नागौर के मरुभूमि में तालाब |
नागौर के मरुभूमि में तालाब |

नागौर के मरुभूमि में तालाब | Pond in Nagaur desert

जानिए नागौर के मरुस्थल वाली जगह में तालाब कैसे बना | Get information about How pond was made in the desert area of ​​Nagaur.
Published on

राजस्थान की रजत बूंदें' सरीखी नायाब किताब लिखने वाले अनुपम मिश्र कहा करते थे कि जिस इलाके में प्रकृति ने पानी देने में थोड़ी कंजूसी की है, वहां समाज ने पानी की एक-एक बूंद को प्रसाद मानकर बेहद सलीके से सुरक्षित, संरक्षित किया है। प्रस्तुत है, बाबा मायाराम की कलम से पानी संवारने की इसी प्रक्रिया की एक कहानी।

अरावली पर्वतमाला के पश्चिम में है नागौर जिला। इस जिले का छोटा सा गांव है रोल। इस गांव का तालाब बहुत पुराना है। कहा जाता है कि यह तालाब किसी बंजारे ने बनवाया था। ये बंजारे सैकड़ों पशु लेकर चलते थे। जगह-जगह उनका पड़ाव होता था। अगर ऐसी जगह पानी के लिए तालाब नहीं होते तो वे तालाब बनवाते थे। गांव वालों के अनुसार यहां भी पशुओं को लेकर बंजारों ने डेरा डाला था, लेकिन पीने का पानी नहीं था। वे एक पीर के पास पहुंचे जिन्होंने कांसे का एक कटोरा दिया जिससे बंजारे ने मिट्टी खोदी तो पानी निकल आया। इस तरह बंजारों ने तालाब खुदवाया जो आज भी लबालब भरा रहता है। कांसे के कटोरे से खोदने के कारण इस तालाब का नाम 'कांसोलाब' पड़ा। राजस्थान व देश के कई हिस्सों में भी बंजारों द्वारा खुदवाए गए तालाब बड़ी संख्या में मिल जाएंगे।

मरुभूमि का यह इलाका सबसे कम बारिश वाले इलाकों में एक है, लेकिन गांव- समाज ने बारिश की बूंद-बूंद को सहेजकर पानी का संकट बड़ा नहीं होने दिया। यहां के लोगों ने बारिश की बूंदों को सहेजकर जीवन चलाना सीखा है जो उनकी परंपराओं में दिखता है। पानी पर लोकगीत हैं, पानी सहेजने के कई पारंपरिक ढांचे भी हैं। यह सब लोगों ने अपने श्रम, कौशल, अनुभव से न केवल बनाए हैं, बल्कि बरसों से संभाले और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाए हैं। यह पूरी पट्टी खारे पानी की है। भूजल खारा होने के कारण पानी बहुत गहराई में मिलता है जिसे निकालना काफी महंगा होता है। इसके बावजूद लोगों ने पानी के स्रोत, जैसे - नाड़ी, ताल, तलाई, बांध, तालाब, झील, खडीन इत्यादि को बचाकर रखा है।

पश्चिमी राजस्थान के तीन जिलों बाड़मेर, नागौर व जोधपुर के कई गांवों में सौ से लेकर हजार साल तक के तालाब हैं। इन तालाबों का रखरखाव गांव के लोग करते हैं। इस काम में 'उन्नति विकास शिक्षण संगठन, जोधपुर' व 'उरमूल खेजड़ी संस्थान, झाड़ेली (नागौर)' ने मदद की है। इन संस्थाओं ने काम को व्यवस्थित करने के लिए 'जल सहेली' का गठन किया है जो पंचायत के साथ मिलकर तालाब प्रबंधन में मदद कर रही हैं।

संस्था के दिलीप बीदावत ने बताया कि हमने 2019 से 2022 तक मरुस्थल के 6 जिलों के 350 गांवों में सामूहिक शोधयात्रा की, जिसमें जलस्रोतों की प्रबंधन व्यवस्था को समझने का प्रयास किया। यात्रा में अलग-अलग क्षेत्रों के 30 ऐसे तालाबों की पहचान की गई जिनकी प्रबंधन व्यवस्था काफी मजबूत थी। इन 30 तालाबों के दस्तावेजीकरण का कार्य 'डेजर्ट रिसोर्स सेंटर, बीकानेर' के साथ किया गया। इनमें से 5 उत्कृष्ट प्रबंधन व्यवस्था वाले तालाबों सहित कुल 16 तालाबों को 'वाटर लीडर्स सम्मेलन, जोधपुर' में सम्मानित भी किया गया है। बीदावत बताते हैं कि किसी भी तालाब का आंकलन करने के लिए उसका भराव, पाल, आगोर और न्यायपूर्ण वितरण देखा जा सकता है। समुदाय जिसका रखरखाव व प्रबंधन अच्छा करेगा, वही तालाब बेहतर कहलाएगा।

रोल गांब के लोगों ने इसके लिए नियम-कायदे बनाए गए हैं। गांव के मांगीलाल बताते हैं कि 'कांसोलाब' तालाब का पानी स्वास्थ्य के लिए बेहतर है। इसे जैसा पूर्वजों ने रखा, उसी तरह गांव के लोग भी इसकी हिफाजत करते हैं। इस तालाब का पानी तीन पीढी से खत्म नहीं हुआ है। जिन गांवों में पानी नहीं है उन गांवों में शादी-विवाह करने से लोग बचते हैं, पर इस गांव में ऐसी नौबत अब तक नहीं आई। लोग कहते हैं कि बेटी देनी है तो रोल में दो, वहां उसे मीठा पानी मिलेगा।

मांगीलाल बताते हैं कि तालाब का आगौर क्षेत्र 500 बीघा है। इसकी गहराई 24 फुट और भराव क्षेत्र 20 बीघा है। आगौर क्षेत्र अब तक अतिक्रमण मुक्त है। यदि कोई अतिक्रमण का प्रयास करता है तो गांव के मुखिया उसे रोकते हैं। पंचायत की तरफ से कुछ स्थानों पर तारबंदी की गई है, खाई खोदी गई है और पाल बनाई गई है जिससे अतिक्रमण रोका जा सके। इन व्यवस्थाओं में सुधार का मुख्य कारण है कि आसपास पानी का संकट दिनों-दिन बढ़ रहा है। यहां से 15-20 गांव पानी ले जाते हैं। 15 साल पहले तालाब से पानी निकालकर माटी निकाली थी जिसे लोगों ने खेतों में डाला था। यह मिट्टी काफी उपजाऊ मानी जाती है। इस तालाब के पास हनुमान, महादेव, मूराशहीद बाबा के मंदिर और पीरपहाड़ी हैं। गांव में जब मेला लगता है तब दरगाह कमेटी की तरफ से 20-30 आदमी तालाब की व्यवस्था में भागीदारी करते हैं। मेला तालाब के पास नहीं लगने देते, ताकि किसी प्रकार की गंदगी न हो।

गांव के आमीसुद्दीन ने बताया कि तालाब के प्रति सभी की आस्था है। धारणा है कि अगर इस तालाब का पानी पी लें तो बीमारी दूर हो जाती है। पत्रकार श्रवण मेघवाल के मुताबिक इस तालाब में सालभर पानी रहता है क्योंकि इसके पैंदे में लाल मिट्टी है, जो सीमेंट की तरह पानी को रोककर रखती है। पहले तालाब गहरीकरण का काम हुआ था। तालाब की स्वच्छता व सौंदर्गीकरण के लिए पंचायत में प्रस्ताव पारित हुआ था, नियम-कायदे बने थे। इन पर सख्ती से अमल किया जाता है।

मांगीलाल नियम-कायदों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि अंदर पशु जाना, नहाना, पैर धोना, जूठे बर्तन धोना आदि मना है। तालाब क्षेत्र में शौच जाना मना है। शादी-विवाह में पहले से लोगों को सूचित किया जाता है कि वे तालाब के आसपास गंदगी न करें। पहले किसी की मृत्यु हो जाती थी तो तालाब में स्नान करते थे, लेकिन अब केवल हाथ धोकर चले जाते हैं। इसके साथ ही हर अमावस्या पर सफाई होती है। 'मनरेगा' के तहत हर माह आगौर की साफ-सफाई करवाते हैं। तालाब का पानी टैंकरों से ले जाना मना है। केवल घड़े या छोटी टंकी से ले जा सकते हैं। तालाब प्रबंधन के लिए एक व्यक्ति निगरानी रखते हैं। सरपंच प्रतिनिधि सहीराम ने बताया कि पिछले साल आगौर क्षेत्र में 500 पेड़ लगाए थे, इस बार भी लगाए जा रहे हैं। इस पूरी पहल से स्कूली बच्चों व युवाओं को भी जोड़ा जा रहा है।

नागौर जिले का एक और छोटा गांव है रामसर। यहां के तालाब की सार-संभाल का जिम्मा युवाओं ने लिया है। वे न केवल इस तालाब की देखरेख कर रहे हैं, बल्कि उसके आसपास पौधारोपण की मुहिम चला रहे हैं। इस मुहिम का फौरी असर यह हुआ है कि तालाब तो स्वच्छ व साफ है ही, पक्षी भी बहुत हैं। इस क्षेत्र के युवाओं में पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी दिखाई दे रही है। रामसर तालाब की गहराई लगभग 50 फुट और आगौर 1100 बीघा का है। यह तालाब भव्य व सुंदर है। इसकी पाल के किनारे पुराने खेजड़ी के पेड़ हैं। युवाओं की पर्यावरण संस्था ने 300 से ज्यादा नए पेड़ लगाए हैं और ट्री गार्ड से उनकी सुरक्षा भी की है। इन हरे-भरे पेड़ों के कारण सैकड़ों पक्षियों का कलरव बरबस ही खींचता है। यहां मोर, उल्लू, तीतर, सोनचिडिया काफी दिखाई देते हैं। इसके अलावा हिरण भी कुलांचें भरते दिख जाते हैं। 

संस्था से जुड़े मुकेश गोड बताते हैं कि तालाब के किनारे लगे खेजड़ी के पेडों की उम्र हो गई है इसलिए नए पेड़ लगाने की जरूरत महसूस हुई। युवाओं ने पर्यावरण संस्था का गठन किया और एक वाट्सएप ग्रुप भी बनाया जिसमें 180 सदस्य हैं। इस वाट्सएप ग्रुप के माध्यम से पेड़ लगाने की मुहिम के लिए चंदा एकत्र किया गया। अब उनकी परवरिश भी की जा रही है। इसके अलावा आगौर में अतिक्रमण न हो यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है। इस पूरी मुहिम में पंचायत ने भी सहयोग दिया है। वे बताते हैं कि तालाब बुजुर्गों की धरोहर है। तालाब है तो गांव है, पहचान है।

स्रोत


लेखक बाबा मायाराम, स्वतंत्र लेखक व शोधकर्ता हैं। लोकनीति नेटवर्क के सदस्य हैं। पिछले दो दशक से पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं और इस दौरान वे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कई समाचार पत्र- पत्रिकाओं से संबद्ध रहा है । 2004 से 2006 दो वर्ष लोकनीति, सीएसडीएस में सहायक संपादक के पद पर कार्य किया। वर्ष 1999 से 2001 तक झुग्गी बस्तियों की समस्याओं पर हाशिये पर नामक पत्रिका के संपादक के रूप में काम किया। उन्होंने मासिक पत्रिका सामयिक वार्ता में संपादन सहयोग किया।

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org