बहुत बड़ा सबक है सिलक्यारा सुरंग हादसा,Pc-Wikipedia
बहुत बड़ा सबक है सिलक्यारा सुरंग हादसा,Pc-Wikipedia

बहुत बड़ा सबक है सिलक्यारा सुरंग हादसा

वैज्ञानिकों, विषय विशेषज्ञों, डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों, अमिकों और सुरक्षा कर्मियों, सेना व भारतीय वायुसेना के रात दिन अनवरत अथक परिश्रम और राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी द्वारा उत्तरकाशी में कैंप कर केन्द्र को एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित कर राहत व बचाव ऑपरेशन की रफ्तार को गति देने में जो अहम भूमिका निभाई, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है। इनकी लगन और मेहनत के बलबूते 17 दिन सुरंग में फंसे रहने और जिंदगी और मौत के बीच जुझते 8 राज्यों यथा हिमाचल, उत्तराखंड, असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के मजदूर बाहर आ सके और खुली हवा में सांस ले सके।
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उत्तराखंड में चार धाम सड़क परियोजना के तहत बन रही सिलक्यारा सुरंग के हादसे ने मुरंगों की सुरक्षा को लेकर तमाम सवाल खड़े कर दिए है जिन पर विचार किया जाना बेहद जरूरी है। साथ ही इस हादसे में 348 घंटे जिंदगी की जंग लड़ते रहे 41 मजदूरों की सकुशल जिंदा वापसी न केवल हर्ष का, गर्व का विषय है बल्कि इस आपदा के दौर में राहत व बचाव विचार कार्यों में देश की 15 से अधिक एजेंसियों के 650 से ज्यादा इंजीनियरों, वैज्ञानिकों, विषय विशेषज्ञों, डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों, अमिकों और सुरक्षा कर्मियों, सेना व भारतीय वायुसेना के रात दिन अनवरत अथक परिश्रम और  राज के  मुख्यमंत्री पुष्कर धामी द्वारा उत्तरकाशी में कैंप कर केन्द्र को एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित कर राहत व बचाव ऑपरेशन की रफ्तार को गति देने में जो अहम भूमिका निभाई, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है। इनकी लगन और मेहनत के बलबूते 17 दिन सुरंग में फंसे रहने और जिंदगी और मौत के बीच जुझते 8 राज्यों यथा हिमाचल, उत्तराखंड, असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के मजदूर बाहर आ सके और खुली हवा में सांस ले सके।

दरअसल यह सुरंग हादसा देश-दुनिया का ऐसा हादसा रहा जो 17 दिनों तक न केवल दुनिया की मीडिया की सुर्खियों में रहा बल्कि दुनिया ने सुरंग में फंसे इन मजदूरों को सकुशल वापसी और देश के मेगा बचाव व राहत अभियान को कामयाबी को लगातार प्रार्थना भी की। इस सबके बावजूद वह बात दीगर है कि इस बचाव अभियान में पहली बार पांच विकल्पों पर काम किया गया और आरवीएनएल, टीएचडीसी, ओएनजीसी, एन आईडीसीएल और सतलुज जल विद्युत निगम ने मुख्य सुरंग के समानांतर अलग अलग राहत सुरंगों को बनाने का काम किया।

वहीं नहीं इस अभियान में काम आने वाले उपकरणों को लाने के लिए भारतीय वायु सेना के विमानों ने रात-दिन उड़ानें भरी और जरूरत के यंत्र व सामग्री पहुंचाने में अहम योगदान दिया और तो और इंटरनेशनल टनल ऑर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष अर्नोल्ड डिपस का भी इस अभियान में सहयोग सराहनीय ही नहीं, स्तुति योग्य है। बहरहाल यह हादसा सुरंग निर्माण में लगे योजनाकारों के लिए सबसे बड़ा सबक है। क्योंकि देश में अब जमीन की कमी के मद्देनजर सुरंग निर्माण को प्राथमिकता दी जा रही है। सुरंगों को सबसे अच्छा विकल्प माना जा रहा है और देश में सुरंग का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। सुरंग निमाण में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप कार्यों को अंजाम देने पर सभी सुरंग विशेषज्ञ बल देते हुए कहते है कि सुरंग निर्माण में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तीन किलोमीटर से अधिक लम्बी सुरंग पर एस्केप पैसेज होना लाजिमी है जो हर 375 मीटर पर मुख्य सुरंग से जुड़ी होनी चाहिए ताकि आपात स्थिति में सुरंग के अंदर फंसे लोगों को सावधानी पूर्वक बाहर निकाला जा सके। यह सब मानकों के अनुरूप निर्माण कार्य किए जाने पर ही संभव होता है। इससे सुरंग निर्माण के शुरुआत और बाद में भी किसी खतरे की संभावना नहीं रहती है।

असलियत में उत्तरकाशी के सिलक्यारा हादसा यह चेतावनी है कि तप सुरक्षा मानकों से खिलवाड़ खतरनाक है। इसलिए तय सुरक्षा प्रोटोकोल का सख्ती से पालन बेहद जरूरी है। ऐसा सुरंग हादसा देश में इससे पहले कभी नहीं हुआ है और न ऐसा बचाव अभियान देश में पहले कभी चला है। इसको सफलता देश के आपदा प्रबंधन की सफलता है। इसमें दो राग नहीं है, लेकिन इस सबके बावजूद हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिमालय मात्र एक पर्वत श्रृंखला ही नहीं है, बल्कि वह अपनी छांवमें एछांवक संस्कृति और सभ्यता भी लपेटे हुए हैं। निरंतर संकट से जूझते आ रहे हिमालयी क्षेत्र में आपदाओं का नयाक्रम कई बड़े प्रश्न लेकर आया है। पिछले 10 वर्षों में हिमालयी राज्यों में प्राकृतिक आपदाओं का एक नये प्रकार का दौर शुरू हुआ है। वैश्विक परिस्थितियां चेतावनी दे रही है कि आने वाले समय में भी आपदायें शायद हो थमें। हिमालयी क्षेत्र में जारी जल एवं पन बिजली परियोजनाएं, पर्यटन को बढ़ावा देने के निमित्त बन रही आल वेदर रोड, चार धाम यात्रा मार्ग, रेल मार्ग के निर्माण हेतु सुरंगों का निर्माण, देवदार के लाखों पेड़ों का कटान हिमालय को खण्ड- खण्ड कर रहे हैं जिसके बारे में पर्यावरणविद एवं भूगर्भ विज्ञानी बरसों से चेता रहे हैं कि यह सब क्रियाकलाप पर्यावरण विनाश के प्रतीक है। पर्यावरणविद पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी कहते हैं कि हिमालय से पूरा देश जुड़ा है। दूसरे राज्यों को भी इसकी चिंता करनी चाहिए। आपदाएं सचेत कर रही है कि जाग जाओ। यह चेतने का समय है।

सरकारों को भी हिमालय के प्रति सजग होना होगा। यदि बढ़ते तापमान, जलवायु परिवर्तन और बदली परिस्थितियों में हिमालय की अनदेखी हुई तो हिमालय को दरकते देर नहीं लगेगी। इसलिए समय की मांग है कि हिमालय जिन संकटों से जूझ रहा है, उन्हें देश के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। (आलेख में व्यक्त विचार लेखक के है)

स्रोत- पीपुल्स समाचार 

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