केन बेतवा लिंक मैप
केन बेतवा लिंक मैप

यूपी के लिए वरदान या अभिशाप बनेगी केन-बेतवा नदी-लिंक परियोजना

25 दिसंबर 2024 को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस पर परियोजना का औपचारिक शुभारम्भ करेंगे। परियोजना के प्रथम चरण में प्रधानमंत्री मध्य प्रदेश में खजुराहो के निकट पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र में केन नदी पर 3400 करोड़ की लागत से बनाये जाने वाले 77 मीटर ऊँचे और 2031 मीटर लम्बे ढोढन बाँध की आधार शिला रखकर प्रोजेक्ट की शुरुआत करेंगे। यह सारी कवायद बुंदेलखंड के सूखे का समाधान को लेकर है, इस मुद्दे पर गुंजन मिश्रा की एक भली सलाह।
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विश्व जल दिवस पर माननीय प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच केन बेतवा गठजोड़ को लेकर समझौता हुआ। जिस पर मुझे वर्ष 2001 से 2004 तक अध्ययन करने का मौका डॉ वंदना शिवा के मार्गदर्शन में मिला था। केन बेतवा गठजोड़ इसके अंतर्गत लगभग 50 वर्ग किलोमीटर इसके अंतर्गत केन नदी पर पन्ना नेशनल टाइगर पार्क के बीच 73. 4 मीटर ऊँचा और 1468 मीटर लम्बा बांध बनाकर और उससे 231.45 किलोमीटर लम्बी नहर निकालकर 1020 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी बेतवा नदी में ट्रांसफर किया जाएगा। जिसकी लागत 2004 में रु 1988. 74 करोड़ थी, आज इसकी लागत लगभग रु 45000 करोड़ हो गयी। इतना पैसा खर्च करने पर भी अगर 10 गांवों के स्थानीय लोगों को विस्थापित व् कृषि भूमि का अधिग्रहण करने के पश्चात भी स्थायी रोजगार न मिल सके तब इतना पैसा विकास के नाम पर खर्च करने का कोई महत्व नहीं रह जाता है। नहर जिसके रास्ते में कई राष्ट्रीय और राज्य मार्ग, रेलवे लाइन, पुल, घाटिया, पड़ेगे तब हो सकता है कि केन के जल को बेतवा तक ले जाने के लिए पंप भी करना पड़ सकता है। यानी जितनी बिजली, 72 मेगावाट, केन बेतवा गठजोड़ में बनेगी उससे कहीं ज्यादा पानी को पंप करने में खर्च हो जायेगी।

केन नदी में पानी

केन नदी में इतना पानी उपलब्ध ही नहीं है जितना कि बेतवा नदी में ट्रांसफर किया जाना है। क्योंकि रेत एवं पत्थर खनन व जलवायु परिवर्तन के कारण नदिया सूख रही है एवं भूमिगत जल पातल में जा रहा है। यही कारण है कि गर्मियों में केन नदी बांदा जिले में सूख जाती है। बुंदेलखंड में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण पहले लगभग 52 दिन बारिश होती थी, लेकिन अब बारिश की अवधि घटकर मात्र 25 दिन रह गयी है। इस परियोजना पर जो अध्ययन राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी द्वारा किया गया अगर उसको भी ध्यान से देखा जाय तो स्पष्ट है कि केन में बेतवा नदी से कम पानी है। यानी इस परियोजना में छोटी नदी का पानी बड़ी नदी में ट्रांसफर किया जाना है, जो की नदी गठजोड़ परियोजना के सिद्धांत के विरुद्ध है। 

वन्यजीवन खतरे में 

पन्ना नेशनल टाइगर पार्क की लगभग 50 वर्ग किलोमीटर जमीन डूब क्षेत्र में आएगी जिससे पार्क में जंगली जानवरो की 10 ऐसी प्राजतियां है जो वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम 1972 अनुसूची 1 के अंतर्गत आती है, 23 प्रकार की मछलियां, 153 प्रजाति के पंछी, 229 प्रजाति के पेड़ पौधे आदि डूब क्षेत्र में आकर नष्ट हो जायेगे। इसके अलावा सरकार की तरफ से इस गठजोड़ में किसानो की आमदनी बढ़ाने के लिए संपर्क नहर के किनारे नकदी फसलों को भी बढ़ावा दिया जाएगा यानी वो फैसले जिनमे सिंचाई की आवश्यकता ज्यादा होती है। कुल मिलाकर किसानो को जितना फायदा होगा वो रासायनिक खाद, कीटनाशकों एवं सिंचाई पर किसान को खर्च करना पड़ेगा। कोदो, कुटकी, जौ, बाजरा, इत्यादि की बात करे, ये वो अनाज है, जो की पिछले सेकड़ो सालो से बुंदेलखंड के लोगो की जरूरतों को पूरा कर रहे है। ये अनाज स्वास्थ की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होते है, क्योकि इन अनाजों में सबसे पहला गुण यह है कि ये क्षारीय होते है। ये बात वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है की क्षारीय वातावरण में कोई भी बीमारी पैदा नहीं हो सकती। अतः इन अनाजों का क्षारीय गुण मानव शरीर के अंदर के वातावरण को क्षारीय रखता है जिससे छोटी व बड़ी बीमारिया मानव शरीर में पनप नहीं पाती है। दूसरा, वैज्ञानिको द्वारा की गयी रिसर्च से ये साबित हो चुका है। (न्यूट्रीशन रिसर्च अप्रैल 2010 30 (4) :290-6 व जर्नल ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड फूड केमिस्ट्री, 9 जून 2010 58 (11):6706-14) की छोटे अनाजों में हृदय से संबंधित बीमारियां को रोकने की क्षमता होती है व ये एंटीऑक्सीडेंट की तरह कार्य करते है। महिलाओं के लिए स्वास्थ की दृष्टि से ये छोटे अनाज तो एक तरह से वरदान होते है। इसके अलावा आम आदमी जिन बीमारियों से जूझ रहा है जैसे मधुमेह, ब्लड प्रेशर, अस्थमा आदि उनके लिए ये अनाज विश्व में उपलब्ध किसी भी दवाई से बेहतर है। अतः आने वाले समय में बुंदेलखंड के किसानो का खेत एक मेडिकल स्टोर की तरह उनको व्यापार करने का व पैसा कमाने का मौका दे सकता है सिर्फ जरुरत है अपने पारम्परिक खेती के ज्ञान व तरीको को समृद्ध करने की। वो दिन दूर नहीं जब शहर के अमीर लोग पुरानी से पुरानी कार्बनिक मिटटी में पुराने बीजों से उगाये अनाजों को महँगी दवाइयों की तरह किसी भी कीमत पर खरीदने को मजबूर होंगे। क्योकि अब ये निश्चित हो चुका है, कि दवाइयों का प्रभाव दिन पर दिन कम होता जा रहा है वजह हम सब जानते है। दूसरा कारण दुनिया की कोई भी महंगी से महंगी दवाई का प्रभाव उतना स्पष्ट व स्वस्थ नहीं हो सकता जितना की एक स्वस्थ धरती से पैदा किया हुआ अनाज का। अगर व्यक्ति को सही तरीके से उगाया गया अनाज मिलने लगे तो जितनी भी ये भयानक व खर्चीली बीमारियां है, वो नहीं होगी। अगर हम सामाजिक स्तर पर भी इन छोटे अनाजों के गुणों को नजरअंदाज नहीं कर सकते क्योंकि इनमे सेरोटोनिन (मोनोएमीन न्यूरोट्रांसमीटर) पाया जाता है। जो व्यक्ति के मस्तिष्क को शांत रखता है। जिससे परिवार व समाज में एक सौहार्द व प्रेम का वातावरण बना रहता है। इसीलिए हमारे पूर्वजों का कहना था कि किसान किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी होता है। क्योंकि किसान देश के लोगों को जैसा भोजन देगा, वैसा उस देश के लोग व वातावरण होगा। अतः अगर किसान चाहे, तो विश्व से आतंकवाद जैसी समस्या को दूर कर सकता है। 

दौधन बांध और पानी

केन नदी पर पन्ना नेशनल टाइगर पार्क के बीच जो दौधन बांध बनाया जाएगा उसकी डिजाइन में अवसादन दर 357 क्यूबिक मीटर प्रति वर्ग किलोमीटर प्रति वर्ष मानी गयी है लेकिन जंगल की कटाई होने के कारण अवसादन दर स्वाभाविक है ज्यादा होगी। राष्ट्रीय केंद्र मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग योजना के अनुसार मिट्टी की अपरदित दर माध्यम से लेकर अपने उच्चतम दर पर आंकी गयी है। जिससे बांध की उपयोगिता 100 वर्ष जो अनुमानित है, नहीं होगी वैसे भी दो पहाड़ियों के बीच बनाने वाले बांध में अवसादन दर बहुत ज्यादा होगी।

बुंदेलखंड में केन बेतवा गठजोड़ का विकल्प तालाब

बुंदेलखंड में केन-बेतवा गठजोड़ का विकल्प तालाब ही क्यों, इसका उत्तर तो चंदेल और बुंदेली राजाओं ने आज से 500 साल पहले बुंदेलखंड में तालाब बनवाकर दिया था। क्योंकि उनके बनवाये तालाब आज भी बुंदेलखंड के हर जिले में उपयोगी है। इसके अलावा बुंदेलखंड की कृषि भूमि में कार्बनिक कार्बन की मात्रा कम होने के कारण कृषि भूमि की नमी बनाये रखने के लिए तालाब का किसान के पास होना बहुत जरुरी है। क्योंकि अगर बांधो के माध्यम से बुंदेलखंड की प्यास पूरी होती या बुझती तो ललितपुर में एशिया में सबसे ज्यादा बांध है इसके बाबजूद वह की 30 - 40 % कृषि भूमि असिंचित है। अगर बांध और तालाब की तुलना की जाय तो बांध से विस्थापन होता है, जंगल नष्ट होते है, किसान को सिंचाई के लिए कभी भी समय से पानी नहीं मिलता, बांध के सिर्फ 30-40% जल का उपयोग हो पाता है, बांध से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है, लेकिन तालाब से ऐसा कुछ नुकसान नहीं होता है। खेत तालाब आत्महत्या, रोज़गार, कुपोषण, पलायन, अन्ना प्रथा, उपजाऊ मिटटी का क्षरण, पानी को लेकर लड़ाई झगडे, आदि को रोककर तालाब पशु पक्षियों को आमंत्रित करते है जिससे किसानो को कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना पड़ता है। इस प्रकार किसान हिंसात्मक कृषि न करके महात्मा गाँधी, विनोवा, नाना जी देश मुख एवं तालाबों के जानकार अनुपम मिश्रा जी जैसे महान लोगो के विचार अगली पीढ़ी में स्थान्तरित करके उनको सच्ची श्रद्धांजलि दे पाते है एवं जैव विविधता का संरक्षण करके हम सब कोरोना वायरस जैसी बीमारियों से भी बचे रहते है। अगर हम आज की तारीख में केन बेतवा गठजोड़ की आधी कीमत यानी रु 22000 करोड़ को लेकर अगर तालाबों का निर्माण कराते है तो 1200 क्यूबिक मीटर क्षमता वाले, तालाब की कीमत रु 2 लाख भी लगाए तो, 14 लाख के आस पास तालाब बन जायेगे ।

अगर वैश्विक स्तर देखा जाय तो भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के द्वारा जो कम कार्बन जीवन शैली के दिशा निर्देशों व आंकड़ों के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन की बोरवेल कारक के हिसाब से गणना की जाए तो पूरे बुंदेलखंड में तालाबों के माध्यम से लगभग 51 लाख टन कार्बन-डाइऑक्साइड का ह्रास प्रतिवर्ष तालाबों के माध्यम से होता है जो की एक बहुत बड़ी मात्रा है। अतः यह कहा जा सकता है कि बुंदेलखंड की कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की समस्या तालाबों के माध्यम से हल हो जायेगी एवं बुंदेलखंड वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन में पेरिस समझौता में अपना सहयोग भी देता है या बड़े पैमाने पर दे सकता है। 

नानाजी देशमुख की सीख क्या है 

यही वजह थी, कि तालाबों के उपरोक्त लाभों के कारण चित्रकूट से लौटकर 30 मार्च 2003 को नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक रैली में माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि" नानाजी से सीखे, कैसे बदला जा सकता है देश "। चित्रकूट के उस इलाके में जहा डाकुओं का बड़ा जोर था, आतंक था, लोगों का जीना मुहाल था। लेकिन जब बारिश का पानी तालाबों के माध्यम से रोका गया तो खेतों में गेहूं की हरी हरी बालिया खड़ी हो गईं और ज़िंदगी का रूप बदलने लगा। नानाजी ने भी एक बूढ़े किसान से सीख लेकर जल संरक्षण पर कार्य शुरू किया था और जल प्रबंधन योजनाओं के सुखद परिणाम को देखकर यही कहा था, कि पता नहीं क्यों राजनेता और नौकरशाह इसे सफल बनाने में रुचि नहीं रखते है।

इसलिए बुंदेलखंड में केन बेतवा गठजोड़ की नहीं बल्कि किसान को ऐसी कृषि से जोड़ने की जरूरत है जिसमे स्थानीय और वैश्विक पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान हो। 

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