हिंडन नदी प्रदूषित क्यों है : Why is Hindon River polluted?
सहारनपुर से गाजियाबाद
पावन यमुना नदी गंगा में मिलने से पहले खुद और अपनी सहायक नदियों के जरिये ढेर सारी जहरीली गंदगी बटोरती है। इसलिए यमुना में प्रत्यक्ष होने वाले प्रदूषण से पहले इन सहायक नदियों के प्रदूषण की हालत देखना आवश्यक है। जिस तरह गंगा में प्रदेश की सर्वाधिक प्रदूषित नदी काली गिरती है, उसी तरह यमुना में हिंडन।
हिंडन में भी चार नदियां जहरीला उत्प्रवाह ढोकर लाती हैं। ये हैं ढमोला, छोटी काली और कृष्णी। ढाई सौ कि०मी० लंबी हिंडन एक बारहमासी नदी हैं। यह सहारनपुर जिले के मुजफ्फराबाद कस्बे से लगभग एक मील पूर्वोत्तर शिवालिक पहाड़ियों से निकलती है। उद्योग बहुल सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बुढ़ाना, सरधना, बागपत, बड़ौत, शामली, मेरठ और गाजियाबाद क्षेत्र के कल कारखानों, शहरी और खेतों में पड़ने वाली कीड़े मार दवाइयों का विषैला उत्प्रवाह लेती हुई यह बरनावां में यमुना नदी में मिलती है। बुलंदशहर जिले के एक हिस्से की गंदगी भी हिंडन में आती है।
मत्स्य पालन के अलावा इस नदी के पानी का उपयोग सिंचाई, पीने, नहाने, तैरने और कपड़े धोने के लिए होता रहा है किंतु पिछले दो दशक में हुए गंभीर प्रदूषण के कारण अब उसका पानी प्राणियों के लिए उपयोगी नहीं रह गया है।
इस नदी के विस्तृत परीक्षण के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में एक परियोजना विचाराधीन चल रही है। इस परियोजना की रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि हिंडन घरेलू तथा औद्योगिक उत्प्रवाह अंधाधुंध तरीके से फेंके जाने से प्रदूषण का शिकार हुई है। इसकी वजह से अनेक बीमारियां फैल सकती हैं।
बोर्ड ने सहारनपुर में नदी के पानी का परीक्षण औद्योगिक विष विज्ञान केन्द्र, लखनऊ से कराया था। जांच में पता चला कि वहां तांबा, मैंगनीज, सीसा, लोहा, क्रोमियम, कैडमियम, निकिल और जिंक जैसे भारी धातुएं हैं।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के डा० मो० अजमल की रिपोर्ट में बताया गया है कि हिंडन में कोबाल्ट, क्रोमियम, मैंगनीज और जिंक सबसे ज्यादा सहारनपुर में, कैडमियम तथा निकिल सर्वाधिक देवबंद में और सीसा सबसे ज्यादा मुजफ्फरनगर के पानी में मिला।
डा० अजमल ने मछलियों के नमूनों की जांच करके बताया है कि गाजियाबाद की मछलियों में कैडमियम, तांबा, लोहा और जिंक सर्वाधिक है। इसी तरह मछलियों में कोबाल्ट, मैंगनीज, निकिल और सीसा मेरठ में बहुत मिले। स्टार पेपर मिल के प्रदूषित पानी के कारण नदी का पानी अम्लीय (तेजाबी) पाया गया।
इसी विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डा० शादाब खुर्शीद राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित एक परियोजना के अंतर्गत हिंडन नदी घाटी के जल का क्षेत्रीय जीव-जंतुओं पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं। इस परियोजना के वक्तव्य में कहा गया है कि सहारनपुर जिले के पानी में कैमिकल्स, मैगनीशियम, सोडियम, पोटेशियम और क्लोराइड, मुजफ्फरनगर तथा बुढ़ाना में क्रोमियम और जिंक, मेरठ जिले में कैडमियम, क्रोमियम और सीसा की अधिकता पायी जाती है। यह प्रदूषण गाजियाबाद में सर्वाधिक मिला।
डा० खुर्शीद का कहना है कि इन क्षेत्रों का भूमिगत जल भी उपरोक्त औद्योगिक धातुओं एवं रसायनों से प्रदूषित हो गया है। इस प्रदूषण के कारण उन्होंने, खून की कमी, उदरशूल, त्वचाशोथ, अनिडा तथा पैरों में कमजोरी जैसी बीमारियों के लक्षण इन उद्योगों के कर्मचारियों तथा नदी के आसपास रहने वालों में देखे हैं।
हिंडन में प्रदूषण का प्रारंभ सहारनपुर से ही हो जाता है। सहारनपुर जिले से हिंडन की तीन सहायक नदियां भी गंदगी ढोती हुई आगे चलकर हिंडन में ही गिराती हैं।
इनमें से सहारनपुर से पास की पहाड़ी से निकली ढमोला नदी नगर का सारा गंदा पानी (सीवेज, स्लज) लेकर चलती है। गन्ना और चावल फैक्ट्रियां इसके पानी को इतना काला और बदबूदार कर देती हैं कि आदमी वहां खड़ा नहीं हो सकता। ऐसे पानी में मछलियां और अन्य जी- जंतु बचने का सवाल नहीं उठता, हां मच्छर अलबत्ते पैदा हो रहे हैं।
सहारनपुर में कई सहकारी तथा निजी चीनी मिलें, शराब कारखाने और स्टार पेपर मिल अपनी विषैली गंदगी हिंडन में डालकर उसे प्रदूषित करती हैं। इंडाना घी बनाने वाले फोरमोस्ट डेयरी और कई गन्ना मिले कैलाशपुर के पास गंदगी हिंडन में डालती हैं।
नकुड़ क्षेत्र के विधायक श्री रामशरण दास बताते हैं कि कारखानों के पानी से हिंडन का पानी इतना बदबूदार हो गया है कि उसके किनारे के दो-दो कि०मी० दूर तक के गांव वाले मच्छरों के कारण सो नहीं पाते। बीमारियां फैल रही हैं। उनका कहना है कि इस गंदगी से नदी के किनारे के गांवों में आफत है। किसान, मजदूर और मवेशी पानी न पी सकते हैं, न नहा सकते हैं और न सींच सकते हैं। श्री दास के अनुसार नदी में सांस लेने की गुंजाइश नहीं बची, जिससे मछलियां तो क्या बड़े-बड़े जानवर मर रहे हैं। पहले मछलियां कूदती फिरती थीं।
हिंडन की सहायक छोटी काली नदी सहारनपुर जिले के भगवानपुर ब्लाक से निकलकर आती है तो देवबंद में उसमें चीनी और गत्ता फैक्ट्रियों की गंदगी गिरती है।
उसकी तीसरी सहायक नदी कृष्णी बलिया खेड़ी ब्लाक के गांव कृष्णी से निकलती है और वह भी कारखानों तथा शहरों की गंदगी लेती हुई आगे बढ़ती है। यहां कृष्णी में रामपुर की गत्ता फैक्ट्री और सहारनपुर की शुगर फैक्ट्री के अलावा कई कस्बों के छोटे-छोटे उद्योगों का और गंदे नालों का पानी गिरता है। यहां से यह ननौता ब्लाक होकर मुजफ्फरनगर जिले के थानाभवन होते हुए मेरठ जिले में हिंडन में मिलती हैं।
मुजफ्फरनगर जिले के बुढ़ाना कस्बे में हिंडन को चीनी मिल और शहर की गंदगी मिलती है। बुढ़ाना और उसके आसपास का क्षेत्र पेयजल के लिहाज से समस्याग्रस्त माना जाता रहा है। पहले यह कभी हिंडन से पूरी हो जाती थी। पर अब पानी इतना भूरा हो गया है कि अगर जानवर या आदमी उसको पार करते हैं तो इतने से ही बीमारी लग जाती है। यहां भूमिगत जल प्रदूषित हो चुका है। हिंडन के पानी के इस प्रदूषण से बुढ़ाना कस्बे के अलावा गुजरेडी, शदरूदीन नगर, हड़ौली, दुलहरा, आदमपुर, शिकारपुर, कपूरगढ़, थानपुर, नगवा, टांडा आदि तमाम गांवों के लोग तबाह हैं। अक्टूबर-नवंबर 88 में डेंगू बुखार से यहां तीन दर्जन लोगों की मृत्यु हो गयी थी।
विधायक हरेन्द्र सिंह मलिक ने यह मामला विधानसभा में उठाया था और सरकार ने जवाब दे दिया कि नदी प्रदूषण मुक्त कर दी गयी है। वह इस दावे को सरासर झूठ बताते हैं। डेंगू बुखार से मौत का मामला विधानसभा की स्वास्थ्य संबंधी स्थायी समिति में भी उठाया गया है।
मुजफ्फरनगर जिलें में हिंडन की सहायक नदी कृष्णी थाना भवन की गत्ता फैक्ट्री और चमड़ा उद्योग की गंदगी बटोरती है। रमाला चीनी मिल का गंदा नाला कृष्णी में आता है। बाबरी गांव के पास इस नदी में बाबरी पेपर मिल तथा शुगर वर्क्स की गंदगी गिरती है। सिक्का पेपर मिल का उत्प्रवाह तथा कस्बे का गंदा नाला भी इसी नदी में जाता है। बाबरी गांव के समय सिंह ने बाबरी पेपर तथा शुगर मिल पर मुकदमा कायम किया है।
कृष्णी में श्यामली की चीनी और पेपर मिल, रमाला की चीनी मिल और बनत की क्रेशर इकाइयां भी अपना जहर घोलती हैं।
इस जहर से कुड़ाना, करबड़ोत, झाल, सड़का, लिसाड़, सुन्ना, डुंगर और राजपुर गढ़ी आदि गांवों के लोगों की जिन्दगी नरक हो गयी है।
क्षेत्र के लोगों का कहना है कि पहले वे कृष्णी में मछलियां मारते थे, जानवरों को पानी पिलाते और खेत सींचते थे, पर अब पानी बर्बाद हो गया। मिलों के जहर से मच्छी (मछली) खत्म हो गयी, मच्छर पैदा हो गये। यह पानी जमीन को ऊसर कर देता है। गांव के लोग लखनऊ में सरकार के पास दरखास्तें भेजते हैं, पर सुनवाई नहीं होती।
छोटी काली सहारनपुर के देवबंद आदि स्थानों से गंदगी ढोती हुई मुजफ्फरनगर शहर पहुंचती है। यहां शहर के सारे गंदे नाले, इसी नदी में गिरते हैं। बहलना की गत्ता और पेपर मिल, बेगरजपुर की आदर्श पेपर और कार्डबोर्ड मिल तथा मंसूरपुर शुगर फैक्ट्री का पानी, खतौली-मुजफ्फरनगर के बीच पुरबालयान के पास काली में गिरता है। सरधने में पावरलूम और रंगाई के काम की गंदगी गिरती है। गंदे और विषैले पानी ले जाने वाले इन नालों से कृष्णापुरी, प्रेमपुरी और खालापार तथा खादरवाला हरिजन बस्ती में बीमारियां फैल रही हैं।
मुजफ्फरनगर की मशहूर व्यायामशाला के पहलवान कसरत करके पहले इसी नदी में नहाते थे, अब ऐसा करना जान-बूझकर स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना हो गया है।
गंदे और जहरीले पानी से मछलियों, आदमी जानवर और खेती को होने वाले नुकसान के अलावा काली के किनारे मुजफ्फरनगर, लछेड़े पुरबालयान और इंचौली में लगने वाले मेले भी समाप्त हो चले हैं।
कृष्णी तथा छोटी काली सहारनपुर और मुजफ्फरनगर जिलों की गंदगी समेटती हुई मेरठ से पहले हिंडन में मिल जाती हैं।
इस तरह मेरठ के गहलता पहुंचते-पहुंचते हिंडन का पानी पूरी तरह खराब हो चुका है। मेरठ निवासी पेशे से मछुवा चौधरी चौवा बताते हैं कि यह पानी सब कुछ नाश कर रहा है। जंगल में हल जोत रहा किसान और मवेशी पानी नहीं पी सकते। लगभग 50 कि०मी० के क्षेत्र में हिंडन में मछलियां अक्सर मरती रहती हैं। चौधरी का कहना है कि 35 सालों से समस्या लगातार बिगड़ती गयी है। उनका कहना है कि पहले साल में एक दो बार गत्ता मिल का लाल पानी आता था। अब कई शराब व चीनी कारखाने खुल जाने से पानी काला हो जाता है।
उनका कहना है कि मुरादनगर वाली गंगा नहर डालू हेड़ा के पास कभी-कभी अपना फालतू साफ पानी छोड़ती हैं, उससे गाजियाबाद में स्थिति कुछ बेहतर हो जाती है और जब यह पानी नहीं छोड़ा जाता तो हिंडन बिल्कुल काली शक्ल में गाजियाबाद में प्रवेश करती है
हिंडन - गाजियाबाद, नोयडा और दिल्ली
गाजियाबाद, नोएडा और दिल्ली देश के ये तीन बड़े औद्योगिक नगर यमुना और उसकी सहायक नदी हिंडन दोनों को प्रदूषित करते हैं। नोएडा में विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए एक अलग क्षेत्र नोएडा एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग जोन विकसित किया जा रहा है।
यह तीनों औद्योगिक शहर न केवल सैकड़ों गांवों के किसानों की कृषि भूमि लेकर उन्हें उजाड़ रहे हैं वरन् साथ ही ध्वनि, वायु, पृथ्वी, आकाश और जल सभी को भयंकर रूप से प्रदूषित कर रहे हैं।
गाजियाबाद एक प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है। सन् 1740 में मुगल वजीर गाजीउद्दीन खान इमादुल्मुक आसफजाह ने अपने ही नाम पर इसे गाजीउद्दीन नगर के रूप में बसाया था। सन् 1864 में रेलवे स्टेशन बनने के बाद जब टिकट पर पूरा नाम छापना कठिन हुआ तो इसे बदलकर गाजियाबाद कर दिया गया। हिंडन तट पर कसेरी के टीले की खुदाई से ज्ञात हुआ है कि ढाई हजार वर्ष ईसा पूर्व भी यहां एक सभ्यता विकसित हुई थी। मुरादनगर से 13 कि०मी० पश्चिम में सुराना गांव के निकट अल्लाहपुर टीले की खुदाई से पता चलता है कि यह नगर महाभारत काल से भी पूर्व बसा हुआ था। यहां वैसे ही मिट्टी के बर्तन मिले हैं जैसे कि हस्तिनापुर की खुदाई से। इस शताब्दी के आरंभ में सिर्फ पांच हजार की आबादी वाला यह नगर अब बड़ा औद्योगिक शहर हो चुका है। इसके औद्योगिक और महानगरीय विस्तार का एक मात्र कारण उसका दिल्ली के करीब होना है।
गाजियाबाद की दादरी तहसील में नोएडा की स्थापना दिल्ली में चल रहे अनधिकृत एवं हानिकारक उद्योगों को वहां से हटाने के लिए की गयी थी। नोएडा को इसी शताब्दी के अंत तक पूर्ण रूप से विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए 50 गांवों की 37287 एकड़ जमीन का उपयोग तय करने का अधिकार औद्योगिक विकास प्राधिकरण को दे दिया गया है। इन उद्योग कारखानों में काम करने वाले लोगों के लिए बड़े पैमाने पर आवासीय कालोनियां भी बनायी जा रही हैं।
वर्ष 1979 तक यहां 87 मध्यम तथा बड़े और 860 छोटे उद्योग थे। एक दशक में इनकी संख्या बढ़कर क्रमशः 174 तथा 6233 हो गयी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार गाजियाबाद में वायु और जल प्रदूषित करने वाले 130 उद्योग हैं। इनमें से 3 डिस्टिलरी, 2 चीनी मिलें, एक टेनरी, 25 टेक्सटाइल इकाइयां, 34 पेपर मिलें और 62 केमिकल उद्योग तथा शेष खाद्य सामग्री और इंजीनियरिंग संबंधी हैं। इनमें से 25 इकाइयों ने आंशिक शुद्धिकरण संयंत्र लगाए हैं।
गाजियाबाद शहर का सारा सीवेज एवं स्लज हिंडन में बिना साफ किये गिराया जाता है।
नोयडा के चेयरमैन ने 17 जनवरी, 1989 को एक परिपत्र जारी करके कहा है कि 56 उद्योग प्रदूषण नियंत्रण के उपाय नहीं कर पा रहे हैं, जिससे वायु और जल प्रदूषण बढ़ रहा है। इनमें 19 टैक्सटाइल, 4 पेपर, 8 इलेक्ट्रोप्लेटिंग, 4 साबुन, 3 पेय पदार्थ और 18 अन्य उद्योग हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नोएडा में एक दर्जन उद्योगों की सूची तैयार की है जो वायु प्रदूषण से पर्यावरण बिगाड़ रहे हैं।
गाजियाबाद और नोएडा के नगर नियोजन में एक गंभीर त्रुटि यह देखी गयी कि औद्योगिक और आवासीय क्षेत्रों के बीच पर्याप्त दूरी तथा बाग-बगीचे लगाने पर ध्यान नहीं दिया गया जो कार्बन-डाइऑक्साइड स्वयं खाकर ऑक्सीजन पैदा करते हैं। गाजियाबाद के विकास हेतु स्वीकृत मास्टर प्लान में पश्चिमी क्षेत्र में दो तरफ औद्योगिक स्थान बनाकर बीच में आवासीय क्षेत्र बनाया गया। इसी तरह पूरब में दो आवासीय कालोनियां बनाकर बीच में औद्योगिक क्षेत्र बना दिया गया है। भोपाल गैस त्रासदी से सबक लिये बिना हानिकारक रसायन उद्योगों को शहर के मध्य लेकर एक प्रकार से गैस चैम्बर बसाये जा रहे जो आगे चलकर कभी बहुत बड़े मानव विनाश का कारण बन सकते हैं।
नगर नियोजन में दोष का ताजा उदाहरण गाजियाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र से सटाकर गाजियाबाद-दिल्ली मार्ग पर कौशाम्बी-वैशाली आवासीय परियोजना तैयार करना है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय ने जब विकास प्राधिकरण का ध्यान इस गड़बड़ी की ओर आकृष्ट किया तो मास्टर प्लान की एक प्रति भेजकर कहा गया कि वह कॉलोनी स्वीकृत है। जवाब में यह भी बताया गया कि 150 मी0 की हरित पट्टिका लिंक रोड के दक्षिण छोड़ी जा रही है, जबकि कायदे से यह पूरा क्षेत्र हरित पट्टी का होना चाहिए। इस आधुनिक शहर में सीवेज तथा स्लज की सफाई का भी बंदोबस्त नहीं है। गाजियाबाद-नोएडा और दिल्ली के अंधाधुंध औद्योगीकरण का खामियाजा हिंडन और यमुना नदियों के जरिये नदी की निचली धाराओं के किनारे बसे सैकड़ों गांव भुगत रहे हैं। गाजियाबाद के उद्योगों में से जिनका उत्प्रवाह सीधे हिंडन में जाता है उनमें मेरठ रोड, आनंदनगर, लोनी रोड, बुलंदशहर रोड, मोहन नगर के और दादरी इंडस्ट्रियल एरिया प्रमुख है।
इन उद्योगों में कीमो पल्प टिशू लि०, ब्रह्माणी पेपर मिल, गंगा पेपर मिल्स, ए०के० बोर्ड मिल्स, मेसर्स फ्रंटियर पल्प ऐंड पेपर, ऋतुराज टेक्सटाइल्स, अल्पस टेक्सटाइल्स, चंदोक टेक्सटाइल्स, स्वदेशी पालोटेक्स, हिंडन रिवर मिल्स डासना, ओरियंटल कार्बन ऐंड केमिकल्स, मेसर्स अल्वर्ट डेविड, यूनिचेम लैबोरेटरीज, काप हेल्थ प्रोडक्ट्स, हमदर्द लैब, ओमेगा फार्मेस्युटिकल्स, चेम प्लांट, राधिका विटामाल्ट्स (नोयडा) विनय ऑर्गेनिक्स, रेंज टेल्ब्रास, आला स्टील, हिन्दुस्तान मोनार्क, द्वारिका नाथ स्टील स्ट्रिप्स, रामकृष्ण इस्पात धूम दादरी, जैन ट्यूब्स, विन आयरन ऐंड स्टील, नेशनल बाइसिकिल, इंडियन एल्युमिनियम, वीनस इंडस्ट्रियल कारर्पोशन, विजय इंड्स, नार्थ प्रोडक्ट्स, एल०एम० स्टील, राठी एलाम्स ऐंड स्टील, टूल्स बोरिंग इंडिया, चौधरी स्टील उद्योग, श्रीराम पिस्टन्स ऐंड रिंग्स, मक्कट टूल्स ऐंड फोरीगिंस, रोड मास्टर इंड्स, गाजियाबाद आयरन एंड स्टील कंपनी, डेनफास कंपनी लि०, यूनाइटेड व्हील्स, किशन स्टील, फेयर बैंक मोर्स, जैन शुद्ध वनस्पति, अमृत वनस्पति, लिपटन इंडिया, लीथप्रो लेदर्स, टाटा आयल मिल्स, इंटरनेशनल टोबैको कंपनी, यू०पी० सीरेमिम्स पाटरीज, डी०सी०एम० टोयोटा, दीवान रिक्लेम रबर इंड्स, समतल कला पिक्चर्स, मेरिटेक इंडिया प्रा०लि०, मुंजल स्टील्स तथा अपट्रान पावरट्रानिक्स के नाम उल्लेखनीय हैं।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इनमें से अनेक पर मुकदमा चलाया है, जिसके दबाव से कुछ ने आंशिक तथा कुछ ने पूर्ण शुद्धिकरण संयंत्र लगाये हैं। किन्तु जिन लोगों ने संयंत्र लगाये हैं उनके बारे में शिकायत है कि या तो उनके संयंत्र पर्याप्त नहीं हैं या फिर वे उन्हें चलाते नहीं और चोरी-छिपे नालों के जरिये नदी में अपना जहरीले उत्प्रवाह छोड़ते हैं। मोहननगर के कई उद्योग अपना उत्प्रवाह खेतों में डाल रहे हैं या कच्चे तालाबों में जो भूमिगत जल प्रदूषित कर रहे हैं। यह उत्प्रवाह घूम फिरकर हिंडन पहुंचता है।
गाजियाबाद मोहन नगर रोड स्थित श्मशानघाट से जली-अधजली लाशें और राख भी हिंडन में डाली जाती हैं। यहीं पास में रेलवे पुल से पहले एक नाला मेरठ रोड तथा पास के कारखानों का काला उत्प्रवाह लेकर नदी में गिरता है।
नोएडा औद्योगिक क्षेत्र का सारा गंदा पानी कुलेसरा ब्रिज के पास हिंडन में गिरता है। इसी प्रदूषित हिंडन से एक कट हिंडन नहर निकाली गयी जो दिल्ली की वाटर सप्लाई के लिए जमुना में गिरती है।
ओखला बांध से पहले चिल्ला गांव के पड़ोस में हिंडन नहर का पानी बिल्कुल काला दिखता है। इसके बावजूद गरीब लोग वहां नहाते मिले। बाढ़ के दिनों में शाहदरा साइफन (नाले) का पानी भी इसमें मिल जाता है।
प्रदूषण बोर्ड के पास हिंडन में मछलियां मरने का कोई रिकार्ड नहीं हैं. यद्यपि पूछने पर नदी के किनारे रहने वाले लोगों ने शिकायत की कि हर साल अक्टूबर में खासकर मछलियां मरती हैं। जो मछलियां कहीं-कहीं जिन्दा हैं वे भारी धातुएं तथा जहरीले रसायन खाकर मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रही हैं।
हिंडन नदी के पास मछुआरों की बस्ती में तसव्वर हुसैन ने बताया कड़ेरा, मेमला, अरोड़ और मतेड़ा के पास अक्सर मछलियां मरकर सड़ांध पैदा करती हैं। उसने बताया कि इस साल एक महीने में चार बार मछलियां मरीं।
लोक विकास परिषद गाजियाबाद ने जुलाई, 1988 में जिला मजिस्ट्रेट को भेजे गये एक ज्ञापन में शिकायत की थी कि हिंडन का रूप एक विकराल नाले जैसा हो गया है। इस ज्ञापन में आग्रह किया गया था कि जहां करोड़ों रुपये नगर के सौंदर्गीकरण पर खर्च किये जा रहे हैं, वहीं हिंडन को प्रदूषण मुक्त करने पर भी ध्यान दिया जाय।
परिषद ने प्रशासन को पांच सुझाव दिये थे। जलकुंभी की सफाई की जाय, लावारिस लाशें नदी में डालना रोका जाय और विद्युत शवदाह गृह बनाया जाय। नदी के दोनों ओर पेड़ लगाकर पक्के घाट बनाये जाय, रेलवे लाइन के नीचे स्थित धोबीघाट हटाया जाय और केमिकल्स युक्त गंदा पानी नदी में गिराये जाने पर रोक लगायी जाय।
प्रदूषण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय ने इस पत्र के जवाब में स्वीकार किया कि विभिन्न उद्योगों का रसायनयुक्त पानी हिंडन नदी में जा रहा है और यह भी दोनों नगरपालिकाओं का गंदा पानी बिना शुद्ध किये नदी में छोड़ा जा रहा है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मोहननगर रोड स्थित पुल के नीचे से हिंडन के पानी के नमूनों की जांच करता रहता है। जांच में पी०एच० साढ़े सात से साढ़े आठ के बीच मिला है और घुलित ऑक्सीजन न्यूनतम 4.5 से लेकर अधिकतम 6.21 लेकिन इस बिन्दु के आगे भी प्रदूषण के कई स्रोत मिलकर नदी जल को और भी खराब कर देते हैं।
और यही गंदगी तथा जहरीली हिंडन आगे चलकर वरीदपुर और फतेहपुर अट्टा (बुलंदशहर) के बीच मझावली घाट के पास यमुना में मिल जाती है।