हरपुर बोचहा प्राकृतिक आपदा को बनाया वरदान

हरपुर बोचहा प्राकृतिक आपदा को बनाया वरदान

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पंचायत का एक भी गाँव ऐसा नहीं है, जहाँ तालाब और मन्दिर न हो। यह पुरखों की देन है, लेकिन नई पीढ़ी इस परम्परा को आगे बढ़ाने में तत्पर है। इसकी एक बानगी देखिए। वर्ष 12-13 में इस पंचायत में मनरेगा के तहत करीब 44 लाख रुपए का काम हुआ। इसमें से 27 लाख रुपए पौधारोपण पर खर्च किये गए। इसने इस गाँव को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में ब्रांड बनाया। यह पंचायत जिले के नावा नगर प्रखण्ड मुख्यालय से महज 12 किलो मीटर दूर है। समस्तीपुर जिले के विद्यापति नगर प्रखण्ड का हरपुर बोचहा पंचायत ने मिसाल कायम की और सर्वोत्तम पंचायत का दर्जा हासिल कर पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट किया था। केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने सर्वोत्तम पंचायत का पुरस्कार दिया था। इसके लिये हरपुर बोचहा पंचायत को लगभग 2.50 करोड़ रुपए की राशि इनाम में दी गई थी। इस राशि को पंचायत के विकास कार्य पर खर्च किया गया।

इस पंचायत के पूर्व मुखिया प्रेमशंकर सिंह ने हरपुर बोचहा को राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थान दिलाने में अथक प्रयास किया। काम के बदौलत सन् 2001 और 2006 में मुखिया निर्वाचित हुए। सन् 2011 में मुखिया की सीट जब महिला के लिये रिजर्व हो गई तब प्रेमशंकर सिंह ने अपनी भाभी को मैदान में उतारा जिन्हें जनता ने अपना मुखिया चुन लिया।

इस चुनाव में ही प्रेमशंकर सिंह उपमुखिया के पद पर निर्वाचित हुए। पंचायत के विकास में प्रेमशंकर सिंह की बहुत बड़ी भूमिका है।

हरपुर बोचहा पंचायत शुरू से ही बाढ़ और सुखाड़ से अभिशप्त रहा है। प्रकृति की दोनों मार को यह पंचायत हमेशा सहता रहता था। इस हालात में 65 सौ एकड़ ज़मीन में खेती करना इनके लिये एक चुनौती बन गई थी। इस ज़मीन में एक खास बात यह भी था कि इसमें से 42 सौ एकड़ ज़मीन गाँव के किसानों की पुश्तैनी ज़मीन थी।

प्रेमशंकर सिंह जब मुखिया बने तब उन्होंने इस ज़मीन को चुनौती के रूप में लिया और इस ज़मीन पर खेती करने की ठानी। इसके लिये उन्होंने इस ज़मीन को हरा-भरा बनाने और किसानों की आर्थिक हालात के लिये स्थायी तौर पर एक योजना तैयार किया। सबसे पहले इस ज़मीन में सिंचाई की पानी को पहुँचाने की चुनौती को लिया गया।

इस काम के लिये तीन बड़े पोखरों का निर्माण कराया गया। लगभग तीन हजार एकड़ की ज़मीन को पहली बार पानी से सींचा गया। इसके बाद नहर का निर्माण कराया गया जिसकी लम्बाई तीन किलोमीटर के करीब थी। इस नहर के जरिए नदी का पानी खेतों तक आने लगा।

ग्रामसभा की दूरदर्शिता और स्थानीय लोग और किसानों की मेहनत ने अपना असर दिखाया। बेकार ज़मीन पर हरियाली छा गई। इसके बाद 10 एकड़ ज़मीन पर मछली पालन और मुर्गीपालन का काम शुरू किया गया।

इसका सुखद परिणाम सामने आया। गाँव के युवा बड़े पैमाने पर इसमें रुचि लेने लगे। रोज़गार उपलब्ध कराने को लेकर पंचायत की यह पहल बहुत अच्छी थी।

प्रतिव्यक्ति आय में हुई बढ़ोत्तरी

गाँव के लोगों को ज्यादा-से-ज्यादा रोज़गार मुहैया कराने को लेकर गम्भीरता से विचार किया गया। इसके लिये सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं से लाभ लेने की योजना बनाई गई। मनरेगा जैसी योजना के जरिए मज़दूरों को बड़े पैमाने पर रोज़गार मिला। इसका शानदार परिणाम यह आया कि मज़दूरों का पलायन रुक गया और प्रतिव्यक्ति आय में आश्चर्यजनक रूप से 552 रुपए से बढ़ कर 1664 रुपए की वृद्धि हो गई।

पर्यावरण पर दिया गया ध्यान

एक और ख़ासियत ले इस पंचायत को इस क्षेत्र में ब्रांड बनाया। वह है मन्दिर और तालाबों की संख्या। पंचायत का एक भी गाँव ऐसा नहीं है, जहाँ तालाब और मन्दिर न हो। यह पुरखों की देन है, लेकिन नई पीढ़ी इस परम्परा को आगे बढ़ाने में तत्पर है। इसकी एक बानगी देखिए।

वर्ष 12-13 में इस पंचायत में मनरेगा के तहत करीब 44 लाख रुपए का काम हुआ। इसमें से 27 लाख रुपए पौधारोपण पर खर्च किये गए। इसने इस गाँव को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में ब्रांड बनाया। यह पंचायत जिले के नावा नगर प्रखण्ड मुख्यालय से महज 12 किलो मीटर दूर है।

पर्यावरण और हरियाली को ध्यान में रखकर पंचायत ने कुछ अलग करने को सोचा और नहर एवं सड़क किनारे की भूमि पर पंचायती योजना के तहत लगभग छह किलोमीटर तक पौधारोपण किया गया।

इस पौधारोपण का ही परिणाम है कि आज करीब तीन हजार पौधे हरियाली प्रदान कर रहे हैं। इसमें सबसे अहम बात यह भी है कि इन पौधों में ज्यादातर फलदार पौधे हैं जो आर्थिक आय का बड़ा आधार है।

शिक्षा में किया सुधार

शिक्षा में सुधार लाने के लिये ग्रामसभा ने व्यापक पहल की। सरकार से सात नए विद्यालय की स्थापना की मंजूरी ली गई। पहले से एक प्राथमिक और मध्य विद्यालय यहाँ स्थापित थे। सन् 2001 में इस पंचायत के जहाँ 46 प्रतिशत लोग शिक्षित थे आज यह आँकड़ा तकरीबन 65 प्रतिशत तक पहुँच गया है।

स्वच्छता और पेयजल की हुआ गुणात्मक सुधार

पंचायत के सभी बीपीएल परिवारों के पास इंदिरा आवास मिल चुका है। लगभग हर घर में सौर ऊर्जा द्वारा पेयजल आपूर्ति को सुनिश्चित किया गया। 50 प्रतिशत से ज्यादा बीपीएल घरों में शौचालय की सुविधा है।

महिला मृत्यु दर में कमी

महिलाओं में जागरुकता आने का एक परिणाम यह भी सामने आया कि महिलाएँ अपने अधिकार को जानने लगीं। पंचायत के लिंगानुपात में सुधार आया और महिला मृत्यु दर में भारी गिरावट आई।

अधिक जानकारी के लिये पंचायत के मुखिया प्रेम शंकर सिंह से सम्पर्क कर सकते हैं।

मो. 09709579257

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