Sai river
Sai river

सामाजिक एवं धार्मिक महत्त्व की सई नदी पर संकट

Published on
4 min read

उत्तर प्रदेश की प्रमुख नदियों में सई नदी का नाम प्रमुख है। हरदोई जिले के भिजवान झील से निकलकर यह नदी जौनपुर के राजघाट में गोमती नदी से मिल जाती है। हरदोई, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़ और जौनपुर से गुजरते हुए 715 किलोमीटर पर इस नदी की यात्रा समाप्त होती है। सई गोमती नदी की मुख्य सहायक नदी है।

रायबरेली में सई में कतवारा नैया, महाराजगंज नैया, नसीराबाद नैया, बसदा, शोभ तथा प्रतापगढ़ में भैंसरा, लोनी, सकरनी और बकुलाही जैसी छोटी नदियाँ मिलती हैं। सई की प्रमुख सहायक नदियों में बकुलाही नदी का नाम शामिल है। जिसका प्रतापगढ़ में सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्त्व है।

कई गाँव सई और बकुलाही नदी के पानी को ही कृषि और पेयजल के रूप में प्रयोग करते हैं। बकुलाही रायबरेली, प्रतापगढ़ व इलाहाबाद में बहती है। लोनी और सकरनी जैसी छोटी नदियाँ सई की सहायक धाराएँ हैं। लेकिन यह नदी आज शहरों से निकलने वाले गन्दे नालों की वजह से स्वयं गन्दा नाला में तब्दील हो गई है।

लम्बे समय से स्थानीय नागरिक और बुद्धिजीवी इसके अस्तित्व को बचाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन शासन-प्रशासन की उदासीनता की वजह से नागरिकों का प्रयास रंग नहीं ला रहा है।

सई नदी का पौराणिक महत्त्व है। गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस में इस नदी का जिक्र है। सई को अयोध्या के निकट बहने वाली नदी कहा गया है। रामचरित मानस में भगवान राम द्वारा सई नदी के किनारे पूजा-अर्चना करने का जिक्र है। इस नदी के किनारे आज भी स्थानीय महत्त्व के कई तीर्थ स्थल हैं।

लेकिन नदी का पानी दिनोंदिन प्रदूषित होता जा रहा है। चार जिलों के सौ से अधिक नाले सई नदी में आकर गिरते हैं। शहरों की गन्दगी नदी के पानी को प्रदूषित कर रहा है। इसमें हरदोई के 18, प्रतापगढ़ के 24, रायबरेली के 39 और जौनपुर के 13 नाले शामिल हैं।

कई जिलों के चीनी मिलों का गन्दा कचरा भी इस नदी के पानी को प्रदूषित कर रहे हैं। प्रदूषण फैलाने में रायबरेली जिले का अहम स्थान है। यहाँ की कई बड़ी फ़ैक्टरी के अपशिष्ट सई के जल में जहर घोल रहे हैं। प्रतापगढ़ शहर में सई का पानी एकदम काला हो गया है।

कुछ सालों पहले प्रतापगढ़ शहर में सई के जल का परीक्षण करने पर घुलित ऑक्सीजन की मात्रा 3.5 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई थी। इसी तरह बॉयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड 38.6 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई। जबकि सामान्य जन में इसकी मात्रा दो से ढाई मिलीग्राम प्रतिलीटर होनी चाहिए। केमिकल ऑक्सीजन डिमांड भी 74.8 मिलीग्रम प्रतिलीटर मिली। तब से सई में बहुत पानी बह चुका और नदी में मिलने वाले गन्दे नालों की संख्या भी काफी बढ़ गई है।

दिनोंदिन सई नदी के जल में प्रदूषण के मिलने से जल गन्दा होता जा रहा है और जलीय जीवों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया है। चिकित्सकों की माने तो ऐसे जल में पल रही मछलियों के सेवन से लीवर, किडनी व कैंसर की बीमारियों का खतरा रहता है। गोमती की सहायक यह नदी अब गन्दा नाला बन चुकी है।

इलाहाबाद के प्रो. डॉ. दीनानाथ शुक्ल का कहना है कि गन्दे नालों के साथ ही फ़ैक्टरी का रासायनिक जल सई को जहरीला बना रहा है। इस पर तत्काल रोक लगने पर ही नदी के अस्तित्व को बचाया जा सकता है।

सई नदी का धार्मिक महत्त्व है। इसके कारण भी यह नदी समस्या से जूझ रही है। नदी के किनारे कई छोटे-छोटे मन्दिर स्थित है। जिस पर साल भर में कई अवसरों पर मेले का आयोजन होता है। अब स्वाभाविक है कि नदी के किनारे भीड़ बढ़ने से नदी में गन्दगी भी बढ़ेगी।

ग्रामीण अंचलों के लिये यह नदी जीवनदायिनी भी है। लेकिन गन्दगी और प्रदूषण की शिकार इस नदी का वजूद अब खतरे में पड़ता जा रहा है। शासन-प्रशासन से तमाम शिकायतों के बाद भी जब कोई कार्रवाई नहीं हुई कुछ समय पहले स्थानीय लोगों ने ही इस नदी को साफ-सुथरा करने का बीड़ा उठाया। सिटिजन जर्नलिस्ट शैलेन्द्र मिश्र इस नदी को अपने पुराने वजूद में लाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह कोशिश ऊँट के मुँह में जीरा के समान है।

नाले में बदलती जा रही सई नदी कभी लोगों की धार्मिक आस्था का केन्द्र थी। पुराणों में इस बात का जिक्र है कि जब भगवान राम वनवास जा रहे थे, तब उन्होंने इस नदी के तट पर विश्राम किया था। यूपी के हरदोई से निकल कर सई नदी रायबरेली, प्रतापगढ़ होते हुए जौनपुर में गोमती नदी में मिल जाती है। सिर्फ प्रतापगढ़ में ही ये 200 गाँवों से ज्यादा लोगों को सीधे प्रभावित करती है।

प्रतापगढ़ में सिंचाई के लिये नदी के पानी का इस्तेमाल होता ही है, जानवरों को भी लोग यही पानी पिलाया करते हैं। इसके अलावा घर के और कामों में भी ये पानी इस्तेमाल होता रहा है। लेकिन अब इस पानी को पीने से जानवरों की मौत तक हो जा रही है।

कई जिलों के प्रबुद्ध नागरिक चाहते हैं कि यह नदी फिर अपने पुराने रंग में बहे और लोगों को जीवन दे। इसके लिये उन्होंने कई बार स्थानीय प्रशासन से शिकायत की, पर इसका कोई असर नहीं हुआ। फिर भी स्थानीय स्तर पर संघर्ष कर रहे नागरिक हार मानने के मूड में नहीं हैं। वे अफसरों पर दबाव बनाए हुए हैं और अपने स्तर पर भी नदी की सफाई के रास्ते तलाश कर रहे हैं।

नदी की गन्दगी को देखते हुए शहर के कुछ लोगों ने बैठकें कीं और तय किया कि नदी को बचाने के लिये नागरिकों को खुद ही कदम उठाने होंगे। कुछ समय पहले शहर के लोग नदी के किनारे जमा होने लगे और सब साफ-सफाई के काम में जुट गए। नदी की सफाई का माहौल बनाने के लिये पूरे शहर में रैली भी निकाली गई।

नदी साफ करने के साथ-साथ नदी के आस-पास के लोगों से सम्पर्क कर नदी में कूड़ा करकट और घर का कचरा न फेंकने की अपील भी की गई। इसके लिये शहर में पर्चे बाँटे गए। फिलहाल नदी के एक बड़े हिस्से की साफ-सफाई की जा चुकी है। श्रमदान को बढ़ावा देने के लिये 11 हजार दीप जलाकर गंगा दशहरा का आयोजन किया गया।

इस आयोजन में सिर्फ शहर से नहीं बल्कि जिले भर से बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया और सई नदी को प्रदूषण मुक्त करने का संकल्प दोहराया। लेकिन स्थानीय स्तर पर यह प्रयास रंग नहीं ला रहा है। क्योंकि रायबरेली के फ़ैक्टरियों से निकलने वाले गन्दे पानी का नदी में गिरना जारी है।
 

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org