क्या वायु प्रदूषण है दिल्ली में बढ़ते रूमेटाइड आर्थराइटिस के मामलों की वजह?
बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों को सांस, त्वचा, दिल की बीमारियां और एलर्जी होने की बातें तो आपने सुनी होंगी। पर, लगातार ज़हरीली होती जा रही आबोहवा अब ऐसी बीमारियां भी बांटने लगी है जो अब तक इसके कारण नहीं होती थीं। देश की राजधानी नई दिल्ली में 9 से 12 अक्टूबर तक आयोजित भारतीय रूमेटोलॉजी एसोसिएशन के 40वें वार्षिक सम्मेलन में यह बात सामने आई है।
कार्यक्रम से जुड़ी एक रिपोर्ट के मुताबिक सम्मेलन में शामिल विशेषज्ञों ने बताया कि दिल्ली के लोगों में हाल के वर्षों में रूमेटाइड आर्थराइटिस (आरए) के मामलों की संख्या और गंभीरता, दोनों में बढ़त देखी गई है। हैरान करने वाली बात यह है कि आमतौर पर आनुवंशिक मानी जाने वाली यह बीमारी, अब ऐसे लोगों को भी हो रही है, जिनके परिवार में यह किसी को नहीं रही।
बीमारी के पैटर्न में हुए इस गंभीर बदलाव की वजह दिल्ली में बेतहाशा बढ़ते वायु प्रदूषण को बताया जा रहा है। चिंताजनक बात यह भी है कि इस बीमारी का अब तक कोई मुकम्मल इलाज नहीं खोजा जा सका है।
एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया कि खासतौर पर, हवा में मौजूद सूक्ष्म प्रदूषक कण पीएम 2.5, नाइट्रोजन ऑक्साइड्स एवं ओज़ोन के स्तर में बढ़ोतरी इस मर्ज़ के बढ़ने की वजह हो सकता है। चिंता की बात यह भी है कि वायु प्रदूषण के कारण होने वाला गठिया अच्छी खासी तादाद में कम और मध्यम आयु वर्ग के लोगों को भी अपनी चपेट में ले रहा है। यानी बुढ़ापे में होने वाली बीमारी अब पूरी आबादी को प्रभावित कर रही है।
दिल्ली में आरए का तेज़ी से बढ़ता दायरा
द वायर की रिपोर्ट में बताया गया है कि कि शहरी क्षेत्रों में कम होती हरियाली वायु प्रदूषण की समस्या को और बदतर बना रही है। हरी-भरी जगहों की कमी लोगों को पर्यावरणीय सुरक्षा कवच से वंचित कर रही है। व्यस्त सड़कों के आसपास रहने पर लोग यातायात संबंधी प्रदूषण के लगातार संपर्क में रहते हैं, जो रूमेटाइड आर्थराइटिस के जोखिम को बढ़ा देता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से एक होने के कारण दिल्ली की स्थिति ‘चिंताजनक’ है। भारत की लगभग 1% वयस्क आबादी पहले से ही रूमेटाइड आर्थराइटिस से ग्रसित है। पर, अब प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले उन रोगियों में इसके मामलों में बढ़त देखने को मिल रही। इनमें ज़्यादातर ऐसे लोग हैं जिनकी इस रोग की कोई फैमिली हिस्ट्री या ऑटोइम्यून रोग की आनुवंशिक प्रवृत्ति नहीं रही है।
इसके अलावा, आरए के वे रोगी जिनकी समस्या गंभीर नहीं है, उनकी स्थिति भी वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण बिगड़ रही है। खास बात यह है कि इनमें से ज़्यादातर रोगी 20-50 आयु वर्ग के हैं।
आरए को कैसे ‘ट्रिगर’ करता है वायु प्रदूषण
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, तेज़ी से बढ़ता वायु प्रदूषण शरीर के इम्यून सिस्टम को कमज़ोर करके दर्द को बढ़ाता है, जो कि गठिया का प्रमुख कारण बन रहा है। लंबे समय तक बेहद प्रदूषित हवा में रहने से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में असामान्य बदलाव आ जाते हैं। इनमें ऑक्सीडेटिव तनाव, सूजन-मार्गों का सक्रिय होना शामिल है, जो कि जोड़ों की हड्डियों, उपास्थि (कार्टिलेज) और साइनोवियम पर असर डालते हैं।
वायु प्रदूषण में पीएम 2.5 और पीएम 5 जैसे सूक्ष्म कणों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फ़र जैसे ऑक्सीडेटिव तत्व शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भ्रमित या कमज़ोर कर देते हैं। इससे शरीर में दर्द और सूजन पैदा करने वाले तत्व प्रबल हो जाते हैं, जो रूमेटाइड आर्थराइटिस के लक्षणों को बढ़ा सकते हैं। शोध से पता चला है कि लंबे समय तक पीएम 2.5 के संपर्क में रहने से इस रोग के पनपने का जोखिम 12% से18% बढ़ जाता है।
इसके अलावा, अनियमित जीवनशैली, गलत खानपान, तनाव, नींद की कमी और शारीरिक श्रम या व्यायाम की कमी जैसी चीज़ों के मिल जाने से यह बीमारी और भी बढ़ जाती है।
आनुवंशिक रूप से सुरक्षित लोगों में भी यह बीमारी पाए जाने के कारण, विशेषज्ञों अब इसको सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक आपात स्थिति के रूप में देख रहे हैं। क्योंकि, इससे स्पष्ट हो गया है कि वायु-प्रदूषण का असर सिर्फ़ फेफड़े या दिल तक ही सीमित नहीं, बल्कि प्रतिरक्षा प्रणाली और जोड़ों तक हो सकता है।
मेडिकल साइंस जर्नल मेडिकल न्यूज टुडे में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदूषण के प्रभाव से आंत (गट) माइक्रोबायोम में हुए बदलाव भी रूमेटाइड आर्थराइटिस के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। यह निष्कर्ष इस आधार पर निकाला गया कि अध्ययन में शामिल जिन लोगों को रूमेटाइड आर्थराइटिस या उसके शुरुआती लक्षण थे, उनकी आंत में माइक्रोबियल विविधता कम थी।
शोध में टीआरएएफ़ 1 नामक प्रोटीन में खास तरह के म्यूटेशन का भी पता चला है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया करने की क्षमता को कमज़ोर करने की वजह बनता है। इससे शरीर में रूमेटाइड आर्थराइटिस के लक्षणों को बढ़ने का माहौल मिल जाता है।
एम्स की रिसर्च में भी हो चुकी है पुष्टि
भारतीय रूमेटोलॉजी एसोसिएशन के इस सम्मेलन से पहले दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स के एक अध्ययन में भी आर्थराइटिस और वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी की बीच संबंध होने की बात सामने आ चुकी है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2013 से शुरू हुए एम्स के एक 10 वर्ष तक चले शोध में 300 रुमेटॉइड गठिया रोगियों का अध्ययन किया गया था।
इस अध्ययन में पाया गया कि हवा में निलंबित कण पदार्थ (एसपीएम) 2.5 की मात्रा बढ़ने पर रूमेटॉइड आर्थराइटिस के रोगियों का दर्द भी बढ़ जाता है। अध्ययन के अनुसार, प्रदूषित हवा में लंबे समय तक रहने से इम्यूनिटी यानी शरीर का प्रतिरोधक तंत्र कमज़ोर होने लगता है। ऐसी स्थिति में शरीर की कोशिकाएं खुद को नुकसान पहुंचाने लगती हैं। इसलिए, प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर दर्द बढ़ जाता है।
इस अध्ययन के तहत हवा में प्रदूषण की जानकारी के लिए भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) का डेटा लिया गया। साथ ही, रूमेटॉइड आर्थराइटिस मरीजों के ब्लड सैंपल की जांच की गई। मरीज को ज़्यादा दर्द होने के दिन और समय तक को भी दर्ज़ किया गया।
मेड इंडिया में प्रकाशित इस अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक, एम्स के रुमेटोलॉजी विभाग की प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. उमा कुमार ने बताया कि वायु गुणवत्ता के आंकड़ों का मिलान इलाज कराने वाले मरीज़ों की स्थिति से किया। इससे पता चला कि जब हवा में पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा ज़्यादा थी, तो मरीज़ों में बीमारी की सक्रियता ज़्यादा पाई गई। दिवाली के बाद, मरीजों में इस बीमारी के लक्षण और भी बदतर दिखे।
वायु प्रदूषण पर ढिलाई : बजट का एक तिहाई से भी कम हुआ खर्च
दिल्ली में साल दर साल बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों को तरह-तरह की बीमारियां और स्वास्थ्य समस्याएं होने की खबरें सामने आने के बावजूद इसे लेकर सरकार की ओर से ढिलाई बरती जा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत 42.69 करोड़ रुपये जारी किए गए। लेकिन, इसमें से महज़ 13.94 करोड़ रुपये खर्च किए, जो कुल रकम का महज़ 32.65% है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जनवरी 2019 में एनसीएपी को लॉन्च किया था। इसका उद्देश्य 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 131 ज़्यादा प्रदूषित और 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों/शहरी समूहों में वायु प्रदूषण में कमी लाकर हवा की गुणवत्ता में सुधार लाना है।
एनसीएपी का लक्ष्य 2017-18 की तुलना में 2024-25 तक हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम10) के स्तर में 20 से 30% की कमी लाना है। पर, एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऊर्जा एवं स्वच्छ वायु अनुसंधान केंद्र (सीआरईए) के एक विश्लेषण में पाया गया कि 130 में से केवल 50 शहरों ने ही स्वच्छ वायु (एसए) अध्ययन किए, जो कि लक्ष्य का महज़ 25% है।
ज़्यादातर शहरों में ने हवा में मौजूद प्रदूषित कण पदार्थों का विश्लेषण कर पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्रोतों की रोकथाम के उपायों के बजाय योजना की 67% धनराशि धूल प्रबंधन पर खर्च कर दी गई। स्पष्ट है कि बजट होते हुए भी देश की राजधानी सहित वायु प्रदूषण से ग्रस्त शहरों में इसपर लगाम लगाने के पर्याप्त उपाय नहीं किए जा रहे हैं।
वायु प्रदूषण पर नियंत्रण में इस ढिलाई का नतीजा यह रहा कि साइंस डायरेक्ट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक 2023 की विश्व रैंकिंग में सबसे प्रदूषित राजधानी दिल्ली में पीएम 2.5 सांद्रता के वार्षिक औसत में कोई सुधार नहीं दिखा। मौसम और वायु मंडल पर नज़र रखने वाले ट्रोपोमी उपग्रह ने भी यहां सल्फर डाईऑक्साइड (SO2) और नाइट्रस ऑक्साइड (NO2) जैसी हानिकारक गैसों के वायुमंडलीय भार में वृद्धि दर्ज़ की। ये गैसें वाहनों और कारखानों जैसे दहन स्रोतों से निकलती हैं।
प्रदूषण के आंकड़ों से खिलवाड़ की कोशिश !
मौसम विभाग की गंभीर चेतावनियों के बावजूद वायु प्रदूषण के मामले में सरकार का खिलवाड़ और लीपापोती बदस्तूर जारी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली सरकार पर प्रदूषण के डेटा के साथ हेरफेर करने का गंभीर आरोप है।
आम आदमी पार्टी (आप) का आरोप है कि दिल्ली की भाजपा सरकार आनंद विहार आईएसबीटी के पास स्थित पॉल्यूशन मॉनीटरिंग स्टेशन के चारों तरफ पानी का छिड़काव कराकर एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) के डेटा के साथ छेड़छाड़ कर रही है।
मॉनीटरिंग स्टेशन के इर्दगिर्द करीब 30 मीटर के दायरे में कई पानी के टैंकरों से लगातार पानी का छिड़काव करवाया जा रहा है। यहां तीन-चार टैंकर दिनरात गोल-गोल घूमकर छिड़काव कर रहे हैं, ताकि हवा मैं मौजूद प्रदूषण के आंकड़ों को घटाया जा सके।
हालांकि, पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा और एमसीडी के मेयर राजा इकबाल सिंह ने इन आरोपों को गलत बताया है। उन्होंने कहा कि वॉटर स्प्रिंकलर हर जगह काम कर रहे हैं और अभी से नहीं, बल्कि पिछले महीने से। यह सिर्फ़ इसी खास जगह पर नहीं हो रहा है।
क्या है रूमेटाइड आर्थराइटिस
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, रूमेटाइड आर्थराइटिस एक दीर्घकालिक ऑटो-इम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अपने ही जोड़ों के ऊतकों को बाहरी दुश्मन समझकर उनपर हमला कर देती है, जिससे उनमें सूजन व दर्द पैदा होता है।
इसमें, आमतौर पर जोड़ों में दर्द होता है और शरीर में कई जगह सूजन हो जाती है। ज़्यादातर मामलों में इसका असर घुटनों में देखने को मिलता है, पर यह कई अंगों जैसे हाथ, कलाई, पैर, टखने, कंधे और कोहनी के जोड़ों को भी प्रभावित कर सकती है। चिंताजनक बात यह है कि इस बीमारी को खत्म करने या रोकने का फिलहाल कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। दवाओं के ज़रिये केवल इसके दर्द की गंभीरता को ही नियंत्रित किया जा सकता है।
आरए से बचने के तरीके
आनुवंशिक कारणों से होने वाले आरए के जोखिम को कम करने के लिए तो कोई खास बचाव नहीं किया जा सकता क्योंकि यह जीन के ज़रिये एक से दूसरी पीढ़ी में जाता है। हालांकि, जीवन शैली और प्रदूषण के प्रभाव से होने वाले रूमेटाइड आर्थराइटिस से बचाव के लिए कुछ कारगर उपायों को अपनाया जा सकता है। इसके कुछ प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं :
ज़्यादा वायु प्रदूषण वाले दिनों में घर के अंदर रहें और बाहर निकलते समय एन-95 मास्क का उपयोग करें, ताकि ऑक्सीडेटिव एजेंट और कण पदार्थ आपकी श्वसन प्रणाली में प्रवेश न कर सकें।
धूम्रपान से दूर रहें और पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ पीकर शरीर में हर वक्त पानी की उचित मात्रा बनाए रखें।
प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए पर्याप्त प्रोटीन, फ़ाइबर और कार्बोहाइड्रेट युक्त स्वस्थ, संतुलित आहार लें।
ऑक्सीडेटिव तनाव से निपटने में मदद के लिए अपने खानपान में विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थों, जैसे खट्टे फल, के माध्यम से एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा बढ़ाएं।
प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाए रखने के लिए पोषक तत्वों से भरपूर भोजन पर ध्यान केंद्रित करें और जंक फूड से बचें।


