यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में अवैध निर्माण
यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में अवैध निर्माण

नोएडा यमुना बाढ़ क्षेत्र में अवैध निर्माण: पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन और एनजीटी का हस्तक्षेप 

यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में अवैध निर्माण और पर्यावरणीय उल्लंघन पर एनजीटी का सख्त रुख। जेपी विशटाउन, नोएडा में जेपी इंफ्राटेक के खिलाफ मामला, ओखला पक्षी अभयारण्य और यमुना के पारिस्थितिक प्रभावों पर चर्चा। जानें एनजीटी के निर्देश और पर्यावरण संरक्षण के उपाय।
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यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में अवैध निर्माण: पर्यावरणीय संकट और एनजीटी की कार्रवाई  

यमुना नदी, भारत की प्रमुख नदियों में से एक, अपने बाढ़ क्षेत्र में अवैध निर्माण के कारण पारिस्थितिक संकट का सामना कर रही है। नोएडा का जेपी विशटाउन, यमुना से केवल 2 किमी दूर, पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन के लिए विवादों में है। यह क्षेत्र यमुना के डूब क्षेत्र और ओखला पक्षी अभयारण्य के अंतर्गत आता है, जो इसे अत्यंत संवेदनशील बनाता है। 14 जुलाई, 2024 को जेपी विशटाउन रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (JPVTRWA) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड के खिलाफ हरित क्षेत्रों पर व्यावसायिक निर्माण और पर्यावरणीय मानदंडों की अवहेलना का मामला दायर किया। एनजीटी ने सख्त निर्देश जारी किए, जिसमें निर्माण पर रोक और गंगा नदी (कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण आदेश, 2016 का पालन शामिल है।

यमुना बाढ़ क्षेत्र का पर्यावरणीय महत्व  

यमुना नदी का बाढ़ क्षेत्र जल संरक्षण, जैव विविधता, और बाढ़ नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण है। अनियोजित निर्माण नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करता है और बाढ़ के जोखिम को बढ़ाता है। ओखला पक्षी अभयारण्य, प्रवासी पक्षियों का महत्वपूर्ण आवास, इस क्षेत्र में स्थित है। अवैध निर्माण से अभयारण्य की जैव विविधता को खतरा है। गंगा प्राधिकरण आदेश, 2016 यमुना और उसके डूब क्षेत्र के संरक्षण को सुनिश्चित करता है, जिसका उल्लंघन गंभीर पर्यावरणीय चिंता का विषय है।  

जेपी विशटाउन मामला: पर्यावरणीय उल्लंघन के आरोप  

नोएडा में जेपी विशटाउन परियोजना, जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड द्वारा विकसित, निम्नलिखित आरोपों का सामना कर रही है:  

  • - बाढ़ क्षेत्र में अवैध निर्माण: परियोजना यमुना के डूब क्षेत्र में है, जो गंगा प्राधिकरण आदेश, 2016 का उल्लंघन है।  

  • - हरित क्षेत्रों का दुरुपयोग: टाउनशिप के हरित क्षेत्रों पर व्यावसायिक निर्माण।  

  • - ओखला पक्षी अभयारण्य पर प्रभाव: परियोजना की निकटता से अभयारण्य के पारिस्थितिक संतुलन को खतरा।  

  • - पर्यावरणीय मंजूरी की कमी: आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी का अभाव।  

नोएडा प्राधिकरण और जेपी इंफ्राटेक ने एनजीटी के जवाब मांगने के बावजूद कोई प्रतिक्रिया दाखिल नहीं की, जिससे मामले की गंभीरता बढ़ गई।  

जेपी विशटाउन रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (JPVTRWA) की भूमिका  

जेपी विशटाउन रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (JPVTRWA) ने 14 जुलाई, 2024 को एनजीटी में आवेदन दायर कर यमुना बाढ़ क्षेत्र और ओखला पक्षी अभयारण्य पर निर्माण के प्रभावों को उजागर किया। संगठन ने हरित क्षेत्रों के दुरुपयोग और पर्यावरणीय मंजूरी की कमी पर जोर दिया। संपर्क के लिए, JPVTRWA का ईमेल jpvtrwa@gmail.com और वेबसाइट www.jpvtrwa.org है (संपर्क जानकारी सत्यापन के अधीन)।  

एनजीटी के निर्देश और हस्तक्षेप  

21 अप्रैल, 2025 को एनजीटी ने निम्नलिखित आदेश जारी किए:  

  • 1. निर्माण पर रोक: जेपी इंफ्राटेक को 21 अगस्त, 2025 तक पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन करते हुए निर्माण न करने का निर्देश।  

  • 2. नियमों का पालन: प्राधिकारियों को गंगा प्राधिकरण आदेश, 2016 का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने का आदेश।  

  • 3. पर्यावरण संरक्षण: यमुना डूब क्षेत्र में कोई अवैध निर्माण स्वीकार्य नहीं।  

एनजीटी ने नोएडा प्राधिकरण और जेपी इंफ्राटेक की जवाब न देने की लापरवाही पर चिंता जताई।  

पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव  

यमुना बाढ़ क्षेत्र में अवैध निर्माण के प्रभाव:  

  • - पारिस्थितिक असंतुलन: नदी प्रवाह में रुकावट और जैव विविधता हानि।  

  • - बाढ़ जोखिम: डूब क्षेत्र में निर्माण से बाढ़ की संभावना।  

  • - ओखला पक्षी अभयारण्य: पक्षियों के आवास पर नकारात्मक प्रभाव।  

  • - सामाजिक असंतोष: पर्यावरणीय क्षति से स्थानीय निवासियों में असंतोष।  

नीतिगत सुझाव और समाधान  

जेपी विशटाउन मामला पर्यावरणीय नियमों की अवहेलना को उजागर करता है। सुझाव:  

  • 1. सख्त निगरानी: बाढ़ क्षेत्रों में स्वतंत्र समितियों द्वारा निगरानी।  

  • 2. पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए): अनिवार्य और पारदर्शी ईआईए।  

  • 3. जागरूकता अभियान: समुदायों की पर्यावरणीय जागरूकता और भागीदारी।  

  • 4. दंडात्मक कार्रवाई: उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कठोर दंड।  

यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में अवैध निर्माण पर्यावरण और सामाजिक स्थिरता के लिए खतरा है। JPVTRWA और एनजीटी की कार्रवाई महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के लिए सख्त नीतियाँ और सामुदायिक सहभागिता आवश्यक है। यह मामला विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।  

स्रोत और संदर्भ -

1. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी). (2025). *जेपी विशटाउन अवैध निर्माण मामले में आदेश, दिनांक 21 अप्रैल, 2025*. नई दिल्ली: एनजीटी।  

2. भारत सरकार. (2016). *गंगा नदी (कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण आदेश, 2016*. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय।  

3. जेपी विशटाउन रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (JPVTRWA). (2024). *एनजीटी में दायर आवेदन, दिनांक 14 जुलाई, 2024*. नोएडा: JPVTRWA।  

4. ओखला पक्षी अभयारण्य संरक्षण समिति. (2023). *ओखला पक्षी अभयारण्य पर निर्माण गतिविधियों का प्रभाव: एक अध्ययन*. नई दिल्ली।  

5. यमुना नदी संरक्षण मंच. (2024). *यमुना बाढ़ क्षेत्र में अवैध निर्माण: पर्यावरणीय प्रभाव और समाधान*. नोएडा। 

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