नर्मदा का प्रवाह क्षेत्र

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भगवान शिव की आज्ञा से नर्मदा जो कन्या रूप में थीं तुरन्त जल रूप में परिणित होकर पश्चिम दिशा की ओर चल पडीं। उद्गम स्थल से 83 किलोमीटर तक पश्चिम तथा उत्तर पश्चिम दिशा में इनका बहाव अग्रसर होता है। इसी मार्ग में उद्गम स्थल से लगभ्ग 6 किलोमीटर पर कपिल धारा स्थान में रेवा 35 मीटर की ऊँचाई से गिरकर सुंदर व बहुत ही आकर्षक जलप्रपात बनाती हुई नीचे की ओर बढ जाती है। कुछ ही दूर पर दूधधारा नामक जलप्रपात है। इसके दोनों तट पर बहुत ही सघन व सदा हरे भ्रे रहने वाले साल वृक्षों से परिपूर्ण घाटियाँ हैं। दूधधारा से आगे घने जंगलों से नर्मदा नीचे उतरते अग्रसर होती हैं।

पहाडों से उतर कर यह नदी मैदानी इलाके को पार करती हुई डिडौरी पहुँचती है। यहाँ नदी का तल अपेक्षाकृत 2-3 मीटर नीचे है। नदी सर्पाकार होकर आगे बढती हुई कहीं गहरी,कहीं उथली होते हुए डिडौरी का इलाकार पार करती हुई मालपुर पहुँचती है। यहाँ से नर्मदा अचानक, दक्षिण की ओर घूम जाती है। आगे चलकर एक सहायक नदी बरनर नर्मदा में मिलकर संगम बनाती है। मंडला (माहिष्मती) नगर में पहुँचते ही इसका बहाव पश्चिम कुछ ही दूरी पर पुनः मोड लेकर दक्षिण की ओर बढती है। किलाघाट के सामने बंजर नदी आकर मिल जाती है। यहाँ नर्मदा मंडला को घेरते हुए उत्तर को बढ जाती है। इस तरह नर्मदा कुंडली बनाते हुए जालोद घाटी तक उत्तर दिशा गामिनी रहती है। मंडल के पास जो बंजर का संगम होता है वह अपने आप में बहुत महत्व रखता है। बडा पुण्य स्थल माना जाता है संक्रांति में बहुत बडा मेला भ्रता है। संगम पार कर नर्मदा का बहाव उत्तरीय हो जाता है जहाँ यह विशाल शिलाखंडों को चीरते आगे बढती है।

नाचते, उछलते पहाडों का मदमर्दन करते सहस्त्रधारा पहुँच कर बहुत ही भ्व्य जलप्रपात बनाते भगती जाती है। जबलपुर के पास धुआँधार जलप्रपात व भेड़ाघाट के संगम पर शिलाओं को काटते यह एक संकरे मार्ग से बहते हुए जालौद घाटी पहुँचती है। यहाँ से बहाव पुनः पश्चिम की ओर हो जाता है। धारा की चौडाई बढ जाती है। जबलपुर से होशंगाबाद के बीच लगभ्ग 104 किलोमीटर पार करती है। बीच में 3 मीटर ऊँचा एक जलप्रपात नरसिहपुर के निकट पडता है। 78 अंश पूर्वी देशान्तर से तवा नदी तक नर्मदा विध्याचल पर्वत की कगार के सहारे सर्पाकार होकर बहती है। जलोद घाटी में अनेक सहायक नदियाँ इसमें आकर मिलती हैं। नरसिहपुर जिले की बाम तटीय नदियों में शेर, शक्कर और दूधी मुख्य हैं। होशंगाबाद में बाम तटीय नदियों में तवा ही सबसे बडी सहायक नदी है। यह नदी अपने साथ बडी मात्रा में जलोदक बहाकर लाती है परन्तु मैदान में प्रवेश करते ही प्रवाह के कम होने के कारण यह एक चौडी रेतीली घाटी में फैल जाती है। तवा के पश्चिम में बहने वाली नर्मदा की एक प्रमुख सहायक नदी गंजल है।

जालोद घाटी में नर्मदा की दक्षिण तटीय सहायक नदियों में हिरण नदी सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। तन्दोनी, बारना तथा कोलार अन्य उल्लेखनीय सहायक नदियाँ हैं। हाण्डिया से बडवाहा तक नर्मदा एक पथरीली महाखड्ड से होकर बहती है। इस भग में मानधार तथा धरदी दो स्थानों पर नर्मदा मार्ग में चार-चार मीटर ऊँचे प्रताप हैं। आगे चलकर नर्मदा सपाट मैदा से अग्रसर होती है। इसके बाद पुनः यह नदी 116 किलोमीटर लंबे महाखड्ड में होकर बहती है।

धार, उच्च प्रदेश तथा निमाड के मैदान में छोटी तवा, कुंदी तथा मोई प्रमुख बाम तटीय सहायक नदियां हैं। दक्षिण तटीय सहायक नदियों में मान, उरी तथा हथनी उल्लेखनीय हैं। बडवानी नगर के पश्चिम से प्रारंभ् होने वाले 118 कि.मी. लंबे महाखड्ड से निकलकर भ्डोंच के मैदान में नर्मदा का मार्ग सर्पाकार है। इसकी घाटी लगभ्ग 1.5 किलोमीटर चौडी है। भ्डौंच नगर के पश्चिम में नर्मदा नदी एस्वरी बनाते हुए खम्भत की खाडी में सागर से मिल जाती है। भ्डौंच-बडौदा के मैदान की करजन प्रमुख बाम तटीय सहायक नदी है।

समुद्र में मिलने के पूर्व नर्मदा अपनी सारी गति खोकर स्वयं समुद्र जैसा आकार ग्रहण कर लेती है। उसके शांत और विस्तीर्ण पाट को देखकर यह कल्पना करना सहज नहीं है कि यह वही रेवा है जो मेकल, विन्ध्य की गर्वीली चट्टानों को तोडकर प्रपातों पर धुआँ उडाती गुंजन करते आगे बढती है।

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