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सौर ऊर्जा चालित कार्बन कैप्चर रिएक्टरः कार्बन कैप्चर जलवायु परिवर्तन को कैसे कम करता है

सौर ऊर्जा चालित कार्बन कैप्चर: जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए नवीनतम तकनीक का उपयोग।
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वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना एक वैश्विक चुनौती बन चुका है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) के अधिक उत्सर्जन से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, जिससे प्राकृतिक आपदाएँ और पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न हो रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिक लगातार नए समाधान खोज रहे हैं। हाल ही में विकसित सौर ऊर्जा चालित कार्बन कैप्चर रिएक्टर (Solar-Powered Carbon Capture Reactor) इस दिशा में एक क्रांतिकारी तकनीक साबित हो सकता है। यह तकनीक कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से अवशोषित कर उसे उपयोगी ईंधन और अन्य उत्पादों में बदल सकती है। इस तकनीक को अपनाने से न केवल कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी, बल्कि जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता भी घटेगी।

कार्बन कैप्चर रिएक्टर क्या है?

कार्बन कैप्चर रिएक्टर एक ऐसी प्रणाली है जो वायुमंडल से CO₂ को अलग कर उसे सुरक्षित रूप से संग्रहीत या पुनः उपयोग में लाने में सक्षम होती है। पारंपरिक कार्बन कैप्चर प्रणालियाँ अत्यधिक ऊर्जा का उपयोग करती हैं, जिससे उनका संचालन महंगा और जटिल हो जाता है। लेकिन सौर ऊर्जा चालित रिएक्टर इस समस्या का समाधान करता है, क्योंकि यह सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा प्राप्त करके कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित और परिवर्तित करता है।

इस प्रणाली का कार्य करने का तरीका अत्यंत नवीन और प्रभावी है। यह एक प्रकार का हाइब्रिड रिएक्टर है, जिसमें सौर ऊर्जा के माध्यम से विद्युत और रासायनिक प्रक्रियाएँ संचालित होती हैं। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड को एक विशेष अवशोषक सतह द्वारा पकड़ा जाता है, जो नैनो-तकनीक आधारित होती है। यह तकनीक पारंपरिक प्रणालियों की तुलना में अधिक दक्षता प्रदान करती है और कम ऊर्जा की खपत करती है।

इतिहास और विकास

कार्बन कैप्चर तकनीक का इतिहास 20वीं शताब्दी के मध्य से जुड़ा हुआ है। प्रारंभ में, इस तकनीक का उपयोग केवल औद्योगिक प्रक्रियाओं में किया जाता था, लेकिन जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के कारण इसे अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में शोध शुरू हुआ।

2000 के दशक में, वैज्ञानिकों ने पारंपरिक कार्बन कैप्चर सिस्टम विकसित किए, लेकिन इन प्रणालियों में उच्च ऊर्जा खपत एक बड़ी समस्या थी। इसके समाधान के रूप में सौर ऊर्जा चालित कैप्चर तकनीक पर शोध प्रारंभ हुआ। इस तकनीक का पहला व्यावसायिक संस्करण 2025 तक विकसित किया गया।

वर्तमान में, दुनिया भर में कई अनुसंधान केंद्र इस तकनीक पर कार्य कर रहे हैं। प्रमुख संस्थान, जैसे कि MIT, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, और यूरोप की विभिन्न प्रयोगशालाएँ, इस प्रणाली को और अधिक कुशल बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।

सौर ऊर्जा चालित कार्बन कैप्चर रिएक्टर की कार्यप्रणाली

इस रिएक्टर की कार्यप्रणाली मुख्य रूप से तीन चरणों में विभाजित की जा सकती हैः-

क - कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषणः

इस चरण में रिएक्टर विशेष झिल्लियों या उत्प्रेरकों का उपयोग करके हवा से CO2, को अलग करता है। इसमें अत्यधिक संवेदनशील झिल्लियाँ होती हैं, जो वायुमंडल से केवल कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने में सक्षम होती हैं। इस प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाले झिल्लियाँ नैनो-तकनीक आधारित होती हैं, जो दक्षता को बढ़ाती हैं।

रासायनिक रूपांतरण इसमें सौर ऊर्जा का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड को अन्य उपयोगी उत्पादों में बदला जाता है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से फोटोकेमिकल या इलेक्ट्रोकेमिकल विधियों पर आधारित होती है। उत्प्रेरक और सौर ऊर्जा के संयोजन से यह प्रक्रिया अत्यधिक कुशल होती है।

ख - भंडारण या पुनः उपयोग: प्राप्त ईंधन

या रासायनिक पदार्थों को संग्रहित करके विभिन्न उद्योगों में उपयोग किया जाता है। इस तकनीक से कार्बन न्यूट्रल इकोसिस्टम का निर्माण संभव हो सकता है।

ग - विज्ञान और तकनीकी विवरणः

इस तकनीक में विशेष रूप से विकसित फोटोसिंथेटिक उत्प्रेरक (Photocatalysts) का उपयोग किया जाता है। यह उत्प्रेरक सूर्य के प्रकाश को अवशोषित कर उसे रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है। इस प्रक्रिया के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं:

  • (I) टाइटेनियम डाइऑक्साइड (TiO₂): यह सूर्य के प्रकाश को पकड़ने और कार्बन डाइऑक्साइड को सक्रिय करने में सहायता करता है।

  • (II) नैनो-सामग्री आधारित झिल्लियाँः ये झिल्लियाँ अधिक दक्षता से कार्बन डाइऑक्साइड को पकड़ने में सहायक होती हैं।

घ - सौर ऊर्जा सेल :

यह रिएक्टर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है, जिससे यह प्रणाली पूर्णतः नवीकरणीय ऊर्जा पर कार्य करती है।

च - ऊष्मा सहनशील इलेक्ट्रोड : यह उच्च तापमान में भी विद्युत प्रवाह बनाए रखते हैं, जिससे प्रणाली कुशलतापूर्वक कार्य करती है।

छ - बायोमिमेटिक डिज़ाइनः इस प्रणाली की संरचना पौधों की पत्तियों से प्रेरित होती है, जिससे यह अधिक कुशलता से कार्बन अवशोषित कर सकती है।

इस तकनीक के लाभ

  • क - हरित ऊर्जा का उपयोग: यह पूरी तरह से स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत पर आधारित है।

  • ख - वायुमंडलीय CO, की मात्रा में कमीः इस तकनीक से वायुमंडलीय कार्बन स्तर को प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। 

  • ग - सिंथेटिक ईधन का निर्माणः यह जीवाश्म धन के स्थान पर उपयोग किया जा सकता है। 

  • घ - औद्योगिक उपयोग: इस प्रणाली से प्राप्त उत्पादों का उपयोग विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में किया जा सकता है।

  • च - पर्यावरण अनुकूलः यह प्रणाली प्रदूषण मुक्त ऊर्जा उत्पादन में योगदान देती है।

  • छ - ऊर्जा की बचतः सौर ऊर्जा आधारित होने के कारण यह कम लागत में कार्य करता है।

  • ज - सतत विकास में योगदानः यह तकनीक सतत और पर्यावरणीय रूप से अनुकूल विकास को बढ़ावा देती है।

सौर ऊर्जा चालित कार्बन कैप्चर रिएक्टर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक प्रभावी समाधान हो सकता है। यह तकनीक न केवल ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में मदद कर सकती है, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का भी निर्माण कर सकती है। यदि इसे सही रणनीति और निवेश के साथ अपनाया जाए, तो यह वैश्विक स्तर पर कार्बन न्यूट्रल भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

भविष्य में, यदि इस तकनीक का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाए, तो यह जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।

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