कूल रूफ़ हो सकता है भारत की बड़ी आबादी को गर्मी से बचाने का ज़रूरी विकल्प
जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल न सिर्फ़ तापमान और गर्मी बढ़ रही है, इमारतों को ठंडा रखने के लिए ऊर्जा की ज़रूरत भी बढ़ रही है। इस साल जनवरी में भारत मौसम विज्ञान विभाग ने साल 2024 को अब तक के रिकॉर्ड पर मौजूद सबसे गर्म साल घोषित कर दिया। बढ़ते तापमान का सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर होता है। गर्मी के कारण हीट स्ट्रोक, डीहाइड्रेशन तो होता ही है, अधिक समय तक गर्मी के संपर्क में रहने से हृदय रोग और मानसिक रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है।
2014 के एक शोध के मुताबिक, बच्चे अगर बहुत ज़्यादा गर्मी के संपर्क में आते हैं तो उनके सीखने-समझने की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे उनका पढ़ाई संबंधित प्रदर्शन पर खराब असर होता है। गर्भ में पल रहे बच्चे का जन्म के समय वज़न भी गर्मी के कारण कम हो सकता है। इसके अलावा, उनके विकास पर अन्य दीर्घकालिक प्रभाव भी देखे जा सकते हैं। स्वास्थ्य के अलावा गर्मी का सीधा असर लोगों के खर्च और उत्पादकता पर भी पड़ता है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के कुल 7 से 9 फीसदी घरों में ही एयर कंडिशनिंग की सुविधा है। इसके बावजूद, भारत में इस्तेमाल होने वाली कुल बिजली का 33 फीसद इमारतों पर खर्च होता है। ऐसे में यह मान भी लें कि कुल जनसंख्या को एयर कंडीशनिंग की सुविधा मिल सकती है, तो इस खर्च में किस स्तर की बढोतरी होगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। ऐसे में ‘कूल रूफ़’ की अवधारणा एक बड़ी जनसंख्या को गर्मी से राहत देने के साथ-साथ बिजली का खर्च बचाने के एक मजबूत विकल्प के रूप में सामने आती है।
क्या है कूल रूफ़?
कूल रूफ़ ऐसी छत को कहा जा सकता है जो एक आम छत के मुकाबले सूरज की किरणों को कम अवशोषित करती है। इस तरह की छत में ऐसी सामग्री इस्तेमाल होती है जो सूरज की किरणों को परावर्तित कर वापस वायुमंडल में भेज देती है, जिससे नीचे कमरों का तापमान आम छत के नीचे के तापमान के मुकाबले कम रहता है। पिछले कई सालों से इस पर काफ़ी शोध हुआ है और इसे भारत में इमारतों को ठंडा रखने की बढ़ती ज़रूरत के स्थाई समाधान की तरह देखा जा रहा है। जिन इमारतों में एयर कंडिशनिंग सुविधा होती है उनमें यह छत तापमान कम करने में सहयोग करके बिजली की खपत कम करती है। बिना एयर कंडिशनिंग वाली इमारतों में यह बिना बिजली के ही काफ़ी राहत मुहैया कराती है।
अप्रेल 2021 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने मकान मालिकों के लिए छत को ठंडा रखने के वैकल्पिक समाधानों के लिए मार्गदर्शिका जारी की। इस मार्गदर्शिका में कूल रूफ़ बनाने के कई तरीकों का ज़िक्र था।
बांस, फूस और ताड़ के छप्पर: स्थानीय उपलब्धता के आधार पर इन चीज़ों को पहले से बनी छत के ऊपर दूसरी परत के रूप में इस्तेमाल करके गर्मी का असर कम किया जा सकता है। भारत में इनका पारंपरिक इस्तेमाल होता रहा है, जो कि इनके प्रभावी होने के बाद भी कम होता जा रहा है। इनसे अच्छा इनसुलेशन मिलता है और ये छह से आठ महीने चलते हैं।
हरी जाली से छत ढकना: छत को ठंडा रखने का यह काफ़ी आसान तरीका है। जाली मध्यम स्तर का इनसुलेशन देती है। यह छत को कितना ठंडा करेगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि यह किस चीज़ से बनी है और इसे किस ऊंचाई और कोण पर लगाया गया है।
छत को ठंडा रखने वाला पेंट: सूरज की किरणों को परावर्तित करने वाले पेंट का इस्तेमाल अपेक्षाकृत आसान, सस्ता और प्रभावी तरीका है। इसे नयी या पुरानी किसी भी छत पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
बजरी और टार का इस्तेमाल: पहले से मौजूद छत पर सफ़ेद बजरी के साथ टार के इस्तेमाल से छत का परावर्तन बेहतर होता है। हालांकि यह थोड़ा खर्चीला उपाय है पर काफ़ी प्रभावशाली है। इसे बिल्टअप रूफ़िंग भी कहते हैं।
मॉडिफ़ाइड बिटुमिन मेंब्रेन: ये एस्फ़ॉल्ट की काफ़ी मज़बूूत पर लचीली चादरें होती हैं, जिनमें परावर्तन के लिए पॉलीमराइज़्ड रबर या प्लास्टिक और फ़ाइबरग्लास का इस्तेमाल होता है। यह भी छत को ठंडा रखने का खर्चीला पर काफ़ी प्रभावी तरीका है।
थर्मोप्लास्टिक मेंब्रेन: ऊष्मारोधी प्लास्टिक की इस लचीली परत को मौजूदा छत पर चिपकाया जा सकता है। इसमें मौजूद पॉलीमर इसे गंदगी और फफूंद आदि से दूर रखते हैं, ताकि परावर्तन की प्रक्रिया बिना रुकावट चलती रहे। छत को ठंडा रखने यह अपेक्षाकृत सस्ता उपाय है।
ऊष्मा रोधी टाइलें: फ़ेज़ चेंज मटीरियल तकनीक से बनी ये टाइलें गर्मी को अवशोषित कर लेती हैं और वातावरण का तापमान घटने पर इसे वापस छोड़ देती हैं। ऐसा करने के लिए इनके अणु एक अवस्था से दूसरी अवस्था में बदलते हैं, जैसे ठोस से द्रव में या वापस द्रव से ठोस में। इन टाइलों को रखरखाव की ज़्यादा ज़रूरत नहीं होती, हालांकि ये आम टाइलों से महंगी हैं। साथ ही, भारी होने के कारण इन्हें लगवाने से पहले इमारत के ढांचे का आकलन ज़रूरी है।
कंक्रीट या टेराकोटा की खोखली टाइलें: इनके बीच में हवा भरी होने के कारण ये टाइलें न सिर्फ़ गर्मी से बल्कि शोर से भी राहत देती हैं। टेराकोटा टाइलों की समस्या यह है कि आसानी से टूट जाती हैं। दोनो ही तरह की टाइलें भारी होती हैं, इसलिए इस्तेमाल के लिए इन्हें चुनते वक्त वज़न को ध्यान में रखने की ज़रूरत होती है।
इनके अलावा भी छत को ठंडा रखने के लिए लाइम कंक्रीट, चाइना मोज़ैक, सैल्युलोज़ फ़ाइबर जैसी कई तकनीकें मौजूद हैं।
कितना फ़ायदा
कूल रूफ़ से इमारत के भीतर का तापमान कितना कम हो सकता है यह देखने के लिए देश के अलग-अलग कोनों में प्रयास जारी हैं। नीति आयोग के मुताबिक साल 2021-2022 में प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संस्था (NRDC), राज्यों की नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसियों का संघ (AREAS), और स्वरोजगार महिला संघ (SEWA) की पहल 'हरियाली ग्रीन विलेज' प्रोजेक्ट के तहत जोधपुर, भोपाल, सूरत और अहमदाबाद जैसे शहरों में 460 घरों की छतों पर ऊष्मारोधी पेंट किया गया। यहां पाया गया कि इन घरों में तापमान 1.5 से 5 डिग्री सेल्सियस तक कम हुआ।
मापा जा रहा है स्वास्थ्य पर कूल रूफ़ का असर
कूल रूफ़ के कारण तापमान कम होता है यह तो कई प्रयोगों में सामने आ चुका है। पर इसकी वजह से कम हुए इनडोर तापमान का लोगों के स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति पर क्या सीधा असर होता है, इसे जानने के लिए जर्मनी की हाइडलबर्ग यूनिवर्सिटी में महामारी विशेषज्ञ अदिति बुंकर भारत के अहमदाबाद सहित अफ्रीका के बुकीना फासो, मेक्सिको, और दक्षिण प्रशांत क्षेत्र के नियू द्वीप में अध्ययन कर रही हैं। गर्मी से सबसे ज़्यादा असुरक्षित झुग्गी बस्तियों में किए जा रहे इस अध्ययन में घरों पर लगी टिन और मिट्टी की छतों पर टाइटेनियम डाइ ऑक्साइड जैसे शक्तिशाली परावर्तक पिग्मेंट वाला पेंट करके उसके असर को मापा जा रहा है।
अहमदाबाद के वंजारा वास में कुल 400 घरों पर यह पेंट किया गया है और इसके असर की तुलना के लिए इतने ही घरों को बिना पेंट के छोड़ दिया गया है। दोनों तरह के घरों में रहने वाले कुल 204 लोगों को स्मार्ट वॉच दिए गए हैं, जिससे उनकी हृदय दर, रक्त चाप, नींद की अवधि और गुणवत्ता आदि के बारे में जानकारी इकट्ठी की जा रही है। इस डेटा से यह भी जानने का प्रयास किया जाएगा कि गर्मी के असर से किस आयु वर्ग के और कैसा कार्य करने वाले लोग ज़्यादा प्रभावित होते हैं।
बुकीना फासो में शुरुआती नतीजों में सामने आया है कि टिन और मिट्टी से बनी छतों पर किए गए पेंट से तापमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस की गिरावट आई, वहीं सिर्फ़ टिन से बनी छतों पर पेंट करने से 1.7 डिग्री सिल्सियस की कमी देखने को मिली। इस गिरावट के कारण लोगों की हृदय दर में भी गिरावट दर्ज़ की गई।
भविष्य की ओर: तेलंगाना की कूल रूफ़ नीति
कूल रूफ के फ़ायदे का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 3 अप्रेल 2023 को तेलंगाना ने कूल रूफ़ पॉलिसी ही जारी कर दी। इस नीति के तहत साल 2028 तक तेलंगाना ने कुल 300 वर्ग किमी कूल रूफ़ बनाने का लक्ष्य रखा है। उम्मीद की जा रही है कि नीति लागू होने के पांच साल बाद इससे राज्य को हर साल 600 गीगावट-आवर बिजली की बचत होगी और वातावरण को गर्म करने वाली कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन में 3 करोड़ टन की कमी आएगी।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के 2018 के अनुमान के मुताबिक, इमारतों को ठंडा रखने से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में 30 फीसद हिस्सा भारत से होगा। ऐसे में तेलंगाना के इस प्रयोग से यह और स्पष्ट होगा कि ‘कूल रूफ़’ जैसा स्थाई समाधान भारत के जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में कितना मददगार होगा।