पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण के उपाय | Environmental Pollution Control Measures
प्रदूषण एक प्रकार का अत्यंत धीमा जहर है, जो हवा, पानी, धूल आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसे रुग्ण बना देता है, वरन् जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और वनस्पतियों को भी सड़ा-गलाकर नष्ट कर देता है। आज अर्थात् प्रदूषण के कारण ही विश्व में प्राणियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इसी कारण बहुत से प्राणी, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, वन्य प्राणी इस संसार से विलुप्त हो गए हैं, उनका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। यही नहीं प्रदूषण अनेक भयानक बीमारियों को जन्म देता है।
प्रकृति में उपस्थित सभी प्रकार के जीवधारी अपनी वृद्धि, विकास तथा सुव्यवस्थित एवं सुचारू जीवन-चक्र को चलाते हैं। इसके लिए उन्हें ‘संतुलित वातावरण’ पर निर्भर रहना पड़ता है। वातावरण का एक निश्चित संगठन होता है तथा उसमें सभी प्रकार के जैविक एवं अजैविक पदार्थ एक निश्चित अनुपात में पाए जाते हैं। ऐसे वातावरण को ‘संतुलित वातावरण’ कहते हैं। कभी-कभी वातावरण में एक या अनेक घटकों की प्रतिशत मात्रा किसी कारणवश या तो कम हो जाती है अथवा बढ़ जाती है या वातावरण में अन्य हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है, जिसके कारण पर्यावरण प्रदूषण हो जाता है। यह प्रदूषित पर्यावरण जीवधारियों के लिए अत्यधिक हानिकारक होता है। यह हवा, पानी, मिट्टी, वायुमंडल आदि को प्रभावित करता है। इसे ही ‘पर्यावरण प्रदूषण’ कहते हैं।
‘इस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण, वायु, जल एवं स्थल की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक विशेषताओं में होने वाला वह अवांछनीय परिवर्तन है, जो मानव एवं उसके लिए लाभकारी तथा अन्य जंतुओं, पेड़-पौधों, औद्योगिक तथा दूसरे कच्चे माल इत्यादि को किसी भी रूप में हानि पहुंचाता है।’
दूसरे शब्दों में, ‘पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक घटकों में होने वाला किसी भी प्रकार का परिवर्तन ‘पर्यावरण प्रदूषण’ कहलाता है।’
‘प्रदूषण एक प्रकार का अत्यंत धीमा जहर है, जो हवा, पानी, धूल आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसे रुग्ण बना देता है, वरन् जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और वनस्पतियों को भी सड़ा-गलाकर नष्ट कर देता है। आज अर्थात् प्रदूषण के कारण ही विश्व में प्राणियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इसी कारण बहुत से प्राणी, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, वन्य प्राणी इस संसार से विलुप्त हो गए हैं, उनका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। यही नहीं प्रदूषण अनेक भयानक बीमारियों को जन्म देता है। कैंसर, तपेदिक, रक्तचाप, शुगर, एंसीफिलायटिस, स्नोलिया, दमा, हैजा, मलेरिया, चर्मरोग, नेत्ररोग और स्वाइन फ्लू, जिससे सारा विश्व भयाक्रांत है, इसी प्रदूषण का प्रतिफल है। आज पूरा पर्यावरण बीमार है। हम आज बीमार पर्यावरण में जी रहे हैं। अर्थात् हम सब किसी-न-किसी बीमारी से ग्रसित हैं। आज सारे संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो बीमार न हो। प्रदूषण के कारण आज बहुत बड़ा संकट उपस्थित हो गया है। यूरोप के यंत्र-प्रधान देशों में तो वैज्ञानिकों ने बहुत पहले ही इसके विरुद्ध चेतावनी देनी शुरू कर दी थी, परंतु उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। फलतः आज सारा विश्व इसके कारण चिंतित है। सन् 1972 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, इस समस्या के निदान के लिए विश्व के अनेक देशों ने मिलकर विचार किया, जिसमें भारत भी सम्मिलित था।
विज्ञान का उपयोग, प्रकृति का अंधाधुंध दोहन, अवैध खनन, गलत निर्माण तथा विनाशकारी पदार्थों के लिए किया जा रहा है। इससे वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है। प्रकृति और प्राणीमात्र का जीवन संकट में पड़ गया है। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले अनेक प्रमुख प्रदूषक हैं, इन पर चर्चा करने से पहले हम यह जान लें कि प्रदूषक पदार्थ किसे कहते हैं?
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प्रदूषक पदार्थ (Pollutants)
प्रदूषण के लिए उत्तरदायी पदार्थों को प्रदूषक (Pollutants) पदार्थ कहते हैं। प्रदूषक वे पदार्थ हैं, जिन्हें मनुष्य बनाता है, उपयोग करता है और अंत में शेष भाग को या शेष सामग्री को जैवमंडल या पर्यावरण में फेंक देता है। इसके अंतर्गत रासायनिक पदार्थ धूल, अवसाद (Sediment) तथा ग्रिट (Grit) पदार्थ, जैविक घटक तथा उनके उत्पाद, भौतिक कारक जैसे ताप (Heat) आदि सम्मिलित हैं, जो पर्यावरण पर कुप्रभाव डालते हैं।
परिभाषा
कोई ठोस, तरल या गैसीय पदार्थ, जो इतनी अधिक सांद्रता (Concentration) में उपस्थित हो कि पर्यावरण के लिए क्षतिपूर्ण कारक (Injurious) हो, प्रदूषक कहलाता है। जिन वस्तुओं का हम उपयोग कर एवं निर्माण पश्चात् शेष को फेंक देते हैं, अर्थात फेंके हुए अवशेष (Residue) प्रदूषक कहलाते हैं।
पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले प्रमुख पदार्थ हैं-
1. जमा हुए पदार्थ जैसे- धुआं, धूल, ग्रिट, घर आदि।
2. रासायनिक पदार्थ जैसे – डिटर्जेंट्स, आर्सीन्स, हाइड्रोजन, फ्लोराइड्स, फॉस्जीन आदि।
3. धातुएं जैसे- लोहा, पारा, जिंक, सीसा।
4. गैसें जैसे- कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, अमोनिया, क्लोरीन, फ्लोरीन आदि।
5. उर्वरक जैसे- यूरिया, पोटाश एवं अन्य।
6. वाहित मल जैसे- गंदा पानी।
7. पेस्टीसाइड्स जैसे- डी.डी.टी., कवकनाशी, कीटनाशी।
8. ध्वनि।
9. ऊष्मा।
10. रेडियोएक्टिव पदार्थ।
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प्रदूषकों के प्रकार (Types of Pollutants)
प्रदूषक मुख्य दो प्रकार के हैं।
1. अक्षयकारी प्रदूषक (Non-Degradable Pollutants)- इनके अंतर्गत वे प्रदूषक आते हैं, जो या तो अपघटित नहीं होते या प्रकृति में इनका निम्नीकरण (Degradation) बहुत धीमी गति से होता है। जैसे –एल्यूमीनियम, मरक्यूरिक लवण, लंबी श्रृंखला वाले फेनोसिक्स तथा D.D.T. आदि।
2. जैव निम्नीकरण या क्षयकारी योग्य प्रदूषक (Biodegradable Pollutants)- यह घरेलू उपार्जक पदार्थ होते हैं, जिनका विघटन प्रकृति में आसानी से हो जाता है। जब ये पदार्थ एकत्रित हो जाते हैं, तब अनेक समस्याएं उत्पन्न करते हैं।
प्रदूषण के प्रकार (Types of Pollutions)
प्रदूषण निम्न प्रकार के होते हैं-
1. वायु प्रदूषण,
2. जल प्रदूषण,
3. ध्वनि प्रदूषण,
4. मृदा प्रदूषण,
5 रेडियोधर्मी प्रदूषण,
6. तापीय प्रदूषण,
7. समुद्री प्रदूषण।
1. वायु प्रदूषण (Air Pollution)
वायुमंडल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक निश्चित अनुपात में पाई जाती हैं। वायुमंडल में विभिन्न घटकों में मौलिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाले अवांछनीय परिवर्तन, जो जैवमंडल को किसी-न-किसी रूप में दुष्प्रभावित करते हैं, संयुक्त रूप से वायु प्रदूषक कहलाते हैं तथा वायु के प्रदूषित होने की यह घटना वायु प्रदूषण कहलाती है।
वायु प्रदूषण के कारण एवं स्रोत (Causes and Sources & Air Pollution) वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण तथा उसके स्रोत निम्नानुसार हैं-
1. स्वचालित वाहन एवं मशीनें (Automobiles and Machines)- स्वचालित वाहनों जैसे-मोटर, ट्रक, बस, विमान, ट्रैक्टर तथा अन्य प्रकार की अनेक मशीनों में डीजल, पेट्रोल, मिट्टी का तेल आदि के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, अदग्ध हाइड्रोकार्बन, सीसा व अन्य विषैली गैसें वायु में मिलकर उसे प्रदूषित करती हैं। विषैले वाहक निर्वात (Vehicular Exhausts) वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं।
2. औद्योगिक कल-कारखानें (Industrial Factories)- कारखानों की चिमनियों से निकले धुएं में सीसा, पारा, जिंक, कॉपर, कैडमियम, आर्सेनिक एवं एस्बेस्टस आदि के सूक्ष्मकण तथा कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोजन-फ्लोराइड जैसी गैसें होती हैं, जो जीवधारियों के लिए अत्यधिक हानिकारक होती हैं। पेट्रोलियम रिफाइनरी वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं, जिनमें SO2 (सल्फर डाइऑक्साइड) तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड (CO2) प्रमुख हैं।
3. धुआं एवं ग्रिट (Smoke and Grit)- ताप बिजलीघरों, कारखानों की चिमनियों एवं घरेलू ईंधन को जलाने से धुआं निकलता है। धुएं में अदग्ध कारखानों के सूक्ष्मकण, विषैली गैसें, जैसे- हाइड्रोकार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड होते हैं, जो विषैली होती हैं, जो कई प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं।
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4. धूल (Dust)- औद्योगिक इकाइयों से संबंधित खदानों जैसे-लौह अयस्क तथा कोयले के खदानों की धूल से पर्यावरण प्रदूषित होता है तथा रोग उत्पन्न होते हैं।
वायुमंडल में उत्सर्जित विभिन्न प्रकार के प्रदूषक (Various Pollutants)- विभिन्न प्रकार के प्रमुख प्रदूषक जो अनेक क्षेत्रों से वायुमंडल में उत्सर्जित किए जाते हैं, उनमें निम्नलिखित प्रदूषक हैं-
1. कार्बन यौगिक (Carbon Compounds) – इसमें कार्बन मोनो ऑक्साइड तथा कार्बन डाइऑक्साइड प्रमुख हैं।
2. सल्फर यौगिक (Sulpher Compounds)- ये सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), हाइड्रोजन (H2) तथा (H2SO4) आदि प्रमुख हैं।
3. नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nitrogen Oxides)- इसमें मुख्य रूप से नाइट्रोजन ऑक्साइड ही रहते हैं, जैसे- NO, NO2, or HNO3
4. ओजोन (O3) इसका स्तर मानव क्रियाओं द्वारा बढ़ सकता है।
5. फ्लोरो कार्बन (Fluoro Carbons)- ये गैसें विभिन्न उद्योगों द्वारा कीटनाशकों के छिड़काव द्वारा हवा में मिलते हैं।
6. हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbons) – यह मुखय् रूप से बेन्जीन, बेन्जीपायरीन आदि होते हैं, जो विभिन्न उद्योगों द्वारा एवं स्वचालित वाहनों द्वारा वायु में छोड़े जाते हैं।
7. धातुएं (Metals)- कुछ धातुएं, जैसे- सीसा, निकल, आर्सेनिक, बेरीलियम, टिन, बेनेडियन, टिटेनियम तथा कैडमियम के ठोस कण, द्रव की बूंदें या गैसें हवा में मिल जाते हैं।
8. प्रकाश, रासायनिक पदार्थ (Photo Chemical Produce)- यह स्वचालित वाहनों से उत्सर्जित होकर वायु में मिलते हैं। जैसे-धुआं (smog), PAN, PB2N आदि।
9. विशिष्ट पदार्थ (Particular Matter)- यह पदार्थ पॉवर प्लांट्स, स्टोन क्रशर्स तथा उद्योगों द्वार उड़ाए जाने वाली धूल, ग्रिट आदि होते हैं, जो वायु में मिल जाते हैं और प्रदूषित करते हैं।
10. टोक्सीकेंट्स (Toxicants)- यह रासायनिक पदार्थ अन्य वस्तुओं के साथ वायु में मिल जाते हैं और वायु को प्रदूषित कर देते हैं।
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वायु प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय (Controlling Measures of Air Pollution)- वायु प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए निम्नलिखित विधियां अपनाई जाती हैं-
1. मानव जनसंख्या वृद्धि को रोकने का प्रयास करना चाहिए।
2. नागरिकों या आम जनता को वायु प्रदूषण के कुप्रभावों का ज्ञान कराना चाहिए।
3. धुम्रपान पर नियंत्रण लगा देना चाहिए।
4. कारखानों के चिमनियों की ऊंचाई अधिक रखना चाहिए।
5. कारखानों के चिमनियों में फिल्टरों का उपयोग करना चाहिए।
6. मोटरकारों और स्वचालित वाहनों को ट्यूनिंग करवाना चाहिए ताकि अधजला धुआं बाहर नहीं निकल सकें।
7. अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए।
8. उद्योगों की स्थापना शहरों एवं गांवों से दूर करनी चाहिए।
9. अधिक धुआं देने वाले स्वचालितों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
10. सरकार द्वारा प्रतिबंधात्मक कानून बनाकर उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए।
2. जल प्रदूषण (Water Pollution)
जल ही जीवन है। जल है तो कल है। जल जीवधारियों के लिए प्रकृति में उपलब्ध सर्वाधिक महत्वपूर्ण यौगिक है। हमारे शरीर का लगभग 60 से 80 प्रतिशत भाग जल का बना होता है। हम इस जल को प्रकृति से शुद्ध रूप में प्राप्त करते हैं। आज विश्व की जनसंख्या में लगातार वृद्धि, औद्योगिक, शहरीकरण आदि के कारण शहरों एवं औद्योगिक इकाइयों द्वारा कई प्रकार के हानिकारक पदार्थ जल के साथ बहा दिए जाते हैं, जो नदी, नाले, झरने, तालाब, बांध, झील और समुद्र में पहुंचकर वहां पर उपस्थित जल को प्रदूषित कर देते हैं।
इस प्रकार के भौतिक एवं रासायनिक संगठन में परिवर्तन हो जाता है और वह जीवधारियों के लिए अनुपयोगी हो जाता है। इसे ही जल प्रदूषण कहते हैं।
जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत, कारण एवं प्रभाव (Main Sources Cause and Effects of Water Pollution)- जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत अधोभांति हैं-
1. वाहित मल (Domestic Water and Sewage)- हमारे घरों में बहुत से अपशिष्ट एवं अनुपयोगी पदार्थ होते हैं, जो जल में छोड़ दे जाते हैं, जैसे-मानव मल, कागज, डिटरजेंट्स, साबुन, कपड़ा एवं बर्तन धोया हुआ पानी आदि। ये भूमिगत नालियों द्वारा नदियों, झीलों और तालाबों में पहुंच जाते हैं, जिससे वहां का जल प्रदूषित हो जाता है, जो अनेक प्रकार के बीमारियों को जन्म देते हैं, जैसे- हैजा, टायफाइड, चर्मरोग आदि। इसके साथ-ही-साथ जलीय जीव भी रोग ग्रस्त होकर मर जाते हैं। जैसे-मछली, मगरमच्छ आदि।
2. औद्योगिक बहिस्रावी पदार्थ (Industrial Effluents)- औद्योगिक इकाइयों द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ, वार्निस, तेल, ग्रीस अम्ल आदि पदार्थ बहा दिए जाते हैं, जो नदी, तालाब, झील आदि में पहुंचकर वहां के जल को को प्रदूषित कर देते हैं। इनमें मुख्य प्रदूषक तेल ग्रीस, प्लास्टिक, प्लास्टीसाइजर्स, धात्विक अपशिष्ट, निलंबित ठोस, फीनोलस, टोक्सिंस, अम्ल, लवण, रंग, सायनाइड तथा डी.डी.टी. आदि हैं। कोयले की खानों से निकला H2SO4 भयंकर प्रदूषक होता है। साथ में अन्य धातुएं भी जल में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं, जैसे-तांबा, शीशा, सोडियम पारा आदि।
3. कृषि विसर्जित पदार्थ (Agricultural Discharge)-
कृषि के लिए अनेक प्रकार के उर्वरक तथा कीटनाशक पदार्थों का उपयोग किया जाता है, जो जल में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं।
4. कार्बनिक पदार्थ एवं कीटनाशी (Organic Matter and Pesticides)- इसके अंतर्गत कीटनाशी (Pesticides) अनेक औद्योगिक अपशिष्ट, तेल अथवा अन्य कार्बनिक अपघटित पदार्थ आते हैं। ये जल में पहुंचकर विषैला प्रभाव डालते हैं।
कीटनाशकों में डी.डी.टी. डीलड्रीन, वी.एच.सी., वी.सी.बी.एस. तथा बेंजिन यौगिक आदि हैं। ये भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम कर देते हैं तथा पौधों, पत्तियों, फलों, सब्जियों द्वारा मनुष्य तथा जानवर तक पहुंचकर भोजन द्वारा उनके शरीर में पहुंचते हैं तथा उन्हें रोगी बना देते हैं।
5. रासायनिक उद्योगों, ताप विद्युत-गृहों एवं नाभिकीय ऊर्जा केंद्रों के अपशिष्ट पदार्थ (Wastage)- इनमें से निकले हुए अपशिष्ट पदार्थ, अकार्बनिक रासायनिक पदार्थ, जल में मिलकर मानव के साथ-साथ जलीय जीवों को हानि पहुंचाते हैं। इसके अतिरिक्त ताप (Heat) रेडियोएक्टिव पदार्थ भी प्रमुख प्रदूषक होते हैं। थर्मल एवं न्यूक्लियर पॉवर स्टेशनों से छोड़े गए पानी नदी और झीलों में पहुंचकर जलीय जीवों एवं मनुष्यों को रोगी बनाते हैं। इसे ‘तापीय प्रदूषण’ (Thermal Pollution) कहते हैं।
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जल प्रदूषण का नियंत्रण (Control of Water Pollution)- जल प्रदूषण पर निम्नलिखित उपायों से नियंत्रण किया जा सकता है-
1. वाहित मल को नदियों में छोड़ने के पूर्व कृत्रिम तालाबों में रासायनिक विधि द्वारा उपचारित करना चाहिए।
2. अपमार्जनों का कम-से-कम उपयोग होना चाहिए। केवल साबुन का उपयोग ठीक होता है।
3. कारखानों से निकले हुए अपशिष्ट पदार्थों को नदी, झील एवं तालाबों में नहीं डालना चाहिए।
4. घरेलू अपमार्जकों को आबादी वाले भागों से दूर जलाशयों मे डालना चाहिए।
5. जिन तालाबों का जल पीने का काम आता है, उसमें कपड़े, जानवर आदि नहीं धोने चाहिए।
6. नगरों व कस्बों के सीवेज में मल-मूत्र, कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ तथा जीवाणु होते हैं। इसे आबादी से दूर खुले स्थान में सीवेज को निकाला जा सकता है या फिर इसे सेप्टिक टैंक, ऑक्सीकरण ताल तथा फिल्टर बैड आदि काम में लाए जा सकते हैं।
7. बिजली या ताप गृहों से निकले हुए पानी को स्प्रे पाण्ड या अन्य स्थानों से ठंडा करके पुनः उपयोग में लाया जा सकता है।
वायु जल प्रदूषण नियंत्रण करने में संशोधन (Amendments in Air and Water Acts)- वायु प्रदूषण का निवारण तथा नियंत्रण एक्ट 1981 में संशोधन किया गया है। 1987 में क्रियान्वयन के दौरान आने वाले परेशानियों को हटाने के लिए कार्यान्वित करने वाले एजेंसियों को अधिक अधिकार देने तथा कानून तोड़ने वालों को सख्त जुर्माना लगाने की व्यवस्था की गई है। मुख्य बिंदु यह भी था कि वायु प्रदूषण को परिभाषा संशोधित करके इसे भी शामिल किया जाए। इसमें वायु प्रदूषण का निवारण तथा नियंत्रण संशोधन एक्ट 1987 भी है।
जल प्रदूषण का निवारण तथा नियंत्रण एक्ट 1974 भी 1988 में संशोधित किया गया। महत्वपूर्ण संशोधन कर जल प्रदूषण के निवारण तथा नियंत्रण के लिए केंद्रीय/राज्य बोर्ड को पुनः नाम देना केंद्रीय/राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, क्योंकि बोर्ड वायु प्रदूषण से भी संबंध रखते हैं। बोर्ड को दोषपूर्ण संस्थाओं की जल तथा विद्युत आपूर्ति बंद या रोकने का अधिकार दिया गया। दोषियों के विरुद्ध बोर्ड ने 60 दिनों का नोटिस देने के पश्चात् नागरिक अपराधी केस दर्ज करा सकते हैं। उद्योग की स्थापना के समय भी व्यक्ति को बोर्ड से स्वीकृति लेनी होगी। इस प्रकार जल प्रदूषण का निवारण एवं नियंत्रण संशोधन एक्ट 1988 भी बना।
3. ध्वनि प्रदूषण (Sound Pollution)
इसे शोर प्रदूषण भी कहते हैं। अवांछित ध्वनि (Unwanted Sound) को शोर कहते हैं। आजकल वैज्ञानिक प्रगति के कारण मोटर गाड़ियों, स्वचालित वाहनों, लाउडस्पीकरों, टैक्टरों, कल-कारखानों एवं मशीनों का उपयोग काफी अधिक होने लगा है। ये सभी उपकरण एवं मशीनें काफी आवाज (शोर) करते उत्पन्न करती हैं। मनुष्य की श्रवण क्षमता 80 डेसिबल होती है।
शोर की तीव्रता (Intensity of Noise)- शोर की तीव्रता का मापन डेसिबल की इकाई में किया जाता है। (1 डेसिबल- 1/10 बेल)।
शोर ध्वनि का वह रूप होता है, जिसे हम सहन नहीं कर पाते। मनुष्य 0 डेसिबल तीव्रता की आवाज को सुनने में सक्षम होता है। 25 डेसिबल पर शांति का वातावरण होता है। 80 डेसिबल से अधिक शोर होने पर मनुष्य में अस्वस्थता आ जाती है या बेचैनी होने लगती है तथा 130-140 डेसिबल का शोर अत्यंत पीड़ादायक होता है। इससे अधिक शोर होने पर मनुष्य में बहरा होने का खतरा होता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण व्यक्ति अनिद्रा, सिरदर्द, थकान, हृदय रोग, रक्तचाप आदि का शिकार हो जाता है। किसी व्यक्ति के लगातार 8 घंटे तक 80-90 डेसिबल की ध्वनि में रहने से उसमें बहरापन शुरू हो जाता है।
ध्वनि प्रदूषण के स्रोत (Sources of Noise Pollution)- ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करने वाले प्रमुख स्रोत निम्न हैं-
1. सभी स्वचालित वाहन जैसे-बस, ट्रक, स्कूटर, मोटर साइकिल, ट्रेन आदि।
2. स्वचालित कारखानें- इनमें काम करने वाले कर्मचारी ध्वनि प्रदूषण के शिकार हो जाते हैं। इनमें प्रमुख प्रदूषक-कपड़ा, इस्पात, स्कूटर, मोटर कार, सीमेंट बनाने के कारखाने आदि।
3. वायुयान, राकेट, हेलीकाप्टर, हवाई जहाज, जेट विमान आदि। इनकी उड़ान के समय अत्यधिक ध्वनि उत्पन्न होती है, जिससे जन-जीवन ध्वनि प्रदूषण के शिकार हो जाते हैं।
4. एटम बमों, डायनामाइटों, आतिशबाजी, पटाखे, बंदूकों के चलने एवं युद्ध के दौरान हुए विस्फोटों से ध्वनि प्रदूषण होता है।
5. लाउडस्पीकर, टेलीविजन, अन्य ध्वनि विस्तारक यंत्र भी ध्वनि प्रदूषण के स्रोत हैं।
6. स्वचालित वाहनों में विभिन्न प्रकार के हॉर्न।
7. आटा चक्की, कूलर, एक्जॉस्ट पंखे, राइस मील, मिक्सी, ग्राइंडर आदि भी ध्वनि प्रदूषण के स्रोत हैं।
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Noise Pollution)- ध्वनि प्रदूषण से हमारे शरीर मे निम्नलिखित प्रभाव दिखाई देते हैं-1. अधिक शोर के कारण सिरदर्द, थकान, अनिद्रा, श्रवण क्षमता में कमजोरी, चिड़चिड़ापन, उत्तेजना, आक्रोश आदि रोग उत्पन्न होने लगते हैं।
2. शोर प्रदूषण के कारण उपापचयी प्रक्रियाएं प्रभावी होती हैं। संवेदी एवं तंत्रिका तंत्र कमजोर हो जाता है। मस्तिष्क तनाव ग्रस्त हो जाता है तथा हृदय की धड़कन और रक्तचाप बढ़ जाता है। पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है।
3. एड्रीनल हार्मोन का स्राव भी बढ़ जाता है। धमनियों में कोलेस्ट्रोल का जमाव होने लगता है। जनन क्षमता कम हो जाती है आदि।
4. अत्यधिक तेज ध्वनि से मकानों में दरार आने की संभावना बढ़ जाती है।
ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण (Controlling of Noise Pollution)- ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय हैं-
1. लोगों मे ध्वनि प्रदूषण से होने वाले रोगों से परिचित करा उन्हें जागरूक बनाना चाहिए।
2. कम शोर करने वाले मशीनों-उपकरणों का निर्माण एवं उपयोग किए जाने पर बल देना चाहिए।
3. अधिक ध्वनि उत्पन्न करने वाले मशीनों को ध्वनिरोधी कमरों में लगाना चाहिए तथा कर्मचारियों को ध्वनि अवशोषक तत्वों एवं कर्ण बंदकों का उपयोग करना चाहिए।
4. उद्योगों एवं कारखानों को शहरों या आबादी से दूर स्थापित करना चाहिए।
5. वाहनों में लगे हार्नों को तेज बजाने से रोका जाना चाहिए।
6. शहरों, औद्योगिक इकाइयों एवं सड़कों के किनारे वृक्षारोपण करना चाहिए। ये पौधे भी ध्वनि शोषक का कार्य करके ध्वनि प्रदूषण को कम करते हैं।
7. मशीनों का रख-रखाव सही ढंग से करना चाहिए।
4. मृदा प्रदूषण (Soil Pollution)
मृदा पृथ्वी की सबसे ऊपरी उपजाऊ परत होती है, जिस पर पौधे उगते हैं। पौधों के लिए यह मृदा अत्यधिक आवश्यक होती है, क्योंकि पौधे मृदा से ही जल एवं खनिज लवणों का अवशोषक करते हैं। शहरीकरण, औद्योगीकरण एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण इनके अनुपयोगी पदार्थों ने मृदा को प्रदूषित कर दिया है। इनके कारण मृदा की उपजाऊ शक्ति कम होती जा रही है तथा उसमें रहने वाले जीव-जंतुओं पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। विभिन्न प्रकार के उर्वरक एवं कीटनाशक दवाइयां मृदा को प्रदूषित कर रहे हैं।
मृदा प्रदूषण के प्रमुख स्रोत (Main Sources of Soil Pollution)- मृदा को प्रदूषित करने वाले प्रमुख स्रोत निम्नानुसार हैं-
1. घरेलू एवं औद्योगिक कूड़ा-करकट एवं अपशिष्ट पदार्थ।
2. उर्वरक, कीटनाशक दवाइयां, खरपतवारनाशक, अम्लीय जल वर्षा, खानों से प्राप्त जल आदि।
3. भारी धातुएं जैसे- कैडेमियम, जिंक, निकिल, आर्सेनिक कारखानों से मृदा में मिल जाते हैं।
4. अस्थियां, कागज, पोलीथिन, सड़ा-गला मांस, सड़ा हुआ भोजन, लोहा, लैंड, तांबा, पारा आदि भी मृदा को प्रदूषित करते हैं।
5. खेतों में मल-मूत्र त्यागने के कारम भी मृदा प्रदूषित हो जाती है।
मृदा प्रदूषण पर नियंत्रण (Control Soil Pollution)- मृदा को प्रदूषित होने से बचाने के लिए हमें निम्नलिखित उपाय करने चाहिए-
1. मृत प्राणियों, घर के कूड़ा-करकट, गोबर आदि को दूर गड्ढे में डालकर ढक देना चाहिए। हमें चाहिए कि खेत आदि में शौच कार्य न करें।
2. मकान व भवन को सड़क से कुछ दूरी पर बनाना चाहिए। मृदा अपरदन को रोकने के लिए आस-पास घास एवं छोटे-छोटे पौधे लगाना चाहिए। घरों में साग-सब्जी को उपयोग करने के पहले धो लेना चाहिए।
3. गांवों में गोबर गैस संयंत्र अर्थात् गोबर द्वारा गैस बनाने को प्रोत्साहन देना चाहिए। इससे ईंधन के लिए गैस भी मिलेगी तथा गोबर खाद।
4. ठोस पदार्थ अर्थात् टिन, तांबा, लोहा, कांच आदि को मृदा में नहीं दबाना चाहिए।
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5. रेडियोंधर्मी प्रदूषण (Radioactive Pollution)
ऐसे विशेष गुण वाले तत्व जिन्हें आइसोटोप कहते हैं और रेडियोधर्मिता विकसित करते हैं, का वातावरण में फैल जाना, जिससे मानव जीव-जंतु, वनस्पतियों एवं अन्य पर्यावरणीय घटकों के हानि होने की संभावना रहती है, को नाभिकीय प्रदूषण या ‘रेडियोधर्मी प्रदूषण’ कहते हैं।
रेडियोधर्मी प्रदूषण के स्रोत (Sources of Radioactive Pollution)- रेडियोधर्मी प्रदूषण के स्रोत को हम दो भागों में बांट सकते हैं-
1. प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources) – प्राकृतिक स्रोत के अंतर्गत निम्नलिखित स्रोत आते हैं-
1. आंतरिक किरणें,
2. पर्यावरण (जल, वायु एवं शैल),
3. जीव-जंतु (आंतरिक)।
2. मनुष्य निर्मित स्रोत (Man Made Sources) मानव निर्मित स्रोत के अंतर्गत निम्नलिखित स्रोत आते हैं-
1. रेडियो डायग्नोसिस (Radio Diagnosis) एवं रेडियोथेरेपिक (Radio Therepeutic) उपकरण,
2. नाभिकीय परीक्षण (Nuclear text)
3. नाभिकीय अपशिष्ट (Nuclear Waste)
4. नाभिकीय पदार्थों का अनुसंधान औषधि एवं उद्योग में उपयोग (Use of Radioactive Substances in Research, Medicine and Industry)
रेडियोधर्मी प्रदूषण का प्रभाव- डॉ. रामन्ना (1988) भाभा अनुसंधान केंद्र ने कहा था कि आण्विक ऊर्जा का सदुपयोग किया जाए। ऊर्जा का दुरुपयोग नागासाकी और हिरोशिमा की घटनाएं हैं। रेडियोधर्मी प्रदूषण का प्रभाव तुरंत और दूरगामी होते हैं। तुरंत में तुरंत मृत्यु हो जाती है तथा दूरगामी में आनुवांशिक प्रभाव पड़ते हैं, जिससे असामान्य बच्चों का जन्म तथा विकलांगता होने की संभावना रहती है। इसके प्रभाव से हड्डी के कैंसर भी हो सकते हैं। इसका प्रभाव पेड़-पौधों तथा वनस्पतियों में भी पड़ता है। इसके साथ-ही-साथ समुद्री जीवों पर भी प्रभाव पड़ता है।
रेडियोधर्मी प्रदूषण का नियंत्रण (Control of Radioactive Pollution)- रेडियोधर्मी प्रदूषण को रोकने के निम्नलिखित उपाय हैं-
1. परमाणु ऊर्जा उत्पादक यंत्रों की सुरक्षा करनी चाहिए।
2. परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
3. गाय के गोबर से दीवारों पर पुताई करनी चाहिए।
4. गाय के दूध के उपयोग से रेडियोधर्मी प्रदूषण से बचा जा सकता है।
5. सरकारी संगठनों एवं गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से जनजागरण करना चाहिए।
6. वृक्षारोपण करके रेडियोधर्मिता के प्रभाव से बचा जा सकता है।
7. रेडियोधर्मी पदार्थों का रिसाव सीमा में हो तथा वातावरण में विकिरण की मात्रा कम करनी चाहिए।
6. तापीय प्रदूषण (Thermal Pollution)
ऊर्जा के प्रमुख साधनों में एक ऊर्जा है ताप-ऊर्जा। ताप ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए सामान्यतः कोयले को जलाया जाता है, जिससे उत्पन्न ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल दिया जाता है। लेकिन इस प्रक्रिया में में जब कोयले को जलाया जाता है तो इससे बहुत-सी ऐसे गैसें निकलती हैं, जो वातावरण को प्रदूषित करती हैं। ये गैसें प्रमुख रूप से कार्बन मोनोऑक्साइड, फ्लाइऐश, सल्फर एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड तथा हाइड्रोकार्बन इत्यादि होते हैं, इनका सांद्रण वातावरण में बढ़ता है और प्रदूषण फैलाते हैं, इसे ही ताप प्रदूषण कहते हैं।
ताप प्रदूषण हमारे वातावरण में उपयोग के पश्चात कुछ पदार्थों से ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिसके कारण पर्यावरण का ताप बढ़ जाता है, इसे ही तापीय प्रदूषण कहते हैं। ताप विद्युत संयंत्र सामान्यतः तापीय प्रदूषण के प्रमुख कारण होते हैं।
विद्युत केंद्रों से कोयले की खपत से निकलने वाले प्रदूषण कारक पदार्थ-
1. कार्बन मोनोऑक्साइड- तापीय प्रदूषण के कारण कार्बन मोनोऑक्साइड वायुमंडल में पहुंचकर हानिकारक प्रभाव छोड़ता है, जिसके कारण हाइपोक्सिया (Hypoxia) नामक रोग उत्पन्न होता है।
2. हाइड्रोकार्बन- विभिन्न वाहकों में ईंधन के रूप में उपयोग किए जाने वाले सभी पदार्थों में हाइड्रोकार्बन होते हैं। इनके जलने से वातावरण में गर्म गैसें निकलती हैं, जिससे वातावरण का तापमान बढ़ जाता है। इसका प्रभाव त्वचा पर पड़ता है, जिससे त्वचा रोग एवं त्वचा कैंसर का भय रहता है।
3. प्लाई ऐश- औद्योगिक संस्थानों से निकली हुई गैसों के साथ जले हुए ईंधन इत्यादि के कण होते हैं, जो वायु में उड़ते रहते हैं, इन्हें प्लाई ऐश कहते हैं। ये गर्म होते हैं तथा वातावरण के तापमान को बढ़ा देते हैं, जिससे पेड़-पौधे वनस्पति आदि पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
4. सल्फर एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड- कोयले के जलने से सल्फर डाइऑक्साइड नामक गैस निकलती है। यह गैस कुल उत्सर्जित गैस का 75 प्रतिशत होती है। एक अनुमान के अनुसार पूरे विश्व में प्रतिवर्ष 10 के पावर 9 मिलियन टन सल्फर डाइऑक्साइड वातावरण में पहुंचती है। हमारे देश में एन.टी.पी.सी. ने कोयले का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ाया है। सन् 1950 में 35 मिलियन मिट्रिक टन कोयला उपयोग होता था, जो 2000 में बढ़कर 240 मिलियन टन हो गया। सल्फर डाइऑक्साइड का प्रभाव आंखों एवं श्वसन तंत्र पर पड़ता है, इसके साथ-ही-साथ पुरातात्विक महत्व के अवशेषों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है।
5. एल्डिहाइड्स- तापरहित विद्युत केंद्रों में नाइट्रोजन के ऑक्साइड का भी उत्सर्जन होता है, इनमें नाइट्रस ऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड प्रमुख हैं। ये वातावरण को प्रभावित कर विभिन्न रोगों को जन्म देते हैं।
प्रभाव- ताप प्रदूषण से पर्यावरण, पौधे जीव-जंतु की जैविक क्रियाएं, मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
ताप प्रदूषण को रोकने के उपाय (Measures to Control of Thermel Pollution)- ताप प्रदूषण को रोकने के निम्न उपाय हैं-
1. तापशक्ति केंद्रों से निकलने वाले अनुपयोगी पदार्थों का समुचित उपयोग होना चाहिए।
2. तापशक्ति केंद्रों की गैसों का पुनः अन्य कार्यों में उपयोग होना चाहिए।
3. इन केंद्रों में कार्यरत कर्मचारियों को प्रदूषण की जानकारी देते हुए उससे बचने के उपाय बताना चाहिए।
4. वाहनों में उचित मापदंड के अनुसार ईंधन भरना चाहिए।
7. समुद्रीय प्रदूषण (Marine Pollution)
पृथ्वी का 71 प्रतिशत भाग जल है। कुल जल का 97.25 प्रतिशत भाग समुद्र के रूप में पाया जाता है। इसमें 3.5 प्रतिशत घुलित पदार्थ पाए जाते हैं।
परिभाषा- समुद्र में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे पदार्थों का मिलना, जिसके कारण हानिकारक प्रभाव उत्पन्न हो सके, जिससे मनुष्य जीव-जंतु पर संकट उत्पन्न हो और समुद्र की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़े तो इसे समुद्रीय प्रदूषण कहते हैं।
नदियों द्वारा लाए गए अधिक मात्रा में वाहित मल, कूड़ा-कचरा, कृषिजन्य कचरा, भारी धातुएं, प्लास्टिक पदार्थ, पीड़कनाशी, रेडियोधर्मी पदार्थ, पेट्रोलियम पदार्थ इत्यादि के समुद्र में आने से समद्रीय वातावरण (Marine Atmospher) प्रदूषित हो जाता है, इसी को हम समुद्रीय प्रदूषण (Marine Pollution) कहते हैं।
समुद्रीय प्रदूषण के स्रोत (Source of Marine Pollution)- समुद्रीय प्रदूषण के निम्नलिखित स्रोत हैं-
1. घरेलू अपशिष्ट- नदी, नालों के द्वारा घरेलू अपशिष्ट समुद्र तक पहुंच जाते हैं।
2. औद्योगिक बहिःस्राव- प्रायः सभी उद्योग कार्बनिक या अकार्बनिक पदार्थ, अनुपयोगी डिटरजेंट्स, पेट्रोलियम, कार्बोनेट्स, सायनाइड्स आर्सेनिक, कॉपर, फर्टीलाइजर आदि नदी में छोड़ दिए जाते हैं, जो समुद्र में पहुंच जाते हैं।
3. रेडियोधर्मी कचरा- जहां रेडियोधर्मी स्टेशन हैं, वहां के आस-पास के समुद्र में अनुपयोगी रेडियोधर्मी पदार्थ छोड़ दिए जाते हैं।
4. तेल प्रदूषक- कभी-कभी लापरवाहीवश तेलीय पदार्थ समुद्री रास्ते से ले जाते समय समुद्र तट में आ जाते हैं। कभी-कभी कारखानों से भी अनुपयोगी तेल समुद्र में डाल दिए जाते हैं।
5. कृषिजन्य कचरा- बहुत से कीटनाशक वर्षा के कारण खेतों से नदी में तथा नदी से समुद्र में आ जाते हैं।
समुद्री प्रदूषण से होने वाले प्रभाव- समुद्री प्रदूषण से होने वाले प्रभाव निम्न प्रकार हैं-
1. समुद्री प्रदूषण से समुद्र के जीव-जंतु, समुद्रीय वनस्पतियां प्रभावित होती हैं।
2. कीटनाशकों के समुद्र में आ जाने से जलीय जंतु तथा उनके अंडे प्रभावित होते हैं।
3. तेल के कारण प्रकाश और ऑक्सीजन की कमी से जीव-जंतु, वनस्पतियों में बुरा असर पड़ता है। ऐसा अनुमान है कि 50000 से 200000 समुद्री जंतु तेल के कारण मर जाते हैं।
समुद्रीय प्रदूषण की रोकथाम- समुद्री प्रदूषण की रोकथाम के निम्न उपाय हैं-
1. घरेलू अपशिष्ट, औद्योगिक बहिःस्राव, रेडियोधर्मी पदार्थ आदि को किसी भी प्रकार से समुद्र में नहीं जाना चाहिए। इनकी व्यवस्था पास ही किसी दूरी पर कर देनी चाहिए।
2. टैंकरों, पाइपलाइनों, तेल परिवहनों आदि से रिसाव को रोकना चाहिए.
3. कृषिजन्य कचरा जो रासायनिक पदार्थ होते हैं, उन्हें नदी के बहाव के पूर्व रोक देना चाहिए, ताकि वे समुद्र तक न पहुंच सकें। आदि।
औद्योगिककरण, शहरीकरण अवैध खनन, विभिन्न स्वचालित वाहनों, कल-कारखानों, परमाणु परीक्षणों आदि के कारण आज पूरा पर्यावरण प्रदूषित हो गया है। इसका इतना बुरा प्रभाव पड़ा है कि संपूर्ण विश्व बीमार है। पर्यावरण की सुरक्षा आज की बड़ी समस्या है। इसे सुलझाना हम सब की जिम्मेदारी है। इसे हमें प्रथम प्राथमिकता प्रदान करना चाहिए तथा पर्यावरण की सुरक्षा में सहयोग देना चाहिए।
“स्वच्छ पर्यावरण आज की जरूरत है, पर्यावरण निरोग तो हम निरोग।”
राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षक (सेवानिवृत्त)
एम.ए. (अर्थशास्त्र, हिंदी),
पी-एच.डी. (हिंदी), डी.लिट्. (विद्यासागर हिंदी)
गनियारी, बिलासपुर (छ.ग.)