मिट्टी को जीवन देना होगा
मिट्टी को जीवन देना होगा

मिट्टी का स्वास्थ्य बनाए रखें

नरेन्द्र कुमार गोयल, संदीप रावल, आराधना बाली, विशाल गोयल  
Author:
4 min read

आज देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती है जमीन की उपजाऊ शक्ति का कम होना, सिंचित जल का अत्याधिक दोहन, जलवायु परिवर्तन का फसलों की पैदावार पर प्रभाव, बढ़ते कीट व बीमारियां, रसायनों का अन्धाधुन्ध प्रयोग व अन्न, जल व वायु में बढ़ता प्रदूषण जिसके परिणाम आने वाली पीढ़ी पर खतरनाक रूप में सामने आ सकते हैं।

भूमि से अधिक पैदावार लेने के लिए उपजाऊ शक्ति को बनाये रखना बहुत जरूरी है। वर्ष 2025 में 30 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन के लिए लगभग 45 मिलियन टन उर्वरकों की जरूरत होगी, लेकिन एक अन्दाज के अनुसार वर्ष 2025 में 35 मिलियन टन उर्वरकों का प्रयोग किया जायेगा। इसका मतलब है कि जमीन में लगभग 10 मिलियन टन पोषक तत्वों की कमी आ जायेगी। 

रासायनिक उर्वरकों के अन्धाधुंध व असन्तुलित प्रयोग के कारण जैविक खादों का प्रयोग न के बराबर रह गया जिससे भूमि में जीवांश पदार्थ (ऑर्गेनिक कार्बन) की मात्रा कम होती गई। फलस्वरूप भूमि में सूक्ष्म तत्वों की कमी के साथ-साथ भूमि का सख्त होना वायू व जल के संचार में कमी, जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण प्रदूषण में बढ़ोतरी हुई। 

राष्ट्रीय स्तर पर एक गहन चिंता का विषय है भूमि के स्वास्थ्य में कमी होना व कृषि योग्य उपलब्ध भूमि का घटते जाना। देश की जनसंख्या आगामी 10 वर्ष में 150 करोड़ के आसपास होने का अनुमान है। राष्ट्रीय स्तर पर अभी 80-100 लाख टन पोषक तत्व फसलों द्वारा प्रति वर्ष शोषित किये जा रहे हैं। यदि हम पोषक तत्वों का दोहन कम न कर पाये तो कृषि उत्पादन के बढ़ते लक्ष्य को पाना असम्भव हो जायेगा। 

आज देश की कुल 23.5 करोड़ हैक्टेयर जमीन में से लगभग 16.6 करोड़ हैक्टेयर जमीन खराब हो चुकी है। दूसरी तरफ कुछ वर्ग तो अब जैविक खेती या जीरो बजट खेती को प्रोत्साहित करने में अग्रसर हैं, ताकि बढ़ते जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण प्रदूषण पर रोक लगाई जा सके व मानव जीवन के स्वास्थ्य में सुधार हो सके, लेकिन यह तभी सम्भव हो पायेगा, जब हम जैविक खादों के विवेकपूर्ण प्रयोग के लिए प्रयास करेंगे और रासायनिक उर्वरकों का सन्तुलित प्रयोग मिट्टी पानी जांच के अनुसार, फसल में उचित मात्रा व उचित समय पर उर्वरक प्रयोग को बढ़ावा देंगें। 

जैविक खेती से बढ़ते जनसंख्या के दबाव से निपटना सम्भव नहीं, क्योंकि पहले ही भूमि में 10 मिलियन टन की पोषक तत्वों की कमी है और अधिक अन्न पैदा करने के लिए हमें उर्वरकों के प्रयोग में बढ़ोतरी करनी होगी। ये सब केवल एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन को अपनाकर ही सम्भव हो सकेगा। समय-समय पर कार्बनिक खादें/गोबर की खाद मिट्टी में सुधार करती है। यह पोषक तत्वों का पौधों के लिये धीरे-धीरे प्रदान करता है। अच्छी सड़ी हुई खाद खेत में मिलाने से जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ती है तथा नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश के साथ- साथ पौधों को सूक्ष्म तत्व भी प्राप्त होते हैं। 

उर्वरकों का असंतुलित प्रयोग जमीन की उपजाऊ शक्ति को प्रभावित करने के साथ-साथ वातावरण को भी दूषित कर रहा है। हमें हर फसल में मिट्टी पानी जांच के आधार पर सन्तुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पोषक तत्वों का पौधों द्वारा अधिक से अधिक मात्रा में उपयोग हो सके तथा कम से कम मात्रा में हानि हो। उर्वरकों से फसल में हुई वृद्धि, फसल द्वारा अवशोषित पोषक तत्वों को भी ध्यान में रखना चाहिए। 

सघन फसल चक्र/धान गेहूँ फसल चक्र की वजह से भूमि की सामान्य उर्वरा शक्ति में कमी के साथ-साथ जल-स्तर में कमी होती जा रही है। ऐसी स्थिति में इन समस्याओं से निपटने के लिए फसल चक्र में दहलनी फसलों का समावेश होना बहुत जरूरी है। दलहनी फसलें वायुमंडल में उपस्थित नत्रजन का स्थिरीकरण करती हैं तथा अपनी आवश्यकता से बची हुई नत्रजन को दूसरी फसलों को प्रदान वायुमंडल में उपस्थित नत्रजन का स्थिरीकरण करती हैं तथा अपनी आवश्यकता से बची हुई नत्रजन को दूसरी फसलों को प्रदान करती है। दलहन फसलों में जीवाणु खाद के टीके के प्रयोग से और भी लाभ लिया जा सकता है। इसके प्रयोग से जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है। 

सहजीवी या असहजीवी जीवाणु फसलों की जड़ों में ग्रंथियां बनाकर वायुमण्डलीय नत्रजन को जमीन में स्थिर करते हैं। राइजोबियम का टीका दलहनी फसलों के लिए अलग-अलग होता है तथा ऐजोटोबैक्टर का टीका दलहनी फसलों जैसे गेहूँ, सरसों, तोरिया में प्रयोग किया जा सकता है। फास्फोरस घोलक जीवाणु जमीन में फास्फोरस की उपलब्धता बढातें है। इनके प्रयोग से फसलों की पैदावार में 10-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिए तथा अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए भविष्य में किसानों को अलग-अलग फसलों में उर्वरकों के साथ-साथ देसी खाद, जैविक व जीवाणु उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ावा देना होगा। देसी खादें उर्वरकों का स्थान नहीं ले सकतीं बल्कि इन्हें उर्वरकों के पूरक के रूप में इस्तेमाल करना होगा, यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि अभी फसलों के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता पूर्ति केवल उर्वरकों द्वारा संभव नहीं हो पा रही है। आने वाले वर्षों में कृषि उत्पादकता बढ़ानें का एकमात्र उपाय रासायनिक उर्वरक, जैविक खाद, पानी तथा दक्षतापूर्ण उपयोग करना होगा।

यदि किसान भाई इन भूमि संसाधनों का संरक्षण करते हैं तो वर्ष 2025 तक हमारी खाद्यान्न उत्पादन 30 करोड़ टन होने की सम्भावना की जा सकती है। हर प्रयत्न से हमें इन संसाधनों को विनाश होने से बचाना होगा क्योंकि मिट्टी की 1 इंच ऊपरी सतह को बनने से 200 से 1000 वर्ष तक लगते हैं। हमें अपनी मिट्टी की सुगन्ध लौटानी होगी, जिसके लिए महात्मा गांधी जी की कही बात को याद रखना बहुत जरूरी है- "जमीन हरेक के भरपेट के लिए तो उत्पादन दे सकती है, लेकिन किसी के लालच के लिए नहीं"।

लेखकगण - नरेन्द्र कुमार गोयल, संदीप रावल, आराधना बाली व विशाल गोयल चौ. चरण सिंह हरियाण कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, दामला, यमुनानगर (हरियाणा)

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org