जोशीमठ: सुरंग निर्माण में फूटे स्रोत से खतरे में जनजीवन

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जल लघु विद्युत योजनाएं सरहदी क्षेत्र जोशीमठ के लिए प्राणघातक बन रही हैं। 400 मेगावाट विष्णुप्रयाग योजना ने पास के चाँई गांव को लगभग नष्ट कर दिया है। अब 520 मेगावाट की तपोवन-विष्णुगाड़ योजना, जिसे एन. टी.पी.सी. इस शहर के नीचे बना रहा है, समस्या में आ गई है। उसकी सुरंग खोदने वाली भीमकाय मशीन लगभग दो किलोमीटर पहाड़ के अंदर जा फँस गई है क्योंकि वहाँ अचानक गुनगुने या गर्म पानी का एक बडा सोता फूट निकल आया है। लगभग 15 दिन से यह सोता बहता चला आ रहा है और मशीन न आगे बढ़ और न वापस निकल पा रही है। कंपनी वाले पत्रकारों को स्थिति देखने सुरंग में नहीं जाने दे रहे हैं। ऊपर के झाड़कुला तथा सेलंग के गांव वाले जिनके नीचे से सुरंग खुद कर आगे जाएगी, चिंतित हैं कि क्या चाँईं की भांति उनके घर भी धंसने लगेंगे?

कंपनी तय नहीं कर पा रही है कि क्या किया जाय? पानी को सुरंग के रास्ते से कैसे हटाया जाय? या सुरंग का प्रस्तावित मार्ग पानी से बचाते हुए कैसे, कितना बदला जाय?

जिस क्षेत्र से यह सुरंग जाएगी उसके ऊपर बाँज-बुराँस के बडे भारी जंगल हैं। इनमें पेड़ों की जड़े बरसात के पानी को रोक लेती हैं और फिर उसे धीरे से छोड़ती रहती हैं। यही पानी आसपास के गांवों और जोशीमठ में सोतों के रूप में निकल आता है, जिसका उपयोग लोग पीने तथा सभी कामों के लिए करते हैं। यही यहाँ जीवन का आधार है।

जंगलों के बीच जलाशय हैं। सतह पर जो बड़ा सा है उसे छत्राकुंड कहते हैं। संभव है भूमि के नीचे और भी हों। इस क्षेत्र में गंधक की खानें भी हैं। पानी जब गंधक में पड़ता है तो उबलने लगता है। गरम पानी के ऐसे सोते धौली गंगा के किनारे जोशीमठ से तपोबन और अलकनंदा के किनारे बदरीनाथ तक हैं। जो बदरीनाथ में निकलता है उसे तप्तकुंड कहते हैं, जिसमें यात्री भगवान के दर्शन के पूर्व नहाते हैं। कुछ वर्ष पहले तक जोशीमठ में एक साधू-समाज का अपना मठ था, जहाँ वे, जाने कहाँ से गर्म पानी की एक धारा, खपरैलों के परनाले से ले आए थे। वह मठ उन्होंने किसी को बेच दिया और अब उसकी जगह एक बड़ा सा होटल उभर आया है। इसे बनाने की तोड़-फोड़ में वह गर्म पानी का सोता खो गया और कहाँ से वह आ रहा था यह जानकारी भी।

लेकिन यह अवश्य है कि जोशीमठ के ऊपर गर्म पानी के कुछ जलाशय हैं, जिनसे पानी बनने वाली सुरंग में आ रहा है। यह खूब मोटा पानी है, जो एक गधेरा बना नीचे अलकनंदा गंगा में समा रहा है।

ऊपर जंगल से चार गधेरे जोशीमठ के पास से बह कर नीचे अलकनंदा में मिलते हैं। इसका अर्थ हुआ कि जंगल में धरती के नीचे कुछ या कई जलाशय हैं।

यदि पानी ऐसे ही बहता रहा तो कुछ काल बाद यह जलाशय संभवतः खाली हो जायगा। यदि जलाशय समाप्त हो गया तो जोशीमठ में पानी के सोते सूख जाएंगे। कुछ भूगर्भवेत्ताओं के अनुसार जोशीमठ ऊपर से बर्फ द्वारा लाई मिट्टी और मलबे के ढेर पर बसा है और उसके नीचे कोई मज़बूत चट्टान नहीं है। अगर ऊपर सुरंग से आता पानी उसमें समाया तो शहर बैठने लगेगा. यदि ऐसा हुआ तो उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

सचमुच जोशीमठ के नीचे क्या कोई मज़बूत चट्टान नहीं है और वह केवल मिट्टी तथा मलबे के ढेर पर बसा है? इसकी पूरी खोज करनी आवश्यक है। एन.टी.पी.सी. ने योजना आरंभ करने से पहले नोयडा की किसी भूगर्भीय कंपनी को ठेका दिया था कि वह पड़ताल कर पता लगाए कि जोशीमठ के नीचे क्या है और वह किस बुनियाद पर बसा है। उस कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार जोशीमठ के नीचे से सुरंग बनाने पर उसे कोई खतरा नहीं होगा। उसी रिपोर्ट की बुनियाद पर सुरंग तथा योजना का काम आरंभ हुआ है।

सरकारी जियोलौजिकल सर्वे आफ इंडिया की राय थी कि इस योजना का जलाशय, जो धौली गंगा पर तपोवन में बन रहा है, उसे दो किलोमीटर पीछे कर देना चाहिए। लेकिन एन.टी.पी.सी. ने यह बात नहीं मानी। उसका कहना था कि पीछे हटाने पर कंपनी को बहुत अधिक लागत आ जाएगी। फिर ठीक उसके पीछे एक और जल विद्युत योजना, लाता-तपोवन, बन रही है, जिसके कारण जलाशय को पीछे ले जाने में समस्या हो जाएगी। इसलिए कंपनी ने जलाशय जहाँ प्रस्तावित था वहीं रखा। संभव है यह भी एक कारण हो कि सुरंग का रास्ता किसी जलाशय के समीप आ गया हो और उससे पानी की निकासी होने लगी हो।

इस बात की ठीक से खोज होनी चाहिए कि सुरंग के रास्ते में गुनगुने पानी का गधेरा फूट कर क्यों निकल आया है तथा उससे जोशीमठ तथा पास के गांवों को क्या हानि होगी?

इस बीच उत्तराखंड में जल विद्युत के लिए बने सबसे बड़े बांध, टिहरी से प्रभावित लोगों के पुनर्वास का मामला सर्वोच्च न्यायालय, दिल्ली के सम्मुख जनवरी 14 को आया। न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार तथा बांध कंपनी को चार सप्ताह का समय दिया है कि इस विषय पर वे अपनी रिपोर्ट न्यायालय को पेश करें। न्यायालय इस विषय की समीक्षा कर रहा है। नैनीताल उच्च न्यायालय ने बांध की निकासी सुरंगों को बंद करने के आदेश 29 अक्टूबर 2005 को दे दिए थे, जिससे टिहरी शहर तथा पास के गांव जल भराव से डूबने लगे थे तथा कुछ अन्य गांवों की भूमि नीचे, भागीरथी नदी की ओर खिसकने लगी थी। यह भूमि खिसकने की बात भारत सरकार की जियोलौजिकल सर्वे आफ इंडिया ने भी कही थी। उत्तराखंड सरकार तथा टिहरी बांध कंपनी ने भी माना था कि राउलकोटा, नकोट तथा संजुम गांव खिसकने से बहुत प्रभावित हुए हैं और उनके निवासियों को तुरंत पुनर्वास की आवश्यकता है। अखबारों के अनुसार 45 गांवों के 118 परिवार प्रभावित हैं। यह सब मानने के बाद भी दो सालों में पुनर्वास की दिशा में न राज्य सरकार और न टिहरी बांध कंपनी ने कोई कदम उठाया है। सर्वे लाइन बदलने तथा जलाशय के भरने से 45 गांवों के 118 परिवार प्रभावित हैं और उनका पुनर्वास आवश्यक हो गया है।

इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय के 25-9-08 तथा 30-4-09 के आदेशों पर कोई अमल नहीं किया गया है। उत्तराखंड के अधिवक्ता ने कहा कि पुनर्वास पर जो कुछ किया गया है उसकी पूरी जानकारी राज्य सरकार सर्वोच्च न्यायालय को देगी। इस विषय पर अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
 

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