क्यों पर्यावरण का दुश्मन बन रहा फास्ट फैशन ट्रेंड
आज के इस दौर के "अल्ट्रा-फास्ट फैशन" ट्रेंड ने युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित किया है, जो बढ़ती मुद्रास्फीति के बीच अपेक्षाकृत सस्ते कपड़े ऑनलाइन खरीदते हैं, लेकिन तेजी से बढ़ती यह शैली पर्यावरण की समस्याओं को गहरा सकती है।
ब्रिटेन की बूहू, चीन की शीन और हॉन्ग कॉन्ग की एमिऑल कुछ एक ऐसी ही ऑनलाइन मार्केटिंग की कंपनियां है जो बहुत तेजी से कम कीमतों पर वस्तुओं का उत्पादन कर उन्हें बेच रही है। 25 वर्ष से कम आयु के युवा-जिन्हें व्यापक रूप से जेनरेशन Z के रूप में जाना जाता है वह अल्ट्रा-फास्ट फैशन को बहुत पसंद करते है और उन्हें कंपनियों द्वारा होम डिलीवरी की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है
हालाँकि, ग्रीनपीस ( ग्रीनपीस को दुनिया में सबसे अधिक एक्टिव रहने वाले पर्यावरण संगठन के रूप में जाना जाता है) ने "फेंके गए कपड़े" की आलोचना करते हुए कहा
कि एक टी-शर्ट को बनाने में लगभग 2,700 लीटर पानी लगता है जिसे आराम से कचरे के डिब्बे में फेंक दिया जाता है।
वही इस मुद्दे पर ग्रीन प्रेशर ग्रुप (ग्रीन प्रेशर ग्रुप उन लोगों का समूह है जो सरकार या कंपनी पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए दबाव डालते हैं) का कहना है कि
"इनमें से कई सस्ते कपड़े बड़े- बड़े डंप साइटों पर खत्म हो जाते हैं, आग में जल जाते हैं या नदी और समुद्र में बह जाते हैं, जिससे लोगों को ही नहीं इस धरती को भी नुकसान पहुंच रहा है।"
कुछ दिन पहले ही वेंडर को लौटाए गए या खरीद के तुरंत बाद फेंके गए घटिया कपड़ों के ढेर की तस्वीरें वायरल हुई थी। जिसने नए फैशन के कचरे को उजागर किया है। पिछले कुछ दशकों से उच्च मुद्रास्फीति के कारण कम कीमत वाले कपड़ों की मांग बढ़ गई है, जबकि कई कोविड-प्रभावित हाई-स्ट्रीट ब्रांडेड दुकानों को प्रतिस्पर्धा करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
इस बदलते फास्ट -फैशन ट्रेंड से पर्यावरण को कितना नुकसान
- हर साल उत्पादित 100 अरब कपड़ों में से 92 मिलियन टन लैंडफिल में डंप हो जाता है। इसका मतलब है कि कपड़ों से भरा एक कचरा ट्रक हर सेकंड लैंडफिल साइटों पर समाप्त होता है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो हर साल फास्ट फैशन कचरे की संख्या 134 मिलियन टन तक बढ़ सकती है।
- यदि आने वाले वर्षों में हमेशा की तरह ऐसे ही व्यापार होता है ,यानि तेजी से फास्ट फैशन के कचरे को कम करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती है तो इस दशक के अंत तक उद्योग का वैश्विक उत्सर्जन दोगुना हो जाएगा।
- पिछले कुछ वर्षों में फेंकने वाली संस्कृति और खराब हुई है । वर्तमान में कई वस्तुओं को फेकने से पहले केवल सात से दस बार ही पहना जाता है। यह केवल 15 वर्षों में 35% से अधिक की गिरावट आई है।
- कलरिंग और फिनिशिंग- वे प्रक्रियाएं है जिनके द्वारा कपड़े पर रंग और अन्य रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है जो वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के 3% के साथ-साथ वैश्विक जल प्रदूषण के 20% से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं।
- फास्ट फैशन से हर दिन भारी मात्रा में पानी बर्बाद होता है। अनुमान के मुताबिक एक टी-शर्ट बनाने के लिए लगभग 2,700 लीटर पानी की जरूरत होती है, जो एक व्यक्ति के लिए 900 दिनों तक पीने के लिए पर्याप्त होगा। इसके अलावा, एक बार धोने में 50 से 60 लीटर पानी खर्च होता है।
- हमारी "फेंकी गई संस्कृति" का सबसे बुरा हाल यह है कि हर साल फेंके जाने वाले अधिकांश कपड़ों को रिसाइकिल नहीं किया जाता है। विश्व स्तर पर, कपड़ों के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री का केवल 12% ही रिसाइकिल किया जाता है। ज्यादातर समस्या उन सामग्रियों से आती है जिनसे हमारे कपड़े बनते हैं और उन्हें रिसाइकिल करने के लिए हमारे पास अपर्याप्त तकनीक है।
- गारमेंट्स माइक्रोप्लास्टिक का एक बड़ा स्रोत हैं क्योंकि बहुत से कपड़े अब 'नायलॉन या पॉलिएस्टर' से बनते हैं, दोनों टिकाऊ और सस्ते होते हैं। ये धोने और सूखने की प्रक्रिया के दौरान विशेष रूप से शेड माइक्रोफिलामेंट्स को छोड़ते है जो सीवेज सिस्टम से गुजर कर हमारे जलमार्ग में मिल जाते हैं। ऐसा अनुमान है कि इनमें से आधा मिलियन टन हर साल समुद्र में पहुंच जाते हैं। जो कि 50 अरब से अधिक बोतलों के प्लास्टिक प्रदूषण के बराबर है।
- उत्पादन में इस नाटकीय वृद्धि के कारण उत्पादन से पहले और बाद में दोनों तरह के कपड़ो के कचरे में वृद्धि हुई है। कपड़ों के कट आउट के कारण बड़ी मात्रा में सामग्री बर्बाद हो जाती है और वह फिर से उपयोग में नहीं आती ,एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि कपड़ो के निर्माण में उपयोग किए जाने वाले 15% कपड़े बर्बाद हो जाते हैं। 2012 में वैश्विक स्तर पर उत्पादित लगभग 150 मिलियन कपड़ों में से 60% उत्पादन के कुछ ही वर्षों बाद फेंक दिया गया था।