बुन्देलखण्ड - तालाबों की खुदाई में ही खुदाई है

बुन्देलखण्ड - तालाबों की खुदाई में ही खुदाई है

Published on
5 min read


बुन्देलखण्ड में जलसंकट कोई नया नहीं है। आज के हजार साल पहले से सूखे से निपटने के लिये बुन्देलखण्ड का समाज कोशिश करता रहा है। तब के राजाओं ने पानी के संकट से जूझने के लिये बड़े-बड़े तालाब बनाए थे। जल संकट से निजात के लिये बुन्देलखण्ड में आठवीं शताब्दी के चन्देल राजाओं से लेकर 16वीं शताब्दी के बुन्देला राजाओं तक ने खूब तालाब बनाए।

चन्देल राजकाल से बुन्देला राज तक चार हजार से ज्यादा बड़े-विशाल तालाब बनाए गए। समाज भी पीछे नहीं रहा। बुन्देलखण्ड के लगभग हर गाँव में औसतन 3-5 तालाब समाज के बनाए हुए हैं। पूरे बुन्देलखण्ड में पचास हजार से ज्यादा तालाब फैले हुए हैं।

चन्देल-बुन्देला राजाओं और गौड़ राजाओं के साथ ही समाज के बनाए तालाब ही बुन्देला धरती की हजार साल से जीवनरेखा रहे हैं और ज्यादातर बड़े तालाबों की उम्र 400-1000 साल हो चुकी है। पर अब उम्र का एक लम्बा पड़ाव पार कर चुके तालाब हमारी उपेक्षा और बदनीयती के शिकार हैं।

तालाबों को कब्जेदारी-पट्टेदारी से खतरा तो है ही, पर सबसे बड़ा घाव तो हमारी उदासीनता का है। हमने जाना ही नहीं कि कब तालाबों के आगोर से पानी आने के रास्ते बन्द हो गए। हम समझना नहीं चाहते कि हमारी उपेक्षा की गाद ने कब तालाबों को पाट दिया।

तालाबों की बदहाली की कहानी

“अकेले महोबा शहर में ही वासुदेव चौरसिया की बात को सही ठहराने के अनेक उदाहरण मिल जाएँगे। एेसे अनेक कुएँ हैं जो पहले पानी के अच्छे स्रोत हुआ करते थे, लेकिन अब उनके पास हैण्ड पम्प लगा दिए जाने के कारण वे सूख गए हैं। महोबा शहर को मदन सागर जैसे तालाबों के अलावा मदनौ और सदनौ दो कुओं से पानी मिला करता था। मदनौ कुआँ अब ढक दिया गया है और सदनौ कुएँ पर अतिक्रमण करके घर बना लिया गया है।”

तालाबों से ट्यूबवेल तक

“जब पानी का स्तर नीचे चला जाता है, तो सम्पत्ति मामले में असमानता और बढ़ जाती है।”



भूजल पर बढ़ती हुई निर्भरता धनिकों की सत्ता को मजबूत करती है। ग्रामीण इलाके में धनिक तबके की सत्ता को बनाए रखने में एक टूल्स की तरह काम करने लगती हैं। 2008 में महोबा के दैनिक में खबर छपी। खबर के अनुसार,

“4 साल से लगातार गिरते भूजल स्तर से कृषि व्यापार ध्वस्त हो गया है। मुख्यालय सहित जनपद के 5 प्रमुख कस्बों में पानी का जुगाड़ लगाना ही एक काम बचा है। धोबियों का कारोबार ठप्प है। पानी के अभाव से दर की सामाजिक व्यवस्था में लोग उत्तरदायित्व से मुँह मोड़ने में कोई संकोच नहीं करते हैं। हालत इतनी बदतर हो गई है कि तमाम सक्षम लोग पानी का इन्तजाम कराने के नाम पर युवतियों की आबरू लूटने से बाज नहीं आते हैं। जैतपुर की एक युवती अपना दर्द बताते हुए कहती है कि पति व जेठ रोजी-रोटी की जुगाड़ में दिल्ली चले गए हैं। वो खुद बूढ़ी माँ की सेवा के लिये घर में रह गई है। गेहूँ खरीदने का तो वह पैसा भेज देते हैं। पर पानी अहम समस्या है। बगल में एक घर में लगे जेटपम्प से पानी लेने की जुगाड़ लगाई तो चाचा लगने वाले गृहस्वामी के युवा बेटे ने दबोच लिया। विरोध किया तो भविष्य में पानी न देने की धमकी दी। लाचारी में आबरू से समझौता करना पड़ा। जो हुआ सो हुआ। किसी तरह जरूरत भर का पानी तो मिल रहा है।”

विडम्बना यह है कि अभी भी कुछ लोग ट्यूबवेल तकनीक की वकालत करते मिल जाएँगे। इसमें कुछ तथाकथित विद्वानों द्वारा समर्थित किसान संगठन भी हैं। इनकी प्रमुख माँग का हिस्सा रहता है कि ‘गहरे ट्यूबवेल खोदे जाएँ’। विसंगति ही है कि अभी भी बुन्देलखण्ड में ट्यूबवेल और हैण्डपम्प पर बजट आबंटन और ध्यान ज्यादा है, तालाबों के लिये कम। ट्यूबवेल और हैण्डपम्प पर खर्चा बढ़ता ही जा रहा है, और एक दो साल के ही अन्दर 50 फीसदी से ज्यादा ट्यूबवेल औप हैण्डपम्प सूख जाते हैं।

बेवकूफी की गजब होड़ मची है जलस्तर गिर जाने से कम गहराई के ट्यूबवेल और हैण्डपम्प जब सूख जाते हैं, तो और गहरे खोदने की तैयारी शुरू हो जाती है। 100 फीट जलस्तर वाले सूख जाते हैं तो 200 फीट खोदने की तैयारी शुरू हो जाती है, फिर 200 से 300 सिलसिला जारी रहता है नीचे और नीचे जाने का। कोई भी इस बर्बादी पर सवाल नहीं उठाता।
अपना तालाब अभियान के संयोजक पुष्पेन्द्र भाई कहते हैं कि

कठोर चट्टानों वाली भूगर्भ की धरती बुन्देलखण्ड में भूजल की होड़ पैसे के लिये ज्यादा है, पानी के लिये कम। होना तो यह चाहिए कि किसी भी ट्यूबवेल खोदने वाले को एक तालाब बनवाना अनिवार्य कर देना चाहिए। जितना भूजल दोहन ट्यूबवेल वाले लोग करते हैं, उतना उन्हें धरती में उतारना अनिवार्य होना चाहिए।

संकट का विस्तार

वाटर एक्सप्रेस ने गर्माया महौल

‘पानी की ऐसी दिक्कत नहीं है कि हमें बाहर से रेल से पानी मँगवाना पड़े। हमने पानी के लिये प्रबन्ध किये हैं।’



मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट करके जल प्रबन्धन के नमूने पेश किये। चरखारी के पानी से लबालब तालाबों की फोटो (कोई पुरानी फोटो) अपने ट्विटर हैण्डल पर शेयर की। इसके जवाब में बुन्देलखण्ड के तालाबों के हालात से परिचित बहुत सारे लोगों ने सूखे तालाबों की फोटो कमेंट्स में शेयर की। जो सरकारी दावों को झुठला रहे थे। परिणाम यह हुआ कि पानी के दावों की यह गरमागरमी सचमुच के काम में बदल गई।

सरकार ने आनन-फानन में समाजवादी जलसंचय योजना की घोषणा की और बुन्देलखण्ड के चयनित 100 तालाबों के पुनर्जीवन के काम को तत्काल प्रभाव से शुरू कर दिया। तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन और मुख्य सचिव सिंचाई दीपक सिंघल को इस अभियान की देख-रेख का जिम्मा सौंपा गया।

काम कैसे हुआ

काम क्या हुआ

‘भैया! चाहे जो हुआ हो, पर खोदा ऐसा है कि अब 30-40 साल तक खोदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हाँ थोड़ा पहले जाग जाते, तो हमारा और भला हो जाता।’



बारिश खूब हो रही है। बुन्देलखण्ड के हालात बदले-बदले से नजर आते हैं। भयानक सूखे से जूझ रहा बुन्देलखण्ड अब बाढ़ से परेशान है। जबरदस्त बारिश राहत का पैगाम लेकर आई है। किसानों की खुशी का ठिकाना नहीं है, 4 साल बाद फिर अच्छी बारिश वाला साल आया है। 900 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश हो चुकी है।

बुन्देलखण्ड के सारे बाँध लबालब हो गए हैं। सारे तालाब खूब भरे हुए हैं। और उनके पनघट गुलजार हो गए हैं। हालांकि 400 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश बुन्देलखण्ड के तालाब और बाँध समा नहीं पाते, ऐसे में जरूरत है कि तालाबों की भण्डारण क्षमता और दो-तीन गुना बढ़ाई जाए। सूखा और बाढ़ दोनों से मुक्ति का रास्ता तो तालाब से होकर ही जाता है। फिलहाल तो तालाबों की खुदाई में ही खुदाई है।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org