पर्यावरण प्रदूषण का दिव्यांगजनों खतरे ज्यादा
पर्यावरण प्रदूषण का दिव्यांगजनों खतरे ज्यादा

पर्यावरण प्रदूषण का दिव्यांगजनों पर खतरा ज्यादा

विकलांगता और सतत विकास लक्ष्य पर संयुक्त राष्ट्र की पहली रिपोर्ट-2018 दर्शाती है कि दिव्यांग अधिकांश सतत विकास लक्ष्यों के संबंध में पिछड़े हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, शिक्षा तक पहुंच की कमी, मौजूदा स्वास्थ्य स्थितियों और सुरक्षित रूप से निकलने में कठिनाई के कारण जलवायविक आपदाओं के मामले में दिव्यांगों को अधिक खतरा होता है। वास्तव में आपदा संबंधी पर्याप्त ज्ञान होने से चरम मौसमी घटनाओं के खिलाफ जीवित रहने के बेहतर मौके तलाशने में आसानी होती है
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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त ने संयुक्त राष्ट्र की जलवायु कार्रवाई के संदर्भ में विकलांगता अधिकारों पर जारी पहली रिपोर्ट के बारे में कहा है कि दिव्यांगों पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का खतरा बढ़ गया है जिसमें उनके स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, पेयजल, स्वच्छता और आजीविका के खतरे भी शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन समाज के सभी तबकों को समान रूप से प्रभावित करता है, लेकिन जलवायविक आपदा के दौरान और उसके पश्चात दिव्यांग इसके प्रभावों के प्रति सबसे अधिक असुरक्षित महसूस करते हैं। भेदभाव और हाशियाकृत रहने तथा कुछ सामाजिक और आर्थिक कारकों के कारण भी दिव्यांग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दूसरों की तुलना में अलग और अधिक तीव्रता से अनुभव करते हैं। अचानक आने वाली आपदाओं के प्रति वे त्वरित प्रतिक्रिया नहीं कर पाते, जिससे यह संकट और भी व्यापक हो जाता है। अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य पत्रिका 'द लैंसेट' ने भी चेताया है कि चरम मौसमी घटनाओं के बढ़ते जोखिम के कारण जलवायु परिवर्तन सीधे और असमान रूप से दिव्यांगों के स्वास्थ्य के अधिकार को खतरे में डाल रहा है। ऐसे में जरूरी है कि जलवायु संकट के लिए बनाई जाने वाली योजनाओं को दिव्यांग-उन्मुख बनाने की पहल की जाए।

विकलांगता और सतत विकास लक्ष्य पर संयुक्त राष्ट्र की पहली रिपोर्ट-2018 दर्शाती है कि दिव्यांग अधिकांश सतत विकास लक्ष्यों के संबंध में पिछड़े हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, शिक्षा तक पहुंच की कमी, मौजूदा स्वास्थ्य स्थितियों और सुरक्षित रूप से निकलने में कठिनाई के कारण जलवायविक आपदाओं के मामले में दिव्यांगों को अधिक खतरा होता है। वास्तव में आपदा संबंधी पर्याप्त ज्ञान होने से चरम मौसमी घटनाओं के खिलाफ जीवित रहने के बेहतर मौके तलाशने में आसानी होती है, लेकिन दिव्यांगों के बीच शिक्षा के निम्न स्तर के कारण ऐसी स्थिति में वे आसानी से निर्णय नहीं ले पाते। दूसरी तरफ सीमित गतिशीलता और कमजोर इंद्रियों के कारण दिव्यांगों को तूफान, बाढ़ और चक्रवात जैसी विनाशकारी घटनाओं से बाहर निकलने में कठिनाई होती है। आम लोगों की तुलना में जलवायु परिवर्तन का दिव्यांगों पर अधिक प्रभाव पड़ता है क्योंकि ऐसी स्थिति में न तो वे त्वरित प्रतिक्रिया कर पाते हैं, और न ही कोई मनचाही कार्रवाई कर पाते हैं। इस तरह उनके स्वास्थ्य या जीवन की हानि होती है।

जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाओं के आने से जबरन विस्थापन का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में भी दिव्यांगों को बढ़े हुए सुरक्षा जोखिमों और समावेशन में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। आईएफआरडी के मुताबिक, 2050 तक जलवायु संबंधी घटनाओं के कारण लगभग 1.8 करोड़ दिव्यांगों के विस्थापित होने की आशंका है। जलवायु आपात स्थितियों में दिव्यांगों को सुगम परिवहन और आपातकालीन आश्रयों तक पहुंचने में  परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 'नेचर' पत्रिका के अनुसार जलवायु आपात स्थितियों के दौरान गैर- दिव्यांग लोगों की तुलना में दिव्यांग लोगों की प्राकृतिक आपदा के बाद मरने की संभावना दो से चार गुना अधिक होती है। वैसी परिस्थिति में वे सहायता के लिए दूसरों पर आश्रित रहते हैं। मदद के अभाव में कई बार उनकी मुसीबतें बढ़ जाती हैं। 

अंतरराष्ट्रीय विकलांगता गठबंधन' के अनुसार, दुर्गम आपदा तैयारी योजनाओं, प्रणालीगत भेदभावों और व्यापक गरीबी के कारण दिव्यांग लोग राहत और बचाव कार्यों में पीछे रह जाते हैं। वहीं जब बाढ़, चक्रवात या प्रचंड गर्मी जैसी आपदाएं आती हैं, तो दिव्यांगों को अक्सर सहायता योजनाओं से वंचित कर दिया जाता है, जो उन्हें पहले से मिल रही होती हैं।दूसरी तरफ विडंबना यह है कि जब भी जलवायु संकट की बात आती है, तो नीति निर्धारण करते समय दिव्यांग समुदाय को दुनिया भर की सरकारों द्वारा नजरअंदाज कर दिया जाता है। निर्णयकर्ता अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं में दिव्यांगों पर पूरी तरह विचार ही नहीं करते। पेरिस जलवायु समझौते में शामिल लगभग 200 देशों में से केवल 45 देशों ने जलवायु अनुकूलन के लिए किसी भी राष्ट्रीय नीतियों या कार्यक्रमों में दिव्यांगों का उल्लेख किया है। यह आलम तब है, जबकि 2015 के पेरिस समझौते की प्रस्तावना में दिव्यांगों को जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित समूहों में से एक के रूप में शामिल किया गया था। इससे भी शर्मनाक बात यह है कि नवम्बर, 2021 में ग्लासगो में आयोजित कॉप-26 में भाग लेने आई इस्राइल की ऊर्जा और जल संसाधन मंत्री कैरिन एल्हरार व्हीलचेयर की सुविधा की कमी के कारण मुख्य आयोजन स्थल तक नहीं पहुंच पाई थीं।

बहरहाल, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने की योजना बनाते समय दिव्यांगों की जरूरतों के हिसाब से प्रावधान करना जरूरी हो जाता है। ऐसा न होने से पहले से ही उपेक्षित वह तबका जलवायु आपदा के समय भी खुद को और भी उपेक्षित और लाचार पाता है। दुनिया भर में तकरीबन एक अरब लोग विकलांगता के साथ जी रहे हैं। जलवायु संकट से कुल आबादी के 15 प्रतिशत इस असुरक्षित तबके को सुरक्षा प्रदान करने के लिए दिव्यांग- समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। दिव्यांग समुदाय को शिक्षित प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है, ताकि जलवायु संबंधी आपदा आने पर वे उचित प्रतिक्रिया कर सके। दिव्यांगों को अक्सर सूचना और संसाधनों तक पहुंचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए इसे भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है।

लेखक सुधीर कुमार बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में सीनियर रिसर्चर हैं।

स्रोत -

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org