वायु प्रदूषण: साफ सांसों की खातिर आइए,  हवा बनायें मुआफिक

वायु प्रदूषण: साफ सांसों की खातिर आइए,  हवा बनायें मुआफिक

5 min read

ऋतु परिवर्तन के इन दिनों में दिल्ली का वायु प्रदूषण फिर उसी स्तर की ओर अग्रसर है, जहां हम वर्ष 2019 में थे: पिछले चार साल में खराब हवा के दिन - 1440; बेहद खराब हवा की अवधि - तीन माह; अच्छी हवा की उपलब्धता - मात्र पांच दिन। 14 चिन्हित स्थान ऐसे, जिनकी वायु गुणवत्ता, शेष दिल्ली की तुलना में हमेशा खराब। वायु प्रदूषण के कारण इंसानी मौतों का आंकड़ा - 30,000 प्रति वर्ष। कोरोना और स्माॅग साथ-साथ होने पर अब खतरा दोहरा है। अतः ’रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ’ - अभियान को सफल बनाने के लिए गुलाब पेश करने की शासकीय पहल तो ठीक है, किंतु क्या ज्यादा ज़रूरी यातायात को जैम फ्री बनाने की कोई अतिरिक्त कोशिश की जा रही है ? क्या ज्यादा प्रदूषक वाहनों, ईंधनों पर सख्ती की कोई विशेष कवायद हमें नज़र आ ही है ? इनसे भी ज्यादा ज़रूरी सवाल यह कि क्या पीड़ित पब्लिक के रूप में  दिल्लीवासी खुद कोई ऐसी व्यापक पहल कर रहें कि लगे कि वाकई क्लाइमेट इमरजेन्सी है ? डांट व आदेश तक सीमित सर्वोच्च अदालत। मास्क और एयर-प्यूरीफायर बेचती कम्पनियां। प्रदूषण, पराली और सम-विषम - एक सप्ताह तक इन तीन शब्दों को ताश के पत्तों के तरह फेंटती-बांटती दिल्ली की पॉलिटिक्स, प्रशासन, शासकीय विज्ञापन और मीडिया; तत्पश्चात् चुप्पी। इमरजेन्सी में किसी चिकित्सक व परिचारकों के कर्तव्य क्या ये ही हैं?

स्पष्ट निष्कर्ष

प्रश्न कई हो सकते हैं किन्तु दिल्ली प्रदूषण के दर्ज आंकड़े, दर्ज पीड़ा और बीते पखवाड़ा प्रकरण से उपजे दो निष्कर्ष एकदम स्पष्ट हैं: पहला, क्लाइमेट इमरजेन्सी और इसके दुष्प्रभाव वर्ष-दर-वर्ष की परिस्थिति है; इसे सिर्फ स्मॉग-टाइम इमरजेन्सी मानना, एक ग़ल़ती। स्पष्ट है कि इसकी मुख्य आरोपी सिर्फ त्यौहारी पटाखे, पराली जलाना व स्मॉग जैसी अल्पावधि घटनायें नहीं हो सकतीं। अतः न तो पटाखा-पराली दाह नियंत्रण और सम-विषम जैसे अल्पकालिक फार्मूले सम्पूर्ण समाधान साबित हो सकते हैं और न ही एयर-प्यूरीफायरों खरीद-बिक्री। समस्या का निवारण, मूल कारणों की समग्रता में तलाशा जाना चाहिए। सम्पूर्ण समाधान की रणनीति भी राज, समाज व बाज़ार...तीनों की नीति, नीयत व क्षमता की पूरी जांच-परख के साथ बनाई जानी चाहिए।

दूसरा यह कि मौसम की कोई प्रशासनिक सीमा नहीं होती; अतः क्लाइमेट इमरजेन्सी सिर्फ दिल्ली तक सीमित हो; यह तार्किक नहीं। नासा की तसवीरें इसका समर्थन करती हैं। दीवाली बाद का स्मॉग सिर्फ दिल्ली नहीं, उत्तर के पूरे मैदान पर हमसाया रहा। बकौल ग्रीनपीस रिपोर्ट - 2018, दुनिया के सर्वाधिक वायु-प्रदूषित 10 नगरों में 07 भारत के हैं। हालांकि इसका एक कारण, स्थानीय प्रदूषकों के मद्देनजर भारत की वायु गुणवत्ता सूचकांक में अमोनिया व सीसा जैसे मानकों को शामिल किया जाना हो सकता है। अमेरिका समेत कई देशों के मुख्य मानकों में  पीएम-10, पीएम- 2.5, ट्राइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड व सल्फर डाइ ऑक्साइड... कुल पांच तत्व ही शामिल हैं।

अब यदि भारत के सर्वाधिक वायु-प्रदूषित 10 नगरों में कोलकोता, विशाखापतनम, हैदराबाद, चेन्नई, मदुरई, बंगलुरु, पुणे, मुंबई जैसे किसी नगर का नाम नहीं, तो इसका मतलब यह कतई नहीं कि इनमें वायु-प्रदूषण का कोई कारण मौजूद नहीं है। इनकी वायुमण्डलीय बेहतरी, इनके समुद्रतटीय होने के नाते है। समुद्रतटीय हवा की दिशा, वेग, बारिश, शीतलता और ताप की अनुकूल स्थानीय मौसमी परिस्थितियां प्रदूषित तत्वों को एकत्र नहीं होने देती। किंतु इसका मतलब, समुद्रतटीय नगरों को प्रदूषित करने का लाइसेंस मिल जाना नहीं है। समुद्र का तल व ताप जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं, उनसे समुद्रतटीय नगर डूब भी सकते हैं और बदले हवा के रुख के कारण किसी दिन प्रदूषित नगरों की सूची में नंबर वन पर भी आ सकते हैं।

बुनियादी तथ्य

बुनियादी तथ्य यह है कि स्मॉग में मौजूद स्मोक यानी धुआं सिर्फ पत्ते-पराली जलाने से नहीं पैदा होता; यह अन्य कूड़ा-कचरा, ईधन, पटाखे, गैस, भोज्य पदार्थों आदि के जलने, धातु, पत्थर, लकड़ी, रबर, प्लास्टिक आदि के गलने, रगड़ने तथा शीतलन की अनेक प्रक्रियाओं से भी उत्पन्न होता है। ये प्रक्रिया हमारी रसोई, जंगलों, फैक्टरियों, गाड़ियों, उपकरणों आदि में साल के बारह महीने चलती रहती हैं।

तथ्य यह भी है कि वायु प्रदूषण का मतलब, सिर्फ वायुमण्डलीय में मौजूद गैसों में सिर्फ कार्बन डाइ ऑक्साइड अथवा कार्बन मोनो ऑक्साइड की मात्रा का आवश्यकता से अधिक बढ़ जाना नहीं होता; यह क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, सीसा, अमोनिया, धूल, ओजोन गैस, मीथेन, सल्फर डाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि का नुक़सानदेह सम्मिश्रण भी होता है। इनका उत्पादन हेयर डाई, चूड़ी, पेंट, कागज़, धातु, पनबिजली निर्माण, वातानुकूलन, शीतलन व कचरा सड़ान जैसी कई जैविक, रासायनिक व भौतिक प्रक्रियाओं के दौरान होता ही है।

दिल्ली की हवा में मिश्रित पार्टिकुलेट मैटर में धूल की अत्याधिक मात्रा, सबसे बड़ी चुनौती है। आंकड़ा है कि मौजूदा वाहन टायरों की कुल रबड़ में से करीब एक लाख किलोग्राम घिसकर प्रति वर्ष दिल्ली की धूल व हवा में मिल रही है। धूल की बढ़ोत्तरी में सड़क निर्माण में सीमेंट प्रयोग, खनन, मिट्टी-कचरे को ढोकर ले जाने तथा ज़मीन की ऊपरी परत में घटती नमी यानी उतरते भूजल, बढ़ते वाष्पीकरण व बढ़ते रेतीले क्षेत्रफल का भी भरपूर योगदान है। जाहिर है कि कारण कई हैं, तो समाधान के कदम भी कई ही होंगे।

समाधान करें 

ए.सी. की बढ़ती संख्या, बढ़ती धूल, बढ़ते निजी वाहन और बढ़ता ई-पॉली-ठोस कचरा और बेज़रूरत उपभोग -  दिल्ली वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। समाधान हेतु सर्वप्रथम सादगी को सम्मानित करें; अधिक उपभोग करने वाले को हतोत्ससहित। जीडीपी की बजाय, खुशहाली सूचकांक को अर्थव्यवस्था का राष्ट्रीय आदर्श बनायें। सप्ताह में एक दिन अन्न, ईंधन व नूतन वस्तुओं के उपभोग के उपवास को राष्ट्रीय व्रत मान अपनायें। उपभोग घटायें; यथोचित पुर्नोपयोग बढ़ायें। कार्यालयी कार्यनीति व तबादला नीति को कम खपत हेतु प्रोत्साहित करने वाला बनायें। खुले सामान की शुद्धता सुनिश्चित करें। लागत पर सीमित मुनाफे की एमआरपी का नियम बनायें; ऑनलाइन शॉपिंग घटायें। इससे पैकेजिंग घटेगी; कचरा घटेगा; कार्बन उत्सर्जन घटेगा; स्वच्छता स्वतः बढ़ जाएगी।

इन्दौर ने डंप एरिया कचरा निष्पादन हेतु ट्रामल मशीन का उपयोग कर स्वच्छता का प्रथम स्थान हासिल किया है। गीला-सूखे कचरे को अलग-अलग करने करने को हर घर अपनी आदत बनाये। गीले की खाद बनेगी। सूखा निष्पादित हो पुर्नोपयोग में आएगा। कूड़ा जलाना ही नहीं पडे़गा। धुआं स्वतः घट जायेगा। 

पहले साईकिल को राष्ट्रीय वाहन घोषित करें; सार्वजनिक परिवहन, कार-पूलिंग व साईकिलिंग को आदर्श, सर्वसुलभ व सुरक्षित बना उपयोग हेतु प्रोत्साहित करें; रूटों पर बसों की संख्या का संतुलन बनायें; वाहनों की गति व गुणवत्ता नियंत्रित करें; सीसायुक्त पेट्रोल का उत्पादन बंद करने की पहल करें और अक्षय ऊर्जा उत्पादन को सस्ता करें; कार्यालय, विद्यालय और फैक्टरियों के काम की अवधि में विविधता लाएं; तत्पश्चात् ई वाहन लाएं। ज़रूरत न हो, तो बिजली, मोबाइल, कम्प्यूटर, इंटरनेट व वाई-फाई बिल्कुल न चलायें।

पीपल, पाकड़, नीम, कदम्ब व खेजड़ी की हर मौसम हरित पंचवटी लगायें; हर परिसर, सड़क व अरावली पर्वतमाला को हरित बनायें। इंडस्ट्रियल एरिया के 30 प्रतिशत क्षेत्रफल में फैक्टरी, 70 प्रतिशत में हरियाली का फार्मूला अपनायें; एयर फिल्टर को आवश्यक बनायें। वर्षाजल संचयन बढ़ायें; खेती को प्राकृतिक बनायें। कार्बन उत्सर्जन घटेगा, अवशोषण बढ़ेगा; वाष्पन घटेगा; मिट्टी की ऊपरी परत में नमी रुकेगी। फैलता रेगिस्तान स्वतः रुक जाएगा। धूल, ए.सी., मास्क से निजात स्वतः मिल जायेगी। गांवों की खेती, प्रकृति, सामाजिकता और कुटीर रोज़गार को संरक्षित करें। इससे नगरीकरण हतोत्साहित होगा; जनसंख्या वृद्धि और वितरण भी स्वतः संतुलित हो जायेंगे; पर्यावरण भी। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को उसके आदेश की पालना कराने हेतु ज़रूरी शक्तियां दें। क़ानून पालना को प्रत्येक नागरिक के मूल कर्तव्यों की संवैधानिक सूची में शामिल करें। नागरिक इसे अपना स्वभाव बनायें।

बाधाएं हटाएं

समाधान हासिल की दिशा में एक तथ्य यह है कि भारत में वायु प्रदूषण के खिलाफ पहला क़ानून (बंगाल स्मोक न्यूसेंस एक्ट - 1905) 114 साल पुराना है। बाधा यह है कि किंतु वायु प्रदूषण क़ानूनों को लागू करने में भारत आज भी बेहद लापरवाह देश है। बाधाएं, प्रदूषण को नज़रअंदाज करके बनाई, अपनाई व प्रोत्साहित की जा रही तक़नीक व जीवन-शैलियां भी पेश कर रही हैं। बाधाएं कई हैं, किंतु इमरजेन्सी होने पर भी समाधान के लिए तो सरकारों की ओर ताकना अथवा उन्हे गाली देना; समाधान को लागू न होने देने में सबसे बड़ी बाधा, पब्लिक का यह परालवम्बन ही है। क्या हम कभी स्वावलम्बी  होंगे ?

यह लेख वर्ष 2020 में आज ही की तारीख 09 नवंबर को लिखा गया था.  हालात जस के तस हैं. इसलिए चिंतित होना और अधिक ज़रुरी हो जाता है. 

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org