जुलाई में दिखाई देंगे थंडर मून, उल्का वर्षा और चांद-मंगल की नज़दीकी के अनूठे खगोलीय नज़ारे
भारत में जुलाई का महीना मानसूनी बारिश का होता है। झमाझम बारिश के बीच इस महीने आकाश में होगी उल्का पिंडों की बारिश। साथ ही, हमें बक मून और चांद-मंगल के करीब आने की खगोलीय घटनाओं के दृश्य भी आकाश में देखने को मिलेंगे। दिलकश आकाशीय नज़ारों का यह सिलसिला 10 जुलाई को थंडर मून के साथ शुरू होने जा रहा है, जो महीने के अंत यानी 29-30 जुलाई की रात में एक साथ दो उल्का वर्षाओं दुर्लभ 'लाइट शो' तक चलेगा।
10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा को देखें थंडर मून
खगोलीय ग्रीष्म ऋतु की पहली पूर्णिमा गुरुवार 10 जुलाई को होगी। थंडर मून के नाम से जानी जाने वाली यह चंद्र घटना दुनिया के अधिकांश हिस्सों से दिखाई देगी। "थंडर मून" नाम उत्तरी अमेरिका में जुलाई में होने वाले लगातार गरजने वाले तूफ़ानों से आया है। इसे बक मून भी कहा जाता है। यह नाम अमेरिका के मूल निवासियों की परंपरा से आया है, जिसके मुताबिक हिरणों (buck) के सींग इस समय नए सिरे से उगने लगते हैं।
भारत में बक मून या थंडर मून को देखने के लिए 10 जुलाई की रात दक्षिण-पूर्वी आकाश में उगते हुए पूर्णिमा के चांद को देखना होगा। मौसम साफ होने यानी आकाश में बादल नहीं होने पर यह चंद्रमा पूरब से शाम 6:30–7 बजे के आसपास उदित होकर रातभर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यह पूरी रात चमकता रहेगा और भोर में दक्षिण-पश्चिम में अस्त हो जाएगा।
बक मून की खगोलीय विशेषता की बात करें, तो यह चंद्रमा आमतौर पर हल्का सुनहरा या नारंगी रंग लिए होता है, विशेष रूप से जब यह क्षितिज के पास होता है। यह कोई दुर्लभ घटना नहीं है, लेकिन वर्ष की सबसे सुंदर पूर्णिमाओं में से एक मानी जाती है। इस रात चंद्रमा आकार में अपेक्षाकृत बड़ा और अधिक चमकदार लगता है। यह साल के सबसे उज्ज्वल और बड़ा दिखाई देने वाले पूर्ण चंद्रमाओं में से एक हो सकता है, अगर यह पृथ्वी के पास (perigee के करीब) हो। ऐसा होने पर इसे "सुपरमून" कहा जाता है, क्योंकि Perigee वह बिंदु होता है जहां चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी के सबसे निकट होने के कारण सबसे बड़े आकार में दिखाई देता है।
क्या यह भारत से संबंधित है?
जुलाई के महीने में पड़ने वाली, थंडर मून, बक मून या सुपर मून के नाम से मशहूर, पूर्णिमा भारत में भी दिखती है। भारतीय परंपरा में इसका अलग तरह से अपना विशेष महत्व है। भारत में जुलाई महीने की इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। इसके बाद ही भारतीय कैलेंडर का सावन माह शुरू होता है। क्षेत्रीय स्तर पर इसे कई स्थानीय नामों से जाना जाता है।
उदाहरण के लिए, बंगाल में इसे “धनकटनी पूर्णिमा” यानी की धान की कटाई शुरू होने वाली पूर्णिमा कहा जा सकता है, क्योंकि असम, बंगाल, ओडिशा और आसपास के इलाकों में इसके अगले दिन से ही धान (चावल) की फसल की कटाई की शुरू कर दी जाती है। उत्तर भारत के लोक साहित्य में इसे “भरती चंद्र” और '’बर्फीली पूर्णिमा'’ के रूप में वर्णित किया गया है, जो क्षितिज में चंद्रमा की सुंदरता को दर्शाता है।
हालांकि, भारत में इस समय मानसून के सक्रिय रहने के कारण कई बार वातावरण में हल्की आर्द्रता और बादलों के कारण इसकी दृश्यता प्रभावित होती है। पर, अगर मौसम साफ हो, तो इसका नज़ारा अत्यधिक मनोहारी होता है।
जुलाई की रातों में देखें मिल्की वे के जादुई नज़ारे
जुलाई के महीने में भूमध्य रेखा के उत्तर में स्थित देशों में रातें वर्ष की सबसे छोटी रातें होती हैं। हालांकि, इसके कारण तारों को देखने का समय सीमित हो जाता है, फिर भी खगोल-प्रेमी गर्मियों की इन्हीं संक्षिप्त रातों का इंतजार करते हैं, क्योंकि यही वह समय है जब हमारी आकाशगंगा मिल्की वे सबसे साफ दिखती है।
जुलाई महीने में पृथ्वी की दिशा मिल्की वे के केंद्र की ओर होती है। यही कारण है कि जुलाई और अगस्त की रातों में आकाशगंगा वर्ष के किसी अन्य समय की तुलना में अधिक चमकदार और विस्तृत दिखाई देती है। इस दौरान सैजिटेरियस तारामंडल हमारी आकाशगंगा के केंद्र में दिखता है और तारों की सघनता अधिक दिखाई देती है। यदि आप इस सुंदर नज़ारे का सबसे बेहतर अनुभव पाना चाहते हैं, तो 24 जुलाई को पड़ने वाली अमावस्या के आसपास की रातें सबसे उपयुक्त होंगी।
अमावस्या की रातें अंधेरी होती हैं, जिससे प्रकाश प्रदूषण न्यूनतम होता है और आकाशगंगा की फीकी परंतु फैली हुई चमक साफ दिखाई देती है। बेहतर दृश्य के लिए शहर की रोशनी से दूर किसी ग्रामीण या पहाड़ी क्षेत्र में जाएं, जहां प्रकाशीय प्रदूषण कम होने के कारण आकाश अपेक्षाकृत स्वच्छ और अंधकारमय होता है। ऐसे साफ हवा वाले और धूल रहित माहौल में कैमरा या दूरबीन के बिना भी आकाशगंगा में तैरते तारामंडलों को देखा जा सकता है। इसके लिए आपको चाहिए केवल धैर्य और खुले आकाश की ओर देखने की ललक।
एक ही रात होगा 2 उल्का वर्षाओं का 'लाइट शो’
अमेरिकी उल्का सोसाइटी (एएमएस) के अनुसार मंगलवार, 29 जुलाई की रात से लेकर बुधवार 30 जुलाई की सुबह तक आकाश में एक साथ दो 2 उल्का वर्षाओं का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलेगा। बोलचाल की भाषा में इसे तारों का टूटना कहा जाता है, जबकि खगोलीय भाषा में इसे ‘डबल हेडर' कहा जाता है, क्योंकि एक ही समय में दो उल्का वर्षाएं चरम पर होती हैं।
ये उल्काएं हैं दक्षिणी डेल्टा एक्वेरिड और अल्फा कैप्रिकॉर्निड। इन दोनों के मिल जाने से प्रति घंटे 20-30 उल्का खंड गिरेंगे, जिनमें कुछ अत्यंत चमकीले होंगे, जिन्हें ‘फायरबॉल्स’ के नाम से जाना जाता है। भारत में इसे देखने का सबसे अच्छा समय 29 जुलाई की मध्यरात्रि (12 बजे) से लेकर से 30 जुलाई 2025 भोर 3–4 बजे तक होगा।
इसके लिए आकाश में दक्षिण–दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर देखना होगा। ज्यादा स्पष्टता के लिए इसे ग्रामीण इलाकों, पहाड़ी क्षेत्रों या शहर की लाइट से दूर अंधेरे स्थान से देखना बेहतर रहेगा। हालांकि एएमएस का कहना है कि दोनों उल्का वर्षाएं लगभग एक सप्ताह तक सक्रिय रहेंगी, पर 29-30 जुलाई की रात यह नज़ारा सबसे अच्छी तरह दिखाई देने की उम्मीद है।
इस तरह जुलाई के अंत और अगस्त के पहले हफ्ते की रातें बाहर निकलकर टूटते तारों को देखने के लिए अच्छी होंगी। एएमएस के उल्का वर्षा कैलेंडर के मुताबिक इस समय चंद्रमा लगभग 27% प्रकाश रहा रहा होगा, जिससे आसमान अपेक्षाकृत अंधेरा होगा और उल्कापातों के लिए अनुकूल दृश्य व्यवस्था बनी रहेगी। दक्षिण गोलार्ध में विशेष रूप से दृश्यता सर्वश्रेष्ठ होती है, लेकिन उत्तरी गोलार्ध में, खासकर समतापवर्तक क्षेत्रों के निचले हिस्सों में, इसे भी देखा जा सकता है।
जुलाई की अन्य खगोलीय घटनाएं
चंद्रमा और मंगल ग्रह की समीपता (Moon–Mars Conjunction) - 29 जुलाई की शाम या रात में आकाश में चंद्रमा और लाल ग्रह यानी मंगल एक-दूसरे के काफी करीब दिखाई देंगे। इसे चंद्र-मंगल संधि के नाम से भी जाना जाता है। क्रेसेंट फ़ेज़ में इसमें यह वृषभ (Taurus) नक्षत्र के समीप अर्धचंद्राकार चांद मंगल ग्रह के नजदीक दिखेगा। इन स्काई की रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना को appulse या conjunction कहा जाता है इसमें चंद्रमा और मंगल के बीच का कोणीय अंतर एक डिग्री से भी कम करीब 0.7° का होगा।
यह घटनाक्रम खगोल-प्रेमियों और आकाशीय फोटोग्राफरों के लिए विशेष रूप से आकर्षक होता है। खास तरह की ललिमा युक्त चमक वाले मंगल और चंद्रमा की नज़दीकी के कारण जो सुन्दर दृश्य बनाता है, उसकी तस्वीरें काफी बेहतरीन बनती हैं।
भारत में इसको सबसे बेहतर तीरके से देखने के लिए 29 जुलाई की शाम सूर्यास्त के तुरंत बाद थोड़ा अंधेरा होने पर यानी रात 8 से 9 बजे के बीच आकाश में पश्चिमी क्षितिज 20:00–21:00 दिशा में देखना होगा। हालांकि, दूरबीन/टेलीस्कोप की मदद से इसे काफी स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगा, पर यह बिना टेलीस्कोप के भी दिखेगा।
वृश्चिक नक्षत्र और M4 तारामंडल - अर्थ स्काई की रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई की गर्म रातों में वृश्चिक नक्षत्र (Scorpius) को काफी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस तारामंडल में कई तारे शामिल होते हैं। इनमें सबसे प्रमुख Antares होता है, जिसे "Scorpion’s Heart" भी कहा जाता है, यह एक चमकदार लाल सुपरजायंट तारा है, जो नंगी आंखों से भी स्पष्ट दिखाई देता है।
इसके अलावा इस माह Messier 4 (M4) तारा समूह को भी देखा जा सकता है, जो पृथ्वी के सबसे निकट ग्लोब्यूलर क्लस्टरों में से एक है। इसका विचित्र रूप और केंद्र टेलीस्कोप या बायनोकुलर से आसानी से दर्शनीय होता है।
स्कॉर्पियन और M4 क्लस्टर को देखने के लिए छोटे टेलीस्कोप या दूरबीन की मदद ली जा सकती है। नासा और अर्थ स्काई की जुलाई स्काई वाचिंग गाइड के मुताबिक स्कॉर्पियन के लिए आकाश में दक्षिण-पूर्व से दक्षिण दिशा की ओर सूर्यास्त के बाद रात 9–10 बजे के आसपास देखाना चाहिए, जब यह क्षितिज पर ऊंचाई पर आ चुका हो। इसमें Antares लाल रंग का दिखाई देता है, जबकि M4 क्लस्टर दक्षिण दिशा में का हल्का सफ़ेद चमकीला सा दिखाता है।
पर्सिड्स उल्का वर्षा (Perseids Meteor Shower) - यह 17 जुलाई से 24 अगस्त तक सक्रिय रहती है। जुलाई के अंत (29–30 जुलाई) में इसकी हल्की झलक दिखनी शुरू हो जाती है, पर 12–13 अगस्त को यह सबसे साफ और चमकीली दिखाई देती है। इसलिए यह मुख्यतः अगस्त के मध्य में एक प्रमुख आकाशीय दृश्य बन जाता है।
अंधेरे वातावरण में उल्का वर्षा के बेहतर नज़ारे के लिए मध्यरात्रि के बाद 12 से 3 AM के बीच देखना चाहिए। इस समय Perseus नक्षत्र आकाश में ऊंचाई पर पहुंच जाता है। टाइम एंड डेट्स पोर्टल पर इसकी सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है, जिसके मुतािबक इसे देखने के लिए शहर की रोशनी से दूर अंधेरा स्थान उत्तम रहता है और इस अंधेरे में आंखों को ढलने में करीब 15–20 मिनट लगते हैं। इसके बाद नंगी आँखों से भी इस सुन्दर दृश्य को देखा जा सकता है।