगशाला में भेजा गया।
दूधियों के ऊपर तमाम किस्म की निगरानी और चेतावनी बेअसर साबित हो रही थी। दूध वाले मिलावट से बाज आने को कतई राजी नहीं थे। दूध कल की इस मिलावटखोरी के सामने अंग्रेज सरकार ने भी हथियार डाल दिए। नार पालिका ने दूध की इस समस्या से निपटने के लिए ताकुला में खुद डेयरी खोलने का निर्णय लिया। डेयरी खोलने के लिए सरकार से ताकुला में 50 एकड़ जमीन लीज पर मांगी गई। तय हुआ कि 1918 से नगर पालिका स्वयं डेयरी खोलेगी। तल्लीताल में छावनी परिषद पहले से ही खुद की डेयरी चला रही थी। छा परिषद में 1917 में अपनी डेयरी में गायों की संख्या भी बढ़ा ली थी।
उस दौर में प्लेग, चेचक, खसरा तथा हैजा जैसी संक्रामक बीमारियों के जबरदस्त प्रकोप था। संक्रामक बीमारियों से पीडित भारतीयों का मनोरा लि संक्रामक रोग चिकित्सालय में उपचार किया जाता था। इन जानलेवा बीमार से निजात पाने के लिए इसी दौरान आम लोगों ने मनोरा शीतला देवी तथा काल भैरव के छोटे-से पहाड़ी की चोटी में माता मंदिरों की स्थापना की थी।
1917 में नगर के वाटर वर्क्स के उच्चीकरण का काम पूरा कर लिया गया । पीने के लिए किलवरी से पानी लाने की योजना बनाई गई। इसी वर्ष रैमजे ।चिकित्सालय परिसर में बने संक्रामक बीमारियों के अस्पताल को भारतीयों के लिए भी खोल दिया गया। इस वर्ष 137.76 इंच वर्षा हुई। जुलाई से सितंबर के बीए, हुई भारी वर्षा की वजह से हरमिटेज, वेलेजली, अपर अयारपाटा, प्रातंवर को बीच फुलर हॉल, गोरखा लाइन, टंगस्टन हॉल, मिडिल चीना माल, मेविला रोड, रिजर्व पुलिस लाइन और फेरी हाल आदि क्षेत्रों में भारी नुकसान हुआ। इसी वर्ष बलियानाले में 82 बाधा तल बनाने का निर्णय लिया गया। बलियानाले में जहाँ फेरीहॉल का नाला आकर गिरता है, उससे तालाब की ओर लगा 770 मीटर हिस्सा पक्का किया जा चुका था। इस जगह से आगे ब्रेबरी की ओर फेरीहॉल के नाले से ब्रेबरी तक 82 बाधा तल बनाने का प्रस्ताव था। 1817 तक नाले में 78 बाधा तल बना लिए गए थे। पी.डब्ल्यू.डी. इन बाधा तलों का एक रजिस्टर रखती थी। हर साल बरसात से पहले इन बाधा तलों की अनिवार्य रूप से सफाई की जाती थी। बरसात के बाद बाधा तलों की आवश्यक मरम्मत एवं पुनर्निर्माण किया जाता था। बलियानाले की स्थिति को लेकर वार्षिक रिपोर्ट जारी की जाती थी।
पुलिस के सहायक सर्जन नगर पालिका के कर्मचारियों का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण करते थे। इसके लिए उन्हें नगर पालिका प्रतिमाह 20 रुपये मानदेय देती थी। इस साल 55 नेपाली श्रमिक पुनः बुखार से पीड़ित हुए। इन सभी को मनोरा स्थित संक्रामक रोग चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। इस वर्ष 283 बच्चों का जन्म हुआ। जिनमें से एक वर्ष से कम आयु के 68 बच्चों की मृत्यु हो गई। जाँच में बाजार क्षेत्रों में बाल मृत्यु दर अधिक पाई गई। लिहाजा बाइक प्रशिक्षित मिड-वाइफ तैनात कर दी गई। नगर पालिका वन क्षेत्र में अवैध रूप से घास तथा पेडों की शाखाएं काटने के 35 मामलों में 84 रुपये जुर्माना वसूला क्षेत्र की महिलाओं और बच्चों की सेहत का ध्यान रखने के लिए 1917 प्रशिक्षित में मीड वाइफ तैनात कर दी गई। नगरपालिका वन क्षेत्र में अवैध रूप से घास तथा पेड़ो के ३५ मामलों में ८४ रुपये जुर्माना वसूला गया 29 लोगों के चालान कर न्यायालय में भेज दिया गया।
एक सीट किरायेदार कोटे में बढ़ाई गई। 1918 में सरकार ने नगर के सडक और नालों के निर्माण के लिए नगर पालिका और सरकार के वित्तीय उत्तरदायित्वों को तय करने के लिए एक कमेटी गठित की। इस कमेटी ने तय किया कि नगर के 1918 में निर्वाचित सभासदों की संख्या पाँच से बढ़ाकर छह कर दी गई। पहाड़ी क्षेत्र में सड़क और नालों के निर्माण एवं रख-रखाव के लिए नगर पालिका और सरकार दोनों की साझा जिम्मेदारी होगी। दोनों का वित्तीय उत्तरदायित्व भी बराबर होगा।
नगर पालिका ने पालिका के करों की वसूली के लिए बेहतरीन पर्यवेक्षण एवं उच्च स्तरीय खुफिया तंत्र विकसित किया। नगर की पथ-प्रकाश व्यक्त्या को चाक-चौबंद रखने के लिए मिट्टी के तेल का गोदाम बनाया। तेल कंपनियों से सीधे तेल खरीदने की व्यवस्था की गई। सूखाताल स्थित भारतीय ईसाइयो के कब्रिस्तान में चहारदीवारी का निर्माण किया गया। भारतीय गरीब ईसाइयों के कब्रिस्तान के लिए सड़ियाताल में एक भू-खण्ड आवंटित किया गया। इस भू--खण्ड में चहारदीवारी के निर्माण का कार्य नगर पालिका ने खुद की धनराप्ति से किया गया ।
इस वर्ष नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने तल्लीताल और मल्लीताल बाजार के 481 घरों की जाँच की। इनमें 156 घरों की स्थित्ति अस्वास्थ्यकर पाई गई। इसयो बाद नगर पालिका ने मल्लीताल बाजार के विस्तार पर प्रतिबंध लगा दिया। बाजार क्षेत्र में नालियों के सुधार की योजना बनाने का फैसला लिया गया। 1918 में श्री रामसेवक सभा का गठन हुआ। इसी साल किशोरी लाल साह ने 'किंग प्रेस नाम से छापाखाना खोला। 'किंग प्रेस' नैनीताल की पहली प्रिटिंग प्रेस थी, जो कि आज भी कार्यशील है। किशोरीलाल साह के देहांत के बाद उनके पुत्र हीरालाल साह ने किंग प्रेस का संचालन किया। वर्तमान में किशोरीलाल साह के पौत्र धनश्याम लाल साह किंग प्रेस का संचालन कर रहे हैं।
1919 में प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हो गया। इसके फौरन बाद जल विद्युत परियोजना के बारे में पुनः विचार किए जाने लगा। प्रारंभ में इस योजता की अनुमानित लागत चार लाख रुपये आंकी गई थी। अब यह लागत कई गुना बढ़ चुकी थी। नैनीताल में बिजली के लिए ही नहीं बल्कि पीने के पानी के लिए भी जल विद्युत योजना को बनाया जाना जरुरी हो गया था। नैनीताल की पेयजल आपूर्ति के लिए भाप द्वारा संचालित पप पुराने पड़ चुके थे। इन्हें चलाने के लिए आवश्यकतानुसार कोयले की आपूर्ति नहीं हो पा रही थी। कोयले के दाम लगातार बढ़ रहे थे। इस साल वाटर फ्लो के लिए 50 रुपये प्रतिटन की दर से 1 टन कोयला खरीदा गया। ऐसी सूरत में उस वक्त की मामूली दरों में नगरवासियो को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध पानी उपलब्ध कराना बेहद मुश्किल हो चला था। गर्मियों के दिनों में मल्लीताल और तल्लीताल की बाजारों में जरुरत से ज्यादा भीड़ हो जाया करती थी। इस वजह से गर्मियों में पीने के पानी का संकट और गहरा जाता था। इस वर्ष नगर में गुणवत्तायुक्त मांस की आपूर्ति के लिए बरेली से मांस विक्रेता मंगाए गए। बरेली के मांस विक्रेताओं के यहाँ आने के बाद नगर में मांस की आपूर्ति में गुणात्मक बदलाव आया।
1919 में जल विद्युत योजना की लागत 12.82,000 रुपये आंकी गई। मसूरी नगर पालिका के बिजली इंजीनियर मिस्टर बेल और 'मैसर्स मैचर एण्ड प्लैट के प्रतिनिधियों के गहन अध्ययन के आधार पर यूनाइटेड प्रोविसेंस के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग ने 1919 में नैनीताल बिजली एवं पेयजल आपूर्ति योजना का 11,19,429 रुपये का आगणन तैयार किया था। पर मजदूरी एवं अन्य उपकरणों की बढ़ती कीमतों की वजह से यह धनराशि 20,72,383 रुपये तक जा पहुँची। अंततः प्रदेश के स्वास्थ्य अभियंता ने इस योजना हेतु 19 लाख का आगणन बनाकर भेजा। नगर पालिका ने स्वास्थ्य अभियंता के आगणन को बहुत अधिक बताया। कहा गया कि अगर योजना को बनाने में और अधिक विलंब हुआ तो इसकी लागत 20 लाख तक पहुँच सकती है। ऐसी स्थिति में नगर पालिका के पास एक ही रास्ता बचा था कि जल विद्युत योजना का निर्माण जल्दी करा लिया जाय। भले ही योजना के निर्माण के लिए नगर पालिका को ऋण ही क्यों न लेना पड़े। सरकार ने इसी वर्ष 'प्राथमिक शिक्षा अधिनियम-1919' पास किया। इस एक्ट के द्वारा सभी के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गई।
विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद नैनीताल वार एंटरटेंमेंट सोसायटी यानी नैनीताल युद्ध मनोरंजन कमेटी' से 'युद्ध' हटा दिया गया। अब यह नैनीताल मनोरंजन सोसायटी थी। इस वर्ष मानसून के दौरान बैंड स्टैंड क्षतिग्रस्त हो गया था। एडवर्ड जेम्स कार्बेट उन दिनों नगर पालिका के सदस्य थे। उन्होंने बरसात में क्षतिग्रस्त बैंड स्टैंड और अन्य संपत्तियों के पुनर्निर्माण तथा मरम्मत के लिए नगर पालिका को 8,169 रुपये दान दिए। जिसमें से 3,519 रुपये बैड स्टैंड के पुनर्निर्माण में खर्च हुए। नगर पालिका ने दुर्गापुर में पावर हाउस बनाने के लिए 320 एकड़ जमीन अधिगृहीत की, जिसका 1,165 रुपये प्रतिकर अदा किया गया। इसके बदले नगर पालिका ने सरकार को अपनी जमीन भी दी। इसी साल यूनाइटेड प्रोर्विसेस ऑफ आगरा एण्ड अवध की राजधानी इलाहाबाद से लखनऊ आ गई। हाईकोर्ट इलाहाबाद ही रहा।
रामपुर के नवाब अलीजाह, फरजान-ए-दिल-पजीर, दौलत -ए - इंदलौशिया, नसीर-उल-मुल्क, अमीन-उल-उरमा, रामपुर र के मुस्तैद-ए-जंग मोहम्मद हामिद
अली खान बहादुर और अंग्रेज सरकार बहादुर के बीच बुकहिल लॉज, चुनरि हाउस और बुकहिल कॉटेज की संपत्ति को तीन लाख रुपये में खरीद-फरोत की गुफ्तगू, चली। अंततः 1920 में अंग्रेज सरकार बहादुर ने बुकहिल का बंगला, बेरिक, आउट हाउस एवं 6 एकड़ 39 पोल जमीन 2,02,493 रुपये, ब्रुकहिल लौर का बंगला, आउट हाउस, दूसरे मकानात एवं 4 एकड़ जमीन 1,10,507 रुपये और 1.40,986 रुपये में बुकहिल कॉटेज का बंगला, आउट हाउस, दीगर मकानात तथ 4 एकड़ जमीन समेत तीन स्टेटों की कुल मिलाकर 14 एकड़ 39 पोल जमीन और सभी मकानात कुल 4,53,986 रुपये में सरकार के हक में खरीद लिए। इसके बाद बुकहिल स्टेट की यह तमाम जायजाद सरकार के सचिवालय, मंत्रियों, विधायको तथा उनके कारकूनों के दफ्तर और रिहाइश के काम में लाए जाते थे। ब्रुकहिल सचिवालय के दफ्तर और आवासीय प्रयोजन में लिया जाता था। ब्रुकहिल लॉज और ब्रुकहिल हाउस, मंत्रियों, विधायकों और उनके कारिंदों के आवासीय उपयोग में लाया जाता था। नवाब साहब के कारकूनों के आवास अब सचिवालय के कारिंदों के आवास हो गए थे।
ओकपार्क के दो मंजिला बंगला भी 1920 में 6,855 रुपये में खरीदा गया। इसे गृह सदस्य का निवास बना दिया गया था। कैंटन लॉज का एक मंजिला बंगला भी सरकार ने 30 हजार रुपये में 1920 में ही खरीदा था। इसे सचिवालय के उपयोग में लाया जाता था। उस दौर में नैनीताल क्लब, स्लीपी हॉल, बुकहिल स्टेंट और ओकपार्क आदि भवन यूनाइटेड प्रोविंसेस सरकार के हिल कैंप थे। सचिवालय के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों में ज्यादातर बज के होते थे। उन्होंने ही सचिवालय में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर श्री कृष्ण की झांकी बनाने की परंपरा शुरु की थी।