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लखनऊ महानगर: जल प्रदूषण

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Lucknow Metro-City: Water Pollution



जल पर्यावरण का जीवनदायी तत्व है, जो जैवमंडल में विद्यमान संसाधनों में सर्वाधिक मुल्यवान है। जल मानव की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ भौतिक उन्नति में भी सहायक है। विद्युत उत्पादन, जल परिवहन, फसलों की सिंचाई, उद्योग धंधे, सफाई, सीवेज आदि के निपटान के लिये जल की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता होती है।

जल प्रदूषण के मुल्यांकन का आधार जल की गुणवत्ता में परिवर्तन है। जब जल का पीएच मान 7 से 8.5 पाया जाता है तो उसे शुद्ध जल कहा जाता है लेकिन जब पीएच मान 6.5 से कम या 9.2 से अधिक हो जाता है तो उसे प्रदूषित जल कहा जाता है। जल में निहित अपद्रव्यों की मात्रा से यह मान प्राप्ति किया जाता है। निर्धारित सीमा से अधिक या कम मानवाले जल को हानिकारक कहा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जल के अपद्रव्यों की सीमा निर्धारित करके जल की गुणवत्ता को जानने का एक औसत मापदंड प्रस्तुत किया है।

इस प्रकार

‘‘जल की भौतिक रासायनिक तथा जैवीय विशेषताओं में हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करने वाले परिवर्तन को जल प्रदूषण कहा जाता है।’’



विश्व स्वास्थ्य संगठन1 के अनुसार

‘‘प्राकृतिक या अन्य स्रोतों से उत्पन्न अवांछित बाहरी पदार्थों के कारण जल दूषित हो जाता है, तथा वह विषाक्तता एवं सामान्य स्तर से कम आॅक्सीजन के कारण जीवों के लिये हानिकारक हो जाता है तथा संक्रामक रोगों को फैलाने में सहायक होता है।’’



वाइवियर, पी.2 (Vivier. P.) के अनुसार

‘‘प्राकृतिक या मानव जनित कारणों से जल की गुणवत्ता में ऐसे परिवर्तनों को प्रदूषण कहा जाता है जो आहार, मानव एवं जानवरों के स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, मत्स्यन या आमोद-प्रमोद के लिये अनुपयुक्त या खतरनाक होते हैं।’’



साउथविक, सीएस3 (Southwick, C.S.) के अनुसार

‘‘मानव-क्रियाकलापों या प्राकृतिक जलीय प्रक्रियाओं से जल के रासायनिक भौतिक तथा जैविक गुणों में परिवर्तन को जल प्रदूषण कहते हैं।’’



गिलिपिन4 (Gilpin) के अनुसार

‘‘जल के रासायनिक भौतिक तथा जैविक गुणों में मुख्य रूप से मानव क्रियाओं द्वारा उत्पन्न गिरावट जल प्रदूषण कहलाती है।’’



सं. रा. अमेरिका की राष्ट्रपति की विज्ञान सलाहकार समिति, वाशिंगटन5 ने जल प्रदूषण की परिभाषा इस प्रकार की है।

‘‘जल प्रदूषण जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में परिवर्तन है, जो मानव तथा जल जीवन में हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है।’’



प्रदूषण के पश्चात जल के रंग, गंध, प्रकाशभेद्यता, भौतिक गुणों, स्वाद और तापमान में परिवर्तन आ जाता है। यह परिवर्तन विविध भौतिक, रासायनिक, मानवीय कारणों से आता है और जल अकार्बनिक, साइनाइड, अमोनिया, मरकरी, कैडमियम, सीसा, फेनोल, कीटनाशक तथा अन्य पदार्थों के मिश्रण से मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो जाता है। आज जल की अशुद्धता की समस्या अधिक बढ़ गयी है। कुछ जलस्रोतों में तो मानव मल-मूत्र सीधे-सीधे मिला रहता है।

लगभग 20 लाख लोग प्रतिवर्ष प्रदूषित जल पीने से आंतरिक बीमारियों, टाइफाइड, पीलिया आदि से रोगग्रस्त हो जाते हैं। पेयजल के स्रोतों के दूषित जल को शुद्ध करने की सुविधा न होने से अनेकों ग्रामीण नागरिक नदी जल के प्रदूषित जल का सेवन करते हैं। भारतीय महानगरों तथा नगरों में प्रतिवर्ष जल जनित प्रदूषण से रोगों का प्रकोप बढ़ता रहता है। नगरीय जनसंख्या की वृद्धि से बड़े नगरों की जल प्रदूषण की समस्या बड़ी तेजी से बढ़ी है और भविष्य में यह समस्या गंभीर रूप लेकर हमारे लिये चुनौती प्रस्तुत करेगी। इतना ही नहीं विश्व पर्यावरण संगोष्ठी में भारत की 80 प्रतिशत जल संपदा को प्रदूषित बताया गया जो इस दिशा में अत्यंत चिंता का विषय बन गया है। ग्लोब में विद्यमान सम्पूर्ण जलराशि 1386 मिलियन किमी है। यदि ग्लोब को समतल मानकर सम्पूर्ण जलराशि को इस प्रकार फैला दिया जाए तो यह 2718 मीटर गहरी जल की परत से ढक जाएगा। महासागरों में कुल जलराशि का 96.5 प्रतिशत तथा महाद्वीपों में केवल 3.5 प्रतिशत जल पाया जाता है जो क्रमश: 1338 तथा 48 मिलियन किमी है।6

हमारे दैनिक जीवन के अनेकानेक कार्यों यथा- घरेलू, औद्योगिक, तापविद्युत उत्पादन, पशुधन सवंर्धन, सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन और परमाणु यंत्रों की ऊष्मा को शामिल करने की आवश्यकताओं के लिये प्रयोग किया जाता है। सामान्यतया नगरीय क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 100 लीटर पानी अपने घरेलू कार्यों में प्रयुक्त किया जाता है। पीने के लिये 2.3 लीटर, खाना पकाने में 4.5 लीटर, धार्मिक शुद्धि में 18.5 लीटर, बर्तन साफ करने में 13.6 लीटर, कपड़े साफ करने तथा स्नान करने में 27.3 लीटर पानी प्रयोग किया जाता है।7

नदी जल प्रदूषण से सम्पूर्ण धरातलीय जल प्रदूषित हो गया है और आज अनेक देशों में पेयजल की समस्या उठ खड़ी हुई है और भूमिगत जल भी प्रदूषित हो गया है जिससे समस्या और अधिक गहराती जा रही है। भारतीय नगर अपना अपशिष्ट पदार्थ सीधे नदियों में प्रवाहित करते हैं। गंगा, गोमती, यमुना, महानदी, हुगली आदि नदियाँ सबसे अधिक प्रभावित हुई हैं। आज कुछ योजनाएँ नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिये बनायी गयी हैं और उन्हें कार्यान्वित भी किया गया है। किंतु इसका प्रतिफल संतोष जनक नहीं है।

अ. लखनऊ महानगर : जलापूर्ति

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नगर में पेय जलापूर्ति के स्रोत

नगरीय जल की गुणवत्ता

लखनऊ महानगर का भू-गर्भ जल प्रदूषण

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भूजल की स्थिति :

सतही जल के नमूनों का अध्ययन

लखनऊ महानगर में गोमती नदी जल प्रदूषण

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गोमती नदी के गुणवत्ता अनुश्रवण के प्रमुख कार्यक्रम

गोमती जल की गुणवत्ता का भौतिक, रासायनिक तथा जैविक अध्ययन

तापमान :

जलीय तापमान एक महत्त्वपूर्ण मानक हैं जो जल की विशेषताओं को परिलक्षित करता है। तापमान का प्रभाव विभिन्न भौतिकीय, रासायनिक, पृष्ठ तनाव, चिपचिपाहट, क्षैतिज दबाव, गुप्त ऊष्मा, वाष्पन, आॅयनीकरण, तापीय संचलन, वाष्पीय दबाव, गैसों की घुलनशीलता था अन्य जैविक कारक, जल की विशेषताओं को प्रभावित करते हैं। इसी प्रकार जलवायु कारक और प्राकृतिक जलीय तत्व जल को प्रभावित करते हैं। मौसम, दिन-रात का समय, धारा का बहाव, व गहराई आदि जलीय तापमान को प्रभावित करती है। प्रत्येक स्थान से लिये गये नमूनों में विभिन्नताएँ पायी गयी, न्यूनतम तापमान गऊघाट में 13.5 के आस-पास रहा अधिकतम तापमान 360C के आस-पास गंगागंज में पाया गया। (परिशिष्ट-18)

पीएच - किसी द्रव के गुण को दर्शाता है कि वह अम्लीय या क्षारीय या उदासीन है। पीएच का मान 0 से 14 तक होता है। यदि किसी द्रव का पीएच 0 से 6.9 है तो वह द्रव अम्लीय होगा, 7 होने पर उदासीन कहा जाएगा 7 से 14 पर द्रव क्षारीय होता है। गोमती नदी के जल का दिसंबर 93 से सितंबर 95 तक की गुणवत्ता अनुश्रवण में पीएच का मान 7.15 से 9.1 तक पाया गया, जो अम्लीयता और उदासीनता को प्रदर्शित करता है। ग्रीष्म काल में विभिन्न स्थानों पर जल की अम्लता बढ़ी हुई पायी गयी। औसत रूप में देखा जाए तो उद्गम स्थल के पश्चात कम पायी गयी जबकि गऊघाट के पश्चात सुल्तानपुर और जौनपुर में बढ़ी हुई पायी गयी, नीमसार में लिये गए नमूनों में 50 प्रतिशत में 8.5 तक पीएच मान पाया गया।

ठोस पदार्थ (TDS) -

नदी तट के अपक्षय वाले स्थानों में मानसून मौसम में मिश्रित ठोस पदार्थ अधिक पाये जाते हैं। घुलित ठोस पदार्थ नदी जल की पारदर्शिता एवं तापमान को प्रभावित करता है। घुलित पदार्थों की मात्रा, हानिकारक पदार्थों का अवशोषण और संगठन, तलछट की गति तथा उसके पदार्थ का वितरण आदि कुछ घुलित ठोस पदार्थ जल में ऑक्सीजन के आवागमन में बाधा उत्पन्न करते हैं तथा अन्य ठोस पदार्थ इन पर निर्भर करते हैं। घुलित ठोस पदार्थ यह प्रदर्शित करता है कि जल की प्रकृति क्या है? उसमें मिश्रित पदार्थों की मात्रा कितनी है?

गोमती जल में पाये जाने वाले आयनों में कार्बोनेट, क्लोराइड, सल्फेट, नाइट्रेट एवं फास्फेट जैसे कैटायन है। कैल्शियम, मैग्नीशियम पोटेशियम, सोडियम, लोहा आदि घुलित ठोस पदार्थ में सम्मिलित रहते हैं। घुलित ठोस पदार्थों को प्रभावित करने वाले कारकों में रासायनिक संगठन, जल की गति, किनारे का रासायनिक संगठन, वातावरण की आर्द्रता, मानवीय अपशिष्ट पदार्थ या जैवकीय या रासायनिक क्रियाएँ प्रमुख हैं। टीडीएस से हम जल में पाये जाने वाले धातु पदार्थ, जल की आयनिक संरचनाएँ व धनायनों के संगठन के बारे में जान सकते हैं गोमती नदी के दिसंबर 93 से सितंबर 95 के अध्ययन काल में विभिन्न स्थानों के ठोसों का आकलन किया गया जिसे तालिका- 3.9 में प्रदर्शित किया गया है।

परीक्षण से पता चलता है कि गर्मी के दिनों में टीएस की उपलब्धि 1994 में अधिकतम रही जबकि मानसून काल में यह सबसे कम थी, इसी प्रकार का टीएस का स्तर गऊघाट के बाद नदी में बढ़ना प्रारम्भ हो जाता है। क्योंकि घरेलू जल निस्तारित करने वाले नाले यहाँ से नदी में मिलने लगते हैं। जाड़े के दिनों में सबसे कम टीएस तथा मानसून काल में सबसे अधिक टीएस नमूनों से प्राप्त होता है। अपेक्षित मात्रा 500 जी/आई से प्रत्येक स्थान पर नीचे है। (तालिका- 3.10)

कठोरता और अम्लीयता - कैल्शियम, मैग्नीशियम और लवण की उपस्थिति से जल में कठोरता आती है। किंतु कुछ दूसरे तत्व जैसे लोहा, मैग्नीज एवं एल्युमीनियम भी जल की कठोरता में योगदान करते हैं। लोहे को कैल्शियम कार्बोनेट के समान कठोर माना जाता है। कैल्शियम लवण की उपस्थित में जल को कठोर बनाती है। जल की अम्लीयता सामान्य रूप से इसका यौगिक है। जो सुरक्षित रूप से जल को पीएच में परिवर्तित करती है।

गोमती नदी के जल से विभिन्न स्थानों से लिये गये नमूने कठोरता से युक्त है। जल की कठोरता, अम्लीयता मानसून मौसम को छोड़ कर शेष में अधिक है। नदी के जल की कठोरता, पिपराघाट और सुल्तानपुर के मध्य बढ़ जाती है। कुल कठोरता का 80 प्रतिशत भाग कैल्शियम का है। ग्रीष्म काल और शीतकाल में नदी जल की अम्लीयता की वृद्धि मोहन मीकिन और जौनपुर में सर्वाधिक पायी गयी कुल कठोरता का मान 300 एमजी/आई से कम है।

ऑक्सीजन : (O2) -

घुलनशील ऑक्सीजन की न्यूनतम मात्रा स्वशुद्धिकरण विधि द्वारा प्राकृतिक जल में उपलब्ध होती है। डीओ. लेबिल ऑक्सीकरण के प्रभाव को दिखाता है। यह जल में न्यूनतम जीवन स्तर बिताने की क्षमता को प्रदर्शित करता है। यह ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण विधि द्वारा उत्सर्जित होती रहती है। बीओडी इसमें सूक्ष्म कार्बनिक यौगिक तथा अन्य पदार्थ होते हैं। जो इसे अकार्बनिक रूप में बदल देता है। नमूनों में अकार्बनिक पदार्थ पाये गये। नमूनों में नाइट्रोजन युक्त पदार्थ जैसे एलिलथोरियम व अन्य भी उपस्थित पाये गये। सीओडी का मापन भी किया गया किंतु इसके कार्बनिक गुणों में अंतर नहीं पाया गया।

घुलनशील रसायन और जैव रासायनिक ऑक्सीजन तथा रासायनिक ऑक्सीजन की उपस्थिति गोमती नदी के आठ स्थानों में नीमसार से लेकर जौनपुर तक पायी गयी अंत के दो स्थानों में ऑक्सीजन के इन रूपों में कमी पायी गयी। इसका कारण भारी ठोस पदार्थ का जल के साथ नदी में आना, गर्मी के दिनों में जल कम होना तथा अनउपचारित नालों और सीवरों का जल बढ़ जाना है। इस समय तापमान का बढ़ना भी प्रमुख कारण बन जाता है। नदी के स्वशुद्धिकरण प्रक्रिया के कारण सुल्तानपुर में इसका प्रभाव कम हो जाता है।

बीओडी (जैव रासायनिक घुलनशील ऑक्सीजन) की यह स्थिति गऊघाट के आगे बढ़नी प्रारम्भ हो जाती है। और पुन: आगे धीरे-धीरे कम हो जाती है। कैल्शियम युक्त घुलनशील ऑक्सीजन सर्दियों के दिनों में उपस्थित से कुछ भिन्न है।

सर्दियों में बीओडी की मात्रा न्यूनतम तथा मानसून काल में उच्चतम मानकों में पहुँच जाता है। गऊघाट के आगे इसकी स्थिति सीवेज तथा नालों के कारण बहुत अधिक दिखाई पड़ती है। घरेलू उत्सर्जित जल और सीवेज जल ने ही ऑक्सीजन और उसके रूपों की मात्रा बढ़ाने का प्रयास किया है। नीमसार और भाटपुर स्थानों पर यह 6.0 mg./I से अधिक था जबकि मोहन मीकिन के केवल 5 प्रतिशत नमूनों को देखने पर 6.0 mg./I था। इसी समय पिपराघाट में 4 mg./I घुलनशील ऑक्सीजन पायी गयी। बाराबंकी के घुलनशील ऑक्सीजन के 16 प्रतिशत नमूने देखने पर 6.0 mg./I से अधिक है। आगे सुल्तानपुर और जौनपुर में काफी सुधार है भाटपुर में 10 प्रतिशत नमूने भी 5.0 mg./I बीओडी से युक्त पाये गये, गऊघाट के 80 प्रतिशत नमूने बीओडी सीमा से नीचे पाये गये किंतु मोहन मीकिन और पिपरा घाट के शत प्रतिशत नमूने 3.0 mg./I से अधिक पाये गये। यही स्थिति बाराबंकी, जौनपुर और सुल्तानपुर में रही। (तालिका- 3.11)

नाइट्रोजन - गोमती जल के नमूनों में नाइट्राइट (NO2) नाइट्रेट (NO3) अमोनिया (NH3) एवं अन्य प्रकार के नाइट्रोजन अवयव मापे गये। अमोनिया यदि दूषित है तो नाइट्रोजन को दूषित करेगा, जो जल को दूषित करेगा। इसी प्रकार आॅक्सीकरण की प्रक्रिया स्वरूप अमोनिया का स्तर बढ़ता जाता है। तथा जल और दूषित होता जाता है।

नदी जल से लिये गये दिसंबर 93 से सितंबर 95 तक के नमूने अमोनिया से ग्रस्त पाये गये। जिनका प्रभाव मानसून काल में सर्वाधिक, गर्मी में अधिक तथा शीतकाल में कम पाया गया। किंतु सभी ऋतुओं में लखनऊ नगर के सीवेज से निकले मल-जल की उपस्थिति वाले नमूनों में अमोनिया युक्त नाइट्रोजन सर्वाधिक पाया गया। इसी प्रकार पिपराघाट और मोहनमीकिन में भी अधिक पाया गया। गऊघाट और गंगागंज में इसकी मात्रा सीमा से अधिक रही।

क्लोराइड : (CI) -

यह जल की गुणवत्ता को संरक्षण प्रदान करने वाला घुलनशील अवयव है। जिसका प्रयोग पर्यावरणीय क्षय को संतुलित करने में किया जाता सकता है। संकलित सभी नमूनों में क्लोराइड की उपस्थिति सभी मौसमों में कुछ स्थानों में कम हो जाती है। चूँकि नदी जल की गुणवत्ता बनाये रखने के लिये इसका होना आवश्यक है। मानक के अनुसार इसकी सीमा 250 mg./I है। जो प्रत्येक स्थान पर सीमा से कम रही।

सल्फेट (SO4)

- प्राकृतिक रूप से सल्फेट की प्राप्ति कार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण से तथा जिप्सम जैसी चट्टानों के अंदर से टपकते हुए जल से होती है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के उद्योगों सूती मिल, सल्फ्यूरिक अम्ल बनाने वाले उद्योगों, कोयला, परिष्करण करने वाले उद्योगों आदि द्वारा सल्फेट का उत्सर्जन किया जाता है। गोमती नदी से लिये गए सभी नमूनों में सल्फेट की मात्रा अलग-अलग रही इसकी उपस्थिति का मानक 400 mg./I का है। किंतु गोमती नदी में यह अपनी सीमा से नीचे ही पाया गया।

फास्फेट (PO4) -

खनिजों से युक्त चट्टानों के रिसाव, घरेलू प्रवाह तथा कृषि एवं उद्योगों से उत्सर्जित पदार्थों से फास्फेट तथा उससे बने यौगिकों से फास्फेट नामक यौगिक उत्पन्न होता है। गोमती नदी से लिये गये नमूनों में फास्फेट पाया गया। इस यौगिक की अधिकतम मात्रा गऊघाट के पश्चात ही प्रारम्भ होती है। वर्षाऋतु में अधिक गर्मी में अपेक्षाकृत कम फास्फेट पाया गया, मोहन मीकिन, पिपराघाट और बाराबंकी से प्राप्त सभी नमूनों में 10 mg/I तक फास्फेट बढ़ जाती है।

फ्लोराइड (F) -

इसके स्रोत भूमि चट्टानें, घरेलू उत्सर्जित जल और उद्योगों के उत्सर्जित जल है। आठ स्थानों से लिये गये नदी जल के नमूनों में यह मात्रा उपस्थिति रही मानसून काल में इसकी मात्रा कम हो जाती है। किंतु दूसरी ऋतुओं में पिपराघाट से सुल्तानपुर तक बढ़ जाती है। (तालिका 3.16)

कॉलीफार्म (Coliform) -

इसकी सर्वाधिक उपस्थिति पशु एवं मानवमल में पाई जाती है। इस तरह इसका स्रोत सीवेज है। इसके अतिरिक्त मानवमल से अच्छादित भूमि के ऊपर से बहकर आने वाला जल भी प्रदूषित होता है और नदी के जल को प्रदूषित करता है। इससे प्रदूषित जल में बैक्टीरिया अति शीघ्र उत्पन्न होते हैं। इसमें प्रदूषण माप को अधिकतम संभावित संख्या (MPN/100ml/II) गोमती नदी से लिये गये नमूनों में सर्वाधिक मात्रा मोहनमीकिन और पिपराघाट में पायी गयी किंतु गऊघाट में यह प्रत्येक ऋतु में अधिक थी। इसी प्रकार नीमसार और भाटपुर के नमूनों में यह वर्षाऋतु में अधिक पायी गयी। गोमती जल के प्रदूषण में बहुत कम सुधार बाराबंकी में होता है। सुल्तानपुर और जौनपुर में भी लखनऊ की अपेक्षा सुधार होता है। लखनऊ नगर के समीप से लिये गये नमूनों में बैक्टीरिया की मात्रा बहुत अधिक है। जो कई गुना तक बढ़ जाती है और पूरे वर्ष लगभग एक जैसी स्थिति बनी रहती है। यहाँ एमपीएन शत प्रतिशत है।

सोडियम और पोटैशियम (Na and K) -

इसका स्रोत चट्टाने हैं तथा जल परिष्करण विधियाँ है। यह यौगिक जल में सरलता से घुल जाते हैं। और जल में इनकी सांद्रता की मात्रा 10 mg/I से कुछ अधिक है। जो नदी के भौगोलिक विस्तार से सम्बन्धित है। पोटैशियम की उपस्थिति भी गोमती जल के नमूनों में पाई गयी, जिसका स्तर नीमसार से जौनपुर तक बढ़ता गया। किंतु पोटैशियम और सोडियम जल की सीमा तक बने रहे तो जल संरक्षण का कार्य करते हैं।

आर्सेनिक Arsenic (संख्या) (As) -

आर्सेनिक औषधि उद्योग, सीसा मिश्रित वर्तन एवं कीटनाशक औषधियों के निर्माण से उत्सर्जित पदार्थों के रूप में प्राप्त होता है। यह धरातल में 53वें तत्व के रूप में पायी गयी इस तत्व की औसत सांद्रता 1.8 (μg./I) है। आर्सेनिक तत्व भू-रासायनिक स्थिति तथा स्थान-स्थान पर उद्योगों की बदलती स्थिति के अनुसार बदलता हुआ पाया गया। आर्सेनिक अकार्बनिक जल में सबसे अधिक पाया गया गोमती नदी के जल में आर्सेनिक की मात्रा सभी स्थानों में नगण्य पायी गयी।

कैडमियम Cadmimum : (Cd) -

कैडिमियम इलेक्ट्रोप्लेटिंग तथा निकिल की पॉलिश, बैट्रियों के गोदाम, स्नेहक पदार्थ सीसा और फोटोग्राफ बनाने वाले उद्योगों से उत्सर्जित किया जाता है। कुछ मात्रा प्राकृतिक रूप से धरातल में पायी जाती है। गोमती नदी से संकलित नमूनों में यह अपने निर्धारित स्तर (0.005 μg/I) से कम पाया गया मोहन मीकिन से लिये गये नमूने में कैडमियम की मात्रा 0.006 μg/I पायी गयी। (परिशिष्ट-21)

क्रोमियम Chromium : (Cr) -

यह उद्योगों के उत्सर्जित पदार्थ, रासायनिक उद्योगों, क्रोमियम की प्लेटों, पेंटों के माध्यम से उत्सर्जित होता है। पुर्जे बनाने, पेपर बनाने, कपड़ा धागा, कांच बनाने तथा फोटोग्राफी के कार्यों में प्रयुक्त किया जाता है। गोमती नदी जल से लिये गये नमूनों में क्रोमियम का स्तर 0.005 μg/I से कम पाया गया केवल नीमसार और भाटपुर में मानक से कुछ अधिक था।

लोहा Iron : (Fe) -

इस्पात उद्योगों, विद्युत उपकरणों, प्लास्टिक उद्योगों, पालिसिंग प्रक्रिया आदि में लोहे का उपयोग किया जाता है। लोहे की मात्रा किसी भी मिट्टी में प्राकृतिक रूप में भी पायी जाती है। गोमती नदी जल के लिये गये नमूनों में इसकी मात्रा नीमसार से पिपराघाट तक क्रमश: बढ़ती ही जाती है। बाराबंकी में जाकर कुछ कम होती है। लिये गये 70 प्रतिशत नमूनों में लोहे की मात्रा उचित स्तर से अधिक थी। नगर में पेयजल के लिये भेजे जाने वाले नदी जल में इसकी मात्रा 0.3 mg/I है। जो मानक से अधिक है। लिये गये 520 नमूनों में 355 नमूनों में लोहे की मात्रा अधिक पायी गयी।

सीसा Lead : (Pb) -

रासायनिक अम्ल और रासायनिक यौगिक उत्पन्न करने वाले उद्योग सीसा अधिकतम उत्सर्जित करते हैं। सीसे का उपयोग विविध उद्योगों विद्युत, इलेक्ट्रॉनिक, बैट्री, दवाओं की पैकिंग, पेंटस, टैंकों के निर्माण आदि में किया जाता है। यही सीसे के उत्सर्जक भी हैं। सीसे का उपयोग लगभग 200 उद्योगों में किया जाता है। इस प्रकार इसके विविध रूपों में उत्सर्जक हैं। गोमती नदी से संकलित सभी नमूनों में सीसे की मात्रा पायी गयी 8 स्थानों से संकलित नमूनों में इसकी मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पेयजल के लिये निर्धारित मात्रा .05 mg/I से कम थी नदी जल के लिये गये 520 नमूनों में से केवल 13 में ही सीसे की उपस्थिति .05 mg/I से अधिक थी।22

उपर्युक्त प्रमुख रसायनों के अतिरिक्त पारा, (Hg), तांबा (Cu) मैग्नीज (Mn) जिंक (Zn) निकिल (Ni) आदि खनिजों की परिमित मात्रा गोमती जल में पायी गयी। परिशिष्ट-21 बीएचसी, डीडीटी तथा इण्डोसल्फान जैसे घातक कीटनाशकों की मात्रा गोमती जल में निर्धारित मानक से अधिक पायी गयी है। (तालिक - 2.9)

गोमती नदी के तल में लखनऊ के आस-पास भारी पदार्थों का प्रदूषण

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ब. जल प्रदूषण के स्रोत

जल प्रदूषण के भौतिक स्रोत-

जल का रंग, प्रकाश भेद्यता, तेल एवं ग्रीस, कठोरता, लटकते एवं घुले ठोस कण आदि, खराब रंग, सल्फाइड्स, फेनोलिक यौगिकों, सीवरों की व्यवस्था एवं पेट्रोरासायनिक जल धाराओं से प्रदूषण उत्पन्न होता है।

रासायनिक स्रोत-

अम्ल, लवण, क्षार तथा रेडियो धर्मी पदार्थ रासायनिक प्रदूषक है। ये उद्योगों तथा सीवर व्यवस्था से निकलते हैं। मुख्य रासायनिक प्रदूषक-क्लोराइड्स, सल्फाइड्स, कार्बोनेट, अमोनिया युक्त नाइट्रोजन, नाइट्रेट नाइट्रीट, कीटनाशक, खरपतवार नाशक, साइनाइट, भारी धातुओं में जिंक, पारा, सीसा, आर्सेनिक, बोरीन आदि है। इनमें से पारा तथा साइनाइट्स जलजीवन के लिये अत्यंत खतरनाक है।

नगरीय जलस्रोतों के प्रदूषित होने का कारण, अपशिष्ट वाहक नाले, सीवर, टैंक तथा जलापूर्ति की जीर्ण पाइप लाइनें हैं। नगर में पेयजल की आपूर्ति गोमती नदी से की जाती है। गोमती नदी लखनऊ नगर की जलापूर्ति का प्रमुख स्रोत हैं गोमती नदी से प्रति दिन 280 mld जलापूर्ति की जाती है, इतनी ही जलापूर्ति भू-गर्भ जल से नलकूपों द्वारा की जाती है। इस जल का विविध रूपों में उपयोग किया जाता है तथा जल अपशिष्ट रूप में नालों और सीवरों द्वारा गोमती नदी में छोड़ दिया जाता है।

गोमती जल प्रदूषण के स्रोत : नाले, नदियाँ तथा सीवर

गोमती जल की प्रदूषक औद्योगिक इकाइयाँ

सीवर जनित उत्छिष्ट पदार्थ

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ग्रामीण एवं कृषि जनित प्रदूषित पदार्थ

नगरीय उच्छिष्ट पदार्थ

शवदाह या श्मशान घाट (Crematorium)

धोबीघाट एवं स्नान घाट

खुले स्थानों पर शौच

मलिन बस्तियाँ और झुग्‍गी झोपड़ियाँ

पशु एवं गोशालाओं द्वारा प्रदूषण

भू-गर्भ जल प्रदूषण के स्रोत

स. जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव

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कीटनाशक एवं उर्वरकों का दुष्प्रभाव

डिटर्जेंट के दुष्प्रभाव

मरकरी का दुष्प्रभाव

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कैडिमियम का दुष्प्रभाव

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रंजक रसायनों का दुष्प्रभाव

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फ्लोराइड के दुष्प्रभाव

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फास्फोरस -

की अधिकता से नीलहरित शैवाल की बढ़वार होती है और जलराशि के शैवाल से ढकने पर सड़न उत्पन्न होती है। जल दुष्प्रभावित होता है और मछलियाँ मरने लगती है। जलाशय पार्थिव मात्र बनकर रह जाते हैं। नाइट्रोजन ऑक्साइड और अमोनिया विभिन्न कार्बनिक रूपों में नाइट्रोजन मौजूद रहता है। इसकी अधिकता पशुओं तथा जलीय जीवों को हानि पहुँचाता है तथा मनुष्यों में विविध प्रकार के रक्त तथा स्नायु मंडल की बीमारियाँ उत्पन्न करता है।22

गोमती जल के अध्ययन में सागर तथा पाण्डेय23 ने पाया कि लोहे और मैग्नीज की उपस्थित से जल का स्वाद प्रभावित रहता है। अत: पेय योग्य नहीं रहता फ्लोरीन जैसे पदार्थों की कुछ क्षेत्रों में कमी होना दाँतों की बीमारियों का कारण बनता है। गोमती जल में कॉपर, सीसा, जिंक, जस्ता, निकल, कोबाल्ट तथा कुछ नमूनों में आर्सेनिक भी उच्च मानकों तक पाया जाता है।

द. जल प्रदूषण नियंत्रण एवं नियोजन

औद्योगिक जल प्रदूषण नियंत्रण

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1. भौतिक उपचार या अलगाव क्रिया -

अपशिष्ट पदार्थों को जलधारा से अलग कर लिया जाता है। तथा अपशिष्ट जल को छोटे-छोटे तलाबों में रोक कर अपशिष्ट पदार्थों का जमाव किया जाता है जिससे अपशिष्ट जल से नदी काफी हद तक बची रहती है। यह विधि उद्योगों के लिये उपयोगी हैं यह विधि अधिक अर्थ साध्य भी नहीं हैं। एक बार व्यवस्था करने पर यह क्रम स्वत: चलता रहता है।

2. जैविक उपचार -

जैविक उपचार प्रक्रिया का उपयोग दो प्रकार से किया जाता है वायु साध्य एवं वायुरहित। वायु साध्य प्रक्रिया में अपशिष्ट जल में अतिरिक्त ऑक्सीजन देकर सूक्ष्म जीवाणु बैक्टीरिया आदि विकसित किये जाते हैं। जो कार्बनिक पदार्थ को कार्बनडाइऑक्साइड, जल और सल्फेट में परिवर्तित कर देता है। वायु रहित उपचार प्रक्रिया का प्रयोग ठोस भारी कार्बनिक पदार्थों के उपचार हेतु प्रयोग किया जाता है। सूक्ष्म जीवाणु क्रिया के पश्चात फल एवं सब्जी प्रसंस्करण उद्योगों के अपशिष्ट धाराओं में नाइट्रोजन मिला दिया जाता है। इस विधि का उपयोग चर्म शोधन, वस्त्रउद्योग तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में काम में लाई जा सकती है।

3. रासायनिक उपचार -

इस विधि से अम्लों व क्षारों को निष्क्रिय किया जा सकता है। इस विधि द्वारा इलेक्ट्रोप्लेटिंग, लुग्दी, रसायन एवं शुष्क धुलाई उद्योगों के अपशिष्टों को जल से अलग किया जा सकता है। इस विधि में अम्लों एवं क्षारों को निष्क्रिय करके पीएच का समायोजन किया जाता है।

नदी अपनी भौतिक प्रकृति के कारण कार्बनिक अपशिष्ट सहन करने की क्षमता बहुत कम रखती है। नदी में जैसे ही अपशिष्ट पहुँचता है। उसी समय उसका ऑक्सीकरण प्रारम्भ हो जाता है। इस क्रिया से कार्बनडाइऑक्साइड और जहरीली गैसे नदी में मिल जाती है। कार्बनिक पदार्थ का बैक्टीरिया की क्रिया के कारण अपघटन होता है। यह ग्रीष्म ऋतु में शीघ्र प्रारम्भ होता है। बैक्टीरिया की अपघटन क्रिया पूर्ण होते ही नदी जल स्वत: स्वच्छ हो जाता है।

मोहन मीकिन लखनऊ तथा हरगाँव (सीतापुर) मदिरा फैक्ट्री जो अत्यंत विषैले तरल पदार्थ एल्डिहाइड और डीम जैसे तरल पदार्थों को शुद्धिकरण के पश्चात नदी में निस्तारित करते हैं। यह निस्तारित पदार्थ शुद्धिकरण के पश्चात भी बहुत अधिक प्रदूषित और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है। नदी में निस्तारित न करने के लिये प्रशासन को योजना देना चाहिए।

बड़ी औद्योगिक इकाइयों का स्थानांतरण करना भी इस दिशा में एक उपयुक्त प्रयास है। बड़ी इकाइयों को सरकारी तौर पर छूट व सहायता करके नगर से बाहर स्थापित करने की दिशा में प्रोत्साहित किया जा सकता है।

सीवर/नालों का उपचार एवं निस्तारण

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कचरा निस्तारण

श्मशान घाट

कृषि में प्रयुक्त कीटनाशी एवं खरपतवारनाशी रसायनों का उपचार

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धोबी घाट एवं स्नान घाट

सार्वजनिक शौचालयों की व्यवस्था (सामुदायिक शौचालय)

मलिन बस्तियाँ एवं झुग्गी झोपड़ियाँ

पशु जनित प्रदूषण से बचाव

तटीय भू-क्षरण को रोकना

जनजागरूकता

भू-गर्भ जल प्रदूषण नियंत्रण

27

पेयजल प्रदूषण नियंत्रण

28
4

कानून बनाना एवं उनका पालन करना

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27. Environmental Appraisal of Lucknow, Report by Lucknow Jal Nigam- 1993
28. Chairman U.P. State Pollution Control Board, Lucknow.

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