इन्हें पानी क्या मिला,सजाली पत्थरों में फसल
किसान को पानी में फसल लेने के बहुतेरे अनुभव रहे हैं। इसीलिए उसे इस बात का विश्वास है कि वर्षा के पानी में कई तत्व शामिल रहते हैं। जो तालाब में पहुंचने पर संचित होकर फसलों को फायदा पहुँचाने में मदद करते हैं। किसान पूरे मनोयोग से उस खेत को अपने तालाब के पानी का सहारा लेकर उपजाऊ बनाना चाहता है। अपने खेत को वह सभी जरूरत के तत्व देने की तैयारी में है, जो उसकी पोषकता को फायदा पहुंचा सके। बरसाती नाले के साथ जुड़े खेत की वर्षों से मिट्टी का क्षरण होता रहा है। इस खेत का प्रयोग अक्सर चारागाह के लिए होता आया है। 14 जनवरी 2014 बुंदेलखंड में महोबा जिले के किसान जुगुल ने वैसे तो बचपन से ही पानी की हैसियत को पहचाना है। पानी जुगुल के परिवार और समुदाय को पीढ़ियों से आजीविका का साधन रहा है। इसी साधन को साध्य बनाकर रोजी-रोटी का जुगाड़ करने वाले जुगुल पुत्र बल्दुआ ढीमर ने अपनी चार बीघे पथरीली जमीन को कभी भी जीवन का जरिया नहीं समझा, पर इन्हें अपने खेत में अपने तालाब का पानी क्या मिला, ये तो पत्थरों पर भी फसल सजाने को सोच बैठे।
बुंदेलखंड में असंतुलित होती जा रही जलवायु के चलते जहाँ अच्छी मिट्टी वाली जमीनों पर भी अच्छी पैदावार ले पाना अक्सर संभव नहीं होता। ऐसी परिस्थिति में भला उस खेत में फसलों की उम्मीद कैसे की जा सकती हैं जहां खेत की मिट्टी में पत्थर नहीं बल्कि पत्थरों में खेत हैं।
महोबा के सलारपुर गांव में ऐसा ही एक किसान जुगुल ढीमर है। उसके खेत में मिट्टी की मात्रा तो बारीकी से देखने पर दिखती है। खेत में नजर पड़ते ही वह पत्थरों में खेत नजर आता है। हमेशा खाली मैदान दिखने वाले खेत में हरी-भरी फसल देखकर अचम्भा लगता है कि आखिर इस किसान को क्या हो गया जो पत्थरों में खेती करने चला। पड़ोसी किसान उस फसल को देखकर कहते हैं कि फरवरी के बाद होने वाली तपन में ये फसल चौपट हो जाएगी। पर किसान जुगुल बड़े भरोसे के साथ अपने खेत में बोई जौ की फसल से अच्छी पैदावार की उम्मीद लगाए बैठा है। उसका कहना हैं कि मेरी फसल को पोषण नहीं मिलता तो अंकुरित होते ही मुरझा जाती। वर्षा के समय पड़ोसी खेतों से बहकर आने वाली मिट्टी इन पत्थरों में आकर कहीं-कहीं एकत्र हुई है, जो तालाब के पानी से शीतलता बनाए रहकर फसल को पोषित कर पुष्ट दाने भी देगी।