वन घायल हैं, डरी सी नदियाँ

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यदि हम चाहते हैं कि हमारी कुदरत-कायनात में जिन्दगानी बनी रहे तो हमें उगाना होगा हरा भरा जंगल अपने अंदर। एक जीवंत एहसास के साथ ताकि बहती रहे सरस भाव धारा हमारे अर्न्तमन में। मन में विचार और विचार से संकल्प बनेगा। तभी हम अपने वन और नदियों की रक्षा कर सकेंगे। जब तक जंगल है तभी तक है प्राणवायु जिससे हम सप्राण हैं। जन-जन तक यह संदेश भी पहुंचा सकेंगे कि जल ही जीवन है और जीवन क्या है जीव और वन का मिला जुला रूप इसलिये इनकी सुरक्षा जरूरी है।

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