वायु प्रदूषण की वार्षिक आपदा,समन्वित प्रयास से ही सुधरेंगे हालात
वायु प्रदूषण की वार्षिक आपदा,समन्वित प्रयास से ही सुधरेंगे हालात

वायु प्रदूषण की वार्षिक आपदा,समन्वित प्रयास से ही सुधरेंगे हालात

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण से पाँच वर्ष तक की उम्र के बच्चों में निमोनिया ज्यादा हो रहा है जो उनकी मौत का बड़ा कारण है। डाक्टरों का कहना है कि बच्चों में ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है, इसलिए सांस लेने की गति भी तेज होती है।
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बीतें वर्षों की तरह बरसात का मौसम बीतने और सर्दियों के आगमन की शुरुआत के साथ ही वायु प्रदूषण का खतरा भारत में मडराने लगा है। दिल्ली और आसपास के इलाकों की हवा में जहर घुल चुका है। हवा सुरक्षित स्तर से 32 गुना अधिक तक जहरीली हो चुकी है। अधिकतर क्षेत्रों का वायु गुणवत्ता सूचकांक 4 00 से ज्यादा है। दिल्ली का प्रदूषण अब घातक हो रहा है। जानकार बता रहे हैं कि पराली जलाने के साथ-साथ मौसमी स्थितियों की वजह से यह  खतरनाक स्थिति निर्मित हुई है। वायु  प्रदूषण से बचाव और उससे उत्पन्न खतरे को लेकर चेतने की जरूरत इसलिए है क्योंकि अब इसका दुष्प्रभाव हमारी अगली पीढ़ी तक पहुंच रहा है। एक अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण चीन की तुलना में भारत में 5 गुना बच्चों की मौत हो रही है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण से पाँच वर्ष तक की उम्र के बच्चों में निमोनिया ज्यादा हो रहा है जो उनकी मौत का बड़ा कारण है। डाक्टरों का कहना है कि बच्चों में ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है, इसलिए सांस लेने की गति भी तेज होती है। ऐसे में उनके शरीर में ऑक्सीजन के साथ प्रदूषित कण भी पहुंचकर उन्हें बीमार बनाते हैं। प्रति एक हजार में वायु प्रदूषण से मरने वाले बच्चों की दर हमारे यहां बहुत भयावह है भारत- एक हजार में 48  बच्चे, दक्षिण अफ्रीका एक हजार में 40.5  बच्चे, ब्राजील एक हजार में 16.4  बच्चे, चीन- एक हजार में  10.७  बच्चे वायु प्रदूषण के कारण असमय काल कलवित हो जाते हैं। बच्चों के फेफड़े विकसित हो रहे होते हैं, इसलिए ये प्रदूषण से ज्यादा प्रभावित होते है।  फेफड़े कमजोर होने पर निमोनिया का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। वजन के अनुपात में बच्चे वयस्कों की तुलना में ज्यादा  ऑक्सीजन लेते हैं। कई बार मुंह से सांस लेने पर सूक्ष्म विषाक्त कण फेफड़े के अंदर तक दाखिल हो जाते हैं। कुल मिलाकर प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिये एक बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा है। उसके बहुत से कारण हैं। हवा में प्रदूषण का कारण पराली जलाने के साथ ही उड़ती हुई धूल भी है। कारखानों के परिचालन, कूड़े या पराली की आग से तमाम किस्म के हानिकारक कण हवा में दाखिल हो जाते हैं, जिनसे पर्यावरण में प्रदूषण फैलता रहता है। जब आग लगती है तो प्रदूषक तत्व हवा में शामिल होकर प्रदूषण फैलाते हैं। दूसरा सबसे बड़ा कारण आबादी का बढ़ना और लोगों का खाने-पीने और आने-जाने के लिये साधन उपलब्ध करवाना है जिसकी वजह से स्कूटर कारो और उनके उद्योगों का बढ़ना, थर्मल पावर प्लांट का बढ़ना, प्राकृतिक पर्यावरण में बदलाव का होना है।

जहाँ पर वायु को प्रदूषित करने वाले प्रदूषक ज्यादा हो जाते हैं, वहां पर आंखों में जलन, छाती में जकड़न और खांसी आना एक आम बात है। कुछ लोग इसको महसूस करते हैं और कुछ लोग इसको महसूस नहीं करते लेकिन इसकी वजह से साँस फूलने लगती है। एनजाइना  (एक हृदयरोग) या अस्थमा (फेफड़ों का एक रोग) या अचानक स्वास्थ्य खराब होना भी वायु प्रदूषण की निशानी है। जैसे-जैसे वायु में प्रदूषण खत्म होने लगता है स्वास्थ्य ठीक हो जाता है। कुछ लोग बहुत ही संवेदनशील होते हैं जिनके ऊपर वायु प्रदूषण का प्रभाव बहुत तेज़ और जल्दी हो जाता है और कुछ लोगों पर अधिक देर से होता है। बच्चे, बड़ों की तुलना में अधिक नाजुक होते हैं इसलिये उनके ऊपर वायु प्रदूषण का प्रभाव अधिक पड़ता है। और वो बीमार पड़ जाते हैं। जिसकी वजह से बच्चों में कई बीमारियों हो जाती हैं। अधिक वायु प्रदूषण के समय बच्चों को घरों में ही रखना चाहिए, जिससे उनको वायु प्रदूषण से बचाया जा सके।  

वायु प्रदूषण ओजोन परत के लिए भी खतरा बन गया है। ओजोन लेयर वायुमंडल में समताप मंडल की सबसे ऊपरी परत है। यह एक खास और अहम गैस है। इसका काम सूरज की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को भूमि की सतह पर आने से रोकना है। नाइट्रोजन ऑक्साइड की वजह से धुंध और अम्लीय वर्षा होती है। यह गैस पेट्रोल डीजल और कोयला के जलने से पैदा होती है। इसकी वजह से फेफड़ों को हानि पहुंचती है और सांस लेने में परेशानी होती है। इसी तरह जबकोयला को धर्मल पावर प्लान्ट में जलाया जाता है तो उससे जो गैस निकलती है वो 'सल्फर डाइ ऑक्साइड गैस होती है। धातु को गलाने और कागज को तैयार करने में निकलने वाली गैसों में भी 'सल्फर डाइ ऑक्साइड होती है। यह गैस धुंध पैदा करने और अम्लीय वर्षा में बहुत ज्यादा सहायक है। सल्फर डाइ ऑक्साइड की वजह सेफेफड़ों की बीमारियां हो जाती हैं। 

पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रदेश एवं केंद्र सरकारों को ऐसी नीतियां बनानी होगी जिससे हमारी अधिकाधिक कामकाजी आबादी के आवास और कार्यस्थल में अधिक दूरी न रहे। अभी होता यह है कि व्यक्ति रहता तो किसी शहर के एक कोने में है, लेकिन उसका कार्यस्थल शहर के दूसरेकोने में होता है। इसका परिणाम आर्थिक रूप से भी भुगतना पड़ता है और पर्यावरणीय रूप से भी अब सूचना तकनीक के आ जाने से यह सम्भव भी है कि ज्यादा से ज्यादा लोग अपने घरों से ही काम करें। कोरोना काल में मजबूरीवश वर्क काम होम की जो व्यवस्था अपनानी पड़ी, उसे हमें सामान्य स्थितियों में बरकरार रखने और बढ़ावा देने की जरूरत है। इससे लोगों का आने-जाने का खर्च भी बचेगा और वायु में प्रदूषण भी नहीं बढ़ेगा। आने जाने में जो वक्त लगता है उसका इस्तेमाल वे लोग दूसरे कामों में कर सकते हैं।

वायु प्रदूषण का स्तर घटाने के लिए हमें अधिक से अधिक साइकिल का इस्तेमाल करने की जरूरत है। यदि गंतव्य तक साइकिल से पहुंचना व्यावहारिक न हो तो उस दशा में सार्वजनिक परिवहन का उपयोग किया जाना चाहिए। बहुत से लोग बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए निजी वाहन का प्रयोग करते हैं, उचित होगा कि उनको स्कूल ट्रांसपोर्ट में जाने के लिये प्रोत्साहित करें। अपने घर के लोगों को कारपूल बनाने के लिये कहें जिससे कि वो एक ही कार में बैठकर कार्यालय जायें। इससे ईंधन भी बचेगा और प्रदूषण भी कम होगा। अपने घरों के आस-पास पेड़-पौधों की देखभाल ठीक से करें। जब जरूरत न हो बिजली का इस्तेमाल न करें। आपके बगीचे में सूखी पत्तियाँ हो तो उन्हें जलाएँ नहीं, बल्कि उसकी खाद बनायें। अपने वाहन का प्रदूषण उत्सर्जन हर तीन महीने के अन्तरान पर चेक करवाएं। केवल सीसामुक्त पेट्रोल का इस्तेमाल करें। वर्तमान स्थिति को देखते हुए सबसे जरूरी सलाह यह कि बाहर के मुकाबले घरों में प्रदूषण का प्रभाव कम होता है इसलिये जब प्रदूषण अधिक हो तो घरों के अन्दर चले जाएं।

वायु प्रदूषण की इस आपदा से मुकाबला करना हम सबकी साझी जिम्मेदारी है। इसमें अग्रणी भूमिका तो सरकारों को ही निभानी है, लेकिन सामाजिक एवं व्यक्तिगत प्रयासों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। सबकी सामूहिक भागीदारी एवं समन्वय के जरिए ही प्रत्येक वर्ष एक विशेष समयकाल में देश की राजधानी को गैस चैंबर में बदल देने वाली इस समस्या का समाधान संभव है। साथ ही हमें इस बात पर भी विचार करना होगा कि अनियोजित एवं प्राकृतिक संसाधनों के अमर्यादित दोहन से अर्जित विकास का वर्तमान मॉडल हमारे सम्पूर्ण परिवेश को जिस तरह प्रदूषित कर रहा है, उसका समाधान कैसे निकाला जाए। क्योंकि समस्या केवल वायु प्रदूषण तक सीमित नहीं है। आने वाले दिनों में छठ पर्व के अवसर पर पूरी आशंका है कि व्रती महिलाओं को झाग से भरी नदियों के किनारे धार्मिक अनुष्ठान करने पर फिर से विवश होना पड़े। इतना ही नहीं, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण हमारी मिट्टी भी प्रदूषण का शिकार होकर अपनी उर्वर क्षमता गंवा रही है। ऐसे में आरोप-प्रत्यारोप से बचते हुए एवं दीपावली के पटाखों पर पूरा ठीकरा मढ़ने के बजाए हमारा ध्यान केवल अपने प्राकृतिक परिवेश की दशा सुधारने पर केंद्रित रखना होगा। अन्यथा वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ हमारी आने वाली पीढ़ियों का जीवन भी संकटग्रस्त होता जाएगा।

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