सृष्टि की सुरक्षा के लिए अपरिहार्य प्रकृति रूपी परमात्मा की व्यवस्थाओं का संरक्षण
सृष्टि की सुरक्षा के लिए अपरिहार्य प्रकृति रूपी परमात्मा की व्यवस्थाओं का संरक्षण

सृष्टि की सुरक्षा के लिए अपरिहार्य प्रकृति रूपी परमात्मा की व्यवस्थाओं का संरक्षण

आइये इस ब्लॉग में हम जानते हैं कि सृष्टि रूपी परमात्मा का संरक्षण संपूर्ण जीवन के लिए क्यों जरूरी है | Let us know in this blog why protection of Goddess in the form of nature is necessary for existence of life
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कोई ऐसी  शक्ति ब्रह्माण्ड में अवशय है  जो समस्त व्यवस्थाओं का   संचालन करती है। इसी अदृश्य शक्ति को आस्तिक मनुष्य परमात्मा या ईश्वर कहते हैं। वैज्ञानिक लोग अधिकतर इसे प्रकृति की शक्ति मानते है अर्थात प्रकृति को ही ईश्वर मानते हैं। ब्रम्हांड की भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यवस्थाओं को चलाने के लिए विभिन्न विभाग हैं और उन विभागों को चलाने वाले उनके देवता है जो परमात्मा की कैबिनेट के सदस्य कहे जा सकते हैं। मुख्य मुख्य विभागों की जानकारी देने का प्रयास किया जा रहा है।

सनातन धर्म की व्यवस्था में हम जल को देवता मानते हैं। जल के देवता समुद्र हैं। इसके अतिरिक्त हम सूर्य को भी ऊर्जा और प्रकाश का देवता/भगवान मानते हैं। सूर्य की  ऊर्जा/गर्मी से समुद्र का जल, जल के कणों को लेकर भाप बनकर ऊपर उठता है। भाप के साथ आक्सीजन तथा हाइड्रोजन भी हवा के रूप में ऊपर उठकर बादल बनकर आकाश और पृथ्वी के बीच में फैलकर जल वर्षा कर देते हैं। इतनी प्रचुर मात्रा में समुद्र देवता द्वारा सूर्य देवता की सहायता से जलवृष्टि पृथ्वी पर हो जाती है कि पेयजल और सिंचाई आदि की सभी आवश्यकताओ की पूर्ति हो जाती है। पृथ्वी को सनातन व्यवस्था में माता के समान पूज्य मानते हैं अर्थात पृथ्वी भी परमात्मा की कैबिनेट की देवी हैं। जब समुद्र देवता द्वारा भेजा गया जल पृथ्वी को प्रचुर मात्रा मे मिल जाता है तो पृथ्वी जल के सहयोग से बहुत बडी मात्रा में बनस्पति को जन्म देती है। असंख्य मात्रा में पेड़-पौधे पृथ्वी पर उग आते हैं और    वह पेड़ बडी मात्रा में आक्सीजन के रूप में वायु को जन्म देते हैं।

जल, पृथ्वी तथा वायु के सहयोग से तमाम जीव जन्तु पृथ्वी पर पैदा हो जाते हैं। पशु-पक्षी एवं मनुष्य के लिए अन्न भी धरती माता देती है। इस प्रकार मानव सृष्टि का सृजन परमात्मा की कैबिनेट के सदस्यों जल, वायु और धरती माता की सहायता से हो गया। पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में जल संग्रहण की  आवश्यता होती है। इस कारण नदी, झील एवं तालाब में भी जल का संग्रहण होता है। इसके अतिरिक्त पृथ्वी अपने अन्दर रिचार्ज करके बहुत बडी मात्रा मे जल संग्रहण कर लेती है तथा आवश्यक अनुसार पीने और सिंचाई आदि के लिए जल देती रहती है। परमात्मा ने सोचा कि हमने जीव-जन्तु, पशु-पक्षी और नर-नारी बना दिया लेकिन इनको अगर कोई जिम्मेदारी नहीं दी गयी तो प्रकृति के संसाधनों का सदुपयोग नही हो पायेगा। इस कारण मनुष्य को सक्षम मस्तिश्क दिया गया, पशु-पक्षियों को भी दिमाग दिया गया लेकिन उन्हें उतना ही दिमाग दिया गया जिससे वे मनुष्य की व्यवस्था में रहकर मनुष्य की योजना के अनुसार कार्य कर सकें। परमात्मा द्वारा दिये ज्ञान के आधार पर मनुष्य ने पता लगा लिया कि जो वनस्पति पेड़-पौधों के रूप में मिली है, उनमें बहुत-सी ऐसी हैं जिनमें औषधीय गुण हैं। इसलिए वह उपचार के लिए अधिक उपयोगी है, उनका संरक्षण करना बहुत जरूरी है। मनुष्य, पशुओं और जीव-जन्तुओं के लिए आक्सीजन बहुत जरूरी है, क्योंकि बिना आक्सीजन के कोई जीवित ही नहीं रह सकता है।

जीवन के लिए आवश्यक वृक्ष पीपल, बरगद, पाकड़ सर्वाधिक उपयोगी पाये गये। इन वृक्षों से सर्वाधिक मात्रा में आक्सीजन मिलती है। इनका आकार और आयु भी बहुत अधिक होती है। यह सर्वाधिक छाया भी देते हैं। इसलिए इनके संरक्षण के लिए परमात्मा ने विशेष योजना बनाई तथा इन्हे देव वृक्ष का नाम दे दिया गया। पीपल को भगवान विष्णु, बरगद को भगवान शंकर तथा पाकड़ को ब्रम्हा जी का प्रतिनिधि माना गया। इस कारण इनकी पूजा होने लगी तथा इन्हें काटना महापाप तथा अनर्थ का आमंत्रण माना गया। तुलसी का पौधा तो बहुत छोटा है लेकिन इसमें औषधीय गुण बहुत अधिक हैं। इस कारण इसे घर-आगन में लगाकर पूजा जाता है तथा उसकी पत्ती का उपयोग प्रतिदिन किया जाता है। शास्त्रों में पीपल, बरगद और पाकड़ को हरिशंकरी कहा गया तथा तुलसी के महत्व को बताया गया है। इसके अतिरिक्त और बहुत से पेड़-पौधे हैं जो स्वास्थ्य की दृष्टिकोण से अत्यंत उपयोगी हैं। फल-फूल तथा इमारती लकड़ी भी पेड़-पौधों से मिलती है। प्रकृति का  सौंदर्य भी वनस्पतियो द्वारा ही खिलता है। प्रकृति के सौदर्य में पेड़-पौधे, नदी-तालाब झील और पहाड़ों का बहुत बडा योगदान है। पृथ्वी पर सृष्टि का सृजन समुद्र, सूर्य, पृथ्वी, जल और वायु के सहयोग से परमात्मा द्वारा किया गया है। इसमें मनुष्य द्वारा निर्मित विज्ञान का कोई योगदान नहीं है, इसीलिए बड़े-बड़े विद्वान भी परमात्मा के अदृश्य अस्तित्व को स्वीकार करने के लिए विवश है। इसीलिए प्रकृति के रूप में उपलब्ध सूर्य, पेड़, कुआं, नदी, तालाब और झीलों की पूजा मनुष्य द्वारा की जाती है। परमात्मा ने इनके संरक्षण की जिम्मेदारी भी मनुष्य को दी है। यदि मनुष्य अपनी जिम्मेदारी को निभाने में लापरवाही करता है तो जीवन संकट में पड़ जाता है और सभी को भोगना पड़ता है। इस परमात्मा की कैबिनेट में परमात्मा सहित सूर्य, पृथ्वी और समुद्र कुल चार सदस्य है जिन्हें हम भगवान के रूप में मानते हैं तथा देवता के रूप में हम नदी, तालाब, कुआ, झील, पीपल, बरगद, पाकड़, तुलसी आदि पेड़ों की पूजा एवं संरक्षण करते हैं।

मानव जीवन के लिए गोमाता की बहुत बड़ी उपयोगिता है। चाहे गोमाता का दूध हो, चाहे गोबर या गौ मूत्र। इस कारण गौमाता को पूज्य माना जाता है। लोक भारती इसी जिम्मेदारी को अहसास कराने तथा पालन कराने तथा मानव समाज को जागरूक करने के कार्य मे लगी है। मनुष्य अपनी जिम्मेदारी का पालन करेगा तभी प्रकृतिरूपी परमात्मा की व्यवस्थाओं का संरक्षण होगा और मानव तथा पशु-पक्षी सभी सुखी होंगे तथा

'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया' का स्वप्न साकार होगा।


-लेखक लोक भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

पृथ्वी पर सृष्टि का सृजन समुद्र, सूर्य, पृथ्वी, जल और वायु के सहयोग से परमात्मा द्वारा किया गया है। इसमें मनुष्य द्वारा निर्मित विज्ञान का कोई योगदान नहीं है, इसीलिए बड़े-बड़े विद्वान भी परमात्मा के अदृश्य अस्तित्व को स्वीकार करने के लिए विवश है। इसीलिए प्रकृति के रूप में उपलब्ध सूर्य, पेड़, कुआं, नदी, तालाब और झीलों की पूजा मनुष्य द्वारा की जाती है। परमात्मा ने इनके संरक्षण की जिम्मेदारी भी मनुष्य को दी है

  स्रोत -

लोक सम्मान फरवरी-2024 | वर्ष : 18 | अंक : 02


 

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