पावन गंगा मानवीय गतिविधियों से प्रदूषित
पावन गंगा मानवीय गतिविधियों से प्रदूषित

कैसे साफ हो गंगा ? गंगा थक चुकी मैला ढोते ढोते

नमामि गंगे के तहत बड़े बजट की घोषणा दरअसल गंगा एक्शन प्लान की विफलता के बाद लाया गया था, जिससे जनता में गंगा की सफाई की उम्मीद जगाई गई थी। विफल रहे गंगा एक्शन प्लान को 14 जनवरी, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शुरू किया था इसके दो चरण कई वर्षों तक चले और नतीजा कुछ नहीं निकला। इसके बाद 2009 में राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण बनाया गया। गंगा एक्शन प्लान से लेकर 2017 तक इन तीनों कदमों के तहत 6788.78 करोड़ रुपए सरकार की ओर से जारी किए गए।
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गंगा में 60 फीसदी सीवेज की निकासी जारी है, वह भी तब जब राष्ट्रीय नदी के बिगड़े रंग-रूप को बदलने के लिए 30 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का बजट बनाया गया था। स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय गंगा परिषद के गठन को करीब छह वर्ष बीतने वाले हैं और अभी तक सिर्फ एक बार ही बैठक की जा सकी है।

केंद्र सरकार की ओर से 7 अक्टूबर, 2016 को गंगा नदी (संरक्षण, सुरक्षा एवं प्रबंधन) प्राधिकरण आदेश जारी किया गया था, जिसके मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय गंगा परिषद को वर्ष में कम से कम एक बार या उससे ज्यादा बार बैठक कर गंगा की सफाई और परियोजनाओं के अमल का जायजा लेना था।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के मुताबिक गंगा से जुड़ी परियोजनाओं के बजट और क्रियान्वयन को लेकर कार्यकारी समिति (एग्जीक्यूटिव कमेटी) की बैठकें जारी हैं। 2017 से लेकर जुलाई, 2022 तक कुल 43 बैठकें संपन्न हुई हैं। हालांकि, तय आदेश के मुताबिक गंगा परिषद को इनकी समीक्षा करनी चाहिए थी। 

2014 में सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने गंगा की स्वच्छता को अपनी उच्च प्राथमिकता वाला काम बताया था और इसके लिए नमामि गंगे योजना की घोषणा की गई थी, जिसका मकसद गंगा के बिगड़े रंग-रूप को बदलना और प्रदूषण पर रोकथाम था। हालांकि, इस पर काम 2016 अक्टूबर के आदेश के बाद से ही शुरू हुआ। वित्त वर्ष 2014-15 से लेकर 2020-2021 तक इस नमामि गंगे योजना के तहत पहले 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का रोडमैप तैयार किया गया था जो कि बाद में बढ़ाकर 30 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया। हालांकि, अभी इस स्वीकृत बजट में से करीब 50 फीसदी बजट ही आवंटित हो पाया है।

नमामि गंगे के तहत बड़े बजट की घोषणा दरअसल गंगा एक्शन प्लान की विफलता के बाद लाया गया था, जिससे जनता में गंगा की सफाई की उम्मीद जगाई गई थी। विफल रहे गंगा एक्शन प्लान को 14 जनवरी, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शुरू किया था इसके दो चरण कई वर्षों तक चले और नतीजा कुछ नहीं निकला। इसके बाद 2009 में राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण बनाया गया। गंगा एक्शन प्लान से लेकर 2017 तक इन तीनों कदमों के तहत 6788.78 करोड़ रुपए सरकार की ओर से जारी किए गए। हालांकि, सरकार के मुताबिक 30 जून 2017 तक 4864.48 करोड़ रुपए खर्च हो पाए। इन खर्ची पर संदेह भी उठा। अदालतों को भी इन खर्चों की सही जानकारी नहीं मिल पाई। एसटीपी या सीवेज नेटवर्क में पब्लिक का पैसा बर्बाद करने के लिए गंगा मामले में पहली बार सीबीआई जांच का भी आदेश दिया गया। हालांकि, सीबीआई जांच से जुड़ी कोई रिपोर्ट आजतक नहीं आई है। 

14 फरवरी, 2017 को गंगा सफाई मामले में ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने उप्र जल निगम के अधिकारियों पर हापुड़ जिले में गढ़ स्थित एसटीपी के डिजाईन और कंस्ट्रक्शन में खराबी को लेकर सीबीआई जांच का आदेश दिया था।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एमसी मेहता मामले में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से गंगा एक्शन प्लान के खर्च की जानकारी दी गई थी लेकिन वह संतुष्ट करने लायक नहीं थी। जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में 13 जुलाई, 2017 में फैसला सुनाते हुए कहा था कि गंगा इस वक्त देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदी हैं... कई वर्षों के बाद भी सरकार ने कई घरेलू और औद्योगिक सीवेज उपचार के लिए परियोजनाओं को गंगा एक्शन प्लान के तहत शुरू किया। हालांकि, यह गौर करने लायक है कि एक बड़ी राशि एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लॉट) और इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) पर खर्च होने के बाद भी नदी प्रदूषित है।

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 और 2017 में 1985 से चल रहे गंगा मामले की सुनवाई और निगरानी के लिए पर्यावरण मामलों की अदालत एनजीटी को निर्देश भेज दिया था। एनजीटी तबसे इस मामले की निगरानी कर रही है। 22 जुलाई, 2022 को एनजीटी ने राष्ट्रीय गंगा परिषद की ताजा रिपोर्ट के आधार पर कहा कि इतनी घोषणाओं के होने के बाद भी जुलाई, 2022 तक पांच प्रमुख गंगा राज्यों- उत्तराखंड, उप्र, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में गंगा नदी में 60 फीसदी बिना उपचार वाले सीवेज की निकासी जारी है। एनजीटी ने रिपोर्ट में पाया कि गंगा राज्यों में एसटीपी और सीईटीपी न सिर्फ 60 फीसदी तक कम हैं बल्कि अपनी क्षमताओं से भी कम काम कर रहे हैं।

गंगा की सफाई को लेकर किए जा रहे सारे दावे कागजी साबित हो रहे हैं। भले ही 2016 में जोर- शोर के साथ गंगा के पुनरुद्धार संरक्षण और प्रबंधन को लेकर आदेश जारी किया गया था लेकिन राष्ट्रीय नदी अब 160 फीसदी मैला हो रही प्रमुख पांच गंगा राज्य बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, उप्र और पश्चिम बंगाल 10139.3 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज पैदा होता है और महज 3959.16 एमएलडी (40) फीसदी) सीवेज का ही सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के जरिए उपचार हो रहा है, बाकी 6180.2 एमएलडी ( 60 फीसदी) को सीधे गंगा में गिराया जा रहा है। गंगा के प्रमुख पांच राज्यों में अब तक लगाए गए कुल 226 सीवेज ट्रीटमेंट प्लाट (एसटीपी) भी अपनी क्षमता से कम काम कर रहे है और गंगा में सीधे गिरने वाले सीवेज की मात्रा में लगातार बढ़ोत्तरी कर रहे हैं। एनजीटी ने गौर किया कि गंगा के प्रमुख पांच राज्यों में कुल 10139.3 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी सीवेज के उपचार के लिए 5822.38 एमएलडी क्षमता वाले कुल 245 एसटीपी मौजूद हैं। हालांकि यह सभी एसटीपी अपनी क्षमता का महज 68 फीसदी ही काम कर रहे हैं। एनजीटी ने गौर किया कि 245 में कुल 226 एसटीपी ही काम कर रहे हैं। वहीं, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) सिर्फ 136 एसटीपी की निगरानी करती है, जिसमें से 105 ऑपरेशनल एसटीपी में 96 एसटीपी नियम और मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं नियम और मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं। नियम और मानक से मुराद यह है कि इन एसटीपी से निकलने वाले पानी में बीओडी, फीकल कॉलिफोर्म, टीएसएस जैसे मानक संतुलित नहीं पाए जाते हैं।

स्रोत-14 पाक्षिक अक्स नवंबर (द्वितीय) 2023

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