जल संसाधन परियोजनाएं और पर्यावरण पर उनका प्रभाव
विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश होने के साथ-साथ भारतवर्ष विश्व में तेजी से बढ़ती हुई तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है। लगातार होने वाले विकास एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव है और जल संसाधन भी इससे अछूते नहीं हैं क्योंकि हमारे देश में आनुपातिक रूप में जल की उपलब्धता अत्यंत बेमेल है। इस कारण हमें भारत में जल संसाधन की विभिन्न परियोजनाओं की महती आवश्यकता है। यह आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि देश में जल-संकट लगातार बढ़ रहा है। भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 18% है लेकिन जल संसाधन केवल 4% ही हैं। भारत के अधिकांश जिलों में भूजल स्तर तेजी से घट रहा है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखे की समस्या बढ़ रही है। इसलिए, भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय द्वारा अटल भूजल योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, जल शक्ति अभियान, जल जीवन मिशन आदि जैसी जल संवर्धन एवं जल संरक्षण की अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं। ये परियोजनाएं ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में जल संरक्षण के प्रयासों को बढ़ावा देती हैं और भूजल प्रबंधन में सुधार करती हैं। इस प्रकार, जल संसाधन परियोजनाएं भारत में जल संकट को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। किन्तु बृहत स्तर की जल संसाधन परियोजनाओं के कुछ पर्यावरणीय प्रभाव भी होते हैं जिनमें बांधों और जलाशयों के निर्माण के कारण होने वाले प्रभावों में सूक्ष्म जलवायु परिवर्तन, वनस्पति आवरण का नुकसान, मिट्टी का कटाव, जल स्तर में बदलाव और जल के दबाव के कारण बढ़ी हुई भूकंपीय गतिविधियां प्रमुख रूप से शामिल हैं। चूंकि जलवायु परिवर्तन हमारे ग्रह पर लगातार प्रभाव डाल रहा है, इसलिए इन परियोजनाओं से जुड़े पर्यावरणीय प्रभावों को समझना जरूरी हो जाता है। इस लेख में, जल संसाधन परियोजनाओं और पर्यावरण पर उनके प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है।
जल संसाधन परियोजनाएं क्या हैं और इनकी आवश्यकता क्यों है?
जल संसाधन परियोजनाओं में मुख्यतः मानव और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र दोनों के लिए जल की पर्याप्त व सतत आपूर्ति और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए जल संसाधनों की विभिन्न योजनाएं, विकास और प्रबंधन सम्बन्धी गतिविधियां शामिल होती हैं। इन परियोजनाओं में गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला सम्मिलित होती है, जिसमें भविष्य में जल की मांग का अनुमान लगाना, जल के संभावित नए स्रोतों का मूल्यांकन करना, मौजूदा जल स्रोतों का संरक्षण एवं संवर्धन करना और नवीनतम पर्यावरणीय नियमों का अनुपालन एवं उनको समायोजित करना शामिल है। इन परियोजनाओं की आवश्यकता कई कारणों से उत्पन्न होती है जिनमें कुछ कारण निम्नलिखित है।
बढ़ती मांग: वैश्विक जनसंख्या में तीव्र वृद्धि देखी जा रही है, और वर्तमान गति से वर्ष 2030 तक पूरे विश्व में जल की अनुमानित मांग और उपलब्ध आपूर्ति के बीच 40% की कमी का सामना करना पड़ सकता हैं। जल की कमी: विश्व की लगभग 40% से अधिक जनसंख्या जल की कमी वाले क्षेत्रों में रहती है। विश्व के कई भागों में जल संसाधन पहले से ही अल्प एवं दुलभ हैं। जलवायु परिवर्तन: जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel) के अत्यधिक उपयोग के कारण बढ़ते हुए वैश्विक तापमान से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, जो जलविज्ञान चक्र को अनेक प्रकार से बदल रहा है। जिससे वर्षा जल अधिक अप्रत्याशित हो गया है और बाढ़ और सूखे की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है।
जल संसाधनों का विखंडन
विश्व के 148 देशों द्वारा लगभग 276 ट्रांसबाउंड्री बेसिन आपस में साझा किए जाते हैं, जो वैश्विक मीठे जल के प्रवाह का 60% हैं। लगभग इन सभी में कुछ ना कुछ विवाद है। इसके अलावा सभी तटवर्ती इलाकों के लिए इष्टतम जल संसाधन प्रबंधन और विकास समाधान प्राप्त करने के लिए सहयोग की आवश्यकता है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए, सभी देशों को संस्थागत मजबूती, कुशल सूचना-प्रबंधन और बुनियादी ढांचों के विकास में निवेश करने की आवश्यकता है। जल संसाधन परियोजनाएं इस प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। साथ ही यह जल सुरक्षा (Water Security) को मजबूत करने और जल के उपयोग की स्थिरता को सुनिश्चित करने में भी मदद करती हैं।
सामान्यतः हमारे देश में जल संसाधन परियोजनाएं मुख्य रूप से बहुउद्देशीय परियोजनाओं के रूप में विकसित की जाती हैं। बहुउद्देशीय परियोजनाएं देश में जल संसाधनों के वैज्ञानिक प्रबंधन का आधार हैं। एक बहुउद्देशीय जल संसाधन परियोजना एक विशाल परियोजना होती है, जो बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, विद्युत उत्पादन, मछली प्रजनन, मृदा संरक्षण, आदि जैसे विभिन्न उदेश्यों को पूर्ण करने में सहायक होती हैं। जबकि, जलविद्युत परियोजनाएं केवल मुख्य रूप से विद्युत उत्पादन से संबंधित होती हैं। सारणी । में हमारे देश की प्रमुख जल संसाधन परियोजनाओं का विवरण दिया गया है।
जल संसाधन परियोजनाओं के मुख्य उद्देश्य या लाभ
कृषि जल सिंचाई आपूर्ति :
विद्युत की उत्पत्ति:
बाढ़ नियंत्रण -
मृदा संरक्षण -
वनीकरण :
जल परिवहन-
पर्यटक केंद्र:
भूजल पुनः पूरण -
जल संसाधन परियोजनाओं से हानियां
मुख्य रूप से बाँध परियोजनाओं में जलाशय के जलग्रहण क्षेत्र की उपजाऊ कृषि भूमि को जलमग्न होने से बचाया नहीं जा सकता। आमतौर पर किसी परियोजना के उद्देश्य और बांध की नींव, तटबंध और जलाशय की तकनीकी आवश्यकताओं के अधीन, जलमग्न क्षेत्र को यथासंभव छोटा रखने के लिए बांध स्थल का चयन किया जाता है। सामान्यतः, जलमग्न क्षेत्र लाभान्वित क्षेत्र के 10% से कम होना चाहिए। इसी प्रकार जलाशय के भराव क्षेत्र में आने वाली वन भूमि को या तो साफ किया जाता है या जलमग्न होने दिया जाता है। यह पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक है।
इन परियोजनाओं के जलमग्न क्षेत्र में कुछ गाँव, कस्बे या शहर आदि स्थित होते हैं, जो यहां के स्थानीय लोगों के विस्थापन का कारण बनते हैं। उन्हें अपने घरों और घर से जुड़ी यादों को छोड़ना पड़ता है जो भावनात्मक रूप से अत्यंत कष्टकारक और दुष्कर प्रक्रिया है। नदियां अपने साथ बहुत जलोढ़ मिट्टी बहा कर लाती हैं और वह बाँध रूपी अवरोध के कारण जलाशयों में जमा हो जाती है। बांध में अवसादीकरण, परियोजना के जीवनकाल को कम करता है।
कुछ अध्ययनों से पता चलता है। कि कुछ बड़ी विदेशी बहुउद्देशीय परियोजनाओं के परिणामस्वरूप मामूली स्थानीय भूकंप आदि की घटनाएं भी हुई हैं। यद्यपि इस प्रकार का कोई भी अध्ययन हमारे देश में अभी तक साबित नहीं हो सका है। बाँधों के पीछे तलछट जमा होने से जल की गुणवत्ता बदल सकती है और जलीय आवास प्रभावित हो सकते हैं। तलछट जमा होने से समय के साथ जलाशय की क्षमता भी कम हो जाती है।
बाँधों और जलाशयों के कारण होने वाले प्रभाव -
पारिस्थितिकी विनाश -
जलीय जीवन पर प्रभाव जल प्रवाह -
भौतिक और रासायनिक प्रभाव बाँध -
मीठे-जल की जैव-विविधता पर प्रभाव :
परिवर्तित पारिस्थितिकी तंत्र -
इन प्रभावों के बावजूद, जल भंडारण, सिंचाई और पनबिजली उत्पादन के संदर्भ में उनके लाभों के कारण बाँधों और जलाशयों का निर्माण निरन्तर जारी है। हालाँकि, इन पर्यावरणीय प्रभावों पर विचार करना और हानि को कम करने के लिए उपयुक्त उपायों को लागू करना महत्वपूर्ण है।
जल संसाधन परियोजनाएं-पर्यावरणीय प्रभाव -
निर्माण चरण
विभिन्न जल संसाधन परियोजनाओं के अन्तर्गत बाँधों, जलाशयों और अन्य बुनियादी ढांचों के निर्माण चरणों के दौरान अनेक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव देखने को मिलते हैं। यहां कुछ प्रमुख प्रभाव दिए गए हैंः
जल संदूषण (Water Contamination):
अपशिष्ट उत्पादन -
मिट्टी का कटाव और अवसादन:
सार्वजनिक जल निकासी प्रणालियों को नुकसान -
यातायात में वृद्धि और पार्किंग स्थल की कमी:
जल संसाधनों की मांग परियोजना निर्माण गतिविधियाँ
संचालन चरण
बाँधों और जलाशयों सहित जल संसाधन परियोजनाएं, अपने संचालन चरणों के दौरान महत्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव डाल सकती हैं। यहां कुछ प्रमुख प्रभाव दिए गए हैं:
सामाजिक-आर्थिक लाभ संचालन -
जल संसाधनों पर प्रभाव -
बाढ़ नियंत्रण
भूजल पुनर्भरण -
मिट्टी का कटाव और अवसादन :
अपशिष्ट निपटान :
दोनों ही चरणों के ये प्रभाव दीर्घकालिक होते हैं और पर्यावरण पर उनके प्रभाव को कम करने के लिए सावधानीपूर्वक प्रबंधन और उपचारात्मक रणनीतियों की आवश्यकता होती है। पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (Environmental Impact Assessment, (EIA)) एक ऐसी पद्धति है जिसका उपयोग परियोजना के नियोजन और अभिकल्पन चरण के दौरान प्रस्तावित विकास के परिणामस्वरूप होने वाले संभावित पर्यावरणीय विषयों का अनुमान लगाने और उनका समाधान करने के लिए किया जाता है। यह प्रस्तावित परियोजना की स्थिरता का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और निर्णय निर्माताओं को EIA रिपोर्ट के आधार पर प्रस्तावित परियोजना को स्वीकार या अस्वीकार करने में सहायता करता है।
प्रमुख पर्यावरणीय प्रभावों का प्रबंधन
जल संसाधन परियोजनाओं के निर्माण एवं संचालन चरणों के दौरान पर्यावरणीय प्रभावों को कई रणनीतियों के माध्यम से कम किया जा सकता है।
एक पर्यावरण प्रबंधन योजना (Environmental Management Plan (EMP)) विकसित करें :
अविरत अभिकल्पन (Sustainable Design) और निर्माण तकनीकों को लागू करें:
कुशल अपशिष्ट प्रबंधन -
कुशल संसाधन प्रबंधन -
शोर और वायु प्रदूषण नियंत्रण:
प्राकृतिक आवासों और जैव विविधता की रक्षा:
स्थानीय सामग्रियों को प्राथमिकताः
मशीनरी की कुशल योजना को अधिकतम बनानाः
कार्बन-तटस्व जैव इंधन या नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग -
इन उपायों को लागू करके, आप टिकाऊ निर्माण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए एक हरित भविष्य में योगदान कर सकते हैं।
पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP):
पर्यावरण नीति -
व्यावहारिक लक्ष्य:
जल संसाधन आवंटन योजना -
कार्य योजना -
सतत निगरानी योजना -
घटना/आपातकालीन तैयारी और प्रतिक्रिया:
कानूनी अनुपालन :
EMP एक गतिशील दस्तावेज़ है जिसकी परियोजना के संचालन, पर्यावरणीय प्रभाव और नियामक आवश्यकताओं में परिवर्तन को प्रतिबिंवित करने के लिए नियमित रूप से समीक्षा और अद्यतन किया जाना चाहिए। यह व्यवसायों के लिए पर्यावरणीय स्थिरता और कानूनी अनुपालन के प्रति अपनी प्रतिवद्धता प्रदर्शित करने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
सारांश
बढ़ता हुआ जल संकट एक गंभीर चिंता का विषय है, जो कुशल जल प्रबंधन प्रथाओं की आवश्यकता को बढ़ाता है। मीठे जल की मांग तेजी से बढ़ रही है, खासकर शहरी क्षेत्रों में जहां जनसंख्या वृद्धि तेजी से हो रही है। कुशल जल प्रबंधन, पारिस्थितिक संभावना को बढ़ावा देते हुए इस बहुमूल्य संसाधन के स्थायी उपयोग को सुनिश्चित करता है। सभी प्रकार की विकासात्मक परियोजनाओं के लिए वास्तविक पर्यावरणीय प्रभावों को यथासंभव प्रबंधित करने की आवश्यकता है जिसमें जल संसाधन परियोजना कोई अपवाद नहीं है। कभी-कभी परियोजना अधिकारियों और स्थानीय समुदाय के बीच गलतफहमी और संचार अंतराल (communication gaps) होते हैं और परियोजनाओं में अत्यंत विलंब हो जाता है और परोक्ष रूप से देश के नागरिकों को ही उसकी कीमत चुकानी होती है। इसलिए परियोजना अधिकारियों और स्थानीय समुदाय के बीच सतत वार्ता, कार्यविधि में पारदर्शिता और शिक्षा की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। किसी भी विकास परियोजना में पर्यावरणीय परिवर्तन ना हो यह संभव नहीं है, किन्तु पर्यावरण प्रबंधन योजना (Environmental Management Plan) जैसे सशक्त उपकरण के माध्यम से पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम अवश्य किया जा सकता है। जल संसाधन परियोजनाओं के निर्माण एवं संचालन के विभिन्न चरणों के दौरान अनेक प्रकार के पर्यावरणीय प्रभाव उत्पन्न होते हैं किन्तु समग्र, समुचित, व्यावहारिक कार्य योजना बनाकर इन प्रभावों को कम किया जा सकता है। अतः नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे ऐसी नीति एवं विधान बनाएं जो आम जनमानस को जल संरक्षण के महत्व के की स्थायी जल प्रबंधन के प्रति जिम्मेदारी और स्वामित्व की भावना को बढ़ावा मिलेगा। हमारी वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने हेतु टिकाऊ जल संसाधन प्रबंधन को प्राथमिकता देने के लिए सरकारों, संगठनों और व्यक्तियों को एक साथ आना होगा।