ईशन नदी में बढ़ता अतिक्रमण
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मैनपुरी और एटा में ईशन नदी पर अतिक्रमण का संकट: NGT में याचिका, पुनर्जीवन की कोशिश  

ईशन नदी संकट: मैनपुरी और एटा में अतिक्रमण के खिलाफ NGT में याचिका, पुनर्जीवन की कोशिशें जारी।
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उत्तर प्रदेश के मैनपुरी और एटा जिलों से होकर गुजरने वाली ईशन नदी, जो गंगा की एक सहायक नदी और क्षेत्र की जीवनरेखा है, आज अतिक्रमण, प्रदूषण, और उपेक्षा के कारण संकट में है। 317 किलोमीटर लंबी यह नदी, जो एटा के नगला सुजान गांव से शुरू होकर मैनपुरी, कन्नौज, और कानपुर होते हुए गंगा में मिलती है, अब नाले जैसी स्थिति में सिमट चुकी है। अतिक्रमण ने नदी के स्वरूप को सिकोड़ दिया, जबकि जलकुंभी और कचरे ने इसके जल को प्रदूषित कर दिया। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने 20 मार्च, 2025 को मैनपुरी के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) और अन्य अधिकारियों को ईशन नदी के तट पर अतिक्रमण के मामले में जवाब देने का निर्देश दिया है, जिसकी याचिका पर्यावरण कार्यकर्ता अजय प्रताप सिंह ने दायर की। मैनपुरी के डीएम महेंद्र बहादुर सिंह के नेतृत्व में 2020 में शुरू हुआ ‘हमारा बचपन, हमारी ईशन नदी’ अभियान नदी के पुनर्जीवन की दिशा में एक कदम था, लेकिन अतिक्रमण और इससे जुड़े विवाद अब भी बरकरार हैं। इस लेख में हम ईशन नदी की स्थिति, अतिक्रमण के प्रभाव, NGT की कार्रवाई, विवाद, और पुनर्जीवन के प्रयासों पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

ईशन नदी: एक धरोहर  

ईशन नदी का उद्गम एटा जिले में नगला सुजान गांव के पास सिकंदराराऊ नाले के टेल पर होता है। यह नदी एटा, मैनपुरी, कन्नौज, और कानपुर नगर के 185 गांवों से होकर गुजरती है, जिनमें एटा के 50, मैनपुरी के 100, और कन्नौज के 35 गांव शामिल हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मयन ऋषि और च्यवन ऋषि जैसे संतों ने इस नदी के किनारे साधना की थी। कभी 160 किलोमीटर लंबी और 50 फीट से अधिक चौड़ी यह नदी क्षेत्र की कृषि और जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत थी। लेकिन पिछले तीन दशकों में अतिक्रमण, शहरीकरण, और कचरे ने नदी को नाले जैसा बना दिया। मैनपुरी शहर में शीतला देवी मंदिर से जिला कारागार तक का हिस्सा तो लगभग गायब ही हो चुका था।

अतिक्रमण: नदी के स्वरूप पर खतरा  

ईशन नदी के किनारों पर अतिक्रमण ने इसके प्राकृतिक स्वरूप को बुरी तरह प्रभावित किया है। मैनपुरी और एटा में नदी के किनारे अवैध निर्माण, खेती, और बस्तियों ने नदी की चौड़ाई को सिकोड़ दिया है। मैनपुरी में, खासकर शहरी क्षेत्रों में, नदी के किनारे बने मकानों और दुकानों ने इसके प्रवाह को अवरुद्ध कर दिया। एटा में, सकीट, निधौलीकला, और शीतलपुर विकास खंडों से गुजरने वाली नदी के किनारे जलकुंभी और कचरे की भरमार ने स्थिति को और गंभीर बना दिया। हिन्दुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार, अतिक्रमण के कारण नदी का जल प्रवाह बाधित हुआ, जिससे आसपास के गांवों में पेयजल संकट गहरा गया और लोग बीमार पड़ने लगे। 2021 में, भारी बारिश के बाद ईशन नदी का पानी ओवरफ्लो होने से एटा के पुरदिलनगर क्षेत्र में सैकड़ों बीघा फसलें जलमग्न हो गईं, जो अतिक्रमण के कारण नदी की गहराई और चौड़ाई कम होने का परिणाम था।

ईशन नदी पर अतिक्रमण 

ईशन नदी के किनारों पर बढ़ता अतिक्रमण न केवल इसके पर्यावरणीय स्वास्थ्य को नष्ट कर रहा है, बल्कि सामाजिक और कानूनी विवादों को भी जन्म दे रहा है। मैनपुरी और एटा में नदी के तट पर अवैध बस्तियों, खेतों, और व्यावसायिक निर्माण ने नदी को संकुचित कर दिया, जिससे जल प्रवाह बाधित हुआ और बाढ़ जैसी आपदाएं बढ़ीं। एक प्रमुख विवाद 2021 में सामने आया, जब भारी बारिश के कारण ईशन नदी उफान पर आई और एटा के 40 किलोमीटर क्षेत्र में बाढ़ ने तबाही मचाई। अरथरा पुल से मैनपुरी बॉर्डर तक पानी भरने से स्थानीय आबादी के घर डूब गए, और प्रशासन को नोटिस जारी कर घर खाली कराने पड़े। 

हिन्दुस्तान के अनुसार, यह बाढ़ अतिक्रमण के कारण नदी की कम हुई क्षमता का परिणाम थी, जिसने स्थानीय लोगों और प्रशासन के बीच तनाव पैदा किया। इसके अलावा, अतिक्रमण हटाने के प्रयासों में स्थानीय समुदायों का विरोध एक बड़ी बाधा रहा है, जैसा कि अन्य क्षेत्रों में अवैध निर्माण हटाने के दौरान देखा गया। यह विवाद नदी के संरक्षण के लिए तत्काल कानूनी और सामुदायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करता है।  

NGT में याचिका: अजय प्रताप सिंह की मांग

ईशन नदी पर अतिक्रमण के मुद्दे को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के समक्ष लाने वाले याचिकाकर्ता अजय प्रताप सिंह एक पर्यावरण कार्यकर्ता हैं, जो मैनपुरी और आसपास के क्षेत्रों में नदियों और जल निकायों के संरक्षण के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। 20 मार्च, 2025 को, NGT ने मैनपुरी के जिला मजिस्ट्रेट और अन्य अधिकारियों को ईशन नदी के तट पर अतिक्रमण से जुड़े मामले में जवाब देने का निर्देश दिया। सिंह ने अपनी याचिका में मांग की है कि नदी के किनारों पर अवैध निर्माण और बस्तियों को तत्काल हटाया जाए, नदी की सफाई और पुनर्जीवन के लिए समयबद्ध योजना लागू की जाए, और अतिक्रमण को रोकने के लिए सख्त निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए। इसके अलावा, उन्होंने नदी में नियमित जल प्रवाह सुनिश्चित करने और प्रदूषण रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की है। यह याचिका नदी के पर्यावरणीय और सांस्कृतिक महत्व को पुनर्स्थापित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसने स्थानीय प्रशासन को जवाबदेही के लिए प्रेरित किया है।  

डीएम मैनपुरी की पहल: ‘हमारा बचपन, हमारी ईशन नदी’  

2020 में, मैनपुरी के जिलाधिकारी महेंद्र बहादुर सिंह ने ईशन नदी के पुनर्जीवन के लिए ‘हमारा बचपन, हमारी ईशन नदी’ अभियान शुरू किया। इस अभियान के तहत, बिना सरकारी धन के स्थानीय लोगों और स्वयंसेवकों के सहयोग से नदी की सफाई शुरू की गई। हिन्दुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, डीएम की तत्परता और स्थानीय समुदाय की भागीदारी से नदी का कई किलोमीटर हिस्सा साफ हुआ, और 30 साल बाद नदी में हिलोरें उठने लगीं। डीएम ने नदी किनारे अपने परिवार के साथ समय बिताकर लोगों को इसके महत्व के प्रति जागरूक किया और इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की संभावनाएं तलाशीं जा रहीं हैं।

चुनौतियां: अतिक्रमण हटाने में बाधाएं  

हालांकि डीएम के प्रयासों से नदी की सफाई में प्रगति हुई, लेकिन अतिक्रमण हटाना एक जटिल चुनौती बना हुआ है। मैनपुरी और एटा में नदी के किनारे बनी बस्तियों और खेतों को हटाने के लिए कानूनी और सामाजिक बाधाएं हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि अतिक्रमण हटाने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की कमी और राजनीतिक दबाव इस प्रक्रिया को धीमा कर रहे हैं। इसके अलावा, नदी में नियमित जल प्रवाह की कमी भी एक समस्या है। 

मैनपुरी और एटा में ईशन नदी अतिक्रमण, प्रदूषण, और इससे जुड़े विवादों के कारण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। डीएम महेंद्र बहादुर सिंह के नेतृत्व में शुरू हुआ सफाई अभियान, अजय प्रताप सिंह की NGT याचिका, और 2021 बाढ़ विवाद ने नदी के संरक्षण की तत्काल आवश्यकता को उजागर किया है।

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