जल-भूजल अनोखे गुण एवं भविष्य की चुनौतियाँ
यह सर्वविदित और अकाट्य सत्य है कि हवा के बाद पानी ही मनुष्य की सर्वाधिक महत्वपूर्ण आवश्यकता है लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पानी की जानकारी मनुष्य को हवा से पहले हुई। इसका कारण यह है कि हवा तो स्वतः ही शरीर में आती जाती रहती है तथा सर्व विद्यमान है लेकिन पानी को प्राप्त करने के लिए हमें प्रयास करना पड़ता हैं लेकिन यह बड़े ही आश्चर्य की बात है कि सबसे पहले जानकारी में आने वाला पानी आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक अजूबा बना हुआ है। पानी के कुछ विशेष गुण वैज्ञानिकों के सतत् प्रयासों के बाद आज भी समझ से परे हैं। उदाहरण के तौर पर पानी का घनत्व 4°C से ऊपर तथा नीचे कम होना शुरू हो जाता है तथा पानी का ठोस रूप में आयतन बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त पानी की विशिष्ट ऊष्मा समान तरह के द्रव्यों में सबसे अधिक होती है।प्रयोगशाला में सतत् प्रयास करने के बाद भी लेखक पानी के इन विशिष्ट गुणों का कारण नहीं समझ सका लेकिन पानी के विभिन्न स्रोतों के गुणों का अध्ययन करते समय लेखक को पानी में प्रकृति द्वारा प्रदत्त इन गुणों के होने की आवश्यकता के संबंध में जो जानकारी प्राप्त हुई उसका विवरण देने का प्रयास इस लेख के अन्तर्गत किया गया है। पहला यह कि यदि पानी का घनत्व 4°C से नीचे आने पर कम न होता तो ठण्डे स्थानों पर पानी में रहने वाले सभी जीव-जन्तु मर जाते है। अतः प्रकृति ने अपने को बनाये रखने के लिए पानी को ऐसा विशिष्ट गुण प्रदान किया है जो कि अभी तक वैज्ञानिकों की समझ से परे है।
ठण्डे प्रदेशों में अथवा अधिक ऊँचाई वाले स्थानों पर सर्दी के मौसम में जब तापमान गिरना शुरू होता है तो तापमान के साथ-साथ उपलब्ध सतही जल स्रोतों में पानी की ऊपरी सतह का भी तापमान गिरना शुरू हो जाता है जिससे ऊपर का पानी भारी होने लगता है और परिणाम स्वरूप नीचे की तरफ जाने लगता है लेकिन नीचे वाला जल अधिक तापमान पर होने के कारण हल्का होता है जिससे वह ऊपर आने लगता है। इस प्रकार पानी के ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर आने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है तथा जल स्रोत सभी गुण धर्मों में ऊपर से नीचे तक लगभग एक समान हो जाता है। लेकिन यदि पानी की ऊपरी सतह का तापमान 4°C से नीचे गिरने लगता है तो ऊपरी सतह का पानी हल्का हो जाने के कारण पानी के नीचे व ऊपर जाने वाली प्रक्रिया रुक जाती है लेकिन यदि तापमान 0°C अथवा इससे भी नीचे जाता है तो पानी की केवल 4-5 मी. की ऊपरी सतह बर्फ बन जाती है। तथा बर्फ के नीचे सभी जीव-जन्तु जीवित बने रहते हैं। कल्पना कीजिए यदि ऐसा न होता तो क्या होता ? ऐन्टार्कटिका में भी बर्फ की अधिकतम 10-15 मी. मोटी तह के नीचे सैकड़ों मीटरगहरे पानी का समुद्र विद्यमान है।
इसी प्रकार यदि पानी की विशिष्ट ऊष्मा (एक ग्राम पानी को वाष्प में परिवर्तित करने के लिए आवश्यक ऊष्मा) अधिक न होती तो पृथ्वी पर नदी, तालाब, झील रिजर्वायर यहाँ तक कि समुद्र का भी अस्तित्व नहीं होता क्योंकि पानी जरा सी गर्मी से वाष्प बनकर उड़ जाता है । ऐसी स्थिति में पृथ्वी पर किसी भी प्रकार का जीवन सम्भव नहीं हो पाता। अभी तक वैज्ञानिक यही समझ पाये हैं तथा आगे के शोध कार्यों में लगे हुए हैं। कुछ वैज्ञानिकों ने पानी की संरचना से संबंधित स्पष्टीकरण दिये हैं लेकिन वे पूरी तरह पर्याप्त नहीं हैं।
'हवा तो स्वतः ही शरीर में आती जाती रहती है तथा सर्व विद्यमान है लेकिन पानी को प्राप्त करने के लिए हमें प्रयास करना पड़ता है। लेकिन यह बड़े ही आश्चर्य की बात है कि सबसे पहले जानकारी में आने वाला पानी आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक अजूबा बना हुआ है। पानी के कुछ विशेष गुण वैज्ञानिकों के सतत् प्रयासों के बाद आज भी समझ से परे हैं।'
इसके अतिरिक्त यदि मैं आपको बताऊँ कि समुद्र का अपना जल खारा नहीं होता तो आप चौंकिये मत क्योंकि यह बात बिल्कुल सही है कि समुद्र का अपना जल जो कि भूजल से प्राप्त होता है तथा लम्बे समय तक ( लगभग 2000 वर्ष) समुद्र का हिस्सा बनकर रहता है वह खारा नहीं होता है फिर आप कहेंगें कि समुद्र का पानी खारा कैसे है ? आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि समुद्र में खारापन मूल रूप से नदियों की देन है नदियां हर समय हल्का खारा पानी समुद्र में उड़ेलती रहती हैं तथा समुद्र में पानी के वाष्पीकरण के कारण नदियों से लाये हल्के खारे पानी का सान्द्रण होता रहता है।एक और रोचक बात यह है कि जिस तरह सभी जीव-जन्तुओं की उम्र होती है, उसी प्रकार पानी की भी उम्र होती है। फर्क सिर्फ इतना है कि जीव-जन्तुओं की उम्र काफी कम होती है जबकि पानी कई सौ हजार साल पुराना साक्षात्कार है