सूखती सतह से कोख हो रही खाली
बुंदेलखंड में सतही जल के सूखने से धरती के कोख का पानी भी घट रहा है। अकेले चित्रकूटधाम मंडल के चार जनपद बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर और महोबा की बात करें तो यहां बीते सालों की तुलना में भूजल स्तर में गिरावट दर्ज की गई है। भूजल बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक पिछले विगत वर्षों में बांदा में 29.526 हेक्टेयर मीटर जल उपलब्ध था और दोहन 36.897 हेक्टेयर मीटर का किया गया। हमीरपुर में 16.731 हेक्टेयर मीटर की जगह 33 हेक्टेयर मीटर और चित्रकूट में 7,535 हेक्टेयर मीटर की जगह 16 हजार हेक्टेयर मीटर से अधिक भूजल का दोहन हुआ है। लिहाजा पिछले उन सालों में भूजल का स्तर लगभग 3.5 से 4.5 मीटर तक नीचे गिर गया है।
पिछले अध्ययन बताते हैं कि बुंदेलखंड को 18वीं और 19वीं सदी के बीच औसतन हर 16 साल में एक बार सूखे का सामना करना पड़ा था। 20वीं सदी में इसका सिलसिला और बढ़ गया। अब करीब हर पांच साल में सूखे जैसे हालात बनने लगे हैं। आंकड़ों के मुताबिक लगभग 65 हजार सरकारी हैंडपंप और 38 हजार निजी हैंडपंप पानी की खपत पूरी कर रहे हैं। इसके अलावा 2700 सरकारी नलकूप और तकरीबन 14 हजार निजी रिंगबोर भूजल के सहारे चल रहे हैं।
कितना कारगर रहा बुंदेलखंड पैकेज
बुंदेलखंड के विकास के लिए यूपीए-2 की सरकार ने साल 2010 में 7,500 करोड़ रूपए के बुंदेलखंड पैकेज की घोषणा की थी। यहां बार-बार पड़ रहे सूखे के हालात से निपटने के लिए पैकेज से सिंचाई, साधनों के विकास और कृषि के लिए आधारभूत ढांचे का निर्माण करने के लिए इन्हें पैकेज में शामिल किया गया। कई सालों तक पैकेज में शामिल कार्य योजनाओं पर काम चला। चित्रकूट मंडल के वर्ष 2015 की प्रगति रिपोर्ट पर नजर डालें तो पैकेज के प्रथम चरण का लगभग 91 फीसदी काम पूरा किया जाने का वायदा किया गया। जिसमें बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर और महोबा में करीब 2800 से अधिक नए कुंओं का निर्माण और 1400 से अधिक कुंओं को गहरा करने का काम हुआ है।
डीपीई पाइप वितरित किए गये। पैकेज के दूसरे चरण का काम 2014-15 में शुरू हुआ था। बताया जाता है जिसमें 65 सामुदायिक नलकूपों का निर्माण हुआ, करीब एक सैकड़ा चेकडैम भी बनाये गए। वित्तीय वर्ष 2015-16 में 80 नलकूप खोदे गये। कहा जा रहा है कि दोनों चरणों के लिए स्वीकृत 17395.11 लाख में लगभग 96 फीसदी का उपयोग कर लिया गया है। केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी पैकेज में ग्राम विकास विभाग, मंडी परिषद, सिंचाई, लघु सिंचाई और वन विभाग सहित 13 विभागों के तहत काम हुआ है। पैकेज से कराये गये कार्यों को लेकर सियासत भी खूब हुई है।
कहीं कार्यों की गुणवत्ता की खबरें सुर्खियों में रहीं तो कहीं जरूरत जरूरतमंद क्षेत्र तक इसके न पहुंचने की बात होती रही है। कई मामलों में तो कार्यदायी विभागों पर भी लोग सवाल उठाते रहे लेकिन जमीनी स्तर पर जिस तरह से अभी भी बुंदेलखंड में पानी का संकट और कृषि क्षेत्र की चुनौतियां सामने हैं। कहीं न कहीं आज भी यह पैकेज सवालों के घेरे से उबर नहीं पाया है।
बुंदेलखंड में सूखा
बुंदेलखंड के लिए सूखा कोई नई बात नहीं है। आंकड़ों में दर्ज पुराने रिकॉर्डों को देखें तो 1895 के पतझड़ में खराब मानसून के कारण बुंदेलियों को सूखे का सामना करना पड़ा था। बताते हैं कि एक साल बाद 1896 में तत्कालीन सरकार को साल की शुरुआत में ही अकाल की घोषणा करनी पड़ी थी। पिछले अध्ययन बताते हैं कि बुंदेलखंड को 18वीं और 19वीं सदी के बीच औसतन हर 16 साल में एक बार सूखे का सामना करना पड़ा था। 20वीं सदी में इसका सिलसिला और बढ़ गया। अब करीब हर पांच साल में सूखे जैसे हालात बनने लगे हैं।
नलकूप और हैंडपंपों से हो रहा दोहन
बुंदेलखंड में सतही जल घट रहा है, वहीं भूजल का भी खूब दोहन हो रहा है। आंकड़ों के मुताबिक लगभग 65 हजार सरकारी हैंडपंप और 38 हजार निजी हैंडपंप पानी की खपत पूरी कर रहे हैं। इसके अलावा 2700 सरकारी नलकूप और तकरीबन 14 हजार निजी रिंगबोर भूजल के सहारे चल रहे हैं।