जल संकट से निजात का रास्ता

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मध्यप्रदेश में नदियों के पुनर्जीवन पर चल रहा है काम

जल संरक्षण के तारतम्य के पिछले साल मध्यप्रदेश सरकार ने एक महत्वाकांक्षी अभियान की शुरुआत की, जिसमें प्रदेश की 55 नदियों को पुनर्जीवित किया जाएगा। इसके तहत पिछले एक साल में सभी जिले से एक-एक एवं कुछ जिलों की दो नदियों का चयन करके काम शुरू कर दिया गया है।

पानी के अतिदोहन एवं उसके संरक्षण के अभाव ने मध्यप्रदेश के अधिकांश जिलों को सूखाग्रस्त बना दिया है। स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि पानी को लेकर लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ रही है। 50 में से 30 अधिक जिलों में भूजल का स्तर 500 से 1000 फीट तक नीचे चला गया है। कुएं, बावड़ी, तालाब एवं नदियों के सूख जाने से मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के लोग सूखे के कारण पलायन एवं भुखमरी का दंश झेल रहे हैं। प्रदेश के लिए पानी एक अहम मुद्दा है, पर कई योजनाओं एवं अभियानों के बावजूद स्थिति गंभीर बनी हुई है।

जल संरक्षण के तारतम्य के पिछले साल मध्यप्रदेश सरकार ने एक महत्वाकांक्षी अभियान की शुरुआत की, जिसमें प्रदेश की 55 नदियों को पुनर्जीवित किया जाएगा। इसके तहत पिछले एक साल में सभी जिले से एक-एक एवं कुछ जिलों की दो नदियों का चयन करके काम शुरू कर दिया गया है। अभियान के लिए सूखी हुई, विलुप्त हुई या फिर नाले में तब्दील हो गई नदियों का चयन किया गया है, जिन्हें तीन साल में उनके मूल स्वरूप में लाने की योजना है। भोपाल में बड़े तालाब के मुख्य स्रोत कोलांस नदी को इसके लिए चयन किया गया है।

राजीव गांधी वाटरशेड प्रबंधन मिशन के संचालक उमाकांत उमराव कहते हैं, ''प्रदेश का भूजल 600 से 1000 फीट नीचे चला गया है, जिसे रिचार्ज किए बिना नदियां पुनर्जीवित नहीं हो पाएंगी। इसलिए इन नदियों के कैचमेंट क्षेत्र को जीरो डिस्चार्ज क्षेत्र बनाया जा रहा है, जिसके तहत एक बूंद पानी भी व्यर्थ नहीं जाए। साथ ही जल संरक्षण बजट पर काम किया जा रहा है, जिसके तहत वे सभी उपाय किए जा रहे हैं, जिससे पानी को व्यर्थ बह जाने से रोका जा सके। सभी नदियां किसी न किसी बड़ी नदी की सहायक नदी हैं और इनका बहाव क्षेत्र औसतन 20-25 किलोमीटर है। इन सभी का कुल क्षेत्र लगभग 20 हजार हेक्टेयर है और कैचमेंट क्षेत्र लगभग 10 लाख हेक्टेयर है। यदि यह अभियान सफल होता है, तो प्रदेश के लगभग 7 फीसदी क्षेत्र के आबादी को सीधे लाभ मिलेगा।''

अभियान की शुरुआत में चयनित नदियों के बारे में यह पता लगाया गया कि नदियां बहती कैसे थीं, वह सूख क्यों गई है और उनके पुनर्जीवन से कितना लाभ होगा। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों तक बैठकें की गईं। वहां बुजुर्गों से बातचीत कर नदियों की भौगोलिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक एवं आर्थिक स्थितियों के बारे में समझा गया। जिला एवं ग्राम के पंचायत प्रतिनिधियों, अधिकारियों के साथ बैठक एवं प्रशिक्षण का कार्य किया गया और उन्हें जनभागीदारी के लिए प्रेरित किया गया। इसके लिए अलग से कोई बजट नहीं है, बल्कि पंचायत एवं ग्रामीण विकास, जल संरक्षण, हार्टीकल्चर सहित कई योजनाओं को इसके साथ जोड़ा गया है और उन योजनाओं की राशि का उपयोग इसमें किया जा रहा है। उमाकांत उमराव कहते हैं, ''इस अभियान की सफलता से प्रदेश के कई शहरों की पेयजल की समस्या का समाधान भी संभव होगा। पर इसकी सफलता एक-दो सालों में दिखाई नहीं पड़ेगी। पहले वहां का भूजल रिचार्ज होगा, और उसके बाद पानी का दुरुपयोग रोका जाएगा, तब संभव होगा कि हम इन नदियों को बहते हुए देख पाएं।''

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