सच्चाई को स्वीकारना होगा

Published on
4 min read

1. इस समस्या के रूप और प्रदूषण के विस्तार- से हमें इसके समाधान के बारे में क्या पता चलता है?

आर्सेनिक और सरकार जैसे दो कपटी निमित्तों से जूझते हुए एक बात साफ जाहिर हो जाती है- हमें युक्तिमूलक समाधान ढूँढना होगा। सरकार के लिए अति आवश्यक है कि वह प्रदूषित इलाकों की पहचान बनाए, न कि इसका दावा करती रहे कि यह समस्या सिर्फ पश्चिम बंगाल तक सीमित है।

आर्सेनिक का व्यापक रूप से विस्तार हुआ है, मगर यह एक इलाके में बिखरा हुआ भी मिल सकता है। एक ही इलाके में जहाँ एक हैंडपम्प प्रदूषण-मुक्त हो सकता है, वहीं दूसरे में भारी मात्रा में आर्सेनिक प्राप्त हो सकता है। एक गाँव जहाँ जहर की चपेट में है, वहीं पड़ोसी गाँव पूरी तरह से सुरक्षित हो सकता है। गंगा-ब्रह्मपुत्र के घाटी में आर्सेनिक की खोज सुखी घास में एक सुई खोजने के बराबर ही मुश्किल है। मगर हमें तो यह खोज जारी रखना होगा।

अगर हम मानते हैं कि इस प्रदूषण का जड़ मानव है, तो प्रदूषण का विस्तार संदूषक तत्वों के व्यवहार पर निर्भर करेगा। प्राकृतिक आर्सेनिक की कल्पना के अनुसार यह विस्तार हिमालय की नदियों के आस-पास होगा। नेपाल के तराई क्षेत्र से बंगाल-बांग्लादेश डेल्टा तक। मगर इस विस्तार में आर्सेनिक की मात्रा एक समान नहीं भी हो सकती है। जादवपुर विश्वविद्यालय के दिपांकर चक्रवर्ती कहते हैंः

“गंगा का सारा मैदान समान रूप से प्रभावित नहीं हो सकता है...।”

प्रश्न यह है कि प्राकृतिक आर्सेनिक कहाँ और कैसे बाहर आ निकलेगा। लघुकरण परिकल्पना के अनुसार आर्सेनिक प्राकृतिक रूप से ही बाहर आएगा। मगर प्रश्न यह भी है कि क्या भूजल निष्कर्षण की वजह से भूगर्भ में ऑक्सीजन घुसने से इस प्राकृतिक प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है?

भारत में पीने के पानी का मुख्य स्रोत भूजल ही है। मगर इस भूजल के व्यवहार पर कोई लगाम नहीं है, न ही इसके अप-व्यवहार पर कोई रोक। बलिया और उसके जैसे अन्य संदूषित इलाकों की त्रासदी एक अनजाने सम्पदा की कहानी है। एक ऐसी संपदा जो भूगर्भ में समाई हुई है, और जिसका अविराम निष्कर्षण किया जा रहा है। जानबूझकर पानी को विष में बदलने की इस प्रथा का अन्त होना जरूरी है।

2. जाहिर है कि माॅनीटर करना बहुत ही जरूरी है। मगर सटीक परिणाम पाने के लिए किस तरह से माॅनीटर किया जाना चाहिए?


आर्सेनिक के इस अनर्थ को नकारने से हमें कुछ नहीं मिलेगा। यह एक मानवीय त्रासदी है और इसके लिए जरूरत है एक दृढ़बद्ध प्रतिक्रिया की।

भारत को चाहिए एक देशव्यापी माॅनीटरिंग परियोजना, जिसका कार्यान्वयन सही तरीके से हो। यह उस तरह से नहीं किया जा सकता जैसा कि सेन्ट्रल ग्राउन्डवाटर बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) ने अपनी आर्सेनिक संदूषण सर्वेक्षण में किया, इस सर्वेक्षण के परिणामों पर पर्दा डाल दिया गया। यह उस तरह से भी नहीं किया जा सकता जैसा कि बलिया में पानी की जाँच की गई, जिसमें प्रयोगशाला को गाँवों से भेजे गए नमूने बिल्कुल ‘साफ’ पाए गए।

माॅनीटरिंग का एक उद्देश्य होना चाहिए, लोग क्यों मर रहे हैं, इसका जवाब ढूँढ़ना। अगर यह आर्सेनिक नहीं है, तो उनकी बीमारी का क्या कारण है? आर्सेनिक जाँच की प्रणाली को सरकारी संस्थाओं की छल-कपट और उदासीनता का शिकार नहीं बनने देना चाहिए। इन संस्थाओं की जिम्मेदारी होगी समस्या के अनुपात का अनुमान लगाना। इसके लिए यह ध्यान में रखना होगा कि कितने लोग आक्रांत हैं, और कितने आक्रांत हो सकते हैं। यह माॅनीटरिंग लोगों के साथ मिलकर, और उनके लिए, किया जाना चाहिए।

इसके अलावा, सरकार को जिला-स्तर पर प्रयोगशालाओं की स्थापना करनी चाहिए, जहाँ आर्सेनिक की जाँच की जा सके।

“अगर देशव्यापी मानचित्रण करना है, तो इसमें पहला कदम होगा आधुनिकतम तकनीकों और उपकरण से लैस ज्यादा से ज्यादा प्रयोगशालाओं की स्थापना। मौजूदा हालात में, देशव्यापी मानचित्रण करने में 10 साल लगेंगे। इसी बीच, आर्सेनिक हजारों की मौत का कारण बनता रहेगा।”

ऐसा कहते हैं ‘पाॅल डेवेरिल, डायरेक्टर चाईल्ट हेल्थ प्रोग्राम, युनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रन्स फंड’।

3. क्या भारत इस प्रकार की माॅनीटरिंग कर सकता है?

“आर्सेनिक की जाँच यू.पी. जल निगम के नियमित जल माॅनीटरिंग प्रक्रिया में शामिल जरूर है, मगर हम इसकी माॅनीटरिंग नहीं करते क्योंकि यह एक बड़ी ही थकाने वाली प्रक्रिया है। हमारी प्रादेशिक प्रयोगशालाओं में ऐसी जाँच की कोई सुविधा नहीं उपलब्ध है। हम तभी जाँच करते हैं जब हमें संदूषण के बारे में पता चलता है। अगर हम यह जानते हैं कि इस क्षेत्र में आर्सेनिक नहीं हो सकता, तो इसकेलिए जाँच की क्या आवश्यकता है ?”

यह कहना है यू. पी. जल निगम के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर एस. आर. शर्मा का।

4. क्या हमारी वर्तमान परियोजनाओं में से किसी से हमें सीख मिल सकती है?

5. गहरे ट्यूबवेलों का उत्खनन-क्या यह एक समाधान हो सकता है ?

6. तो फिर इसका समाधान क्या है?

7. मगर क्या ये जन-अभियान सार्थक रहे हैं?

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org