जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट का निर्माण फ्रांस की विवादास्पद कम्पनी अरेवा के सहयोग से होने वाला है। 9900 मेगावाट की यह परमाणु परियोजना विश्व के सबसे बड़े प्रोजेक्ट में शुमार है। इस प्लांट के लिये राजापुर तहसील के पाँच गाँवों में 938 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत की गई हैं। इनमें सर्वाधिक 690 हेक्टेयर जमीन अकेले माड़बन गाँव की है। इसके अलावा, मिठगवाणे में 102 हेक्टेयर, निवेली में 72.61, केरल में 70.68 और वरिलवाड़ा में 1.91 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत की गई है।
‘शहीद तबरेज सायेकर चौक पर नजर पड़ी। 18 अप्रैल 2011 को इसी जगह जैतापुर न्यूक्लियर पॉवर प्लांट का विरोध कर रहे ग्रामीणों पर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियाँ चलाई थीं जिसमें तबरेज नामक शख्स की मौत हो गई और दर्जनों लोग जख्मी हो गए।’
‘राजापुर तहसील में 30 किलोमीटर अरब सागर का खाड़ी क्षेत्र है। समुद्र की गहराई कम होने की वजह से साखरी नाटे के मछुआरे छोटी नौकाओं के सहारे मछली मारने का काम करते हैं। ऐसे में 10 किलोमीटर क्षेत्र को प्रतिबन्धित किये जाने से यहाँ के हजारों मछुआरे बेरोजगार हो जाएँगे। क्योंकि उनके पास बड़ी नौका खरीदने के लिये लाखों रुपए नहीं हैं। जबकि, सरकार बेरोजगार होने वाले मछुआरों को नौका खरीदने के लिये कोई सहायता राशि देने वाली नहीं है।'
ग्रामीण पिछले कई साल से अदृश्य खौफ के साये में जी रहे हैं। यहाँ एक बड़ा मामला विवादित जमीनों के अधिग्रहण का भी है। जिला प्रशासन न्यायिक आदेश की प्रतीक्षा किये बगैर उन जमीनों का भी अधिग्रहण कर रहा है जिन पर दो पक्षकारों या उससे अधिक लोगों के बीच वर्षों से मुकदमा चल रहा है। ऐसे सैकड़ों मामले जिला एवं सत्र न्यायालय, हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में लम्बित हैं। जिला प्रशासन की इस नासमझी से इलाके में खून-खराबे की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
‘यह मेरी पुश्तैनी जमीन है और खेती जीविका का एकमात्र साधन है। जमीन बेचकर इस दुनिया में कोई किसान सम्पन्न नहीं हुआ है। गाँव में कई ऐसे किसान हैं, जिन्होंने लालचवश मुआवजा तो ले लिया, लेकिन अब उनके पास न तो पैसे बचे हैं और न ही जमीन।’
‘भारत जैसे देश में जहाँ सड़कों की सफाई नियमित ढंग से नहीं हो पाती, वहाँ परमाणु कचरे की सफाई और उससे सुरक्षा की बात करना बेमानी है। परमाणु कचरा सैकड़ों साल बाद भी नष्ट नहीं होता। बावजूद इसके केन्द्र सरकार हमें परमाणु कचरे के ढेर पर बिठाना चाहती है।’