केन नदी को प्रदूषित कर रहे बांदा शहर के तीन नाले

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नदियों में कचरा डालने के साथ-साथ बांदा, महोबा, चित्रकूट और हमीरपुर में प्राचीन तालाबों में भी नगर का सीवर गिराया जाता है और ये प्रशासन की नाक के नीचे होता है। इस कचरे के अतिरिक्त लावारिस लाशों का विसर्जन भी केन में ही किया जाता है जिसमे नवजात शिशु से लेकर अन्य लाश भी शामिल हैं जो तालाब कभी हमारे बुजुर्गों ने जल प्रबंधन के लिए बनाए थे वे ही आज मानवीय काया से उपजे मैला को ढोने का सुलभ साधन बने हैं।बांदा – जबलपुर मध्य प्रदेश से निकल कर पन्ना, छतरपुर, खजुराहो और उत्तर प्रदेश के बांदा से होकर चिल्ला घाट में बेतवा और यमुना में केन (कर्णवती) नदी का संगम होता है। हजारों किलोमीटर कि प्रवाह यात्रा तय करने के बाद बुंदेलखंड के रहवासी इस नदी के जल से अपनी प्यास बुझाते है। किसान खेतों के गर्भ को सिंचित करके खेती करते है। खासकर जबलपुर,पन्ना और बांदा की 70% आबादी इस एक मात्र नदी के सहारे अपने जीवन के रोज़मर्रा वाले कार्यों को पूरा करते हैं। करीब 20 लाख की जनसंख्या अकेले बांदा जिले में ही केन का पानी पीकर जिंदा है।

मगर शहर को इसी केन नदी से जलापूर्ति करने वाले प्राकृतिक स्रोत में तीन गंदे नाले पेयजल को जहरीला बना रहे हैं। निम्नी नाला, पंकज नाला और करिया नाला का सीवर युक्त पानी बिना जल शोधन प्रक्रिया, वाटर ट्रीटमेंट के खुले रूप में केन में गिरता है।बांदा की नगर पालिका के अवर अभियंता सुरेन्द्र कुमार मिश्र ने जन सूचना अधिकार में यह बतलाया है कि ये टेण नाले केन में ही गिरते हैं। जल शोधन के विषय में उनका कहना है कि इस कार्य हेतु जल निगम ही जानकारी दे सकता है लेकिन जब जल निगम के अफसरान से पूछा गया तो उन्होंने कुछ भी कहने से मना कर दिया। नगर पालिका के अवर अभियंता ने यह भी जानकारी दी कि हर साल केन में नवदुर्गा मूर्ति विसर्जन के कारण जो व्यवस्था नदी के घाट में की जाती है उस पर वर्ष 2001 से 2012 तक 175968 रूपए खर्च हुए हैं। जबकि इस वर्ष 2013 में यह भी हकीक़त है की शहर के कूड़े को एकत्र करके नदी के हरदोली घाट में डालकर बाढ़ के बाद हुए रास्ते को समतल किया गया है। इसके बाद उसके ऊपर डस्ट से मरम्मत करके मूर्ति विसर्जन की व्यवस्था की गई थी।

उल्लेखनीय है कि बढ़ते हुए जनसंख्या के दबाव और प्रदूषण ने केन की कोख में हजारों टन मैला गिराने कि पूरी तैयारी कर रखी है परन्तु इस कचरे के अपशिस्ट प्रबंधन की कोई योजना बुंदेलखंड जैसे सूखा प्रभावित इलाकों में हाल फ़िलहाल नहीं है। यह बात अलग है की सुप्रीम कोर्ट के आदेश महानगरों से लेकर छूते जनपदों में भी एक ही है कि नदी में किसी प्रकार के नाले और ट्रेनरी का पानी नहीं गिराया जाएगा। कानून अपने असली जगह में दफ़न है।

बात यहाँ तक भी ठीक थी की नदी का दायरा बड़ा है इसलिए नगरपालिका शहर का गन्दा कचरा नदी में गिराने का काम कर रही है लेकिन बांदा, महोबा, चित्रकूट और हमीरपुर में प्राचीन तालाबों में भी नगर का सीवर गिराया जाता है और ये प्रशासन की नाक के नीचे होता है। इस कचरे के अतिरिक्त लावारिस लाशों का विसर्जन भी केन में ही किया जाता है जिसमे नवजात शिशु से लेकर अन्य लाश भी शामिल हैं जो तालाब कभी हमारे बुजुर्गों ने जल प्रबंधन के लिए बनाए थे वे ही आज मानवीय काया से उपजे मैला को ढोने का सुलभ साधन बने हैं। बानगी के लिए बांदा जिले के कंधर दास, छाबी तालाब, बाबू साहेब, प्रागी तालाब ये कार्य बखूबी कर रहे है। शहर के 11 तालाब में दबंग लोगों के कब्ज़े में है जहाँ पर उनके आशियाने और व्यापार के काम हो रहे है।

नदी में नाले गिरने का काम चित्रकूट की मंदाकनी में भी होता है। यह नदी पयश्वनी के नाम से भी विख्यात है और आस्था का एक बहुत बड़ा केंद्र भारतीय संदर्भ में है। मध्य प्रदेश के और उत्तर प्रदेश के धार्मिक प्रतिबिंब को एकीकृत करने वाली मंदाकनी चित्रकूट के नया गाँव – राम घाट के दूसरी तरफ पड़ने वाली नगर पंचायत के सीवर युक्त कचरे को सालों से अपने आस्था वादी जल में प्रवाहित करती है। करीब 5 हजार कि रहवासी आबादी और नदी घाट में खुले होटल, ढाबों, दुकानदारों का रोज का जूठन मंदाकनी की कोख में गिरता है। यह भी कड़वा सच ही है की राम घाट में तुलसी दास की प्रतिमा के समीप खुले सार्वजनिक पेशाब घर का मूत्र भी नदी की आस्था को शर्मसार करता है मगर स्थानीय नागरिक इसे मंदाकनी की किस्मत मानकर चुप हैं। यही सिलसिला ब्रह्मकुंड में लाशों को मंदाकनी में बहाकर भी किया जाता है। यदा – कदा चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के राष्ट्रीय सेवा योजना के छात्र–छात्रा और गायत्री परिवार के सहारे रहती है जल को निर्मल बनाने की गतिविधि।

ऐसा भी नहीं है कि चित्रकूट में सामाजिक संस्था की कोई कमी है या बांदा में जल प्रहरी नहीं है लेकिन समाचार पत्र में खबर प्रकाशित होने और किसी पुरस्कार के उपलब्धि तक सीमित रह जाता है उनका यह सामाजिक चिंतन। मंदाकनी के जल प्रवाह को राम घाट में होटल, ढाबों के निर्माण और नवनिर्मित मंदिरों ने बाधित किया है तो वही दूसरी तरफ नाना जी देशमुख की संस्था दीनदयाल शोध संस्थान के प्रकल्प सियाराम कुटीर (भरत पाठक का आवास), आरोग्य धाम ने कैचमेंट एरिया को बांध कर नदी की भूमि पर एक पार्किंग और होटल का हाल ही में निर्माण किया है निजी हित में। इस बात का संज्ञान लेकर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में एक अधिवक्ता की जनहित याचिका में हुए आदेश में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण मंत्रालय सहित मध्य प्रदेश के पर्यटन विभाग को भी नोटिस जारी हुए है। इसके अतिरिक्त नेशनल ग्रीन ट्रीयूब्नल (एन.जी.टी.) ने भी दीनदयाल शोध संस्थान को नोटिस दिया है पर मध्य प्रदेश में इनकी राजनीतिक ताकत और भाजपा कि वर्तमान सरकार के चलते ये आदेश अमल से कोसो दूर है।

बांदा की केन और चित्रकूट कि मंदाकनी को एक अदद भागीरथ कि नितांत आवश्यकता है जो आस्था के साथ मानवीय लीला को निर्बाध आगे ले जाने वाली इन दो प्रमुख नदियों को चिरकाल तक अविरल बहने दे।

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