12 साल की बच्ची ठहर गई ढाई बरस पर

12 साल की बच्ची ठहर गई ढाई बरस पर

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कोरबा, छत्तीसगढ़।

शहर से 85 किलोमीटर दूर कोरबी गाँव। इस गाँव में प्रवेश करते ही आंगनबाड़ी केन्द्र के सामने एक बच्ची घसीटते हुए दिखी। बच्ची का कद-काठी देखकर लगा कि यह बमुश्किल ढाई साल की होगी, नाम नहीं बता पाएगी लेकिन, उसने बड़े ही बेबाकी से अपना नाम और पता बताया। इस बच्ची का नाम नम कुमारी है। मासूम बच्ची जन्म के दो साल बाद से दोनों पैर से विकलांग है।

फ्लोराइड के कारण इस गाँव में कई बच्चों के दाँत खराब हो गए हैं। कोरबी गाँव में नम कुमारी पहली ऐसी बच्ची है जिसके दोनों पैर पैरालिसिस के शिकार हो चुके हैं। अब वह कभी खड़ी नहीं हो सकती। बच्चे के पिता हरन सिंह के मुताबिक बच्ची का जन्म 2002 में हुआ था। जन्म के दौरान बच्ची स्वस्थ थी लेकिन धीरे-धीरे उसके पैरों में सूजन आने लगी। कुछ दिनों बाद दोनों पैर तिरछे हो गए। अब पैर पूरी तरह से कमजोर हो चुकी इन पैरों से सामान्य रूप से सारी गतिविधियाँ बन्द हो चुकी है। मेडिकल रूप से इसे 65 फीसदी विकलांग का सर्टिफिकेट भी दिया गया है।

कोरबी, फुलसर, आमाटिकरा सहित दो दर्जन गाँव में फ्लोराइड से गाँव में हर तीसरे घर का बच्चों की कद-काठी कम और दाँत में सीधे प्रभाव पड़ रहा है।

लाखों की मशीन लगाई, फिर भी पानी फ्लोराइडयुक्त

पीएचई ने फ्लोराइड प्रभावित गाँव में दो साल में 59 स्थानों पर फ्लोराइड रिमुवल प्लांट लगाया लेकिन प्लांट ऑपरेट करने के लिये एक भी ऑपरेटर नहीं रखा। कुछ जगह स्थानीय लोग जो कि मोटर बन्द चालू करते हैं इन्हें मशीन का दायित्त्व दिया गया। इस मशीन को हर दो माह में सर्विसिंग करना होता है। इसके अन्दर लगी प्लेट में एक जगह फ्लोराइड के कण जमा हो जाते हैं। लेकिन सर्विसिंग नहीं होने के कारण पानी में फ्लोराइड की मात्रा आने लगी। हालिया स्थिति ये है कि पीएचई ने दो साल के भीतर 59 जगह प्लांट तो लगा दिया। पर इस बीच इन्हीं गाँव के लोग फ्लोराइड से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।

फ्लोराइड प्रभावित गाँव में बच्चों की स्थिति बहुत दयनीय है, जो प्रयास किये गए हैं उनसे न तो वर्तमान में लाभ है और न ही भविष्य में। इसके लिये जल्द-से-जल्द बड़े प्रयास करने होंगे ताकि और भी बच्चों का भविष्य खराब न हो।

डॉ. अदिति पोद्दार, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय

ऐसे गाँव में फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगाया गया है, विभाग के पास इसे ऑपरेट करने के लिये ऑपरेटर नहीं है, वैकल्पिक व्यवस्था के तहत काम चल रहा है। बीच-बीच में इनमें भी फ्लोराइड की मात्रा आ जाती है। कुछ गाँव में स्पॉट सोर्स के तहत काम चल रहा है।

एस के चंद्रा, कार्यपालन अभियन्ता, पीएचई

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