बेंगलुरु में भी प्लास्टिक बन रहा सिरदर्द

Published on
2 min read

दक्षिण के इस हाईटेक शहर में प्लास्टिक उद्योग से कई तरह के खतरे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कार्रवाई के बावजूद बदस्तूर जारी हैं कारखाने…

दक्षिण का हाईटेक शहर बेंगलुरु भी प्लास्टिक और पॉलीथिन से प्रदूषित हो रहा है। इसके निपटान की अब तक कोई व्यवस्था नहीं हो सकी है। उल्टे शहर में प्लास्टिक कचरे का पूरा उद्योग ही फल-फूल रहा है।

शहर के मुथाचारी इंडस्ट्रीयल इस्टेट में स्थापित सैंकड़ों छोटी- बड़ी औद्योगिक इकाइयों का गंदा पानी और कचरा यहां की नदी में बेरोकटोक डाला जाता है। मुथाचारी इलाके में प्लास्टिक, पॉलिमर आदि के पुनर्निर्माण और उत्पादन का काम बड़े पैमाने पर होता है। प्लास्टिक से होनेवाले प्रदूषण का आलम यहां यह है कि विभिन्न क्षेत्रों से ट्रकों में भर-भरकर प्लास्टिक यहां की औद्योगिक इकाइयों में लाया जाता है। लेकिन उससे होनेवाले प्रदूषण से निपटने का कोई कारगर इंतजाम नहीं किए गए हैं। प्रदूषण नियंत्रण पर काम कर रही संस्था अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरमेंट के विशेषज्ञों का कहना है कि कहने को तो जगह-जगह पर औद्योगिक इकाइयों को शोधन संयंत्र लगाने के लिए कहा गया है। लेकिन वस्तु स्थिति यह है कि अधिकांश इकाइयों ने इसका पालन नहीं किया है। और तो और अनेक शिकायतें इस बात की हैं कि ये औद्योगिक इकाइयां अपना गंदा पानी या तो टैंकर से दूर ले जाकर नदी में डालती हैं या रात के समय अवैध तरीके से नाले में छोड़ती है। इससे नदी में जो प्रदूषित जल जा रहा है, उसका ठीक-ठीक लेखा-जोखा रखना मुश्किल होता है। यह पानी न केवल नदी तक सीमित है बल्कि खेती को भी नुकसान पहुंचा रहा है। एतरी संस्था की ओर से पानी की आवक मापने के लिए यंत्र लगाए गए थे, जिनमें सुबह पांच से रात के आठ बजे तक प्रत्येक घंटे की रिपोर्ट ली गई। इसके बाद से औद्योगिक इकाइयों ने रात को पानी छोड़ना शुरू कर दिया, जिसे मापने का फिलहाल कोई तरीका नहीं है। संस्था अब रात को भी जल मापन की व्यवस्था कर रही है।

हालांकि कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन डॉ. वामन आचार्य इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि प्लास्टिक से सीधे जल प्रदूषण का खतरा नहीं है। इससे दूसरे तरह का प्रदूषण है। बोर्ड ने फिलहाल पतला प्लास्टिक यानी 40 माइक्रोन से कम की प्लास्टिक बनाने पर रोक लगा रखी है। फिर भी कोई पकड़ा जाता है तो उनपर मुकदमा किया जाता है। हर महीने करीब 2 से 3 ऐसे उद्योग बंद किए जा रहे हैं। आचार्य के अनुसार कुछ लोग शहर से दूर जाकर फिर से उद्योग शुरू कर देते हैं। लेकिन बोर्ड इनपर सतर्क नजर रखता है। हो कुछ भी, लेकिन मुथाचारी इंडस्ट्रीयल एरिया में प्लास्टिक के उद्योग बदस्तूर चल ही रहे हैं।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org