बुलंदशहर में काली नदी
बुलंदशहर में काली नदीhttps://en.wikipedia.org/wiki/Kali_River_(Uttar_Pradesh)

संदर्भ गंगा : काली-सचमुच-काली; मोदीनगर-बुलंदशहर से मिलन तक की काली नदी की दास्तां (भाग 2)

काली नदी की दुर्दशा: मोदीनगर और बुलंदशहर के उद्योगों और नालों से फैला प्रदूषण, गांवों और शहरों में जल संकट और बीमारियों का खतरा। जानें कैसे हो रहा है पर्यावरण का विनाश।
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मोदीनगर में काली नदी के प्रदूषण के स्रोत

काली नदी में प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत कादराबाद ड्रेन मोदीनगर औद्योगिक काम्पलेक्स से आता है। मंदिर, धर्मशाला और स्कूल आदि के रूप में समाज सेवा का ढोंग रचने वाले उद्योग समूह कैसा विष घोल रहे हैं, यह शहर इसका उदाहरण है।

मोदी उद्योग समूह का अरबों रुपयों का साम्राज्य है। यहां स्टील, पेंट, चीनी, शराब, गैस और केमिकल्स, वनस्पति, साबुन, एल्मेक्ट्राड, सूत. कपड़ा और कागज मिल के कारखाने हैं। इतने बड़े औद्योगिक काम्पलेक्स बनाने वाले इस समूह ने अपने कारखानों में ही शुद्धिकरण संयंत्र लगाने की चिन्ता तो नहीं ही की, यह परवाह भी नहीं की कि अपना पानी बंद नाली से शहर से दूर कहीं छोड़ें। इनकी फैक्ट्रियों का उत्प्रवाह शहर की खुली नालियों से सीधे बहता हुआ बस अड्डे के पास स्थित खुले कादराबाद ड्रेन में गिरता है। इस समूह ने अपनी डिस्टिलरी इकाई में प्राथमिक शुद्धिकरण लगाया है, पर वह भी प्रायः बंद रहता है और उत्प्रवाह नालियों से खुले ड्रेन में जाता है। पुलिया के पास जहां इस उद्योग समूह की चीनी मिल, शराब और वनस्पति कारखानों का जहरीला पानी आता है, वहीं दूसरे किनारे पर नवभारत पेपर मिल का जहरीला पानी गिरता है।

मोदीनगर शहर का सारा गंदा पानी इसी ड्रेन से होकर काली में जाता है। इस ड्रेन में प्रदूषण इतना अधिक हो गया है कि उसका असर कुओं और हैंडपंप के पानी पर भी है।

होम्योपैथ डा० कृष्णपाल त्यागी का अनुभव है कि पर्यावरण प्रदूषण की वजह से पूरे इलाके में एलर्जी, हैजा, मलेरिया और पीलिया जैसे रोग फैल रहे हैं।

स्वतंत्रता सेनानी सरदार सिंह बताते हैं कि पानी का स्वाद बदलकर खारा हो गया है। शहर में कादराबाद ड्रेन के दोनों ओर बसे मुहल्लों और गांवों की स्थिति बहुत खराब हो गयी है। वैसे तो सलेमपुर, झावर, सुमेरा, अलीगढ़ अतरौली रोड, ननऊ छारा रोड, कासगंज, एटा ठुमरी, बेवर, फतेहगढ़ रोड तथा कन्नौज में भी नाले आकर काली में गिरते हैं, लेकिन हापुड़ के बाद मुख्य स्रोत बुलंदशहर का सीवेज, स्लज तथा पन्नीजी शुगर मिल ही हैं।

बुलंदशहर में काली नदी के प्रदूषण के स्रोत

बुलंदशहर में आधा दर्जन नाले शहर और चीनी मिल की गंदगी काली नदी में गिराते हैं। पहला नाला पार्यारोड का है जो डीएम० कालोनी के पीछे से होकर गुजरता है। दूसरा भवन रोड, तीसरा नरसल घाट, चौथा भूतेश्वर मंदिर के पीछे, पांचवा राधानगर और छठा पन्नी जी शुगर मिल का नाला है। शहर में सीवर प्रणाली नहीं है।

यहां औद्योगिक प्रदूषण का स्रोत पन्नीजी शुगर मिल है जो अब चीनी निगम के नियंत्रण में है। इस चीनी मिल की एक बंद नाली हैं, लेकिन उसका उत्प्रवाह प्रायः भूतेश्वर मंदिर के पीछे और राधानगर के खुले नाले से होकर नदी में जाता है। फैक्ट्री में ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। नाले के किनारे एक टंकी बनी है, जिसमें चूने के जरिये उत्प्रवाह का प्रदूषण भार कम करने की व्यवस्था है, पर प्रायः उसका भी उपयोग नहीं किया जाता। नतीजतन उसका गंदा पानी खुले पानी में गिरकर जजेज और टीचर्स कालोनी के निवासियों का जीना दूभर कर रहा है। मच्छर, बदबू और घुटन मुख्य शिकायतें हैं। नगरपालिका बुलंदशहर की ओर से मिल पर मुकदमा चल रहा है।

पन्नी जी शुगर मिल का यह संयंत्र सन् 1901 में जावा से आयात किया गया था। मिल चलने पर इससे प्रतिदिन दस से पन्द्रह हजार लीटर उत्प्रवाह निकलता है। मशीनों को ठंडा करने के लिए लगे कुलिंग प्लांट से निकला गरम पानी भी हानिकारक होता है। मिल द्वारा उपलब्ध करायी गयी जानकारी के अनुसार उसके उत्प्रवाह में सस्पेंडेड सालिड्स 1200 मि०ग्रा० प्रति लीटर, वीओडी० 225 तथा सीओडी० 480 होता है।

मिल ने अपना शीरा रखने के लिए खुले कच्चे और पक्के गड्‌ढे फैक्ट्री परिसर के अंदर बनवा रखे हैं। यह शीरा वायु और भूमिगत जल प्रदूषण का कारण बनता है। फैक्ट्री परिसर में बनी कालोनी के ट्यूबवेल का पानी जांच में हल्का क्षारीय पाया गया है और स्टेट हेल्थ इंस्टीट्यूट लखनऊ की जांच में इस पानी में जीवाणु पाये गये। इसलिए उसे असंतोषप्रद करार दिया गया।

बुलंदशहर में सीवर प्रणाली न होने से कमाऊ टट्टियों का मैला भी अंततः नालों के जरिये काली में जाता है।

कत्थई रंग के जहरीले पानी वाली इस नदी में भी कुछ धोबी कपड़े धोते मिले। इनमें से एक सगीर अहमद का कहना था कि काली की गंदगी से शहर के धोबियों का धंधा लगभग खत्म हो गया है। इसके पानी से कपड़े धोने पर पीले धब्बे पड़ जाते हैं इसलिए ब्लीचिंग पाउडर तो मिलाना पड़ता ही है। कपड़ों को दोबारा साफ पानी में धोना पड़ता है। अब धोबी नहर में जाते हैं, किन्तु वहां 25/- रू० महीना टैक्स लगा दिया गया है।

सगीर अहमद नदी के अंदर से कीचड़ निकालते हुए बताते हैं कि पहले यहां बालू थी और भूमिगत जलस्रोतों से भी नदी में पानी आता था। पर अब सब बंद हो चुका है।

अब्दुल वहीद की शिकायत है कि गंदे पानी से शहर में इस कदर मच्छर हो गये हैं कि लोग रात भर जागते हैं। इसी वजह से लोग दिन में दफ्तरों में ऊंघते मिलते हैं।

खेतिहर मजदूर रफीक की शिकायत है कि खेत में काम करने वाले लोग खुद और अपने जानवरों को इस नदी से पानी पिलाते तथा नहलाते थे। अब यह बात सोची भी नहीं जा सकती।

बुलंदशहर को बाढ़ से बचाने के लिए ऊंचा बांध बना दिया गया। परिणाम स्वरूप बाढ़ में नदी का सारा जहरीला पानी काफी दूर तक गांवों के कुओं, तालाबों और खेतों में फैलकर पानी के साथ ही मिट्टी और फसल भी खराब कर रहा है।

समीपवर्ती सिकंदराबाद इंडस्ट्रियल स्टेट की कागज, सिरेमिक और कालीन उद्योगों का गंदा नाला भी करवा और हजारा नदियों से होते हुए काली में मिलता है।

इस तरह लगभग तीन दर्जन चीनी, शराब, कपड़ा, कागज, केमिकल्स कारखानों और चंद बड़े शहरों के जहरीले कचड़े ने 415 कि०मी० लंबी इस नदी के दोनों ओर बसे कई हजार गांवों की स्थिति नारकीय बनाकर जानलेवा बीमारियां तथा पेयजल का घोर संकट दिया है। यही सारा जहर कन्नौज के पास आकर गंगा नदी में मिलता है।

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