संदर्भ गंगा- रिहन्द और सोन
मध्य प्रदेश में विंध्य की पहाड़ियों से निकली सोन नदी उत्तर प्रदेश के दक्षिणी हिस्से के जनपद मिर्जापुर से होकर बहती है। जिले की रिहंद और घाघर सोन की सहायक नदियां हैं। सोन नदी पटना के पास जाकर गंगा में मिलती है। बिजली विभाग ने 1962 में रिहंद नदी पर एक बांध बनाया। रिहंद जलाशय के इर्द-गिर्द कई ताप बिजलीघर, अल्यूमीनियम और रसायन उद्योग हैं, जो उसे प्रदूषित करते हैं। इस जलाशय में सबसे खतरनाक प्रदूषक धातु पारा पाया गया है, जिसके कारण जापान के मिनिमाता में भयंकर जानलेवा महामारी फैली थी। मिर्जापुर के कई सीमेंट कारखानों की धूल, ताप बिजली कारखानों का धुंवा वायुमंडल को प्रदूषित कर अंततः रिहंद, सोन और गंगा के प्रदूषण का कारण बनता है। (बिजली विभाग ने रिहंद जलाशय मछली उत्पादन कराने के लिए मत्स्य विभाग को दे रखा है। किन्तु इस विशाल जलाशय में गंभीर प्रदूषण के दो तात्कालिक दुष्परिणाम देखे गये हैं। पहला तो मछलियों के उत्पादन में अत्यधिक गिरावट और दूसरा पिपरी कस्बे की पेयजल आपूर्ति के स्रोत में प्रदूषण।
इस जलाशय में प्रदूषण का अध्ययन मत्स्य विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और किर्लोस्कर कंसल्टेंट्स लि० पुणे द्वारा 1984 में किया जा चुका है।
किर्लोस्कर कंसल्टेंट्स के अध्ययन में बताया गया है कि मेसर्स कनोरिया केमिकल्स लिमिटेड के उत्प्रवाह से रिहंद जलाशय प्रदूषित है। कनोरिया केमिकल्स के उत्प्रवाह में पारे का औसत 20 से 150 मि०ग्रा० प्रति लीटर पाया गया जो अत्यंत खतरनाक हालत बताता है।
सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट की वार्षिक रपट 1985 तथा उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग के एक अध्ययन में भी इस फैक्ट्री द्वारा जलाशय को प्रदूषित करने का विवरण मिलता है।
इन दोनों अध्ययनों में बताया गया है कि मेसर्स कनोरिया केमिकल्स कास्टिक सोडा, ब्लींचिग पावडर एवं बैन्जीन हैक्सा क्लोराइड बनाती है। फैक्ट्री के प्रदूषित जल में क्लोरिन 26 से 29.5 मि०ग्रा० प्रति ली०, क्लोराइड 860 से 890 मि०ग्रा० प्रति ली०, क्षारीयता 950 से 120 मि०ग्रा० प्रति लीटर पायी गयी है। घुलित आक्सीजन शून्य और पी०एच० 4.6 अर्थात अत्यधिक अम्लीय इस समग्र विषम स्थिति के फलस्वरूप जलाशय की स्थिति अत्यंत प्रतिकूल हो जाती है। मछलियों की मृत्यु होती है और जो जिन्दा रहती है, उनकी उत्पादकता पर कुप्रभाव पड़ता है।
मुख्य बांध के समीप इस फैक्ट्री का दूषित जल गिरने के कारण निरंतर मछलियों की मृत्यु देखी गयी है। लेकिन मत्स्य विभाग कोई सीधी कार्यवाही करने में अपने को समर्थ नहीं पाता। विभाग ने फैक्ट्री को सुझाव दिया था कि वह अपना दूषित जल साफ करके जलाशय के नीचे रिहंद नदी के बहाव में गिराये। एफ्लुएंट बोर्ड के सदस्य सचिव ने वर्ष 1966 में फैक्ट्री अधिकारियों को ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के निर्देश दिया था। प्लांट लगा दिया गया, फिर भी मछलियों का मरना जारी रहा क्योंकि वह ठीक से काम नहीं कर रहा था। उत्तर प्रदेश के कारखाना निरीक्षक सुझाव पर 1970 में दूषित उत्प्रवाह के सेप्टिक जोन के इर्द-गिर्द मोनोफिलमेंट सिन्थेटिक फाइबर जाल लगाया पर उसका कोई असर नहीं हुआ। रिहंद बांध के समीप स्थित अल्यूमीनियम उत्पादक कारखाना हिंडाल्को भी रिहंद नदी को प्रदूषित करने वालों में से एक है।
कनोरिया केमिकल्स और हिंडालको के दूषित उत्प्रवाह से रिहंद नदी का पानी तेजाबी हो गया है। इस क्षेत्र में बसे रिहंद बांध के विस्थापित इसका दुष्परिणाम झेल रहे हैं। रिहंद जलाशय के इर्द-गिर्द कई थर्मल पावर प्लांट्स बनाये गये हैं। इनमें हिंडाल्को को बिजली सप्लाई करने वाली रेणुसागर पावर कंपनी, सिंगरौली, अनपरा, रिहंद, विंध्याचल आदि सुपर थर्मल पावर प्लांट्स बन चुके हैं या फिर निर्माणाधीन हैं।
रिहंद बांध के नीचे ओबरा बांध बनाया गया है, जो ओबरा ताप विद्युत गृह की जरूरत पूरी करता है।
ताप विद्युत गृह अपने धुएं और कोयले की राख से वायुमण्डल और जलाशय तो प्रदूषित करते ही हैं, जलाशय से पानी लेकर उसमें वापस गरम पानी छोड़ते हैं। मत्स्य विभाग, उत्तर प्रदेश की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जलाशय में एक हजार मी० तक रेणुसागर पावर कंपनी का कुप्रभाव रहता है। इसलिए जलाशय की तलहटी पर कोई जीव-जन्तु नहीं रह सकते। यह रिपोर्ट सी०आई०एफ०आर०आई० के अध्ययन पर आधारित है।
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम द्वारा निर्मित सिंगरौली सुपर थर्मल पावर स्टेशन का गरम पानी जलाशय में छोड़ा जाता है। विष की उपस्थिति में 10 से०ग्रे० तापक्रम की वृद्धि पर भी मछलियों की जीविका दर आधी हो जाती है। ताप विद्युत गृह के उत्प्रवाह का तापक्रम 40 से०ग्रे० से अधिक होता है तो उसमें जीव-जन्तुओं के जीवित रहने की संभावना अत्यधिक कम हो जाती है। गरम पानी में घुलित आक्सीजन कम हो जाती है, जबकि अधिक तापक्रम होने पर मछली के लिए आक्सीजन की जरूरत भी बढ़ जाती है। 17 जनवरी, 1983 को सिंगरौली ताप विद्युत गृह की वजह से रिहंद जलाशय में बड़े पैमाने पर मछलियों की मृत्यु हुई थी।
मछलियां अपने अंडे देने के लिए किनारे के छिछले पानी में आती हैं। लेकिन इन कारखानों के कारण उनका प्रजनन क्षेत्र अत्यधिक प्रदूषित हो जाने से उत्पादकता पर अत्यधिक प्रतिकूल असर पड़ा है। जलाशय के किनारे प्रजनन बिन्दु न मिलने के कारण अब मछलियों को रिहंद नदी के ऊपरी क्षेत्र में जाना पड़ता है।
इस जलाशय में मछलियां की उत्पादकता पर असर डालने वाला एक अन्य प्रमुख कारण सिंगरौली तथा बीना कोल माइन्स में डायनामाइट का प्रयोग है।
रिहंद जलाशय का उपयोग जल एवं ताप बिजली बनाने के अलावा पिपरी नगर की पेयजल आपूर्ति, सिंचाई एवं मछली पालन के लिए होता है, इसलिए उसके प्रदूषण से महामारी फैलने की आशंका को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वर्ष 1981 से उसका अध्ययन कर रहा है। यद्यपि इस अध्ययन से प्रदूषण की रोकथाम नहीं हुई है। बोर्ड के पास पारे की जांच के साधन न होने से वह इस सर्वाधिक घातक धातु का अध्ययन नहीं कर सका।
जनवरी से मार्च 1988 के जांच निष्कर्ष में बताया गया है कि प्रदूषण के कारण जलाशय का पानी पीने अथवा नहाने लायक नहीं है। समुचित शुद्धिकरण के बाद ही इसका उपयोग पेयजल के रूप में किया जा सकता है।
रिहंद में औद्योगिक प्रदूषण के जहर से मछली उत्पादन नाम मात्र का रह गया है। जो मछली बची भी हैं, जलाशय के दूषित पानी के कारण उनके अंदर मौजूद विष की वजह से उनको खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
इस सम्पूर्ण स्थिति का सीधा दुष्प्रभाव इस क्षेत्र के मछुआरों पर पड़ा है।
यहीं पास में विशाल ओबरा ताप विद्युत गृह की चिमनियों का धुवां एक लाख से अधिक लोगों की सांसों में जहर घोल रहा है। इस विद्युत गृह की पानी की जरूरत पूरी करने के लिए रिहंद बांध से कुछ दूर नदी की निचली धारा में ओबरा बांध बनाया गया है। इस बिजलीघर के गरम और जहरीले पानी से रिहंद और सोन दोनों नदियां विषैली हो गयी हैं।
सीमेंट, चूना, बिजली, अल्यूमीनियम और रसायन उद्योगों से मिर्जापुर जिले के इस क्षेत्र में जो भयंकर आकाश, वायु तथा जल प्रदूषण हो रहा है, उससे स्थानीय निवासी अत्यधिक चिंतित हैं। लोग यह भी कहने लगे हैं "मिर्जापुर भोपाल बनेगा, कल कारखाना काल बनेगा।"