पश्चिम बंगाल में भूजल में फ्लोराइड संदूषण पर हुआ व्यापक अध्ययन
जादवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता और पश्चिम बंगाल कृषि सेवा (प्रशासनिक), कृषि विभाग, पश्चिम बंगाल ने सैलफोर्ड विश्वविद्यालय, मैनचेस्टर, यूनाइटेड किंगडम के साथ मिलकर पश्चिम बंगाल में भूजल फ्लोराइड संदूषण के पैटर्न और प्रवृत्तियों पर गहन अध्ययन और विश्लेषण किए हैं। ये अध्ययन भूजल फ्लोराइड संदूषण पर हुई एक व्यापक व्यवस्थित समीक्षा और मेटा-विश्लेषण के निष्कर्षों पर आधारित हैं। इसका उद्देश्य राज्य के भीतर ब्लॉक स्तर पर भूजल में फ्लोराइड संदूषण के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करना है। इससे प्रभावित क्षेत्रों में तीव्र और विकसित मानव स्वास्थ्य चिंताओं को दृष्टिगत रखते हुए उनकी प्रभावी ढंग से निगरानी और निवारण स्तर पर प्रयास किए जा सकें। यह अध्ययन प्रमुख रूप से पश्चिम बंगाल के छह जिलों यथा दक्षिण 24 परगना, पश्चिम मेदिनीपुर, झारग्राम, पूर्वी बर्धमान, पश्चिम बर्धमान और मुर्शिदाबाद में किया गया है।
यह सुविदित है कि जल पृथ्वी पर जीवन का आधार है, जो मानव की सबसे बुनियादी शारीरिक आवश्यकताओं से लेकर वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र के सुचारू संचालन तक हर कार्य के लिए महत्वपूर्ण है। वैश्विक स्तर पर, 250 करोड़ लोग पेयजल के प्राथमिक स्रोत के रूप में भूजल पर निर्भर हैं। केवल भारत की बात की जाए, तो यहां लगभग 85 प्रतिशत आबादी पेयजल के प्राथमिक स्रोत के रूप में भूजल पर निर्भर है। भूजल, वह जल होता है जो चट्टानों और मिट्टी से रिस जाता है और भूमि के नीचे जमा हो जाता है। जिन चट्टानों में भूजल जमा होता है, उन्हें जलभृत (एक्विफर) कहा जाता है। सामान्य तौर पर, जलभृत बजरी, रेत, बलुआ पत्थर या चूना पत्थर से बने होते हैं। इन चट्टानों से जल नीचे बह जाता है, क्योंकि चट्टानों के बीच में ऐसे बड़े और परस्पर जुड़े हुए स्थान होते हैं, जो चट्टानों को पारगम्य बना देते हैं। जलभृतों में जिन स्थानों पर जल भरता है, वे संतृप्त जोन कहलाते हैं। सतह में जिस गहराई पर जल मिलता है, वह जल स्तर (वॉटर लेवल) कहलाता है।
जल कैल्सियम, मैग्नीशियम और फ्लोराइड सहित खनिजों का भी भंडार है, जो मानव स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हड्डियों की मजबूती, हृदय के कार्य और दांतों की सड़न की रोकथाम में योगदान करते हैं। हालांकि, जल में इन तत्वों का संतुलन महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि विशेष रूप से भूजल में अत्यधिक खनिज तत्वों की उपस्थिति भूजल संदूषण को जन्म देती है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
इस प्रकार जल में खनिज स्तरों को समझना और उनका प्रबंधन करना स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। उदाहरण के लिए, हड्डियों और दांतों के विकास के लिए प्रति लीटर पानी में 0.6-1.2 मिलीग्राम की सीमा में फ्लोराइड सांद्रता की आवश्यकता होती है। ऐसे फ्लोराइड युक्त जल के लगातार उपयोग से यदि उसमें उसकी सांद्रता कम है, तो डेंटल कैरीज यानी दांतों की सड़न, दांतों की सतह या इनेमल को होने वाली क्षति हो सकती है वहीं फ्लोराइड की अधिक सांद्रता से डेंटल और स्केलेटल फ्लोरोसिस हो सकता है।
फ्लोराइड संदूषण ने वैश्विक स्तर पर पेयजल संकट पैदा कर दिया है। भू-रासायनिक प्रतिक्रियाओं और भूवैज्ञानिक या मानवजनित कारकों के कारण मुख्य रूप से दूषित पेयजल में 1.5 मिलिग्राम प्रति लीटर से अधिक की खपत पर यह मनुष्यों के लिए विषाक्त हो जाता है।
भूजल संदूषण तब होता है जब जल में प्रदूषकों की उपस्थिति निर्धारित मात्रा से अधिक होती है या कह सकते हैं। कि यह मात्रा पेय जल में निर्धारित प्रदूषकों की मात्रा से अधिक होती है। सामान्य तौर पर पाए जाने वाले संदूषकों में आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट और आयरन शामिल हैं जो प्रकृति से भू-आनुवांशिक होते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में, मानवजनित और भूजनित गतिविधियों के कारण भूजल में अत्यधिक खनिज घुल गए हैं। केवल फ्लोराइड को ध्यान में रखते हुए, शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र नीचे के खनिजों के रासायनिक अपक्षय के कारण फ्लोराइड विषाक्तता से प्रभावित हैं। भारत के 20 राज्यों के 250 जिलों में 6 करोड़ 60 लाख से अधिक लोग फ्लोरोसिस से पीड़ित होने के जोखिम में हैं। अतः यह सही समय है कि जल में फ्लोराइड संदूषण पर ध्यान दिया जाए और इसके प्रबंधन की दिशा में काम किया जाए।
फ्लोराइड प्रभावित क्षेत्रों की निरंतर निगरानी की जरूरत है। इसके अलावा, भू-सतही जल के उपचार द्वारा उचित जलग्रहण प्रबंधन और पीने के साथ-साथ खेती के लिए वर्षा जल संचयन करना भी एक समाधान है। इससे भूजल पर निर्भरता कम से कम हो सकती है। शुरुआत में, अनुसंधान समूह ने पश्चिम बंगाल के जल में फ्लोराइड संदूषण के बारे में डेटा इकट्ठा करने के लिए वेब ऑफ साइंस और पबमेड जैसे खोज स्रोतों का उपयोग करके एक मेटा-विश्लेषण किया।
जादवपुर विश्वविद्यालय के अयान डे कहते हैं, 'मेटा-विश्लेषण से हमें वर्तमान जल स्थितियों की व्यवस्थित समीक्षा करने में मदद मिली। जादवपुर विश्वविद्यालय के तरित रॉय चौधरी ने बताया कि कुल 3,000 से अधिक डेटासेट से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर इन जिलों में भूजल फ्लोराइड संदूषण की जानकारी एकत्रित की गई है।
अनुसंधान-पत्र में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पश्चिम बंगाल के बांकुरा, पुरुलिया और बीरभूम जैसे जिलों में जल में फ्लोराइड का औसत स्तर 1.5 मिलिग्राम प्रति लीटर की अनुमेय सीमा से अधिक था। इसके अलावा, पश्चिम बर्धमान जिले के सभी नौ अध्ययन किए गए ब्लॉकों में से बाराबनी ब्लॉक में अधिकतम फ्लोराइड सांद्रता अनुमेय सीमा से नौ गुना अधिक पाई गई। यूनाइटेड किंगडम के मैनचेस्टर स्थित सैलफोर्ड विश्वविद्यालय के अनुसंधान दल के सदस्य जजाति मंडल का कहना है कि, "कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि मानसून के बाद की तुलना में मानसून से पहले के समय में फ्लोराइड आयन अधिक होते हैं।"
इसके बाद, अनुसंधानकर्ताओं ने क्षेत्र अध्ययन शुरू किए, जिसमें उन्होंने फ्लोराइड विश्लेषण के लिए पश्चिम बंगाल के छह जिलों के रूप में दक्षिण 24 परगना, पश्चिम मेदिनीपुर, झारग्राम, पूर्वी बर्धमान, पश्चिम बर्धमान और मुर्शिदाबाद का चयन किया। उन्होंने पाया कि उनके जांच क्षेत्रों की मिट्टी ज्यादातर चिकनी और रेतीली है, जिनमें से कई में सालाना 1,400 मिलिमीटर बारिश होती है।
अनुसंधानकर्ताओं ने पश्चिम बंगाल के चयनित छह जिलों से लगभग 3287 भूजल नमूने एकत्र किए। नमूना संग्रह में सरकारी और घरेलू हैंड ट्यूबवेल/पंप से 50 मिलीलीटर भूजल के नमूने लेने के लिए एअरटाइट प्रीवॉश्ड पॉलिथीन कंटेनर का उपयोग किया गया था। नमूनों से, आयन-चयनात्मक इलेक्ट्रोड मीटर द्वारा फ्लोराइड आयन सांद्रता को मापा गया ।
परिणामों से पता चला कि सैंपलिंग जिलों में भूजल में फ्लोराइड की मात्रा 0.01 से 13.4 मिलिग्राम प्रति लीटर तक थी, जिसमें अधिकतम फ्लोराइड पश्चिम बर्धमान जिले के बाराबानी ब्लॉक के नमूने में दर्ज किया गया था। इसके अलावा, दक्षिण 24 परगना, झारग्राम, पश्चिम बर्धमान और मुर्शिदाबाद जिलों से क्रमशः लगभग 10 प्रतिशत, 11 प्रतिशत, 4 प्रतिशत और 14 प्रतिशत भूजल नमूनों में फ्लोराइड आयनों की सुरक्षित सीमा पार हो गई।
पश्चिम बंगाल कृषि सेवा के बिलाश चंद्र दास बताते हैं, "हमने पाया कि फ्लोराइड से होने वाला स्वास्थ्य जोखिम मुख्य रूप से मौखिक और त्वचीय मार्गों से होता है तथा शिशु फ्लोराइड विषाक्तता के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं।"
जादवपुर विश्वविद्यालय के तरित रॉय चौधरी का सुझाव है कि, "यह सुनिश्चित करने के लिए कि जल स्वास्थ्य से समझौता किए बिना जीवन को बनाए रखता है, चल रहे अनुसंधान, प्रभावी विनियमन और सार्वजनिक जागरूकता अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।"
ऐसी अंतर्दृष्टि नीति-निर्माताओं के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ प्रस्तुत करती है, तथा पश्चिम बंगाल तथा विश्व स्तर पर फ्लोराइड संदूषण के जोखिम को कम करने के लिए अनुकूलित स्वास्थ्य नीतियों की तत्काल आवश्यकता का सुझाव देती है।
यह अनुसंधान-पत्र एल्सवेयर के ग्राउंडवाटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट नामक जर्नल के वाल्यूम 26 अगस्त 2024 अंक में प्रकाशित हुआ है।