तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (UNOC3) का लक्ष्य था 'महासागर के संरक्षण और सतत उपयोग के लिए सभी स्टेकहोल्डर्स को एकजुट करते हुए कार्रवाई को तेज़ करना'।
तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (UNOC3) का लक्ष्य था 'महासागर के संरक्षण और सतत उपयोग के लिए सभी स्टेकहोल्डर्स को एकजुट करते हुए कार्रवाई को तेज़ करना'।छवि स्रोत: https://unocnice2025.org/

क्या रहा फ़्रांस में हुए तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन का हासिल

फ़्रांस के नीस शहर में हुए तीसरे महासागर सम्मेलन - UNOC 2025 ने उच्च सागर संधि, वैश्विक प्लास्टिक संधि, और 30×30 लक्ष्य की दिशा में प्रगति की। समुद्री संरक्षित क्षेत्र बनाने की घोषणाएं और ब्लू NDC चैलेंज की पहल भी सम्मेलन की सुर्खियों में रही।
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फ्रांस के भूमध्य सागरीय तट पर बसे नीस शहर में तीसरा यूनाइटेड नेशन महासागर सम्मेलन (UNOC3), 9-13 जून 2025 को सम्पन्न हुआ। इसका आयोजन फ्रांस और कोस्टारिका की ओर से किया गया था। इस बार सम्मेलन का लक्ष्य था 'महासागर के संरक्षण और सतत उपयोग के लिए सभी स्टेकहोल्डर्स को एकजुट करते हुए कार्रवाई को तेज़ करना'। इसमें लगभग 60 राष्ट्राध्यक्षों और लगभग 15,000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिसमें, विभिन्न देशों के युवा, वैज्ञानिक और व्यवसायी शामिल थे। यह इसे अब तक का सबसे बड़ा महासागर सम्मेलन बनाता है।

धरती की 70 फीसदी सतह को घेरने वाले महासागर इस ग्रह के सबसे वृहत कार्बन सिंक है। ये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से होने वाली अतिरिक्त गर्मी का 90 प्रतिशत हिस्सा अवशोषित कर लेते हैं। दुनिया भर में लगभग 300 करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए समुद्रों पर निर्भर हैं। पर समुद्री संसाधनों का अत्यधिक दोहन, धरती का बढ़ता तापमान, समुद्री जल का अम्लीकरण, प्लास्टिक प्रदूषण और महासागरों के संरक्षण के प्रयासों का अभाव कुछ ऐसे कारण हैं जिनके चलते समुद्रों के पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में हैं। इस खतरे का सीधा असर मानव और धरती के स्वास्थ्य पर हो रहा है।

उद्घाटन सत्र में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने चेतावनी के लहजे में कहा कि ‘महासागर सबसे बड़ा साझा संसाधन है। लेकिन हम इसे संरक्षित करने में विफल हो रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘नीस में हमारा मिशन है - ‘अपने भविष्य को बचाने के लिए महासागरों को बचाना है। वह निर्णायक मोड़ नज़दीक आता जा रहा है, जिसके बाद शायद संरक्षण संभव न हो।’

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने  कहा कि 'हम जानते हैं कि क्या दांव पर लगा है। गहरे समुद्र, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका बिक्री के लिए नहीं हैं।’ इस मौके पर उन्होंने हाई सीज़ संधि के समर्थन का आह्वान किया। 

कोस्टा रिका के राष्ट्रपति रोड्रिगो चावेज़ ने कहा, "हम यहां इसलिए मौजूद हैं क्योंकि महासागर हमसे बात कर रहा है। यह हमसे ब्लीच होती कोरल रीफ़ की भाषा में बात कर रहा है। उन समुद्री तूफ़ानों की भाषा में बात कर रहा है जो लगातार अधिक विनाशकारी होते जा रहे हैं। यह उन मैंग्रोव वनों की भाषा में बात कर रहा है जो नष्ट हो रहे हैं और उन प्रजातियों की भाषा में जो अब कभी देखी नहीं जाएंगी। यह साफ़ कह रहा है कि अब हमारे पास जनभावनाओं को उकसाने वाले भाषणों में उलझने का समय नहीं बचा है। अब समय कार्रवाई करने का है।"

कुछ मुख्य विषय जिन पर सम्मेलन के दौरान प्रगति देखी गई:  

बीबीएनजे समझौता या उच्च सागर संधि

सम्मेलन की शुरुआत में ही 19 नए देशों ने बीबीएनजे यानी राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैवविविधता (बायोडायवर्सिटी बियोन्ड नेशनल ज्यूरिसिडिक्शन) समझौते की पुष्टि की। समझौते की पुष्टि करने वाले देशों की कुल संख्या अब 50 हो गई है, जबकि इसे लागू करने के लिए यह संख्या 60 होनी चाहिए। नए देशों में ग्रीस, जॉर्डन, बहामास, इंडोनेशिया और वियतनाम आदि शामिल हैं।

अब तक इस समझौते पर कुल 136 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें भारत भी शामिल है। पर भारत सहित अधिकतर देशों ने इसकी पुष्टि नहीं की है। समझौते पर हस्ताक्षर इसके अनुमोदन की दिशा में पहला कदम है। हस्ताक्षर के बाद देशों को आम तौर पर अपनी संसद की सहमित लेनी होती है, जिसके बाद वे इसकी पुष्टि करते हैं।

कुल 60 देशों द्वारा पुष्टि करने के 120 दिनों के बाद यह समझौता लागू हो जाएगा। समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र के 1982 के समझौते  (UNCLOS 1982) के अनुरूप, इस संधि में 75 अनुच्छेद शामिल हैं, जिनका उद्देश्य “समुद्री पर्यावरण की रक्षा, देखभाल और उसका जिम्मेदार उपयोग सुनिश्चित करना, महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र की अखंडता बनाए रखना, और समुद्री जैव विविधता के अंतर्निहित मूल्य का संरक्षण करना है।”

समझौते की पुष्टि करने वाले देशों के लिए यह कानूनी रूप से अनिवार्य होगा कि वे अपनी राष्ट्रीय सीमा से बाहर प्रस्तावित किसी भी गतिविधि के संभावित प्रभावों का मूल्यांकन करें। यह समझौता ऐसे अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्रों को संरक्षण देता है जो किसी एक देश के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते। यानी यह समझौता दुनिया के महासागरों के 60% से अधिक हिस्से पर लागू होगा।

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समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA) और 30×30 संरक्षण लक्ष्य फिलहाल, लगभग सभी समुद्री संरक्षित क्षेत्र किसी न किसी देश की क्षेत्रीय जलसीमा के भीतर आते हैं। लेकिन, उच्च सागर संधि के तहत अब खुले समुद्रों में भी ऐसे संरक्षित क्षेत्र तय किए जा सकते हैं। सम्मेलन में चिली, कोलंबिया और तंज़ानिया सहित कई देशों की सरकारों ने नए संरक्षित समुद्री क्षेत्र (मरीन प्रोटेक्टेड एरिया: MPA) बनाने या मौजूदा संरक्षित क्षेत्रों के विस्तार की घोषणा की।

इनमें फ़्रेच पॉलिनेशिया भी शामिल था, जिसने 50 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला दुनिया का सबसे बड़ा समुद्री संरक्षित क्षेत्र बनाने की घोषणा की। इसमें से 11 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अत्यधिक संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाएगा, जहाँ केवल पारंपरिक तटीय मछली पकड़ने, ईको-टूरिज्म, और वैज्ञानिक शोध जैसी गतिविधियों की ही अनुमति होगी।

30×30 संरक्षण लक्ष्य का अर्थ है वैश्विक बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क के तहत दुनिया के कम से कम  30% समुद्री क्षेत्र को साल 2030 तक संरक्षित करना। सम्मेलन में इस लक्ष्य पर दोबारा ज़ोर दिया गया। हालांकि, वास्तविकता यह है कि अभी केवल 8.6% महासागर संरक्षित है और सिर्फ 2.7% प्रभावी रूप से प्रबंधित। ये ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ सरकारों ने समुद्री प्राकृतिक आवासों और प्रजातियों की रक्षा के लिए मानवीय गतिविधियों पर कुछ सीमाएं लगाई हैं। यह संरक्षण समुद्र, समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति, चारों के लिए ज़रूरी माना जाता है।

छवि स्रोत: © द ओशन स्टोरी / विंसेंट नीफेल
हर वर्ष लगभग 80 लाख टन प्लास्टिक समुद्र में प्रवेश करता है।https://news.un.org

वैश्विक प्लास्टिक संधि: 

महासागर प्रदूषण विषय पर हुई बातचीत में पैनल के सभी वक्ताओं ने माना कि सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को किसी भी तरह जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। हर साल करीब 8 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र में पहुंचता है और खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करता है। SDG-14.1 के तहत 2025 तक समुद्री प्रदूषण को कम करना एक अहम लक्ष्य है। 

मार्च 2022 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा की पांचवीं बैठक में इस नीति की आधारशिला रखते हुए एक संकल्प (UNEA Resolution 5/14) पारित किया जिसका शीर्षक था ‘प्लास्टिक प्रदूषण का अंत: कानूनी रूप से बाध्यकारी एक अंतरराष्ट्रीय समझौते की ओर’। तब से अब तक इस संधि पर चर्चा जारी है और इसे अंतिम स्वरूप देने के लिए अगली बैठक दक्षिण कोरिया में इस साल नवंबर में होनी है। सम्मेलन में इस संधि की आवश्यकता पर चर्चा के दौरान महासचिव गुतेरेस ने वर्ष के अंत तक यह बाध्यकारी वैश्विक प्लास्टिक संधि लाने की अपील की। 

अच्छी बात यह रही कि पिछले दिसंबर में संधि पर वार्ता ठप हो जाने के बाद इस बार सम्मेलन में 95 से अधिक देशों के मंत्री और प्रतिनिधियों ने वैश्विक प्लास्टिक संधि की मांग की। फ़्रांस की पारिस्थितिक परिवर्तन मंत्री एग्नेस पनिए-रुनेशे ने UNOC3 के दूसरे दिन एक प्रेस ब्रीफ़िंग के दौरान कहा, "हमें प्लास्टिक के पूरे जीवन चक्र को ध्यान में रखते हुए समग्र उपायों की आवश्यकता है। हमें प्लास्टिक के उत्पादन और खपत दोनों को कम करना होगा।" 

यूरोपीय निवेश बैंक और एशियाई विकास बैंक सहित कई विकास बैंकों के एक समूह ने कहा कि वे समुद्र में पहुंचने वाले प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए इस दशक के अंत तक 3 अरब यूरो (3.5 अरब डॉलर) निवेश करने की योजना बना रहे हैं।

4. अवैध, राज्य की जानकारी के बगैर, और अनियंत्रित रूप से मछली पकड़ना:

गहरे समुद्र में पाई जाने वाली मछलियाँ असुरक्षित हैं और उन पर काफी दबाव है। इनमें से केवल 29 प्रतिशत मछलियाँ ही टिकाऊ तरीके से पकड़ी जा रही हैं। यह चौंकाने वाला आंकड़ा UNOC3 में जारी की गई खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की एक नई रिपोर्ट से आया है। रिपोर्ट का नाम है, विश्व समुद्री मत्स्य संसाधनों की स्थिति की समीक्षा – 2025

FAO प्रमुख ने सम्मेलन में कहा, “प्रबंधन ही संरक्षण का सबसे अच्छा उपाय है। हमारे महासागरों की सुरक्षा के लिए हमें हर स्तर पर मछली पालन से जुड़े प्रशासन को मज़बूत करना होगा। ऐसे नियम, ढांचे और निगरानी की व्यवस्था बनानी होगी जिनसे सुनिश्चित हो सके कि मछली पकड़ने का काम ज़िम्मेदार तरीके से किया जा रहा है। प्रबंधन को मजबूत करने का मतलब यह भी है कि हमें अवैध, राज्य की जानकारी के बगैर, और अनियंत्रित (Illegal, Unreported and Unregulated–IUU) मछली पकड़ने जैसी समस्याओं से भी निपटना होगा।”

SDG-14.4 के तहत साल 2020 तक ओवरफिशिंग पर नियंत्रण का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, लेकिन अब तक की प्रगति धीमी रही है। मछलियों की लगभग 40% प्रजातियाँ ओवरफिश की जा रही हैं। सम्मेलन में इस पर फिर चर्चा हुई और उम्मीद जताई गई कि सरकारें इस बारे में अपनी नीतियों और प्रबंधन में ज़रूरी बदलाव करेंगी।

समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और प्रवाल भित्ति का संरक्षण

सम्मेलन में समुद्री पारिस्थितिक तंत्र, विशेषकर प्रवाल भित्तियों, मैंग्रोव और जैव विविधता के संरक्षण पर भी चर्चा हुई। खासकर, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों में सबसे नाज़ुक मानी जाने वाली प्रवाल भित्तियों के संरक्षण को लेकर कई आर्थिक वादे किए गए।

बहामास, बेलीज़, फ्रांस, इंडोनेशिया, मेडागास्कर, पलाउ, पनामा, पापुआ न्यू गिनी, सोलोमन आइलैंड्स, तंज़ानिया और वनुआटु सहित 11 देशों ने जलवायु-प्रतिरोधी प्रवाल भित्तियों (climate resilient reefs) की रक्षा के लिए एक नए संकल्प पर हस्ताक्षर किए हैं। ये वे भित्तियां हैं जिनके जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचने की संभावना सबसे अधिक है।

इन सभी देशों ने यह संकल्प लिया है कि वे:

  • जलवायु-प्रतिरोधी प्रवाल भित्तियों की पहचान करेंगे और उन्हें राष्ट्रीय रणनीतियों में प्राथमिकता देंगे;

  • क्षेत्र-आधारित संरक्षण रणनीतियों को लागू करेंगे;

  • प्रवाल भित्ति संरक्षण को राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीतियों और कार्य योजनाओं (NBSAPs), राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (NDCs) और विकास योजनाओं में शामिल करेंगे;

  • विनाशकारी मछली पकड़ने, प्रदूषण और अव्यवस्थित विकास से प्रवाल भित्तियों पर पड़ने वाले स्थानीय दबाव को कम करने के लिए नीतियाँ बनाएंगे और लागू करेंगे;

  • प्रवाल भित्तियों की निगरानी और संरक्षण कार्य योजनाओं को लागू करेंगे;

  • और यह सुनिश्चित करेंगे कि समाधान की प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों की भागीदारी, समानता और पारंपरिक ज्ञान को केंद्र में रखा जाए।

इसके अलावा, नॉर्वे, यूके, न्यूज़ीलैंड, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों और कुछ परोपकारी संगठनों के एक गठबंधन ने ग्लोबल फंड फॉर कोरल रीफ्स (GFCR) में 250 लाख डॉलर से अधिक की राशि देने का संकल्प लिया। यह फंड एक वैश्विक वित्तीय तंत्र है, जिसका उद्देश्य साल 2030 तक पृथ्वी पर बची हुई लगभग 12% प्रवाल भित्तियों की रक्षा करना और उन्हें बढ़ने देने में मदद करना है।

अब तक, इस फंड के ब्लेंडेड फाइनेंस मॉडल के ज़रिए 100 से अधिक "रीफ-पॉजिटिव" उद्यमों को समर्थन दिया गया है। इसके अलावा, इससे 1 करोड़ हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल वाले ऐसे समुद्री और तटीय पारिस्थितिक तंत्रों के लिए स्थायी वित्तीय सहायता मिली है जिनमें दुनिया की लगभग 5% बची हुई प्रवाल भित्तियां शामिल हैं।

ब्लू NDC चैलेंज

संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन के दौरान, ब्राजील और फ्रांस ने मिलकर एक महत्वाकांक्षी पहल ‘ब्लू NDC चैलेंज’ की शुरुआत की। इस पहल के तहत सभी देशों से अपील की गई कि वे अपनी राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं के लिए निर्धारित योगदान (NDC) में महासागर-आधारित समाधानों को शामिल करें। इसमें मैंग्रोव संरक्षण, टिकाऊ मत्स्यपालन और समुद्री ऊर्जा जैसे उपायों को जलवायु रणनीतियों का हिस्सा बनाने पर ज़ोर दिया गया। NDC वे राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं होती हैं जिनमें यह बताया जाता है कि कोई देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कैसे कम करेगा और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से कैसे निपटेगा।

यह अपील संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) की 30वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP30) से पहले की जा रही है, जो इस साल नवंबर में ब्राज़ील के बेलें शहर में आयोजित होनी है। ऑस्ट्रेलिया, फिजी, केन्या, मेक्सिको, पलाउ और सेशेल्स गणराज्य जैसे छह अन्य देशों ने इस चैलेंज को स्वीकार किया और अपने संशोधित NDC में महासागर-केंद्रित जलवायु योजनाओं को शामिल करने की प्रतिबद्धता जताई।

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