कहां खो गए आगरा के 115 तालाब
आगरा। जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो भला कौन बचा सकता है। शहर के तालाबों के साथ प्रशासन ने कुछ ऐसा ही रवैया अपना रखा है। रसातल की ओर सरकते जल स्तर से बेफिक्र प्रशासन सहित सभी सरकारी विभाग तालाबों को समतल कर उन्हें भूमाफियाओं के मनमाफिक बनाते जा रहे हैं। हद तो यह है कि पानी की कीमत पर मालपानी ऐंठने के लिए हाईकोर्ट तक को गच्चा दे दिया। सवाल उठता है कि कभी सैकड़ों की संख्या में दिखने वाले तालाब आखिर कहां खो गये? सूत्रों के अनुसार शहर में करीब 115 तालाब थे, जिन पर भू माफियाओं की नजर पड़ी तो उन्होंने वहा ईटें जमाना शुरू कर दीं। संभवत: प्राकृतिक संपत्ति के लिए एग्रीमेंट बड़ी ही चालाकी से किए गए, इसीलिए इमारतों में बदलते तालाब प्रशासन को नजर नहीं आए।
आखिर सुप्रीम कोर्ट की मॉनीटरिंग कमेटी के सदस्य डीके जोशी ने 2005 में हाईकोर्ट में रिट दायर कर दी कि मदिया कटरा सहित शहर के 115 तालाबों पर अतिक्रमण कर लिया गया है। दलील थी जल स्तर बचाने को तालाबों का संरक्षण जरूरी है। इस पर कोर्ट ने प्रशासन सहित संबंधित विभागों को आदेश दिये कि सभी तालाबों को अतिक्रमण मुक्त करा कर उन्हें पूर्व की स्थिति में लाएं और लगातार उनका संरक्षण किया जाए। इसके बाद प्रशासन ने हाईकोर्ट को रिपोर्ट सौंपी कि 36 तालाब अतिक्रमण मुक्त करा कर उन्हें पूर्व की स्थिति में लाने केप्रयास शुरू कर दिए गए हैं, जबकि अन्य पर घनी आबादी बस चुकी है। प्रशासन की इस रिपोर्ट से असंतुष्ट डीकेजोशी ने अपने स्तर से इन 36 तालाबों का जायजा लिया। उन्होंने पाया कि एक भी तालाब अतिक्रमण मुक्त नहीं था। कहीं बाउंड्री तो कहीं मकान खड़े थे।
अधिकांश जगह तो नगर निगम ही उन्हें कूड़ा डालकर पाटने में लगा था। लिहाजा 2006 में श्री जोशी ने कमिश्नर, डीएम, एसएसपी, एडीए वीसी और नगर आयुक्त को कोर्ट की अवमानना के मामले में पार्टी बना दिया।