धान की खेती में बदलाव की जरूरत पर बल
धान की खेती में बदलाव की जरूरत पर बल

भूमिगत पानी को पुनर्जीवित करने के लिए धान की फसल का बदलाव आवश्यक

एक अध्ययन में पाया गया है कि चावल की खेती वाले लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र के स्थान पर अन्य फसलें उगाने से उत्तर भारत में वर्ष 2000 से अब तक नष्ट हुए 60-100 घन किलोमीटर भूजल को पुनः प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
Author:
2 min read

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर, गुजरात के शोधकर्ताओं सहित शोधकर्ताओं के एक दल ने कहा कि यदि पृथ्वी का तापमान बढ़ना जारी रहा तो वर्तमान फसल पैटर्न - जिसमें चावल प्रमुख है, जो सिंचाई के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भर करता है, के कारण लगभग 13-43 घन किलोमीटर भूजल की हानि हो सकती है। शोधकर्ताओं ने मौजूदा फसल पद्धति में बदलाव करते हुए चावल की खेती में कटौती करने का प्रस्ताव दिया है, जो तेजी से घट रहे इस संसाधन को गर्म होती दुनिया में बनाए रखने का संभावित समाधान है, जिससे खाद्य और जल सुरक्षा को खतरा है।

चावल के 37 प्रतिशत क्षेत्र को अन्य फसलों से बदलने पर 61 से 108 घन किलोमीटर भूजल बचाया जा सकता है, जबकि 1.5-3 डिग्री सेल्सियस वैश्विक तापमान वृद्धि के तहत वर्तमान फसल पद्धति से 13 से 43 घन किलोमीटर भूजल बचाया जा सकता है। 

रिसर्च लेखकों ने कहा है कि फसल पैटर्न में बदलाव काफी लाभदायक हो सकता है विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों के लिए जिससे भूजल स्थिरता और किसानों की लाभप्रदता सुनिश्चित हो सके। उन्होंने यह भी पाया कि फसल बदलने से भूजल स्तर पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा, जहां पुनप्राप्ति दर कम थी, जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और झारखंड जैसे राज्यों में। उन्होंने कहा कि इन निष्कर्षों से उत्तर भारत के सिंचित क्षेत्रों में भूजल को बनाए रखने के लिए इष्टतम फसल पैटर्न की पहचान करने के साथ-साथ किसानों की लाभप्रदता और आय सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत निहितार्थ हैं। 

शोधकर्ताओं ने कहा कि पंजाब और गंगा बेसिन के कुछ हिस्सों में भूजल में कमी की दर दुनिया में सबसे तेज है और उन्होंने कहा है कि भारत के उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र वैश्विक भूजल हॉटस्पॉट में से हैं। 

अध्ययनों से पता चला है कि चीन, अमेरिका और भारत में फसल परिवर्तन पर्यावरणीय स्थिरता और किसानों की आय के लिए लाभकारी है। 

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन क्षेत्रों में मौजूदा फसल पैटर्न को देखा, जहां भूजल में काफी कमी देखी गई है। इसके बाद टीम ने 2002 से 2022 के बीच भूजल की कमी का अनुमान लगाने के लिए भूजल, कुओं और उपग्रह अवलोकनों और मॉडलों का इस्तेमाल किया। उन्होंने यह भी पाया कि पंजाब और उत्तर प्रदेश में पिछले दो दशकों में बचाया गया भूजल, दोनों परिदृश्यों के तहत, भारत के सबसे बड़े बांध, इंदिरा सागर की अधिकतम धारण क्षमता का लगभग एक से चार गुना हो सकता था। 

इसके अलावा, परिदृश्य एक के तहत, शोधकर्ताओं ने चावल उत्पादन को समान बनाए रखते हुए किसानों के लाभ में 13.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया। हालांकि, दूसरे परिदृश्य के तहत, लेखकों ने किसानों के लाभ में लगभग 86 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया, लेकिन चावल उत्पादन में 45 प्रतिशत की उल्लेखनीय कमी की कीमत पर। चावल की खेती के विकल्प सुझाते हुए, शोधकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश के लिए मोटे अनाज और पश्चिम बंगाल के लिए तिलहन की खेती का सुझाव दिया।

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org