गोकुल का तालाब बना तो बनने लगा आशियाना

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तालाब के नए अर्थशास्त्र को गांव के किसानों तक पहुंचाने का प्रयास अपना तालाब अभियान के तहत संजीदगी से किया गया तो, यह समझते देर नहीं लगी कि तालाब बनाकर हर साल होने वाली वर्षा के पानी को एकत्र कर आसानी से अपने उत्पादन को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। तालाब बनाने का तरीका और साधन भी आसान पहुंच के अंदर उपलब्ध है। किसान गोकुल के प्रथम निर्माण कार्य का कुल खर्चा तैंतालीस हजार रुपया आया है। जिससे छह एकड़ जमीन की फसल को एक पानी देने का जरिया बना है। 15 जनवरी/ 2014 महोबा उ.प्र. बुंदेलखंड के चिचारा गांव में जन्मा किसान का बेटा पढ़ाई के लिए एक बार शहर गया तो फिर गांव वापस लौटने का नाम ही नहीं लिया। जब तक माता-पिता के हाथ पैर चलते रहे तब तक गोकुल को गांव याद आता और फिर खर्चे की जरूरत उसे गांव तक ले जाती। इसी दौरान गोकुल ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ नौकरियों पर भी कोशिश शुरू कर दी। उनके हाथ वन विभाग में फारेस्ट गार्ड की नौकरी आ लगी। जिसे पाने के बाद तो जैसे कभी -कभार का ही रिश्ता गांव से रह गया।

वर्तमान में महोबा वन प्रभाग महोबा के चरखारी रेंज में तैनात वन दरोगा गोकुल प्रसाद अब छह एकड़ ज़मीन का किसान भी बन चुका था। किसान सिर्फ नाम का था गोकुल अपने हांथ से न तो किसानी करता था, ना ही खेती को तवज्जो ही ठीक से देता था। इसी कारण गोकुल को बटाईदार से जो भी चैत-बैशाख में मिलता मन मार कर ले लेता। गोकुल को खेती में अपने पानी की जरूरत तो महसूस होती थी। उसे भी लगता था कि अपने खेत पर पानी का पुख्ता प्रबंध हो जाए, तो खेती का उत्पादन बढ़ जाएगा। पर क्या करता, उस गांव में कुंआ-बोरिंग सफल ही नहीं थी, जिससे कि गोकुल हिम्मत जुटा पाता।

9 मई 2013 को अपना तालाब अभियान की विकास भवन महोबा में आयोजित बैठक के समय गोकुल प्रसाद ने भी इसमें प्रतिभाग किया और किसानों की फ़ेहरिस्त में अपना नाम दर्ज कराकर अपना तालाब बनाने के लिए संकल्प लिया। 12 मई 2013 को भूमि पूजन सम्पन्न कराकर तालाब निर्माण की शुरूआत के लिए अभियान के सहयोगियों सहित जिलाधिकारी महोबा श्री अनुज कुमार झा द्वारा खेत में फावड़ा चलाकर तालाब निर्माण की शुरूआत की गई। जे.सी.बी.मशीन की खराबी से हो रहे विलम्ब से कई बार गोकुल प्रसाद आहत दिखे। उन्हें इस बात की जल्दी थी कि जल्दी से जल्दी मेरा तालाब बन जाए। तालाब का काफी कुछ काम पूरा हुआ तो पानी की तेज वर्षा हो गई। जिससे तालाब का निर्माण जहां का तहां रोकना पड़ा।

तालाब निर्माण के दौरान गोकुल अपने खेत पर ही खुले आसमान के नीचे बसेरा बना चुका था। दिन की तपन और रात के मच्छरों का प्रकोप भी किसान गोकुल के पक्के इरादे को हिला नहीं सका। इसी दौरान गोकुल के मन में बात बैठ गई कि अब अपने रहने का ठिकाना बनाना है।।

तालाब की लम्बाई के अनुरूप चौड़ाई और जरूरत के अनुरूप गहराई का होना अभी बाकी था। पर वर्षा के पानी की अधिकता के चलते संभव नहीं हो सका। लेकिन वर्षा के जाते ही किसान गोकुल का अपने पैत्रिक गांव में पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके मकान की जगह फिर से अपना आशियाना बसने लगा। किसान गोकुल के बनते आशियाने को देखकर गांव में पड़ोसी अक्सर सवाल करते हैं कि गोकुल गांव के लोग तो शहर की तरफ जा रहे हैं, पर यहां मकान बनाकर जितना पैसा खर्च कर रहे हो उसका क्या फायदा है। गोकुल भी हंसते हुए जवाब देते हैं कि खेत का पानी खेत में गांव का पैसा गांव में।

हालांकि गांव के बाशिन्दे पहले गोकुल के इस निर्णय को उसका पागलपन ही समझते थे। गोकुल के तालाब के आकार-प्रकार को देखकर यही कहते थे कि गोकुल ने ज्यादा पैसे कमा लिए होंगे जिसे खेत में बर्बाद कर रहा है। कुछ तो किसान गोकुल का पागलपन ही समझते थे। पर अब गांव में उन्हीं बाशिन्दों के नजरिए में बदलाव दिख रहा है। इस बदलाव की वजह गोकुल के खेत में हरी-भरी फसल है। जिसकी सिंचाई तालाब में संचित वर्षा के पानी से की गई है। गोकुल के तालाब का निर्माण कार्य 40×14×2 मीटर तक हो पाया था। इस साल इसको 40×20×4 मीटर तक करना प्रस्तावित है।

लुभाने लगा अपना तालाब के पानी का अर्थशास्त्र

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