कुकरैल नदी प्रदूषण
कुकरैल नदी प्रदूषण

नाला नहीं, अब सदानीरा बनेगी कुकरैल नदी

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में चलाया गया एक अतिक्रमण विरोधी अभियान राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहा। वैसे तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद उनके बुलडोजर की बहुत चर्चा रही है। लेकिन इस बार लखनऊ में जब बुलडोजर चलाया गया तो इसके पीछे उद्देश्य सरकारी संपत्ति को कब्जा मुक्त कराना या किसी अपराधी को उसके किए का सबक सिखाना मात्र नहीं था। इसके पीछे जो कारण था वह बहुत ही पवित्र और पर्यावरण हितैषी था।
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दरअसल योगी आदित्यनाथ ने ठान लिया है कि दशकों से नाला बनने को अभिशप्त रही गोमती की सहायक नदी कुकरैल को वह सदानीरा बनाएंगे। कुकरैल की भूमि को कब्जा मुक्त कराने के लिये योगी सरकार को सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़नी पड़ी, लेकिन अटल इच्छाशक्ति के धनी योगी आदित्यनाथ ने सुनिश्चित किया कि कुकरैल को नाला से नदी बनाने की राह में आ रही हर अड़चन दूर की जाएगी। लखनऊ के अकबरनगर में चलाए गए अतिक्रमण हटाओ अभियान असर भी दिखने लगा है। आठ हजार अवैध कब्जों से मुक्त होने के बाद इस नदी में पानी के नए स्रोत फूट रहे हैं। लखनऊ में पिछले पांच दशक में कुकरैल नदी के आसपास इतने अवैध कब्जे और निर्माण हुए कि यह नाला बनकर रह गई। यदि सहायक नदी कुकरैल के दिन आज न तो उनका कोई नाम लेने वाला है और न ही उनकी ओर किसी का ध्यान है। ऐसी छोटी नदियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। देश की अनेक छोटी नदियां लुप्तप्राय हो गई हैं। छोटी नदियों के समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित हो जाने के कारण विशाल नदियों को भी अपार जल की राशि न मिल पाने से उनके अस्तित्व के समक्ष भी संकट उपस्थित होने जा रहा है। विकास की अंधी दौड़ में लुप्त हुई स्थानीय नदियां किसानों के लिए सिंचाई का सबसे सुलभ साधन थीं। इन नदियों का अस्तित्व खत्म होने के कारण किसानों की भूजल पर निर्भरता बढ़ने से प्राकृतिक संतुलन तक बिगड़ने की नौबत आ गई। इस स्थिति से निपटने के लिए यूपी की योगी सरकार ने संकटग्रस्त स्थानीय नदियों को फिर से जीवंत बनाने की जो दृढ़ पहल की है, वह अत्यंत ही सराहनीय है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बड़ी नदियों की जलधारा को पुष्ट करने वाली स्थानीय नदियों के लुप्त होने को मानवता के लिए खतरे की घंटी बताया है। जल संसाधनों के संवर्धन पर सरकार के प्रयासों की समीक्षा करते हुए योगी ने कहा कि लगभग हर इलाके में बहने वाली स्थानीय नदियां न केवल किसानों की सिंचाई एवं पेयजल आपूर्ति की स्रोत हैं, बल्कि ये नदियां, बड़ी नदियों में मिलकर पानी के बहाव को भी स्थायित्व प्रदान करती है। कालांतर में विकास की बेहिसाब दौड़ के कारण  तमाम छोटी स्थानीय नदियों के संकटग्रस्त होने पर योगी ने चिंता जताते हुए इन्हें फिर से जीवंत बनाने की मुहिम शुरू की है। इसका आरंभ लखनऊ की कुकरैल से किया है। मुख्यमंत्री ने कुकरैल नदी के पुनरुद्धार करते हुए इसका नैसर्गिक सौंदर्य बहाल करने के लिए इसके आसपास बटरफ्लाई पार्क और फिशिंग जोन बनाने को भी कहा है। साथ ही नदी के किनारे रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने, जॉगिंग एरिया बनाने तथा छठ पूजा घाट और पार्किंग जैसी सुविधाएं भी मुहैया कराने का भी निर्देश दिया है। योगी आदित्यनाथ ने नदियों के लुप्त होने को मानव सभ्यता के लिए चेतावनी बताते हुए कहा है कि कुकरैल नदी की तर्ज पर प्रदेश में अन्य स्थानीय नदियों को भी संकट से उबारा जाएगा।

कुकरैल नदी लखनऊ की जीवनधारा मानी गई गोमती नदी की सहायक नदी है। इसका उद्गम लखनऊ के निवाजपुर दसौली गांव के पास से हुआ है। पेपरमिल होते हुए कुकरैल, 28 किमी का सफर तय करके गोमती नदी में मिल जाती है। बीते पांच दशकों में शहर के बेकाबू विस्तार के कारण यह नदी लगातार सिकुड़ती गई। लगभग 50 साल पहले तक बेहद साफ पानी वाली यह नदी लखनऊ के ग्रामीण इलाकों में किसानों और उनके खेतों की प्यास बुझाती थी। इसके नाम को लेकर ऐसी मान्यता है कि किसी को कुत्ता काटने पर रेबीज से बचने के लिए कुकरैल नदी में नहाना पुख्ता उपाय है। कालांतर में लखनऊ के 17 बड़े नाले कुकरैल में मिलने के कारण यह नदी अब शहर के सबसे बड़े गंदे नाले में तब्दील हो गई है।

सीएम योगी के निर्देश पर कई विभागों को कुकरैल नदी को अविरल, निर्मल और प्रदूषणमुक्त किए जाने के मिशन पर लगाया गया है। इसका उद्देश्य गंदे नालों को कुकरैल में प्रवाहित होने से रोकना, नदी तट का सौंदर्यीकरण, साइट डेवलपमेंट और ग्रीन बेल्ट विकसित करना है। मुख्यमंत्री की ओर से कुकरैल नदी को प्रदूषण मुक्त और पुनर्जीवित करने के लिए नदी में गिरने वाले 36 नालों को इंटरसेप्ट करने के निर्देश दिए गए हैं। द्वितीय चरण में 22 नालों को टैपिंग कर 6 एमएलडी अशोधित सीवेज को कुकरैल नदी में गिरने से रोका जाएगा। वहीं तृतीय चरण में न्यूनतम जल प्रवाह बनाए रखने के लिए 40 एमएलटी क्षमता का एसटीपी बनाकर शोचित जल को कुकरैल नदी में अपस्ट्रीम में छोड़ा जाएगा। अकबरनगर में नगर निगम की जमीन पर अवैध निर्माण ध्वस्त करने के बाद 1.50 हेक्टेयर भूमि पर एसटीपी का कार्य किया जाएगा।
कुकरैल नदी में पानी की अविरल आपूर्ति के लिए वन क्षेत्र में कुकरैल नदी के जल स्रोतों और जल निकायों को पुनर्जीवित करने के लिए प्रोग्राम बनाए जाएंगे। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में जल स्रोतों और जल निकायों को पुनर्जीवित करने के लिए ग्रामीण विकास विभाग और लखनऊ विकास प्राधिकरण की तरफ से कार्य किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश जल निगम (नगरीय) की तरफ से 40 एमएलडी एसटीपी से पानी नदी में छोड़ा जाना प्रस्तावित है, वहीं सिंचाई विभाग की तरफ से शारदा नहर से लगभग 5 से 15 क्यूसेक पानी उपलब्ध कराया जाएगा।

कुकरैल नदी के प्रवाह में भूजल का विशेष योगदान रहता था लेकिन वर्तमान में भूजल स्तर में भारी गिरावट के कारण इसमें बहुत कमी आयी है जिससे नदी का नैसर्गिक प्रवाह लगभग खत्म हो चुका है। 

लखनऊ में जल आपूर्ति प्राइवेट और जल संस्थान के ट्यूबवेल, गोमती नदी और शारदा सहायक फीडर नहर जैसे स्रोतों पर निर्भर करती है। चूंकि लखनऊ गंगा मैदान के जलोढ़ पर स्थित है, जहां - भूजल की उपलब्धता आसानी से बनी रहती है, यही कारण है कि आवासीय कॉलोनियों और बहुमंजिला इमारतों में निजी ट्यूबवेल निर्माण गतिविधि अनियंत्रित रूप से चल रही है। इसके कारण भूजल संसाधनों में भारी पंपिंग/निरंतर दोहन हुआ है और भूजल भंडार में बड़े पैमाने पर कमी आई है। परिणामस्वरूप भूजल स्तर काफी नीचे तक चला गया है। कुकरैल नदी की दशा सुधरने का सुफल इस क्षेत्र की सम्पूर्ण पारिस्थितिकी पर नजर आएगा। इससे एक ओर जहां भूजल स्तर में सुधार की संभावना है, वहीं गोमती नदी की दशा में व्यापक सकारात्मक परिवर्तन की आशा बलवती हो गई है। कुकरैल नदी को पुनर्जीवित करने का यह प्रयास सफल रहा तो इससे न केवल उत्तर प्रदेश की अन्य मृतप्राय नदियों के पुनरोद्धार का मार्ग प्रशस्त होगा, बल्कि पूरे देश में नदियों की दशा सुधारने के लिये यह प्रेरक मॉडल बनेगा।

स्रोत -  लोक सम्मान, जून-जुलाई, 2024

लेखक लोकसम्मान पत्रिका के संपादक हैं।

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