ईस्ट कोलकाता वैटलैंड्स पर रियल एस्टेट और कूड़े का हुआ कब्जा
कोलकाता शहर से निकलने वाले हजारों लीटर गंदे पानी को प्राकृतिक तरीकों से परिशोधित करने वाले ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। ये वेटलैंड्स पहले से ही अतिक्रमण की मार झेल रहे थे और अब इसमें कूड़ा भी डाला जाने लगा है, जिससे इसकी जैवविविधता नष्ट हो रही है।
बताया जाता है कि स्थानीय नगर निकाय वेटलैंड्स का हिस्सा मोल्लार भेरी में रोजाना भारी मात्रा में ठोस वर्ज्य पदार्थ डाल रहा है, जिससे ये खराब होता जा रहा है।
पिछले दिनों इसको लेकर नेशनल ग्रीन ट्राइबुनल एनजीटी ने नगर निकाय तो कड़ी फटकार भी लगाई थी और आगाह किया था कि अगर कचरा डालना बंद नहीं किया जाता है, तो कठोर कार्रवाई की जाएगी।
ग्रीन ट्राइबुनल ने अपने आदेश में कहा है,
“अगर कूड़ा डालना बंद नहीं किया जाता है, तो पश्चिम बंगाल के पर्यावरण विभाग शहरी निकाय के अधिकारियों को जेल में डाला जा सकता है, उनकी तनख्वाह रोकी जा सकती है और उन पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।”
इस संबंध में विधाननगर नगर निगम की तरफ से जो एफिडेविट दाखिल किया गया था, उसके मुताबिक, नगर निगम ने कूड़े को डम्प करने से रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं।
सुभाष दत्ता ने दायर किया था पेटिशन
गौरतलब हो कि ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स के मोल्लार भेरी में कोलकाता से सटे विधाननगर नगर निगम की तरफ से लंबे समय से कूड़ा जा रहा था। इसके खिलाफ पर्यावरणविद सुभाष दत्ता ने नेशनल ग्रीन ट्राइबुनल में पेटिशन दाखिल किया था। एनजीटी का ये आदेश इसी पेटिशन पर आया है।
सुभाष दत्ता का कहना है कि विधाननगर नगर निगम के अलावा दो अन्य शहरी निकाय भी यहां कूड़ा डालते हैं, जिससे इनकी स्थिति दिनोंदिन खराब होती जा रही है।
यहां ये भी बता दें कि नेशनल ग्रीन ट्राइबुनल पूर्व में विधाननगर नगर निगम पर दो बार जुर्माना भी लगा चुका है, क्योंकि इसने कोर्ट के आदेश पर अमल नहीं किया था।
वेटलैंड्स का हो रहा अतिक्रमण
लगभग 12000 हेक्टेयर में फैली ये जलाभूमि रोजाना तकरीबन 750 मिलियन लीटर गंदे पानी को प्राकृतिक तरीके से परिशोधित करती है। दरअसल इस जलाभूमि में खास तरह की बैक्टीरिया पाई जाती है, जो सूरज की रोशनी के सहारे गंदे पानी को साफ कर देता है और गंदे पानी में जो कचरा होता है, उसे मछलियों के भोजन में तब्दील कर देता है।
वेटलैंड्स के आसपास बहुत सारे तालाब हैं, जहां मछलियां पाली जाती हैं और इन मछलियों के लिए वेटलैंड्स में परिशोधित कचरा भोजन का काम करता है। वहीं परिशोधित पानी का इस्तेमाल किसान खेतों की सिंचाई के लिए करते हैं।
इतनी सारी खूबियां होने के बावजूद इस वेटलैंड्स के संरक्षण के लिए ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं। यही वजह है कि इसका अतिक्रमण भी लगातार हो रहा है।
ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स के संरक्षण के लिए काम कर रहे नव दत्ता ने इंडिया वाटर पोर्टल से कहा,
“पहले इस जलभूमि का क्षेत्रफल 12500 हेक्टेयर में फैला हुआ था, जो अभी घटकर 3900 हेक्टेयर रह गई है। अगर सरकार की तरफ से कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दिनों में ये और भी सिमट जाएगा।”
उन्होंने कहा कि पिछले 12 वर्षों में वह ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स पर अतिक्रमण के खिलाफ विभिन्न थानों में 300 से ज्यादा एफआईआर दर्ज करवा चुके हैं, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।
“द शिफ्टिंग प्रायरिटी इन लैंड यूज विदिन ए प्रोटेक्टेड वेटलैंड्स ऑफ ईस्ट कोलकाता”
नाम से छपे एक शोधपत्र में भी बताया गया है कि वेटलैंड्स पर अतिक्रमण हो रहा है।इस शोधपत्र के अनुसार, ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स के भगवानपुर मौजा के 88.83 प्रतिशत हिस्से में आद्रभूमि थी, जो वर्ष 2016 में घटकर 19.39 प्रतिशत रह गई।
ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स का इतिहास
उल्लेखनीय हो कि इस वेटलैंड्स को ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स नाम ध्रुवज्योति घोष ने दिया था। वह इकोसिस्टम मैनेजमेंट कमिशन के विशेष सलाहकार थे। बताया जाता है कि जब वह पश्चिम बंगाल के वाटर व सैनिटेशन विभाग में इंजीनियर थे, तो उनके जेहन में सवाल उठा कि कोलकाता शहर से जो गंदा पानी निकलता है, वह कहां जाता है और उसका परिशोधन कैसे होता है।
इस सवाल का जवाब तलाशते हुए वह वेटलैंड्स में जा पहुंचे। यहां आकर उन्हें पता चला कि शहर का गंदा पानी इस वेटलैंड्स में प्राकृतिक प्रक्रिया से परिशोधित हो जाता है। उसी वक्त उन्होंने इस वेटलैंड्स का नाम ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स रख दिया।