केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट का सरकारी दावा पत्र: देश के दो बड़े राज्यों (उ.प्र. एवं म.प्र.) के मध्य जल की आपूर्ति के लिए नदी जोड़ो परियोजना
केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच मतभेद को सुलझाकर 22 मार्च 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वर्चुअल मौजूदगी में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। इस परियोजना के लिए केंन्द्र सरकार एक खास केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट अथॉरिटी बनाएगी। यह परियोजना 8 वर्षों में पूरी होगी और इसकी 90 फीसदी लागत केंन्द्र सरकार उठाएगी।
केन बेतवा लिंक परियोजना (KBLP): पृष्ठभूमि
भारत में नदी जोड़ो के लिए 80 के दशक में परियोजना पर विचार किया गया था। 1970 के दशक में एक नदी के अतिरिक्त जल को पानी की कमी वाले क्षेत्रों में स्थित अन्य नदियों में स्थानांतरित करने के विचार को तत्कालीन केंन्द्रीय सिंचाई मंत्री (वर्तमान में जल शक्ति मंत्रालय) डॉ. के. एल राव द्वारा प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने जल-समृद्ध क्षेत्रों से पानी की कमी वाले क्षेत्रों में जल स्थानांतरित करने के लिए राष्ट्रीय जल ग्रिड के निर्माण का सुझाव दिया था। 1999 से 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में इस पर काम शुरू हुआ। इसके अतिरिक्त देखा जाय तो एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पानी के पुनर्वितरण के लिए गारलैंड (मालानुमा या गोलाकार) नहर परियोजना को भी प्रस्तावित किया जा चुका है। हालांकि सरकार ने इन दोनों विचारों को आगे नहीं बढ़ाया। 2005 में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और केंन्द्र सरकार ने इस पर हस्ताक्षर किए थे और 2007 में केन बेतवा नदी परियोजना को पर्यावरणीय अनुमति मिली।
क्या है केन-बेतवा लिंक परियोजना?
केन-बेतवा लिंक परियोजना दो नदियों को आपस में जोड़ने की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। इस परियोजना के तहत केन नदी से बेतवा नदी में पानी भेजा जाएगा। दोनों नदियों को जोड़ने वाली नहर और परियोजना, कोथा बैराज और बीना परिसर बहुउद्देशीय परियोजना से इसमें मदद मिलेगी। उल्लेखनीय है कि दोनों नदियाँ यमुना की सहायक नदियां हैं, इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने हेतु मध्य प्रदेश की केन नदी के अधिशेष जल को बेतवा नदी में हस्तांतरित करना है। यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश के झाँसी, बांदा, ललितपुर और महोबा जिलों तथा मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, पन्ना और छतरपुर जिलों में फैला हुआ है। इस परियोजना में 77 मीटर लंबा और 2 किमी चौड़ा दीधन बांध एवं 250 किलोमीटर लंबी नहर निर्माण कार्य शामिल है।
केन-बेतवा देश की 30 नदियों को जोड़ने हेतु शुरू की गई नदी जोड़ो परियोजनाओं में से एक है। राजनीतिक और पर्यावरणीय मुद्दों के कारण परियोजना में देरी हुई है। देखा जाय तो केंन्द्र सरकार पूरे देश में सिंचाई की व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए कुल ऐसे 30 प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, केन बेतवा लिंक प्रोजेक्ट पर करीब 45 हजार करोड़ रूपए का खर्च आएगा। इस परियोजना को दो चरणों में पूरा किया जाना है। पहले चरण में दौधन बांध कॉम्पलेक्स और इससे जुड़े लो लेवल टनल, हाई लेवल टनल केन-बेतवा और पॉवर हाऊस का निर्माण किया जाएगा। दूसरे चरण में ऑयर डैम बीना कॉम्पलेक्स प्रोजेक्ट और कोथा वेराज बनाया जाना है। इस परियोजना के तहत केन-बेतवा के बीच 221 किलोमीटर लंबा कैनाल बनाया जाएगा, जिसमें 2 किलोमीटर लंबी सुरंग भी शामिल होगी। इस परियोजना पर कुल लागत 37611 करोड़ की आएगी।
केन-बेतवा नदियों का उद्गम
इस परियोजना की ये दो नदियाँ (1) केन: केन नदी जबलपुर के पास कैमूर की पहाड़ियों से निकलकर 427 किमी उत्तर की ओर वहने के वाद उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के चिल्ला गांव में यमुना नदी में मिलती है, यह नदी पन्ना बाघ अभ्यारण्य से भी होकर गुजरती है।
(2) बेतवा नदी मध्य प्रदेश के रायसेन जिले से निकलकर 576 किमी बहने के बाद उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में यमुना में मिलती है। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के दौधन गांव में दोनों नदियों को जोड़कर बांध बनाया जाएगा। यहां बिजली उत्पादन भी होगा। 78 मेगावाट बिजली मध्य प्रदेश को मिलेगी। इस लिंक परियोजना के जरिए केन नदी में 1074 एमसीएम पानी पहुंचाया जाएगा। राजघाट, पारीछा और माताटीला अन्य बाँध बेतवा नदी पर निर्मित हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का था केन-बेतवा परियोजना का सपना केन बेतवा लिंक परियोजना का सपना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देखा था। उनके शासनकाल में जब देश की 37 नदियों को आपस में जोड़ने का फैसला लिया गया, तो उसमें से एक यह परियोजना भी थी। उनके सपने को बीजेपी की नरेंन्द्र मोदी सरकार ने पूरा करने का बीड़ा उठाया है। पीएम मोदी ने संवाद के दौरान कहा कि अटल जी ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लाखों परिवारों के कल्याण के लिए जो सपना देखा था उसके लिए केन-बेतवा लिंक परियोजना के लिए समझौता हुआ है। यह समझौता दोनों राज्यों की प्रगति के साथ जनता के लिए कल्याणकारी होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह परियोजना बुंदेलखण्ड का भाग्य बदलेगी, इससे प्यास भी बुझेगी और विकास भी होगा।
परियोजना को लेकर पूर्व में था विवाद
इस प्रोजेक्ट का जो ड्राफ्ट तैयार किया गया है उसके मुताबिक एमपी को 2650 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी मिलना है वहीं उत्तर प्रदेश को 1700 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी मिलना है हालांकि यूपी सरकार की तरफ से 935 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की और मांग की गई थी। जिसे मध्य प्रदेश ने इंकार कर दिया था। इसी के चलते यह प्रोजेक्ट रूक गया था। परियोजना 2005 में मंजूर हुई थी, तब उत्तर प्रदेश को रबी फसल के लिए 547 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) और खरीफ फसल के लिए 1153 एमसीएम पानी देना तय हुआ था। विवाद रवी फसल के लिए पानी देने को लेकर था।
अप्रैल 2018 में उत्तर प्रदेश ने रवी फसल के लिए 700 एमसीएम पानी की मांग रखी, जो बाद में 788 एमसीएम तक पहुंच गई। इस पर पूरी तरह से सहमति बनती उससे पहले ही उत्तर प्रदेश ने जुलाई 2019 में 930 एमसीएम पानी का मांग पत्र भेज दिया। मध्य प्रदेश इतना पानी देने के लिए तैयार नहीं था। और यह विवादित मामला इस परियोजना में रोड़ा बन गया। इसके अलावा इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर भी चिंता जताई जा रही है। केन नदी पन्ना टाइगर रिजर्व से होकर गुजरती है केन-बेतवा इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व का कुछ हिस्सा पानी में डूब जाएगा, जिससे यहां रहने वाले - टाइगर्स को नुकसान हो सकता है।
-केन-बेतवा परियोजना से किसको होगा लाभ जानिए ?
केन-बेतवा लिंक परियोजना को उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विस्तृत बुंदेलखण्ड में कार्यान्वित किया जाना है। इस परियोजना से मध्य प्रदेश के पन्ना, - टीकमगढ़, छतरपुर व सागर के साथ-साथ दमोह दतिया, विदिशा, शिवपुरी और रायसेन जिलों को विशेष लाभ होगा। इसके अतिरिक्त, उतर प्रदेश के बांदा, महोचा, झाँसी और ललितपुर जिले भी इससे लाभांवित होंगे। साथ ही इस परियोजना से 62 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की वार्षिक सिंचाई, लगभग 62 लाख लोगों को पेयजल आपूर्ति और 103 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन की उम्मीद है। हालांकि इससे - पन्ना बाघ संरक्षण क्षेत्र के प्रभावित होने का भी खतरा है।
62 लाख लोगो की बुझेगी प्यास
जल शक्ति मंत्री श्री गजेंन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि पांच साल में नदी जोड़ने की दिशा में काम हुआ है। केन-बेतवा नदी जोड़ने के लिए दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सहमति दी है, इससे बरसों से प्यासे बुंदेलखण्ड की धरती के लाखों लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आने वाला है। 62 लाख लोग पीने के लिए तरसते थे। इन्हे प्रचुरता के साथ सतत रूप से पेयजल उपलब्ध रहेगा। दोनों राज्यों में 12 लाख हेक्टेयर भूमि में दो-तीन बार फसल ली जा सकेगी। इससे कई गुना आमदनी बढ़ेगी। यह इस योजना का श्रीगणेश ही नहीं बल्कि नए युग का सूत्रपात भी है।
सूखे का दंश झेल रहे बुंदेलखण्ड के जिलों के लिए केन-बेतवा लिंक परियोजना जिंदगी की नई धारा लेकर आएगी। बुंदेलखण्ड में उत्तर प्रदेश के सात और मध्य प्रदेश के नौ जिले शामिल हैं जिन्हें इस परियोजना का शिद्दत से इंतजार था। केन बेतवा का संगम होने पर खेती की सिंचाई तो होगी ही आमजन की प्यास भी बुझेगी। केन बेतवा लिंक परियोजना के तहत हमीरपुर स्थित मौदहा बांध को लिंक नहर से जोड़कर भरा जाएगा।
मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखण्ड के लिए भी यह परियोजना जीवनदायिनी साबित होगी। टीकमगढ़, पन्ना जिलों में किसान उन परंपरागत फसलों (धान, चना, गेंहू) को उगा सकेंगे, जो सिंचाई के अभाव में दम तोड़ देती थी। साथ ही बूंद-बूंद पानी को तरसते बुन्देलखण्ड के कई गांवों में पेयजल मिलेगा। इससे पलायन भी रुकेगा,
दोनों राज्यो में किसको कितना पानी मिलेगा
केन-बेतवा प्रोजेक्ट से 62 लाख लोगों तक पीने का पानी उपलब्ध होगा। इसमें मध्य प्रदेश में 41 लाख और उत्तर प्रदेश में 21 लाख लोग लाभान्वित होंगे। जबकि केन, बेसिन से दौधन डैम तक सामान्य साल में कुल 6590 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी जमा होगा जिसमें से मध्य प्रदेश 2350 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी का इस्तेमाल कर सकेगा और उत्तर प्रदेश 1700 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी का उपयोग कर पाएगा। नवंबर से मई के बीच जिसे गैर-मानसूनी सीजन भी कहते हैं; उस दौरान जलाशय से मध्य प्रदेश को 1834 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी दिया गया जाएगा, जबकि यूपी के लिए 750 मिलियन क्यूविक मीटर पानी छोड़ा जाएगा। इस नदी जल परियोजना से 103 मेगावॉट हाइड्रो पॉवर और 27 मेगावॉट सोलर पॉवर पैदा करने का भी लक्ष्य रखा गया है।
सूखे की घटनाओं में कमी लाना
इस परियोजना के बन जाने से दोनों राज्यों में नदियो को आपस में जोड़ने से बुंदेलखण्ड क्षेत्र में सूखे की पुनरावृत्ति का भी समाधान हो सकेगा।
किसानों को लाभ
इस परियोजना से किसानों को खासा लाभ होने वाला है। इस परियोजना के साकार होने के साथ ही बुंदेलखण्ड की भाग्यरेखा को नया रंग रूप मिला है। इस प्रोजेक्ट से कई जिलों के लाखों लोगों को पानी मिलेगा। वहीं केन-बेतवा के इस प्रोजेक्ट से लाखों किसानों को लाभ होगा। इससे 10.62 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सालभर सिंचाई हो सकेगी तथा किसानों की आत्महत्या की दर पर अंकुश लगेगा और सिंचाई के स्थायी साधन प्रदान करके तथा भूजल पर अत्यधिक निर्भरता को कम करके उनके लिये स्थायी आजीविका सुनिश्चित करेगा।
विद्युत उत्पादन का विकास
बहुउद्देशीय बाँध के निर्माण से न केवल जल संरक्षण में तेजी आएगी, बल्कि 103 मेगावाट जल विद्युत का उत्पादन भी होगा तथा इससे संबंधित जल विद्युत परियोजना से मिलने वाली 78 मेगावाट बिजली मध्य प्रदेश को मिलेगी। इससे 6 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र को सिंचाई में लाभ होगा। साथ ही सूखे की मार झेलने वाले बुंदेलखण्ड को भी पर्याप्त पानी मिल सकेगा।
जैव विविधता का जीणोंद्वार एवं पन्ना टाइगर रिजर्व पर असर
कुछ विचारकों का मानना है कि पन्ना टाइगर रिजर्व के जल संकट वाले क्षेत्रों में बांधों का निर्माण होने से इस रिजर्व के जंगलों का जीर्णोद्वार होगा जो इस क्षेत्र में जैव विविधता को समृद्ध करेगा। केन बेतवा लिंक प्रोजेक्ट की वजह से जंगल की 6017 हेक्टेयर जमीन पानी में डूब जाएगी, जिसमें से 4206 हेक्टयर पन्ना टाइगर रिजव के बाघों के निवास के इलाके में है।
वैसे देखा जाय तो पूर्व में भी कई नदी जोड़ो परियोजनाओं को शुरू किया जा चुका है। उदाहरण स्वरूप, पेरियार परियोजना के तहत, पेरियार बेसिन से वैगाई बेसिन तक पानी के स्थानांतरण की परिकल्पना की गई। इस परियोजना को वर्ष 1895 में कमीशन किया गया था। इसी तरह कुछ अन्य परियोजना भी शुरू की गई थी जैसे-परम्विकुलम अलियार, कूर्नूल कुडप्पा नहर, तेलगू गंगा परियोजना आदि ।
राष्ट्रीय परिपेक्ष्य योजना (National Perspective Plan: NPP) इस योजना को अगस्त 1980 में जल अधिशेष बेसिन से जल की कमी वाले बेसिन में जल को स्थानांतरित करने हेतु तैयार किया गया था। एन.पी.पी. में दो घटक शामिल हैं (1) हिमालयी नदियों का विकास (2) प्राद्वीपीय नदियों का विकास। एन.पी.पी के आधार पर राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण ने 30 नदी लिंक की पहचान की है। जिनमें से 16 प्रायद्वीपीय घटक के अंतर्गत और 14 हिमालयी घटक के अंतर्गत थी। केन-बेतवा लिंक परियोजना प्रायद्वीपीय घटक के 16 नदी जोड़ो परियोजनाओं में से एक है। इस योजना का उद्देश्य अंतर-बेसिन जल हस्तांतरण परियोजनाओं के माध्यम से जल अधिशेष वेसिन जहाँ जल की मात्रा अधिक है, से जल की कमी वाले बेसिन में जल का हस्तांतरण करना है ताकि सूखे आदि की समस्या से निपटा जा सके।
भारत में नदी जोड़ो परियोजना के लिए आवश्यक मंजूरियों क्या क्या है जानिए ?
भारत में देखा जाए तो सामान्यतः नदी जोड़ों परियोजना के लिए 4 से 5 प्रकार की मंजूरियों की आवश्यकता होती है। इन मंजूरियों और इसको प्रदान करने वाली संस्थाओं का विवरण निम्नलिखित है-
क्र. आवश्यक मंजूरियां और उससे संबंधित संस्थान
1. तकनीकी और आर्थिक मंजूरी - केंद्रीय जल आयोग
2. वन एवं पर्यावरण मंजूरी - पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
3. आदिवासी जनसंख्या की पुनर्वास योजना - जनजातीय कार्य मंत्रालय
4. वन्यजीव मंजूरी - केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति
निष्कर्षः
भारत में नदी जोड़ो परियोजना से जल की आपूर्ति हो सकेगी। इस परियोजना से दोनों राज्य लाभान्वित हो सकेंगे। इस परियोजना को भारत के पानी के उज्ज्वल भविष्य के लिए स्वर्णक्षरों में लिखा जाएगा। इस परियोजना के तहत बुंदेलखण्ड की भाग्यरेखा को नया रंग-रूप मिलेगा। परियोजना से लाखों लोगों को पानी तो मिलेगा ही साथ ही बिजली भी मिलेगी। और दोनों राज्यों को जल संसाधन के समुचित लाभ प्राप्त होंगें खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की प्यास बुझेगी। इससे देश में अन्य नदी जोड़ों परियोजनाओं का मार्ग प्रशस्त होगा, जिससे देश में जल संसाधन का समुचित वितरण, विकास सुनिश्चित किया जाएगा।