हिंडन नदी : जल बना जहर

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साधना सिंह, गाजियाबाद
कभी महानगर की पहचान मानी जाने वाली हिंडन नदी का अस्तित्व खतरे में है। इसका पानी पीने लायक तो कभी रहा नहीं, अब तो बच्चे भी नहाने से कतराने लगे हैं। इस नदी में प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि जलीय प्राणियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। ऐसे में हिंडन नदी अब केवल शोध करने तक ही सीमित रह गई है। शोधकर्ताओं ने भी नदी को सीवेज ट्रंक करार दे दिया है, जिसमें जीवन की कल्पना करना बेमानी होगा। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कार्रवाई केवल मॉनीटरिंग तक सिमट कर रह गई है तो प्रशासन ने भी कोई गंभीर प्रयास करने के बजाय मुंह फेर लिया है।

यूं तो जल को जीवन कहा जाता है, लेकिन अगर जल ही जीवन को जलाने लगे तो. नदी जो कभी शुद्ध हुआ करती थी, में ऑक्सीजन की मात्रा लगातार घटती जा रही है। बारिश में भी यह कमोबेश जल विहीन है। हिंडन नदी में लगातार औद्योगिक अपशिष्ट व पूजन सामग्री आदि डाले जाने से उसमें घुलित ऑक्सीजन की मात्रा दो से तीन मिलीग्राम प्रति लीटर रह गई है। हिंडन पर शोध करने वाली डॉ. प्रसूम त्यागी की मानें तो आमतौर पर ऑक्सीजन का स्तर छह मिलीग्राम प्रति लीटर या ज्यादा होना चाहिए। यही कारण है कि नदी में मोहन नगर व छगारसी के पास ही जलीय जीवन के नाम पर केवल काइरोनॉस लार्वा ही बचा है, जो भारी जल प्रदूषण का संकेत है। यह सूक्ष्म जीव की श्रेणी में आता है।

गत् वर्ष स्वयंसेवी संस्था जनहित फाउंडेशन ने भी ब्रिटेन की पर्यावरणविद् हीथर ल्यूइस के साथ मिलकर हिंडन पर शोध पत्र प्रस्तुत किया था। इसमें साफ कहा गया था कि अब हिंडन सीवेज ट्रंक हो चुकी है, जिसमें पेस्टीसाइड के साथ रासायनिक तत्व भी मौजूद हैं। फाउंडेशन के निदेशक अनिल राणा ने भी कहा कि पेपर मिल, शुगर मिल, डिस्टलरी, केमिकल और डाइंग फैक्टरी के अपशिष्ट बिना ट्रीटमेंट के सीधे हिंडन में डाले जा रहे हैं।

वर्ष 2006 में हिंडन में घुलित ऑक्सीजन पर एक नजर

स्थान- मार्च- अक्टूबर

गागलहेड़ी- 2.1 – 05

महेशपुरी- 2.8- 4.2

बरनावा- 2.9- 4.6

डालूहेड़ा- 3.1- 2.1

मोहन नगर- 1.7- 2.5

छगारसी- 1.9- 3.7

कुलेसरा- 3.4- 3.9

शोधकर्ताओं की मानें तो मौजूदा समय में ऑक्सीजन की मात्रा और भी घटी है। अगर अब भी प्रशासन सतर्क नहीं हुआ तो हिंडन प्रदूषण फैलाने वाली नदी बन जाएगी। उधर, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय महाप्रबंधक टीयू खान का कहना है कि समय-समय पर पानी की जांच की जाती है और नमूने हेड ऑफिस तक भेजे भी जाते हैं। हालांकि नदी को शुद्ध करने के लिए प्रयास कितने सफल हुए हैं, इस बारे में उन्होंने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।

कहां कौन से प्रदूषक-

मोहन नगर- डिस्टलरी का अपशिष्ट, वेस्ट डिस्चार्ज, धार्मिक पूजन सामग्री व मलमूत्र

छगारसी-पशुओं को नहलाना व खनन

तकरीबन दस साल पहले तक मिलते थे जीव-

कशेरुकी प्राणी, मछलियां व मेढ़क आदि

मौजूदा समय में जीव-

मैक्रो आर्गेनिज्म, काइरोनॉमस लार्वा, नेपिडी, ब्लास्टोनेटिडी, फाइसीडी, प्लैनेरोबिडी फेमिली के सदस्य

मत्स्य व्यापारियों का दुखड़ा-

मत्स्य पालक चमन भाई की मानें तो लगभग दस साल पहले तक यहां मछलियां भरपूर थीं, पर अब ढूंढने से भी नहीं मिलतीं। इस कारण कुछ मछुवारों ने तो पेशा भी बदल लिया है व कुछ पलायन कर गए।

अब नहीं दिखाई देते सुंदर पक्षी-

पक्षी शोधकर्ता डॉ. अशोक गुप्ता बताते हैं कि लगभग आठ से दस साल पहले नदी पर सुंदर पक्षियों की चहचहाहट रहती थी। अनेक प्रजाति के पक्षी नजर आते थे, लेकिन प्रदूषण के बाद पक्षी दिखने बंद हो गए हैं। आलम यह है कि बगुला और बत्तख भी बमुश्किल दिखते हैं।

साभार – जागरण/ याहू

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